यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) दिवस पर एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया ने भारत सरकार से अपील की कि स्वास्थ्य कार्यक्रम में रोगों की जांच और इलाज पर ध्यान देना जितना ज़रूरी है उतना ही महत्वपूर्ण है रोग नियंत्रण. एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ ईश्वर गिलाडा, जो हाल ही में इंटरनेशनल एड्स सोसाइटी की संचालन समिति में नव-निर्वाचित हुए हैं, ने बताया कि दशकों से सुरक्षित यौन सम्बन्ध के प्रचार के बावजूद, पिछले सप्ताह के समाचार के अनुसार, मुंबई में अब भी असुरक्षित यौन सम्बन्ध, 90% से अधिक नए एचआईवी संक्रमण का कारक है. हम लोगों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एचआईवी संक्रमण रोकने के अभियान अधिक प्रभावकारी बने जिससे नतीज़तन नए एचआईवी संक्रमण दर में गिरावट आये, और वह शून्य हो सके.
1986 में जब भारत में पहला एचआईवी संक्रमण पाया गया था तो जिन चिकित्सकों ने आगे बढ़ कर सर्वप्रथम एड्स सम्बंधित चिकित्सकीय सेवा देना आरम्भ किया उनमें डॉ ईश्वर गिलाडा प्रमुख थे. डॉ गिलाडा ने बताया कि 193 देशों ने संयुक्त राष्ट्र में 2030 तक एड्स को समाप्त करने का वादा किया है (सतत विकास लक्ष्य) जिसका अर्थ है कि नए एचआईवी संक्रमण दर शून्य हो, और हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए सामान्य जीवनयापन कर रहा हो. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ज़रूरी है कि भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और संयुक्त राष्ट्र के एड्स कार्यक्रम (UNAIDS) दोनों के अनुसार, 2020 तक एचआईवी का 90:90:90 का लक्ष्य पूरा करना है: 2020 तक 90% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को यह पता हो कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं; जो लोग एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हुए हैं उनमें से कम-से-कम 90% को एंटीरेट्रोवायरल दवा (एआरटी) मिल रही हो; और जिन लोगों को एआरटी दवा मिल रही है उनमें से कम-से-कम 90% लोगों में ‘वायरल लोड’ नगण्य हो.
यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जिन लोगों को एचआईवी संक्रमित होने का खतरा अधिक है जैसे कि इंजेक्शन से नशीली दवा लेने वाले लोग, यौन कर्मी, समलैंगिक लोग और ट्रांसजेंडर/ हिजरा समुदाय, आदि, उनमें 90-90-90 के लक्ष्य की ओर ठोस प्रगति हो रही हो.
अमृता सोनी एक सफल एमबीए डिग्री धारक हैं जो एचआईवी पॉजिटिव ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में मौलिक अधिकारों पर कार्य कर रही हैं. उन्होंने सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) द्वारा आयोजित विश्व एड्स दिवस पर आयोजित वेबिनार में कहा कि एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी दवा मिलने का समय अक्सर एक चुनौती उत्पन्न करता है क्योंकि ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग दैनिक आय कमाने गए होते हैं, और जब तक वह वापिस आते हैं तब तक दवा वितरण केंद्र बंद हो जाते हैं. अमृता सोनी ने कहा कि ट्रांसजेंडर लोगों को जो ज़रूरी एचआईवी सम्बंधित एवं अन्य स्वास्थ्य सेवा चाहिए वह सब एक ही केंद्र में उपलब्ध हों. ट्रांसजेंडर समुदाय को जो समस्याएँ आ रही हैं वह अक्सर स्वास्थ्यकर्मी समझ नहीं पाते इसलिए मददगार होगा यदि ट्रांसजेंडर लोगों को ही वहां रोज़गार मिले.
ट्रांसजेंडर वेलफेयर इक्विटी एंड एमपावरमेंट ट्रस्ट से जुड़ी सौम्या गुप्ता, हिजरा और ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए समर्पित रही हैं. उन्होंने कहा कि आजीविका कमाने के सम्मानजनक विकल्प ज़रूरी हैं यदि ट्रांसजेंडर सामुदाय के लिए स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में सुधार लाना है.
