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अलविदा जॉर्ज साहब!

पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस का निधन हो गया है. वे 88 वर्ष के थे. कर्नाटक के ईसाई परिवार में जन्में जार्ज को उनके पिता एक पादरी बनाना चाहते थे. लेकिन जार्ज की इसमें कोई दिलचस्पी नही थी. स्वन्त्रता के पश्चात रोजगार की तलाश में वे मुंबई पहुँचे और समाजवादी मजदूर यूनियनों से जुड़ गए.

कुछ वर्षों के भीतर वे मुम्बई के बड़े मजदूर नेता बन गए. 1961 में वे बॉम्बे नगर निगम में पार्षद बने। 1967 के आम चुनाव में जार्ज ने कांग्रेस के धाकड़ नेता सदाशिव कान्होजी पाटिल (एसके पाटिल) के खिलाफ दक्षिण बॉम्बे लोकसभा सीट पर पर्चा भरा. एसके पाटिल तब बॉम्बे के बेताज बादशाह माने जाते थे. पाटिल ने चुनाव से पहले खुद ही कहा था कि मुझे भगवान भी नही हरा सकते. जार्ज ने इसी वक्तव्य पर पूरा चुनाव लड़ा. नतीजे आये तो पाटिल 46 हजार वोटों से हार गए थे. सहसा किसी को यकीन नही हुआ कि बॉम्बे के सबसे बड़े नेता को एक नगर निगम के पार्षद ने हरा दिया है. इस जीत के बाद उन्हें ‘द जायंट किलर’ कहा जाने लगा.

1974 के रेलवे हड़ताल को अद्वितीय माना जाता है. पहली बार रेलवे पूरी तरह रुक गया था. इस हड़ताल के सूत्रधार जार्ज फर्नांडिस ही माने जाते हैं. जार्ज से परेशान होकर ही कांग्रेस ने एक जमाने मे बाल ठाकरे और शिवसेना को परोक्ष समर्थन दिया था.

आपातकाल के दिनों में भूमिगत रहकर जार्ज ने इंदिरा सरकार की नाक में दम कर रखा था. इंदिरा जार्ज फर्नांडिस को राजनीतिक प्रतिद्वंदी नही बल्कि दुश्मन मानती थी. जार्ज को खबर लग चुकी थी कि यदि वे पुलिस के हाथ लगे तो उनकी हत्या कर दी जाएगी. जार्ज को तलाशने में नाकाम पुलिस ने उनके परिवारजनों और सहयोगियों को टार्चर किया. जार्ज और उनके कुछ सहयोगियों ने वाराणसी में इंदिरा गाँधी के मंच को डायनामाइट लगाकर उड़ाने की योजना बनाई. योजना तो सफल नही हुई लेकिन सरकार ने उनपर देशद्रोह का आरोप जड़ दिया. आखिरकर कलकत्ता के एक चर्च से जार्ज गिरफ्तार कर लिए गए.

आपातकाल खत्म होने के बाद जहाँ सभी राजनीतिक बन्दी रिहा कर दिए गए वहीं जार्ज अब भी जेल में ही थे. जेल से ही जार्ज ने उत्तर बिहार की लोकसभा सीट मुजफ्फरपुर के लिए पर्चा भरा. भूमिहार बहुल मुजफररपुर की सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी. कांग्रेस के उम्मीदवार नवल किशोर सिन्हा भी भूमिहार थे. ऐसे में माना यही गया कि जार्ज बुरी तरह हार जाएंगे. लेकिन जब नतीजे आये तो जार्ज ने 3 लाख से अधिक मतों से जीत हासिल कर ली थी. उद्योग मंत्री और बाद में रक्षा मंत्री के रूप में बिहार के औद्योगिकीकरण के लिए जार्ज ने जो प्रयास किये वह किसी और नेता ने नही किया. मुजफ्फरपुर का कांटी थर्मल पावर प्रोजेक्ट और पूसा औद्योगिक क्षेत्र उन्ही की देन है. नालंदा का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने वहाँ ऑर्डनेन्स फैक्ट्री लगवाई.

लोहिया के शिष्यों में शायद जार्ज इकलौते आदमी हैं जिन्होंने कभी भी गैर-कांग्रेसवाद से समझौता नही किया. यही कारण है कि जब समाजवादी मोर्चा बिखड़ने लगा और तीसरे मोर्चे के नाम पर समाजवादी दल कांग्रेस के करीब जाने लगे तो जार्ज ने भाजपा के साथ जाना स्वीकार किया. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के संस्थापक और संयोजक के रूप में जार्ज ने बड़ी भूमिका निभाई. नए दलों को जोड़ने से लेकर न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने और गठजोड़ के विवादों को सुलझाने में भी उनकी भूमिका थी. रक्षामंत्री के रूप में उन्होंने रक्षा सौदों को बिचौलियों के दाग से मुक्त कराया और कारगिल युद्ध मे भी अपनी भूमिका निभाई. सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए वे अक्सर सियाचिन पहुँचते रहते थे. रक्षा मंत्री रहते हुए जार्ज पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें कफ़न चोर तक कह डाला. लेकिन इन आरोपों से वे पूरी तरह पाक साफ होकर बाहर निकले.

दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास में कोई दरवाजा नही था. कोई सुरक्षा अधिकारी भी नही था. जार्ज से कोई भी और कभी भी मिल सकता था. अपने कपड़े वे खुद धोते थे. बेंच पर भी आराम से रात काट लेते थे. कांग्रेस वंशवादी राजनीति के विरोध से उन्होंने कभी कोई समझौता नही किया. पिछले कुछ वर्षों से उनकी सेहत ठीक नही थी. ईमानदारी, सादगी और संघर्ष के प्रतीक जार्ज का जाना देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है.लोपक

जॉर्ज साहब!अलविदा
विनम्र श्रद्धांजलि

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