डॉ. वेदप्रताप वैदिक
जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने दिल्ली की एक संगोष्ठी में जो कहा, वह नहीं कहती तो क्या कहतीं ? उन्होंने कहा कि यदि संविधान की धारा 370 और 35 ए को आपने हटा दिया तो कश्मीर की घाटी में कोई तिरंगा ध्वज फहरानेवाला भी नहीं मिलेगा। इन दोनों धाराओं को लेकर इतनी सख्त बात उन्होंने क्यों कही ? इसका पहला कारण तो यह है कि कश्मीर उनसे संभल नहीं रहा। उनके शासन के दौरान कश्मीर में जैसा कोहराम मच रहा है, वैसा पिछले शासनों में कम ही मचा है। दूसरा, भाजपा के साथ मिलकर सरकार चलाने को ज्यादातर अलगाववादी नेता काफिराना हरकत मानते हैं। महबूबा को पता है कि अगले चुनाव में यही तथ्य उनके गले का पत्थर बन जाएगा और यह उन्हें डुबो देगा। तीसरा, महबूबा के राजनीतिक विरोधी फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला आजकल कश्मीर की घटनाओं पर जिस तरह के बयान दे रहे हैं, वे कश्मीरी वोटरों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी राजनीतिक काट करने के लिए महबूबा ऐसा तेवर अख्तियार कर रही हैं, जो अलगाववादियों को भी अच्छा लगे। चौथा, महबूबा के बयान को पाकिस्तान में भी सराहा जा रहा है। अर्थात कश्मीर के पाकिस्तानपरस्त तत्वों में उनका विरोध पतला पड़ सकता है।
कारण जो भी हों, महबूबा का यह बयान लगभग निरर्थक है, क्योंकि पिछले 60-65 साल में संविधान की ये दोनों धाराएं– 370 और 35 ए, घिसते-घिसते अब बिल्कुल चेहराविहीन हो गई हैं। अपना प्रांतीय संविधान और प्रांतीय ध्वज तो सिर्फ दिखावे की चीजें हैं। कश्मीर अब भारत के अन्य राज्यों से भी बदतर हालत में है। क्या इतनी हिंसा, इतना असंतोष, इतनी असुरक्षा, इतनी फौज, केंद्र पर इतनी निर्भरता किसी अन्य राज्य की है ? तो फिर इस धारा 370 द्वारा कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा क्या शुद्ध पाखंड नहीं है ? इस पाखंड को खत्म करने की आवाज लगानेवाला नेता आज कश्मीर में कोई है क्या ? यह महबूबा और फारुक के बूते के बाहर की बात है। कश्मीर को भारत के एक सहज और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की आवाज शेख अब्दुल्ला-जैसा कोई बड़ा नेता ही कर सकता था। धारा 370 ने कश्मीर को एक अधूरा और अधमरा प्रांत बना दिया है। धारा 370 के शिकंजे से जब तक कश्मीर आजाद नहीं होगा, कश्मीर में शांति नहीं होगी। कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने की आवाज पता नहीं कौन उठाएगा ?