नए एचआईवी संक्रमण दर में गिरावट
‘एवाक’ के अध्यक्ष और वरिष्ठ एचआईवी संक्रमण रोकधाम विशेषज्ञ डॉ मिचेल वारेन ने कहा कि 90-90-90 के लक्ष्यों को अक्सर सिर्फ एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए एंटीरेट्रोवायरल दवा के परिप्रेक्ष्य में ही समझा जा रहा है जबकि संक्रमण नियंत्रण के लिए 90-90-90 पर प्रगति करना तो ज़रूरी है ही पर उतना ही आवश्यक है कि संक्रमण से बचाव के सभी कारगर साधन भरपूर तरीके से उपयोग हो रहे हों. उन्होंने कहा कि विज्ञान की देन है कि अनेक नए एचआईवी बचाव साधन पिछले वर्षों में उभर कर आये. पर क्या इन नए साधनों से एचआईवी दर में अपेक्षित गिरावट आई है? 1993 में फीमेल कंडोम (महिला कंडोम) आया पर क्या वह अवांछित गर्भ, यौन रोग और एचआईवी से बचने में महिलाओं की मदद कर सका? 2012 में प्री-एक्सपोज़र प्रोफाईलाक्सिस (प्रेप) आया पर भारत में अभी तक वह उपलब्ध नहीं है. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित एचआईवी रोकधाम साधान पूरी तरह इस्तेमाल हो रहे हों, विशेषकर कि उन समुदायों द्वारा जिनके संक्रमित होने का खतरा अधिक है.
जितना ज़रूरी इन 90-90-90 लक्ष्यों को पूरा करना है उतना ही आवश्यक है कि नए एचआईवी संक्रमण दर में गिरावट तेज़ी से आये और वह शून्य हो सके. पिछले हफ्ते प्रकाशित समाचार के अनुसार मुंबई में 2017 में हुए नए एचआईवी से संक्रमित लोगों में से 3.7% बच्चे थे. थाईलैंड जैसे देशों ने माता-पिता से बच्चे को संक्रमित होने वाले एचआईवी को पूरी तरह समाप्त कर दिया है और भारत को भी उसी दिशा में तेज़ी से अग्रसर है.
जिन लोगों को एचआईवी से संक्रमित होने का खतरा अत्याधिक है, उनके लिए यह विशेषरूप से सुनिश्चित हो कि सभी वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित एचआईवी संक्रमण रोकने के तरीके उन तक पहुँच रहे हों. दशकों के प्रचार के बावजूद भी एचआईवी, अन्य यौन रोग और अनवांछित गर्भ से बचने के लिए, पुरुष कंडोम का उपयोग दर बहुत कम है. अमरीका के ऍफ़डीए ने 1993 में महिला कंडोम को संस्तुति दी थी पर क्या वह एचआईवी, यौन रोग और अनवांछित गर्भ से बचने में इच्छुक महिलाओं के लिए उपलब्ध हो पाया है? अमरीका के ऍफ़डीए ने 2012 में ‘प्रेप’ (प्री-एक्सपोज़र प्रोफाईलेक्सिस) को एचआईवी संक्रमण से बचने के लिए संस्तुति दी थी परन्तु अभी वह भारत में लाइसेंस तक नहीं हुआ है. वैज्ञानिक शोध से नयी दवाएं, जांच और रोग से बचने के नए साधनों को हम जन-स्वास्थ्य परिणामों में परिवर्तित करने में क्यों असफल हो रहे हैं या क्यों अनावश्यक स्थगित कर रहे हैं?
वैज्ञानिक रूप से यह सत्य है कि टीबी (ट्यूबरक्लोसिस या तपेदिक) से बचाव मुमकिन है, और पक्की जांच और इलाज मुमकिन है. परन्तु 2017 में भी एचआईवी पॉजिटिव लोगों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण टीबी थी. सालों से टीबी और एचआईवी के संयुक्त कार्यक्रम सक्रीय हैं पर इनके बावजूद, 2017 में 9 लाख एचआईवी पॉजिटिव लोग टीबी से रोग ग्रस्त हुए, और 3 लाख एचआईवी पॉजिटिव लोग टीबी से मृत हुए.
डॉ ईश्वर गिलाडा ने बताया कि भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और सतत विकास लक्ष्य दोनों में यह वादा दोहराया है कि 2030 तक हर नागरिक तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचेगी (यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज) – जो न केवल एड्स को समाप्त करने में सहायक होगी बल्कि स्वास्थ्य सुरक्षा का सपना भी पूरा करेगी. उन्होंने अपील की कि हर व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवा पहुँचाने के साथ-साथ रोग नियंत्रण भी प्राथमिकता बने.