कश्मीर में केंद्र सरकार की बड़े बदलाव की कोशिशें कुछ महीनों से दिख रही थीं किंतु ये बदलाव इतने व्यापक व क्रांतिकारी होंगे इसका अंदाजा शायद ही किसी को था। अनुच्छेद 370 व धारा 35 ए की समाप्ति पर संसद की मुहर अपने आप में एक ऐसी पहल बन गयी जिसने पूरे राष्ट्र को एक सूत्र व एक विधान में बांध दिया। आजादी के समय से ही विभाजन के दंश व कश्मीर के जख्म सीने में लिए देश की जनता कश्मीर पर अपनी सरकारों व शासकों से एक मजबूत व निर्णयकारी पहल की अपेक्षा की बाट जोहती रही मगर सत्ता कश्मीर के तीव्र इस्लामीकरण की कोशिश करने वालों को शह देती रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की वर्तमान सरकार ने जो साहसिक कदम उठाया है उसके लिए आने वाली पीढिय़ां भी उनकी ऋणी रहेंगी। इस युगांतकारी कदम ने जहां भारतीय राष्ट्रीयता को नए आयाम दिए वहीं वर्तमान में आक्रामक राजनय की आवश्यकता को भी स्थापित किया। जिस कुशलता से भारत ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग थलग किया व पूरे जम्मू कश्मीर में बिना किसी हिंसा के अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की उसमें गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का रणनीतिक कौशल सामने आया व देशवासियों का मान बढ़ा। कश्मीर भारतीय संस्कृति का मान बिंदू है मगर किस प्रकार अनेक साजिशों व षड्यंत्रों का शिकार हो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंक की भूमि बन बैठा इसका विश्लेषण जरूरी है, साथ ही यह जानना भी जरूरी है कि पाक अधिकृत कश्मीर भारत के लिए क्यों जरूरी है। अनेकों लेखकों व विद्वानों के शोध व अनुसंधान पर आधारित पेश है हमारी आवरण कथा :
सही समय पर लिया गया निर्णय
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर-लद्दाख के संदर्भ में की गई कार्रवाई के बारे में कुछ बातें अब स्पष्ट होती जा रही हैं।
सर्वप्रथम, मुफ्ती परिवार के साथ गठबंधन सरकार चलाने के पीछे भाजपा की रणनीति यह थी कि पूरे क्षेत्र में छोटे- बड़े सभी सरकारी कर्मचारियों के बारे में पता कर लिया जाए कि किसकी सहानुभूति किसके साथ है तथा कौन कितना कुशल साबित हो सकता है। गांव से लेकर कस्बे तक, एक-एक कॉन्स्टेबल, पटवारी, डॉक्टर, इंजीनियर, लेखाकार, सभी के बारे में जानकारी एकत्रित की गयी। इसी गठबंधन सरकार से ही भाजपा को भीड़ और दंगाईयों के बारे में तथा उन्हें कंट्रोल करने के बारे में भी डेटा मिल गया। एक-एक फाइल और रिपोर्ट को पढऩे का अवसर मिला, जो सरकार के बाहर होने से कभी भी संभव नहीं था।
द्वितीय, प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगियों का सदैव से यह उद्देश्य था कि धारा 370 की अलगाववादी भाषा को समाप्त किया जाए। लेकिन उसके लिए ग्राउंड तैयार करना होता है जिसमें पिछली सरकार का समय चला गया। इस रणनीति के तहत खाड़ी के देशों से संबंधों को प्रगाढ़ बनाना तथा उनके साथ व्यवसाय को बढ़ाना, अमेरिका, इजराइल और यूरोप के सभी देशों से राजनैतिक और व्यावसायिक पार्टनरशिप और मजबूत करना शामिल था।
अगर आप ध्यान देंगे तो जून 2017 में वे पुर्तगाल गए थे। जाने के पहले उन्होंने वहां जंगल में आग लगने के कारण हुई मृत्यु पे ट्विटर पर शोक संदेश प्रसारित किया था। कई लोगों ने इस संदेश की आलोचना भी की थी। लेकिन वे यह भूल गए थे कि इसी पुर्तगाल के ही नागरिक इस समय संयुक्त राष्ट्र के महासचिव हैं। इसी प्रकार वे कई बार साउथ कोरिया गए जहां के नागरिक बान की-मून 2016 तब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव थे। यह दोनों महासचिव भारत की यात्रा कई बार कर चुके हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन के नेताओं से वे कई बार मिल चुके हैं क्योंकि वह सभी सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य हैं। अगर इनमें से एक सदस्य ने भी वीटो कर दिया तो सुरक्षा परिषद में भारत के हितों के विरुद्ध कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता।
