डॉ. वेदप्रताप वैदिक
2017 का साल कश्मीर के लिए बहुत बुरा रहा। कितने आतंकी हमले हुए और कितने लोग मारे गए- यह बताने की जरुरत नहीं है। सबको पता है। यह सब कुछ तब हो रहा है, जबकि केंद्र और कश्मीर, दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। यहां प्रश्न यह उठता है कि कांग्रेस और भाजपा, दोनों की ही कश्मीर नीति क्या एक-जैसी नहीं है ? कांग्रेस ने तो अलगाववादियों से बातचीत के रास्ते भी कई बार खोले थे। लेकिन मोदी सरकार न बात चलाती है और न ही लात चलाती है। जो बात न चला सके, उसे लात तो जरा मुस्तैदी से चलानी चाहिए। यदि चलाई होती तो सर्जिकल स्ट्राइक, फर्जीकल स्ट्राइक सिद्ध नहीं हो जाती। आतंकियों के दिल में सरकार की लात की दहशत होती तो क्या अमरनाथ के यात्रियों पर हमला हो सकता था ? इस हमले ने कश्मीरियत और इस्लाम दोनों को कलंकित कर दिया है। पाकिस्तान और कश्मीरी आतंकियों को पता है कि दिल्ली की सरकारें सिर्फ बातें बनाती हैं। दब्बू हैं। डरपोक हैं। खाली दिमाग हैं। उनके पास कोई रणनीति नहीं है। कश्मीर में उन्होंने फौजें अपना दिल बहलाने के लिए अड़ा रखी हैं। वरना कौन पढ़ा-लिखा मुसलमान स्पेन का इतिहास नहीं जानता ? अब से लगभग 500 साल पहले स्पेन की महारानी ईसाबेल ने क्या किया था ? पांच लाख मुसलमानों में से एक को भी स्पेन में रहने नहीं दिया था। या तो उन्हें ईसाई बनना पड़ा या स्पेन छोड़ना पड़ा। यदि अलगाववादी इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को समर्थन कर रहे हैं तो वे याद रखें कि कश्मीर में भी कोई ईसाबेल जैसा काम कर सकता है। तब कश्मीर में सिर्फ कश्मीरियत रह जाएगी, कश्मीरी इस्लाम इतिहास का विषय बन जाएगा। मैं नहीं चाहता कि कश्मीर ऐसे अतिवाद की विभीषिका से गुजरे लेकिन आतंकवाद इसी तरह चलता रहा तो कोई आश्चर्य नहीं कि वह दिल्ली में किसी अतिवादी ईसाबेला को जन्म दे दे। याद रखें कि लेनिन और स्तालिन ने मध्य एशिया के कठमुल्लों को कैसे सीधा किया था और च्यांगकाई शेक व माओ ने सिंक्यांग के उइगर मुसलमानों का क्या हाल किया था। अभी व्लादिमीर पुतिन ने चेचन्या के इस्लामी आतंकियों को कैसे जहरीली गैस और बमों के गलीचे उनके सिर पर बिछाकर ढेर कर दिया है। यदि सरकार ठान ले कि वह भी आतंक का जवाब आतंक से देगी तो कौन बचेगा ? मुट्ठीभर आतंकियों के खातिर शहर के शहर कब्रिस्तान में बदल जाएंगे। मैं नहीं चाहता हूं कि ऐसा हो।