अगली पीढ़ी के कम्प्यूटर उपकरण डिजाइन करने की नई तकनीक
नई दिल्ली, 12 मई (इंडिया साइंस वायर): भविष्य की कम्प्यूटिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वर्तमान में प्रचलित मल्टीकोर प्रोसेसर की कंप्यूटिंग क्षमता में सुधार की आवश्यकता है। विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती अत्याधुनिक कम्प्यूटेशनल माँग को देखते हुए एप्लिकेशन-विशिष्ट प्रोसेसर के साथ-साथ अधिक कुशल एवं त्वरित रिस्पॉन्स क्षमता से लैस उपकरणों का विकास कम्प्यूटिंग उद्योग की एक प्रमुख जरूरत है। भारतीय शोधकर्ताओं ने तेज और सुरक्षित एकीकृत सर्किट (ICs) के डिजाइन के लिए नई प्रौद्योगिकी विकसित की है, जो अगली पीढ़ी के उन्नत कम्प्यूटिंग उपकरणों के निर्माण में उपयोगी हो सकती हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक्स डिजाइन प्रक्रिया में शामिल – संश्लेषण, सत्यापन और सुरक्षा के आयामों पर केंद्रित है। प्रमुख शोधकर्ता डॉ चंदन कारफा ने बताया है कि “हाई-लेवल सिंथेसिस (HLS) प्रक्रिया को मान्य करने के लिए इस अध्ययन में दो उपकरण विकसित किए गए हैं। इनमें से एक FastSim नामक ‘रजिस्टर ट्रांसफर लेवल (आरटीएल)’ सिम्युलेटर है, जो मौजूदा वाणिज्यिक सिमुलेटर से 300 गुना तेज चलने में सक्षम है। दूसरा उपकरण डीईईक्यू (DEEQ) है, जो एचएलएस के सत्यापन के लिए उपयोग होने वाला एक विशिष्ट जाँच उपकरण है।” डॉ कारफा बताते हैं कि बाजार में समान विशेषताओं वाला ऐसा कोई अन्य उपकरण फिलहाल उपलब्ध नहीं है।
आईआईटी, गुवाहाटी द्वारा विकसित इन सिमुलेटर्स के अलावा, जिन उपकरणों के प्रोटोटाइप परीक्षण के लिए उपलब्ध हैं, उसमें HOST नामक एक नई प्रौद्योगिकी भी शामिल है, जो डिजाइन चक्र के दौरान एकीकृत सर्किट (Integrated Circuits) से बौद्धिक सम्पदा (Intellectual property) चोरी के खतरे से बचा सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन हार्डवेयर एक्सीलरेटर्स विशिष्टताओं पर आधारित है, जो अक्सर C/C++ जैसी उच्च-स्तरीय कम्प्यूटिंग लैंग्वेज में होती हैं, और हाई-लेवल सिंथेसिस (HLS) प्रक्रिया में हार्डवेयर कोड या रजिस्टर ट्रांसफर लेवल (आरटीएल) कोड में परिवर्तित हो जाती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान HLS रूपांतरण डिजाइन में बग आने की आशंका होती है, जिसका पता लगाने के लिए सख्त प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है। यह काम आरटीएल सिमुलेटर करते हैं, और HLS की प्रमाणिकता को परखते हैं। यह प्रक्रिया बेहद धीमी और जटिल होती है। इसलिए, शोधकर्ताओं ने HLS की प्रमाणिकता की जाँच के लिए नये उपकरण विकसित किए हैं, जो न केवल सरल हैं, बल्कि बेहद तेज कार्य करने में सक्षम हैं।
डॉ चंदन करफा ने कहा, “कम्प्यूटेशनल दक्षता में सुधार के लिए एक आशाजनक तकनीक हार्डवेयर एक्सीलेटर्स हैं। हार्डवेयर एक्सीलेरेशन प्रक्रिया में, विशिष्ट कार्यों को सिस्टम के सीपीयू कोर द्वारा निष्पादित किए जाने के बजाय समर्पित हार्डवेयर में लोड किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, विज़ुअलाइज़ेशन प्रक्रियाओं को ग्राफिक्स कार्ड पर लोड किया जा सकता है, जिससे सीपीयू अन्य कार्यों को करने के भार से मुक्त हो जाता है।”
इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स (IoT), एम्बेडेड और साइबर-फिजिकल सिस्टम, मशीन लर्निंग और इमेज प्रोसेसिंग एप्लिकेशन जैसे क्षेत्रों में हार्डवेयर एक्सीलरेटर्स की बढ़ती माँग के कारण इस अध्ययन को महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। हार्डवेयर एक्सीलरेशन से तात्पर्य किसी सामान्य केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई (सीपीयू) पर चलने वाले सॉफ्टवेयर की तुलना में विशिष्ट कार्यों को अधिक कुशलता से करने के लिए डिजाइन किए गए कंप्यूटर हार्डवेयर के उपयोग से है। इस प्रकार के कंप्यूटर हार्डवेयर्स को ‘हार्डवेयर एक्सीलरेटर्स’ के रूप में जाना जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। आईआईटी गुवाहाटी के वक्तव्य में दावा किया गया है कि भारत सरकार द्वारा हाल ही में देश में सेमीकंडक्टर निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 76,000 करोड़ रुपये की योजना की मंजूरी के साथ, कुशल इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन ऑटोमेशन (ईडीए) के क्षेत्र में इस प्रकार के हस्तक्षेप से चिप डिजाइन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के सहयोग से यह अध्ययन किया गया है। डॉ चंदन कारफा के अलावा इस अध्ययन में मोहम्मद अब्देरहमान, देबदरा सेनापति, सुरजीत दास, प्रियंका पाणिग्रही और निलोत्पोला सरमा शामिल हैं। इन प्रयासों में योगदान देने वाले कुछ पूर्व छात्रों में रामानुज चौकसे, जय ओझा, योम निगम, अब्दुल खादर और जयप्रकाश पाटीदार शामिल हैं। यह अध्ययन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों (आईसीपीएस) के अनुदान और इंटेल (भारत) की शोध फेलोशिप पर आधारित है। इस अध्ययन के निष्कर्ष शोध पत्रिका आईईईई में प्रकाशित किये गए हैं। (इंडिया साइंस वायर)