अंत में, यह कार्रवाई एकाएक इसलिए की गई क्योंकि शीघ्र ही अमेरिका का तालिबान से समझौता होने की आशा है, जिसके बाद अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से वापस लौट जायेगी। अत:, अफगानिस्तान में आतंकी देश का प्रभाव बढ़ सकता है और वह अफगानिस्तान के जिहादी और हथियार भारत की तरफ भेज देता। आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित होने के कारण आतंकी देश पर वित्तीय प्रतिबंध की तलवार लटक रही है जिसका निर्णय अक्टूबर में होना है। हो सकता है कि आतंकी देश उस प्रतिबंध से बच जाए। लेकिन अक्टूबर तक वह इस स्थिति में नहीं है कि जिहादियों का खुलेआम समर्थन करें तथा उन्हें भारत में भेजें। अत: यही समय उपयुक्त था।
अगर आप ध्यान दे तो लोकसभा का सत्र 23 जुलाई को एकाएक 10 दिन के लिए बढ़ा दिया गया। यही वह समय था जब प्रधानमंत्री मोदी ने यह निर्णय ले लिया था कि धारा 370 को समाप्त कर देना है। नहीं तो अगले सत्र की प्रतीक्षा करनी होती जो नवंबर मध्य में शुरू होता। लेकिन तब तक आतंकी देश जिहादियों को भेजने में ना हिचकिचाता।
– अमित सिंघल
अब बात होगी पीओके पर
नया नैरेटिव सैट हो गया है, ‘कश्मीर पर अब बात नहीं होगी। हमारा है कश्मीर और वह दो केंद्रशासित प्रदेशों में बंट चुका है।’
नए कथानक के अनुसार पाकिस्तान से बात होगी, पर जब भी होगी पीओके पर होगी, हमारे कश्मीर पर नहीं। पीओके पर भी बात तब होगी जब पाकिस्तान हमारे देश में आतंकवादी भेजना बन्द करेगा और अपने भीतर का आतंकवाद भी खत्म कर देगा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा नए नैरेटिव की घोषणा कर दी गई । अब पहल पाकिस्तान करे। पीओके पर बात करनी है तो भारत तैयार, वरना अब कभी भी हमारे हिस्से वाले कश्मीर पर बात नहीं होगी।
हमने तय कर दिया, वे करें, न करें!
यह भी तय हुआ कि परमाणु शक्ति के पहले इस्तेमाल न करने की कोई गारंटी नहीं।
दु:ख का विषय है कि 72 सालों में अब तक जितनी भी बातचीत हुई हैं वे हमारे कश्मीर पर हुई, पीओके पर नहीं। चाहे शिमला समझौता हो या लाहौर पैक्ट, पीओके पर बात हुई ही नहीं।
दरअसल पाकिस्तान ने कश्मीर राग 1971 में तब गाना शुरू किया जब भारत ने पूर्वी पाकिस्तान छीनकर बंगला देश बना दिया। आयरन लेडी इंदिराजी ने पाकिस्तान को छलनी कर दिया था। तब से पाकिस्तान, बांग्लादेश का बदला कश्मीर में लेने को बिलबिला रहा है।
कश्मीर के हालात दो दिन में सामान्य नहीं होंगे। सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाया है तो आगे की सब सोचकर हटाया है। इस कथानक की इबारत उसी दिन लिख दी गई थी, जिस दिन पिछले कार्यकाल में भाजपा ने महबूबा सरकार गिराकर सतपाल मलिक को वहां भेजा था। तय था कि सरकार बड़े बहुमत से आई तो अनुच्छेद 370 मरेगा, कश्मीर का विभाजन होगा। अभी दूसरा बड़ा विषय मन्दिर का भी है जो इसी कार्यकाल के लिए तय है।
सरकारें जब बड़े लक्ष्य रखती हैं तो प्रतीक्षा वक्त की करती हैं।
और हां, वक्त ही अच्छे दिन लाता है!
-कौशल शिखौला
कैसे हटा अनुच्छेद 370
भारत के राष्ट्रपति के ऑर्डर से एनडीए सरकार ने धारा 370 और 35 ए को हटा दिया है और इसी के साथ ही ‘सम्पूर्ण भारत, एक भारत’ का सपना सच हुआ। धारा 370 के अस्तित्व के कारण ही जम्मू और कश्मीर का अलग झण्डा और सविंधान था। जिसके कारण भारत सरकार द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय को जम्मू कश्मीर में लागू करने के लिए वहां की विधानसभा में पारित करना पड़ता था और फिर जम्मू और कश्मीर में लागू होता था। धारा 370 के हटने के साथ ही वहां का संविधान अमान्य हो गया है। भारतीय सविंधान ही जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक लागू होगा।
कैसे हटाया गया अनुच्छेद 370 और 35 ए?
