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अब नहीं बचेगा एटमी गुंडा पाकिस्तान

पाकिस्तान के लिए मुंह छिपाने के लिए जगह नहीं मिल पा रही है। ईरान ने पाकिस्तान को चेतावनी दे दी है कि उसकी सेनाएं पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों को नष्ट कर देंगी। इरानी सेना के प्रमुख मेजर जनरल मोहम्मद बाकरी ने कहा, ईरान की पाकिस्तान से लगती पूर्वी सीमा आतंकियों की ट्रेनिंग और हथियारबंदी के लिए सुरक्षित ठिकाना बन चुकी है। इन आतंकियों की भर्ती सउदी अरब करवा रहा है। हम ये हालात कत्तई बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान आतंकी ठिकानों को बंद कर देगा।
तनातनी का दौर

पहले भी धमकी दे चुका है ईरान। पाकिस्तान और ईरान की सेना के बीच हाल के सालों में गोलीबारी की घटनाएं बढ़ी हैं. साल 2014 में जैश अल अदल ने 5 ईरानी बॉर्डर गार्ड्स को अगवा कर लिया था. इसके बाद ईरान ने चेतावनी दी थी कि गार्ड्स को छुड़वान के लिए उसकी सेना पाकिस्तान के भीतर घुसने से भी गुरेज नहीं करेगी। एक स्थानीय सुन्नी धर्मगुरु के दखल के बाद मामला सुलझ पाया था। इस धमकी से पहले बीती 28-29 सितंबर की रात पाकिस्तान को लंबे समय तक याद रखेगा। उस दिनभारतीय सेना के कमांडो ने आजाद कश्मीर में घुसकर 38 आतंकी मार गिराए। उसी समय पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर ईरान ने मोर्टार दागे। ईरान के बॉर्डर गार्ड्स ने सरहद पार से बलूचिस्तान में तीन मोर्टार दागे। पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर की मिलती सीमा है। याद रखिए कि यह वही ईरान है जिसने 1965 में भारत के साथ जंग में पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था। ईरानी नेवी भी साथ दे रही थी पाक नेवी का। और अफगानिस्तान और बांग्लादेश के पाकिस्तान के संबंधों की हकीकत हाल ही में सामने आ ही गई थी, जब इन दोनों ने भारत के साथ इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन का बहिष्कार करने का फैसला किया था। भारत के साथ भूटान का सम्मेलन से दूर रहने से कहीं अहम इन इस्लामिक देशों का पाकिस्तान को उसकी औकात बताना था। यानी पाकिस्तान नाम के इस एटमी गुंडे को अब माफ करने के मूड में नहीं हैं बहुत सारे देश।
बीती 22 सितंबर को पाकिस्तान के एक और पड़ोसी देश अफगानिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में उसे पानी पी-पीकर कोसा। अफगानिस्तान ने कहा कि पाकिस्तान आतंकी हमलों की साजिश रचकर और तालिबान तथा हक्कानी नेटवर्क जैसे समूहों को प्रशिक्षण और आर्थिक मदद देकर उसके नागरिकों के खिलाफ अघोषित युद्ध चला रहा है। अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति सरवर दानिश ने कहा कि उनके देश ने बार-बार पाकिस्तान से ज्ञात आतंकवादी पनाहगाहों को नष्ट करने के लिए कहा है। लेकिन, स्थिति में कोई तब्दीली नहीं आई है। तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को वहां (पाकिस्तान में) प्रशिक्षण और आर्थिक मदद भी दी जाती है। यानी सभी पड़ोसी देश पाकिस्तान की हरकतों से आजिज आ चुके हैं।
एटमी बम गिराने की धमकी

एटमी बम वाले गुंडे पाकिस्तान ने ईरान पर एटम बम गिराने की धमकी तक दे डाली थी। पाकिस्तान के पास एटम बम तो है, लेकिन, उसे सहेजने और उसके सही इस्तेमाल की तमीज नहीं है। ये वो मुल्क हैं जिसने परमाणु जगत के कालेबाजार से तकनीक और यूरेनियम हासिल करके परमाणु बम तो बना लिया है लेकिन उससे होने वाले विनाश की गंभीरता से नावाकिफ हैं। एटमी ताकत से लैस ये मुल्क अक्सर अपने पडïोसियों और दूसरे मुल्कों को एटम बम का रौब दिखाता है।
कुछ समय पहले जब सऊदी अरब और ईरान के बीच विवाद छिड़ा तो पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल रहील शरीफ ने कहा कि अगर ईरान ने सऊदी अरब को डराने-धमकाने की कोशिश की, तो पाकिस्तान ईरान को दुनिया के नक्शे से मिटा देगा। वही शरीफ अब सऊदी के नेतृत्व वाले 34 देशों के सैन्य समूह के चीफ बन गए हैं। इसी तरह से पाकिस्तान का रक्षा मंत्री बार-बार कहता रहता है कि जंग की हालत में हम (भारत) पर एटम बम फोड़ कर उसे नेस्तनाबूद कर देंगे। इस जाहिल रक्षा मंत्री का नाम है ख्वाजा आसिफ मुहम्मद।
अपना हुआ बेगाना

