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उत्कृष्ट विलक्षणताओं के प्रतीक हैं हनुमान

उत्कृष्ट विलक्षणताओं के प्रतीक हैं हनुमान
– ललित गर्ग –

इस संसार में सबसे बड़े भक्त है भगवान हनुमानजी, वे ऐसे भक्त हैं जो अपने भक्तों को ईश्वर से मिलाते हैं। उनको हिन्दू देवताआंे में सबसे शक्तिशाली, जागृत एवं सजीव देवता माना गया है, वे रामायण जैसे महाग्रंथ के सह पात्र थे। वे भगवान शिव के ग्यारवंे रूद्र अवतार थे जो श्रीराम की सेवा करने और उनका साथ देने त्रेता युग में अवतरित हुए थे। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। उनको बजरंगबलि, मारुतिनंदन, पवनपुत्र, केशरीनंदन आदि अनेकों नामों से पुकारा जाता है। उनका एक नाम वायुपुत्र भी है, उन्हें वातात्मज भी कहा गया है अर्थात् वायु से उत्पन्न होने वाला। उन्हें मारुतिनंदन इसलिये कहा जाता है वे हवा के बेटे हैं। मारुत का अर्थ हवा है। नन्दन का अर्थ बेटा है। वे सभी कलाओं में सिद्धहस्त एवं माहिर थे। वीरो में वीर, बुद्धिजीवियांे में सबसे विद्वान। इन्होंने अपने पराक्रम और विद्या से अनेकों कार्य चुटकीभर समय में पूर्ण कर दिए है। वे शौर्य, साहस और नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। समर्पण एवं भक्ति उनका सर्वाधिक लोकप्रिय गुण है। रामभक्त हनुमान बल, बुद्धि और विद्या के सागर तो थे ही, अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के दाता और ज्योतिष के भी प्रकांड विद्वान थे। वे हर युग में अपने भक्तों को अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं और उनके दुःखों कोे हरतेे हैं। वे मंगलकर्त्ता एवं विघ्नहर्त्ता हैं।
उत्कृष्ट विलक्षणताओं के प्रतीक हनुमान पूर्ण मानव थे। कहते हैं कि ब्रह्मा ने जब मनुष्य का निर्माण किया तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई, क्योंकि उन्हें यह अनुभूत हुआ कि उनके द्वारा सृष्ट मानव ईश्वर का साक्षात्कार करने में समर्थ है। मानव न केवल संपूर्ण प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, प्रत्युत वह अपनी साधना के द्वारा ब्रह्मपद को भी प्राप्त कर सकता है। त्रेतायुग के सर्वाधिक शक्तिशाली मानव हनुमान जिन्हें भ्रमवश अनेक देशी-विदेशी विद्वान पेड़ों पर उछल-कूद करनेवाला साधारण वानर मानते रहे हैं, अपने अलौकिक गुणों और आश्चर्यजनक कार्यों के बल पर कोटि-कोटि लोगों के आराध्य बन गये। हनुमान की विद्वता के साथ-साथ तर्क-शक्ति अत्यंत उच्च कोटि की थी। ऐसे अनेक प्रसंग है जब हनुमान ने अपनी तर्क-शक्ति से अनेक जटिल स्थितियों को सहज बना दिया। उनकी अलौकिक साधना एवं नैसर्गिक दिव्यता का ही परिणाम था कि वे भय और आशंका से भरे वातावरण में भी निःशंक और निर्भीक बने रहते थे। संकट की घड़ी में भी शांतचित्त होकर अपने आसन्न कर्तव्य का निश्चय करना उत्तम प्रज्ञा का प्रमाण है। हनुमान इस सर्वोत्कृष्ट प्रज्ञा से युक्त थे। हनुमान तटस्थ नहीं हैं। जब समाज में धर्म की हानि हो रही हो, अधर्म पुष्ट हो रहा हो, सज्जन कष्ट झेल रहे हो, दुर्जन आनन्द भोग रहे हो, राक्षस-शक्तियां हावी हो रही हो, ऐसे में हनुमान तटस्थ कैसे रह सकते थे। उन्होंने तो राक्षसी एवं दुराचारी शक्तियों को नाश करने के लिये ही जन्म लिया।
