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आज भी खरे हैं तालाब

हरनंदी कहिन पत्रिका की ओर से हरनंदी हिंडन दर्शन विचार श्रृंखला के अंर्तगत राजनगर स्थित आईएमए भवन के पुस्तकालय कक्ष में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें आज भी खरे हैं तालाब विषय पर विभिन्न संस्थाओं से आए प्रतिनिधियों ने अपने विचार व्यक्त किए।
 
इस मौके पर पर्यावरणविद् पंकज चतुर्वेदी ने पौराणिक उद्धरणों के माध्यम से प्रकृति, पर्यावरण का जिक्र करते हुए आह्वान किया कि अगर हम नहीं चेते तो आने वाले समय में हमारी पीढ़ियों को भयंकर स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हम विकास के नाम पर जो शहरीकरण कर रहे हैं उससे भी प्रकृति का ही दोहन हो रहा हैं। रेत और सीमेंट के लिए हम प्रकृति को ही नष्ट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सारी अर्थ व्यवस्था आज भी कृषि पर ही आधरित हैं। प्रकृति अनमोल है इसका संरक्षण करें। उन्होंने बताया कि चीन में तीन तरह का पानी घरों में सप्लाई किया जाता हैं। पीने का पानी मात्र एक घंटे के लिए ही दिया जाता हैं। मल्टीस्टोरी भवनों के विषय में उन्हांने कहा कि केवल एशिया में ही ऐसा ही हो रहा है जबकि यूरोप में यह स्थिति नहीं हैं। हमें गांवों को इतना सशक्त बनाना होगा ताकि गांवों से पलायन रुके और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हो सके।
 
गोष्ठी का संचालन करते हुए मुख्य आयोजक प्रशांत वत्स ने हरनन्दी नदी के उद्धार का आह्वान किया और कहा कि हमें इसकी सहायक नदियों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाना होगा।  हमें आने वाली पीढ़ियों प्रति चिंतन करते हुए अभी से जागरुक होना होगा क्योंकि यदि ऐसी ही उपेक्षा चलती रही तो जलसंकट ज्यादा भयंकर साबित होगा। उन्होंने आह्वान किया कि इसके लिए युवाओं को आगे आना चाहिए।
 
राजेन्द्रनाथ पाण्डेय ने कहा कि गंगा साक्षात ईश्वर की कृपा है इसका सम्मान करना चाहिए। प्रदूषित पर्यावरण के दोषी हम सभी हैं। ज्यादा के लालच में हम प्रकृति का दोहन कर रहे हैं। नदियों को शुद्ध रखने के प्रयास की बजाय सारी गन्दगी हम नदियों में ही बहा रहें हैं।
 
के.के. दीक्षित ने मध्यप्रदेश का जिक्र करते हुए कहा कि जिस प्रकार वहां मां नर्मदा को शुद्ध किया गया है उसी प्रकार यहां हरनंदी की परिक्रमा करके उसे साफ रखने का संकल्प लिए जाने की आवश्यकता हैं।
 
इस मौके पर अरविन्द गर्ग ने कहा कि हरनन्दी का अपना महत्व है। आज नदियां इतनी प्रदूषित हो गई हैं कि पहले जहां शास्त्रों में कहा गया हैं कि प्रतिदिन गंगा या यमुना के जल का आचमन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है वहीं अब हालात यह हैं कि यदि आचमन किया तो कई प्रकार की बीमारियां हो जाएगीं।
 
डॉ. राजीव गोयल ने बढ़ती हुई जनसंख्या पर चिंता व्यक्त करते कहा कि जब हम दो सौ करोड़ हो जाएगें तो कैसे हमें शुद्ध जल, वायु मिल पाएगी। उन्होंने कहा कि घर घर में रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम की जगह सीवरेज की उचित व्यवस्था हो तो बेहतर होगा।
 
पं. दिनेश दत्त शर्मा वत्स ने कहा कि विकास की गति कुछ इस प्रकार हो कि विकास भी होता रहे और प्रकृति भी संरक्षित रहें। प्रकृति को संरक्षित करने के लिए ही कई परम्पराओं को धर्म के साथ जोड़ा गया ताकि धर्म के बहाने प्रकृति संरक्षित रह सके। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि अभी आने वाली शिवरात्रि पर लाखों कावड़िएं जल लाकर अभिषेक करते हैं। यह सारा जल नालियों में ही बह जाता हैं, जबकि पहले यह जल तालाब में संरक्षित हो जाता है। अब भी ऐसे तालाब की व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें भोले को चढ़ाया जाने वाला जल तालाब में संरक्षित रह सकें।
 
गोष्ठी में मास्टर अमरदत्त शर्मा ने तालाबों की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि आज हालात यह हैं कि जहां पहले कभी तालाब होते थे वहां आजकल खेती लहरा रही है, मकान बन गए हैं। तालाबों की भूमि पर पट्टे काट दिए गए हैं। गांवों में अब कुएं तालाब सब गायब हो गए हैं। इनके पुनुरुद्धार के लिए मुहिम चलाई जानी चाहिए।
 
प्रवीन कुमार ने कहा कि प्रायः गोष्ठियों में प्राचीन पद्धति का जिक्र किया जाता है, लेकिन सच यह है कि अब हम लौट कर वापस नहीं जा सकते। हमें समग्रता में ही समस्याओं का निराकरण करना होगा।
 
विकास गोयल ने कहा कि वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम वास्तव में हर घर में एक तालाब की ही प्रक्रिया हैं। सरकार को चाहिए कि हर घर में यह व्यवस्था निर्धारित की जानी चाहिए।
 
ए.के. जैन ने कहा कि पुरानी जीवन शैली पर लौट पाना अब सम्भव नहीं है। हमें आज के परिवेश के अनुरुप ही समाधान खोजना होगा।
 
इस मौके पर गणितज्ञ भूदेव शर्मा, विपुल गर्ग, वागीश शर्मा, अविनाश चन्द्र, कुलदीप, आर.एन. पाण्डे, वेदप्रकाश शर्मा, रेखा अग्रवाल, परविन्दर सिंह आदि भी मौजूद रहें।
 
अधिक जानकारी के लिए कृपया नीचे दिये लिंक पर जाने का कष्ट करें – 
 
VOICE OF HARNANDI utube channel – https://youtu.be/p0Pve1et6Hw

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