बांग्लादेश 1971 तक पाकिस्तान का अंग हुआ करता था। लेकिन, पाकिस्तान से बांग्लादेश इसलिए खफा है क्योंकि वह उसके आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने से बाज नहीं आता। बांग्लादेश में आजकल 1971 के सैन्य कत्लेआम के गुनाहगारों को लगातार फासियाँ दी जा रही है। इससे पाकिस्तान को बड़ी तकलीफ होती है। तकलीफ होनी लाजिमी है क्योंकि तब पाकिस्तान की जंगली सेना ने अपने ही देश के लाखों बांग्लाभाषियों को मार डाला था। तब पाकिस्तान सेना का वे ही लोग साथ दे रहे थे जिन्हें आजकल बांग्लादेश में सूली पर लटकाया जा रहा है।
क्या अब ये भी किसी को बताने की जरूरत है कि पाकिस्तान अपनी एटमी ताकत होने पर इतराता है। पाकिस्तान दुनिया के तमाम मुल्कों डराना-धमकाना चाहता है। दादागिरी करना चाहता है और जरा देखिए कि जिस सऊदी अरब एक ओर जहाँ पाकिस्तान के लिए ईरान को धमकाता है, वही सऊदी अरब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देता हैं। सऊदी अरब ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द किंग अब्दुल्लाजीज साश’ से सम्मानित किया। यह पुरस्कार आधुनिक सऊदी राज्य के संस्थापक अब्दुल्लाजीज अल सौद के नाम पर है।
ईरान पर हो फोकस

भारत की विदेश नीति को तय करने वालों को अब बांग्लादेश, अफगानिस्तान और ईरान पर खास फोकस रखना होगा। मौजूदा मोदी सरकार अपनी विदेश नीति में इन तीनों देशों पर विशेष फोकस दे भी रही है। अगर बात ईरान की हो तो केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, उसके बार विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और फिर स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ईरान की दो दिवसीय यात्रा पर गए थे।
ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रूहानी के निमंत्रण पर हुई अपनी यात्रा में मोदी जी ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अल खुमैनी से भी भेंट की थी। खुमैनी आमतौर पर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष से मिलते नहीं है। लेकिन, वे मोदी जी से मिले। इससे साफ है कि ईरान मोदी की यात्रा को खासी तरजीह दे रहा था।
भारत के लिए ईरान एक बहुत महत्वपूर्ण देश है। ईरान न केवल तेल का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है, बल्कि मध्य-एशिया,रूस तथा पूर्वी यूरोप जाने का एक अहम मार्ग भी है। मोदी की ईरान यात्रा इस लिहाज से भी अहम थी, क्योंकि उससे कुछ समय पहले ही अमेरिका समेत छह विश्व शक्तियों ने ईरान के ऊपर से लगा आर्थिक प्रतिबंधों को हटाया था। जहाँ तक तेल और गैस का मामला है, भारत इस नई स्थिति को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहेगा। भारत ऊर्जा से लबरेज ईरान के साथ अपने संबंधों में नई इबारत लिखने का मन बना चुका है।
भारत-ईरान में मित्रता क्यों जरूरी

अब भारत-ईरान को सम्मिलित रूप से पाकिस्तान की गुंडई को दुनिया के सामने लाने में परस्पर सहयोग करना होगा। भारत के लिए ईरान में चाबहार बंदरगाह परियोजना महत्वपूर्ण है। ईरान ने भारत को चाबहार बंदरगाह के निर्माण का काम सौंपा है। भारत इसका प्रबंधन भी देखेगा। इसे बनाने में भारत लगभग 8.5 करोड़ डॉलर खर्च करेगा। यह विदेश में स्थित भारत का पहला बंदरगाह होगा जो भारत के मुन्द्रा पोर्ट से केवल 940 किमी की दूरी पर है। चाबहार पोर्ट ईरान के दक्षिण-पूर्व प्रांत सिस्तान में है, जो चीन द्वारा बनाए जाने वाले ग्वादर पोर्ट से काफी नजदीक है। इसके निर्माण के बाद भारत के माल को मध्य-एशिया, ईरान की खाड़ी तथा पूर्वी-यूरोप तक एक तिहाई समय में पहुंचाने का काम करेगा।
चाबहार बंदरगाह भारत-ईरान संबंधों में मील का पत्थर माना जा सकता है। इस बंदरगांह से भारत अपना सामान मध्य एशिया तथा रूस तक आराम से पहुंचा सकेगा। इन सब जगहों में तेल, प्राकृतिक गैस तथा अन्य खनिज-पदार्थों के अकूत भंडार हैं। अब भारत को ईरान के साथ अपने संबंध को लेकर बहुत समझदारी से कदम उठाने होंगे। उसके गिले-शिकवे दूर करने होंगे। भारत किसी भी हालत में ईरानकी अनदेखी नहीं कर सकता। अब कहने वाले कह रहे हैं कि ईरान और पाकिस्तान के संबंध खराब हुए तो पाकिस्तान में शिया-सुन्नी एक-दूसरे की जान के प्यासे हो जाएँगे। कुल मिलाकर पाकिस्तान अब फंस चुका है, अपने ही जाल में। अब उसे कोई बचा नहीं सकता।
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)

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