मंगलवार को हनुमानजी का जन्म हुआ, ऐसा माना जाता है। भिन्न-भिन्न लोगों ने इस महान् आत्मा का मूल्यांकन भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से किया है। हनुमान का चरित्र एक लोकनायक का चरित्र है और उनके इसी चरित्र ने उन्हें सार्वभौमिक लोकप्रियता प्रदान की है। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं में मात्र हनुमान ही ऐसे हैं जिनकी आधुनिक युग में सर्वाधिक पूजा की जाती है और जन-जन के वे आस्था के केन्द्र हैं। उनके चरित्र ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया हैै। हनुमान का चरित्र बहुआयामी हैं क्योंकि उन्होंने संसार और संन्यास दोनों को जीया। वे एक महान् योगी एवं तपस्वी हैं और इससे भी आगे वे रामभक्त हैंे। हनुमान-भक्ति भोगवादी मनोवृत्ति के विरुद्ध एक प्रेरणा है संयम की, पवित्रता की। यह भक्ति एक बदलाव की प्रक्रिया है। यह भक्ति प्रदर्शन नहीं, आत्मा के अभ्युदय का उपक्रम है। इससे अहं नहीं, निर्दोष शिशुभाव जागता है। क्रोध नहीं, क्षमा शोभती है। कष्टों में मन का विचलन नहीं, सहने का धैर्य रहता है।
भारत ही नहीं, विश्व के इतिहास में किसी ऐसे मानव का उल्लेख नहीं मिलता, जिसमें शारीरिक बल और मानसिक शक्ति का एक साथ इतना अधिक विकास हुआ हो जितना हनुमान में हुआ था। प्राचीन भारत में ब्रह्मतेज से युक्त अनेक महामानव हुए। इसी प्रकार इस पावनभूमि में ऐसे विशिष्ट व्यक्ति भी हुए जो शारीरिक बल में बहुत बलशाली थे, परन्तु ब्रह्मतेज के साथ-साथ शास्त्र-बल का जो आश्चर्यजनक योग हनुमान में प्रकट हुआ, वह अन्यत्र दिखाई नहीं पड़ता। शुद्ध आचार, विचार और व्यवहार से जुड़ी हनुमान की ऐसी अनेक चारित्रिक व्याख्याएं हैं जिनमें जीवन और दर्शन का सही दृष्टिकोण सिमटा हुआ है।
हनुमान को बुद्धिमानों में अग्रगण्य माना जाता है। ऋग्वेद में उनके लिए ‘विश्ववेदसम्’ शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका अभिप्रेत अर्थ है- विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ। हनुमान अपने युग के विद्वानों में अग्रगण्य थे। उनकी गणना सामान्य विद्वानों में नहीं, बल्कि विशिष्ट विद्वानों में की जाती थी। वाल्मीकि रामायण में हनुमान को महाबलशाली घोषित करते हुए ‘बुद्धिमतां वरिष्ठं’ कहना पूर्ण युक्ति संगत है। ‘रामचरितमानस’ में भी उनके लिए ‘अतुलित बलधामं’ तथा ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम’ इन दोनों विशेषणों का प्रयोग द्रष्टव्य है। ब्रह्मचारी हनुमानजी महान् संगीतज्ञ और गायक भी थे। इनके मधुर गायन को सुनकर पशु-पक्षी एवं सृष्टि का कण-कण मुग्ध हो जाता था।
प्राचीन भारत की सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत और व्याकरण पर हनुमान का असाधारण अधिकार था। हनुमान ने सूत्र, वृत्ति, वार्तिक, महाभाष्य तथा संग्रह का भली-भांति अध्ययन किया था। अन्यान्य ग्रंथों तथा छंद-शास्त्र के ज्ञान में भी उनकी समानता करनेवाला कोई नहीं था। संपूर्ण विद्याओं के ज्ञान में उनकी तुलना देवताओं के गुरु बृहस्पति से की गयी है। महर्षि अगस्त्य के अनुसार हनुमान नवों व्याकरणों के अधिकारी विद्वान थे। नोबेल पुरस्कार विजेता आक्टाभियो पाज का भी यह सुनिश्चित मत है कि हनुमान ने व्याकरण शास्त्र की रचना की थी।
