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इमरान की बातों पर भरोसा करना सदी की सबसे बड़ी मूर्खता होगी

एक बात हमेशा याद रखिए कि पाकिस्तान को वहां का प्रधानमंत्री नहीं चलाता, बल्कि वहां की फौज चलाती है। इसलिए इमरान खान की चिकनी-चुपड़ी बातों में जो भी आएगा, उससे बड़ा मूर्ख इस पूरे ब्रह्मांड में दूसरा कोई नहीं होगा। वहां की सेना चुनी हुई सरकारों के मनोनुकूल नहीं होने पर 1958, 1969, 1977 और 1999 में तख्ता पलट कर चुकी है। पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को तो 1979 में फांसी तक दे दी गई थी।

हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने भी तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को शरीफ समझकर दोस्ती की बस चलाने का फैसला किया था, लेकिन बदमाश पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष परवेज़ मुशर्रफ ने शरीफ का तख्ता ही पलट डाला। इसलिए, इमरान की बातों में आकर पाकिस्तान की सेना पर भरोसा करना इक्कीसवीं सदी में भारत की अब तक की सबसे बड़ी भूल होगी।

हमने कभी युद्ध की वकालत नहीं की, लेकिन भारत इतिहास के ऐसे सुनहरे मोड़ पर खड़ा है, जहां से उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। इस बार पाकिस्तान नाम के कोढ़ से धरती माता को मुक्त कर देना चाहिए। यही भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की जनता के हित में है।

सोचिए, वह दिन कितना खूबसूरत होगा, जब दशकों से जारी यह छद्म युद्ध बंद हो जाएगा, रोज़-रोज़ हमारे नागरिकों और सैनिकों की शहादतें रुक जाएंगी, आतंकवाद अधर्म की घोड़ी पर सवार होकर किसी धर्म-विशेष को बदनाम करने के लिए नहीं आया करेगा, कश्मीर का मानचित्र खंडित नहीं रहेगा, सिंध और बलूचिस्तान हमारे दोस्त होंगे और जिसे अभी पाकिस्तान कहते हैं, उसका जो भी नया स्वरूप उभरेगा, उसमें किसी को गाना गाने या स्कूल जाने की वजह से गोली नहीं मारी जाएगी।

लेकिन मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं कि यह सब तब तक नहीं होगा, जब तक कि पाकिस्तान नाम का देश धरती के नक्शे से मिट नहीं जाता, क्योंकि पाकिस्तान महज एक देश नहीं, बल्कि एक ऐसा ख़तरनाक विचार है, जो अपने कायम रहने तक विश्व-मानवता को नुकसान पहुंचाता रहेगा। इसलिए इस विचार का खात्मा अगर युद्ध से ही संभव है, तो युद्ध ज़रूरी है।

अगर उद्देश्य पवित्र हो और शांति की स्थापना हो, तो मानवता के इतिहास में युद्ध वर्जित नहीं है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥

युद्ध से हमारा तात्पर्य केवल और केवल दुष्टों के विनाश और मानवता की स्थापना से ही है। अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को आतंकवाद-मु्क्त दुनिया देनी है, तो हम अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं भाग सकते। हां, इस प्रक्रिया में जहां तक संभव हो, आम भारतीय और पाकिस्तानी नागरिकों की सुरक्षा अवश्य सुनिश्चित की जाए।

जय हिन्द। जय हिन्द की सेना।

-अभिरंजन कुमार-

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