_कैप्टन अतुल चंद्रा के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच चल रही है फिर भी एअर इंडिया पर दबाव है कि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) में चीफ फ्लाइट ऑपरेसंस इंस्पेक्टर (सीएफओआई) के रूप में उनके सेवा विस्तार के लिए उन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी कर दिया जाए। वहां वे प्रतिनियुक्ति पर हैं।_
यह आम व्यवहार है कि जिसके खिलाफ किसी आरोप की जांच चल रही हो उसे निलंबित कर दिया जाता है। पर यह चिन्ता वाली बात है कि राष्ट्रीय विमानसेवा एअर इंडिया कैप्टन अतुल चंद्रा को अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) जारी करने के लिए तकरीबन तैयार है। इस समय वे नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के तहत चीफ फ्लाइट ऑपरेशंस इंस्पेक्टर (सीएफओआई) के रूप में तैनात हैं और उनकी इस प्रतिनियुक्ति का विस्तार होना है। कैप्टन चंद्रा पर सरकारी धन के गबन / दुरुपयोग का आरोप है। एफईएमए और पीएमएलए के भिन्न उल्लंघनों के लिए प्रवर्तन निदेशालय भी उनकी जांच कर रहा है।
एअर इंडिया के सूत्रों के मुताबिक, शिखर के केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री कार्यालय के करीबी होने का दावा करने वाले भिन्न प्रभावशाली लोगों का प्रबंधन पर भारी दबाव है। ये लोग एअर इंडिया के सीएमडी राजीव बंसल पर दबाव डाल रहे हैं ताकि डीजीसीए में चंद्रा की प्रतिनियुक्ति की अवधि बढ़ा दी जाए। यह 30 जून 2020 को पूरी होने वाली है।
सीसीएस (सीसीए) नियम 1965, धारा 4, नियम 10(1) जिसे उसमें दिए गए स्पष्टीकरण के साथ पढ़ा जाता है, में साफ कहा गया है कि अगर किसी के खिलाफ जांच लंबित हो तो उसे निलंबित रखा जाना चाहिए। लेकिन कैप्टन चंद्रा के मामले में तभी नियमों को ताक पर रख दिया गया है ताकि उनकी प्रतिनियुक्ति जारी रह सके। उल्लेखनीय है कि यह एक बेहद संवेदनशील पद है और किसी भी पायलट द्वारा किए गए उल्लंघन के संबंध में उनका फैसला मान्य होता है चाहे यह पायलट एअर इंडिया का हो या किसी निजी विमानसेवा अथवा चार्टर या किसी राज्य सरकार अथवा अर्ध सैनिक बल का। ऐसी महत्वपूर्ण जगह पर प्रतिनियुक्त कोई कोई भ्रष्ट अधिकारी आम विमान यात्रियों के साथ वीवीआईपी और अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों के जीवन के साथ कैसा खिलवाड़ कर सकता है, इसकी कल्पना की जा सकती है। रिश्वत के बदले या किसी स्वार्थ के लिए ऐसा व्यक्ति उस पायलट को भी क्लीयरेंस दे सकता है जिसे विमान उड़ाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
डीजीसीए में प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले कैप्टन चंद्रा जनवरी 2017 तक एअर इंडिया के लिए काम कर रहे थे। आश्चर्यजनक रूप से श्री चंद्रा दो साल तक एअर इंडिया और डीजीसीए, दोनों से वेतन प्राप्त करते रहे। इसका खुलासा 2019 में हुआ। आंतरिक जांच के संबंध में एअर इंडिया ने डीजीसीए को लिखा कि उन्हें भारमुक्त कर दिया जाए ताकि वे वापस एअर इंडिया ज्वायन कर सकें और जांच की जा सके। हालांकि, इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया गया और इसका कारण डीजीसीए को ही पता होगा। इस तरह, चंद्रा सीएफओआई के रूप में अपनी जिम्मेदारी ‘निभा’ रहे हैं।
कालचक्र के प्रबंधकीय संपादक रजनीश कपूर ने 10 जून को इस मामले की सूचना केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) को दी और आग्रह किया कि मामले की जांच की जाए और जांच पूरी होने तक आरोपी को निलंबित किया जाएगा। कपूर कहते हैं, “यह आश्चर्य की बात है कि एअर इंडिया ने 2.8 करोड़ रुपए की राशि दो जगह से वेतन के रूप में लेने के लिए आज की तारीख तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराई है। यह सरकारी धन के गबन / दुरुपयोग का स्पष्ट मामला है और निश्चित रूप से यह एक आपराधिक कृत्य है।”
सीएफओआई का पद बेहद संवेदनशील है क्योंकि यह विमानसेवाओं और पायलट के उल्लंघनों पर नजर रखता है और इस मामले में सतर्कता बरतना उसका काम है। दूसरी ओर, चंद्रा के ऐसे स्पष्ट अपराध को एअर इंडिया और डीजीसीए के सीएमडी कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं? ये लोग नियमों का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं?
इस बीच, एअर इंडिया के कुछ अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कालचक्र से कहा कि कैप्टन चंद्रा ने सर्वोच्च नौकरशाही में अपने संपर्कों और केंद्रीय मंत्रियों के जरिए किसी तरह यह सुनिश्चित कर लिया है कि सीएफओआई के रूप में 30 जून को समाप्त हो रहा उनका मौजूदा कार्यकाल पांच साल के लिए फिर बढ़ा दिया जाए।
आम नागरिकों, वीवीआईपी और अर्ध सैनिक बलों की सुरक्षा के मद्देनजर इस मामले में पीएमओ को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि अतुल चंद्रा को मुअत्तल किया जाए और पूरे मामले की विस्तृत जांच कराई जाए तथा इसमें किसी तरह की खींच-तान या दबाव न हो। स्पष्ट है कि ऐसी हालत में चंद्रा को सीएफओआई के रूप में विस्तार नहीं दिया जा सकता है। “भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगा” जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार के दावों पर भरोसा करने वाला इस मामले में तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा करेगा।