मारुति नंदन, परमवीर, श्रीराम भक्त हनुमानजी की पवित्र मन से की गयी साधना और भक्ति चमत्कारपूर्ण परिणाम देने वाली है। हनुमानजी शिव के अवतार माने जाते हैं और ग्यारहवें रुद्र के रूप में इनकी मान्यता है। कहते हैै-मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सार्वकालिक सेवा करने एवं रावण-वध में उनका सहयोग करने के लिए भगवान राम का अवतार लेने से पूर्व ही त्रेतायुग में शिवजी ने अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में अवतार लिया था। वह ‘हनुमानजी’ के पवित्र लोकोपकारी नाम से विख्यात हुए। महादेव का हनुमान के रूप में अवतरण लेने के सन्दर्भ में कहा जाता है कि भगवान विष्णु महादेव के इष्ट देव हैं। वे उनके श्रीचरणों के शाश्वत पुजारी हैं। त्रेतायुग में रावणादि राक्षसों का सकुल संहार करके उनका उद्धार करने के लिए ही भगवान विष्णु अयोध्या के महाराज दशरथ के यहां अपनी सोलह कलाओं सहित पुत्र रूप में अवतरित हुए। अतः उनकी सेवा करने के लिए महादेव ने हनुमान के रूप में अवतार लिया।
तंत्र शास्त्र के आदि देवता और प्रवर्तक भगवान शिव हैं। इस प्रकार से हनुमानजी स्वयं भी तंत्र शास्त्र के महान पंडित हैं। समस्त देवताओं में वे शाश्वत देव हैं। परम विद्वान एवं अजर-अमर देवता हैं। वे अपने भक्तों का सदैव ध्यान रखते हैं। उनकी तंत्र-साधना, वीर-साधना है। वे रुद्रावतार और बल-वीरता एवं अखंड ब्रह्मचर्य के प्रतीक हैं। अतः उनकी उपासना के लिए साधक को सदाचारी होना अनिवार्य है। उसे मिताहारी, जितेन्द्रिय होना चाहिए। हनुमान साधना करने के लिए हर व्यक्ति उसका पालन नहीं कर सकता, इसलिए इस चेतावनी का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हनुमानजी को सिद्ध करने का प्रयास भौतिक सुखों की प्राप्ति या चमत्कार प्रदर्शन के लिए कभी नहीं करना चाहिए। उनकी भक्ति के माध्यम से भगवान राम के दर्शन तथा उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। यह भक्ति हृदय की पवित्रता से ही संभव है और इसी से व्यक्ति घर और मन्दिर दोनों में एक-सा होता है। कहा जाता है की श्री हनुमानजी का जन्म ही राम भक्ति और उनके कार्यो को पूर्ण करने के लिए हुआ है। उनकी सांस-सांस में, उनके कण-कण में और खून के कतरे-कतरे में राम बसे हैं। एक प्रसंग में विभीषण के ताना मारने पर हनुमानजी ने सीना चिरकर भरी सभा में राम और जानकी के दर्शन अपने सीने में करा दिए थे।
हनुमान की भक्ति या उनको पाने के लिये इंसान को इंसान बनना जरूरी है। जब तक भक्ति की धारा बाहर की ओर प्रवाहित रहेगी तब तक भगवान अलग रहेंगे और भक्त अलग रहेगा। हनुमान भक्ति के लिये जरूरी है उनके जीवन से दिशाबोध ग्रहण करो और अपने में डूबकर उसे प्राप्त करो। ‘जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ’- यही है सच्ची हनुमान भक्ति की भूमिका। भक्ति का असली रूप पहचानना जरूरी है, तभी मंजिल पर पहुंचेंगे, अन्यथा संसार की मरुभूमि में ही भटकते रह जायेंगे।

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