अनुच्छेद 370 को हटाने का राज दरअसल अनुच्छेद 370 में ही छुपा था। अनुच्छेद 370 के क्लॉज़ 3 में लिखा हुआ है कि 370 को राष्ट्रपति के ऑर्डर से हटाया जा सकता है, लेकिन साथ ही उस समय जम्मू और कश्मीर में जो हुकूमत है उसकी भी सहमति चाहिये। लेकिन इस समय जम्मू कश्मीर में गवर्नर का शासन होने के कारण इसे आसानी से हटा दिया गया।
सरकार ने इसकी तैयारी बहुत पहले ही कर ली थी। और इसकी भनक पिछले कई दिनों से चल रही थी। सरकार ने कुछ समय पहले ही जम्मू कश्मीर में 35000 अतिरिक्त जवान तैनात किये, साथ ही अलगावादियों को नजरबन्द कर दिया। सभी प्रकार के संचार के साधन को बंद कर दिया। ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा हो तो उसे रोका जा सके।
अनुच्छेद 370 क्या है ?
धारा 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। जिसके तहत जम्मू और कश्मीर का एक अलग सविंधान होगा। वहां भारतीय सविंधान लागू नहीं होगा। इसी अनुच्छेद की वजह से जम्मू और कश्मीर के हालात दिन ब दिन खऱाब होते जा रहे थे। अकेले जम्मू और कश्मीर में 6 से 7 लाख जवान तैनात है।
अनुच्छेद 35 ए क्या है ?
अनुच्छेद 35 ए जम्मू कश्मीर में अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों को जम्मू और कश्मीर में जमीन खरीदने से रोकता है। लेकिन जम्मू कश्मीर के नागरिक भारत में कही पर भी जमीन खरीद सकते हैं। अब इस अनुच्छेद के हटने से कोई भी भारतीय नागरिक जम्मू कश्मीर में अपनी जमीन ले सकता है। अनुच्छेद 35 ए को न तो राज्यसभा और न ही लोकसभा में पेश किया गया सीधे ही 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से इसे 370 में जोड़ दिया गया। जबकि संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार यह संसद में पारित नहीं हुआ है इसलिए यह एक अध्यादेश की तरह 6 महीने से ज्यादा लागू नहीं रह सकता। अनुच्छेद 35 ए संविधान में नहीं है। इसके साथ देश के अन्य हिस्सों में जहां राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति शासन लगता है वहीं जम्मू कश्मीर में उसकी जगह राज्यपाल शासन लगता है।
अनुच्छेद 370 के पार्ट 1 जो अभी तक कायम है?
अमित शाह के बयान के मुताबिक 370(1) बाकायदा कायम है सिर्फ 370 (2) और (3)को हटाया गया है। 370(1) में प्रावधान के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति आदेश द्वारा सविंधान के विभिन अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं।
जम्मू कश्मीर का संविधान
जम्मू कश्मीर का संविधान 17 नवम्बर 1956 को स्वीकार हुआ और 26 जनवरी 1957 को लागू हुआ। इसके अनुसार राज्यपाल ही राज्य का प्रमुख होगा। साथ ही जम्मू और कश्मीर के विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता था।
सरकार का जम्मू और कश्मीर पर फैसला
सरकार धारा 370 और 35 ए को हटाने के साथ अगला बिल जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने का लायी है। जिसके तहत जम्मू कश्मीर को एक अलग केन्द्र शासित प्रदेश और लद्दाख को अलग केन्द्र शासित प्रदेश बनाया जायेगा। और इस तरह जम्मू कश्मीर की कमान सीधे सरकार के हाथ में आ गई। जो कि इसके विकास के लिए बहुत जरुरी था।
पाकिस्तान का रवैया अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने पर
पाकिस्तान धारा 370 और 35 ए के हटाये जाने के बाद बौखलाया हुआ है और कह रहा है कि पाकिस्तान कश्मीरी लोगों के साथ है। कश्मीर के फैसले के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल और अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने की बात कह रहा है।
क्या धारा 370 पूरी तरह से खत्म हो गई है या कुछ प्रावधान अभी लागू है?
