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एकेडमिक्स फॉर नमो: मोदी के पुनर्वापसी हेतु प्रबुद्ध वर्ग का प्रयास

पिछले पांच मार्च को राजधानी दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के करीब 30 प्रोफेसरों ने मिल कर “एकेडमिक्स फॉर नमो” अभियान शुरू किया जो बुद्धिजीवी समुदाय में मोदी सरकार के मायने और मोदी सरकार के काम से आये बदलाव को लेकर गुणवत्ता पूर्ण बहस शुरू करने और इस वर्ग में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए शुरू किया है। एकेडेमिक्स फॉर नमो का मानना है कि विगत 5 वर्ष में मोदी ने बहुत ही अच्छे काम किए हैं और इस वजह से उन्हें एक और मौका मिलना चाहिए |

एकेडमिक्स फॉर नमो अभियान के सूत्रधार और दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक डॉ. स्वदेश सिंह का कहना है कि अगर मोदी के विरोध में प्रबुद्ध समाज का एक हिस्सा कुछ कारणों से खड़ा हो सकता है तो वहीं उन लोगों को जिनको ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी ने 5 वर्ष में कई अच्छे काम किए हैं, उन्हें आगे आना चाहिए और ऐसे लोगों को नरेंद्र मोदी के समर्थन में अभियान चलाकर प्रबुद्ध समाज के लोगों को समझाना चाहिए। 

अभियान की कोर कमेटी के अन्य सदस्य डॉ तरुण गर्ग के अनुसार जब नरेंद्र मोदी ने पांच साल पहले प्रधानमंत्री का पद स्वीकार किया, तब देश ने भ्रष्टाचार के खिलाफ और एक विकास मॉडल के लिए निश्चित रूप से मतदान किया था। मोदी एक निर्णायक, दूरदर्शी और साफ-सुथरी सरकार का प्रतिनिधित्व करते आए हैं और 2019 में, पुनः एक निर्णायक, दूरदर्शी और साफ-सुथरी सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए मोदी जैसे प्रधानमंत्री की आवश्यकता है। 

एकेडमिक्स फॉर नमो अभियान के तहत अब तक देश के अलग-अलग हिस्सों में 250 से अधिक छोटी-छोटी बैठकें आयोजित की गई जिसमें सैकड़ों प्राध्यापकों और शोध छात्रों ने हिस्सा लिया. युवा शोधार्थियों और प्राध्यापकों के लिए निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमें सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया. अभियान की वेबसाइट पर नियमित रूप से लेख प्रकाशित होते रहते हैं. मार्च के अंत तक पंद्रह सौ से अधिक चिंतक, विचारक और प्राध्यापक जुड़ चुके थे जो आंकड़ा अब दो हजार पार कर चुका है. 

एकेडमिक्स फॉर नमो के एक और सदस्य और जेएनयू में प्राध्यापक डॉ सुधीर के अनुसार विपक्षी दलों और उनके समर्थक संगठनों ने असहिष्णुता, अवॉर्ड वापसी, रोहित वेमुला, गोरक्षक आदि के जुमले गढ़कर मोदी को बदनाम करने की कोशिश की की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। जिस सरकार में अनुसूचित जाति के विधायकों और सांसदों की अधिकतम संख्या है, एसटी और ओबीसी समुदाय के वर्गों के लिए बैकलॉग प्रविष्टि को मंजूरी दी और महिलाओं को सभी नीति निर्माणों का केंद्र बनाया और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने वाली सरकार को ‘अल्पसंख्यक-विरोधी’, ‘दलित-विरोधी’ और ‘महिला-विरोधी’ बताया। 

इस अभियान से शुरुआत से जुड़े हिंदी संस्कृति संस्था के अध्यक्ष संदीप ठाकुर ने बताया कि किसी एक मुद्दे को लगातार उठाने और उस पर तेजी से आगे बढ़ने से विपक्ष उन लोगों के बीच संदेह और अस्थिरता की भावना पैदा करने का प्रयास करता है जो प्रधानमंत्री में विश्वास करते हैं। विपक्ष के पास चर्चा करने के लिए कोई विचार नहीं है,  इसी वजह से वह कई असंबंधित चीजों को जोड़कर महज गड़बड़ी पैदा करना चाहता है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्थन देने के लिए हमने प्रबुद्ध लोगों का यह अभियान शुरू किया है। 

आज एकेडमिक्स फॉर नमो अभियान के तहत उससे जुड़े लोग विभिन्न प्रांतों और शहरों के शिक्षण संस्थानों में मोदी सरकार के कार्यकाल में आये ऐतिहासिक परिवर्तन को अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित कर रहे हैं। इस अभियान में प्रबुद्ध समाज से जुड़ा हर वर्ग जैसे… प्रोफेसर, चिंतक, विचारक, स्तंभकार आदि वर्गों से अपील की जा रही है कि वो मोदी के पक्ष में बोलें, लिखें और लोगों को समझाएं | इस अभियान से जुड़े एक प्रोफेसर का कहना था कि अगर मोदी ही एजेंडा बन गए हैं तो क्यों न उनके समर्थन में प्रबुद्ध समाज के लोग खड़े हो जाएं, क्योंकि प्रबुद्ध समाज के लोग समाज के आगे मशाल लेकर चलते हैं और रास्ता दिखाते हैं | 

एकेडमिक्स फॉर नमो की अब तक की सफलता की बात करें तो इस पहल को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व काफी उत्साहित है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने 25 मार्च को इसे अपनी वेबसाइट पर स्थान दिया।इससे पहलेसोशल मीडिया पर हैशटैग एकेडमिक्स फॉर नमो ट्रेंड करता रहा। अब जब चुनाव गर्मी पूरी तरीके से बढ़ चुकी है तो एकेडमिक्स फॉर नमो देश के अलग-अलग हिस्सों में कुछ बड़े कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रहा है।

 
Swadesh Singh

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