दरअसल धारा 370 को नहीं हटाया गया है और उसे इतनी आसानी से हटाया भी नहीं जा सकता। बल्कि उसकी ही ताकत का इस्तेमाल करके भारत के संविधान को पूरी तरह से जम्मू और कश्मीर पर लागू कर दिया गया है। इस वजह से अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान अप्रभावी और राज्य को मिले विशेषाधिकार खत्म हो गये हैं। लेकिन वह अभी भी संविधान का हिस्सा बना हुआ है। इसे ठीक से समझने के लिए अनुच्छेद 370 को ही अच्छे से समझना जरूरी है।
26 अक्टूबर 1947 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के साथ ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन ऑफ जम्मू एंड कश्मीर टू इंडिया’ साइन किया था। इसके मुताबिक राज्य से जुड़े केवल तीन मसलों पर केंद्र का नियंत्रण होना था – रक्षा, विदेश और संचार। उस समय भारत सरकार ने वादा किया था कि कश्मीर के लोग एक संविधान सभा के जरिये खुद अपना संविधान बनाएंगे और उसके जरिये इस बात का निर्णय लेंगे कि भारत का राज्य पर कितना अधिकार होगा। अपने इस वादे को निभाने के लिए भारत ने अपने संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा जो इन प्रावधानों के साथ 17 नवंबर 1952 से लागू हो गया।
- अनुच्छेद 238 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होंगे। अनुच्छेद 238 पार्ट बी स्टेट्स से संबंधित था। पार्ट बी स्टेट्स वे राज्य थे जिनका भारत में विलय हुआ था। 1952 में धारा 370 के जरिये कश्मीर को इन राज्यों से अलग कर दिया गया। इसके बाद सातवें संविधान संशोधन के जरिये 1956 में अनुच्छेद 238 को भी खत्म कर दिया गया। इस तरह से सिर्फ जम्मू और कश्मीर को छोड़कर बाकी पार्ट बी राज्य पूरी तरह से भारत का हिस्सा बन गये।
- जम्मू और कश्मीर के मामले में भारतीय संसद केवल इन मसलों पर ही कानून बना सकती है :
संघ सूची (यूनियन लिस्ट) और समवर्ती सूची (कॉन्करेंट लिस्ट) के सिर्फ उन विषयों पर जो ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ में शामिल हैं। इन विषयों की घोषणा राज्य सरकार से विचार करने के बाद राष्ट्रपति करेंगे। इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन में रक्षा, विदेश, संचार और आनुषंगिक मसलों को शामिल किया गया है।
संघ सूची और समवर्ती सूची से जुड़े ऐसे मसले जिन पर राज्य सरकार की सहमति हो।
- भारत को राज्यों और क्षेत्रों का संघ घोषित करने वाले अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे।
इसका सीधा सा मतलब यह था कि धारा 370 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होगा।
- इसके अलावा संविधान के अन्य प्रावधानों को राज्य पर केवल उन छूटों और बदलावों के साथ लागू किया जा सकता है जिन पर राज्य सरकार से विचार कर लिया गया हो या उसकी सहमति ले ली गई हो।
- भारत के राष्ट्रपति धारा 370 को खत्म करने की घोषणा कर सकते हैं या उसमें बदलाव कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए राज्य की संविधान सभा की सिफारिश जरूरी है।
अनुच्छेद 370 में शामिल प्रावधानों से साफ है कि यह कोई स्थायी व्यवस्था नहीं थी। इसके साथ ही राज्य पर भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 भी लागू है और इसके बाकी प्रावधानों को भी लागू किया जा सकता है जोकि इस वक्त भारत सरकार ने किया है। उसने राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिये भारतीय संविधान को पूरी तरह से जम्मू और कश्मीर पर लागू कर दिया है।
धारा 370 के अस्तित्व में आने के बाद भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर ने दिल्ली में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसके बाद राष्ट्रपति ने इस समझौते और अनुच्छेद 370 के आधार पर एक आदेश जारी किया जिसका शीर्षक था – कंस्टीट्यूशन (एप्लीकेशन टू जम्मू एंड कश्मीर) ऑर्डर 1954। यह एक बुनियादी आदेश था जो यह बताता था कि भारत के कितने और कैसे अधिकार जम्मू-कश्मीर के ऊपर रहेंगे। इसमें समय-समय पर कई संशोधन किये जाते रहे। लेकिन फिर भी केंद्र को इस राज्य की सीमाओं, नाम आदि को बदलने का अधिकार नहीं दिया गया। इसके अलावा राज्य का अपना संविधान भी बना रहा जिसे केंद्र सरकार खत्म नहीं कर सकती थी। यहां पर विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों का शासन लागू करने का प्रावधान रहा। इसके अलावा यहां के मूल निवासियों को कुछ ऐसे मूल और विशेष अधिकार भी मिलते रहे जो दूसरे राज्यों में नहीं हैं। इनमें संपत्ति का अधिकार शामिल है और धारा 35 (ए) भी। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर का हाई कोर्ट सिर्फ मूलभूत अधिकारों के मामले में ही कोई आदेश दे सकता था और जम्मू-कश्मीर इकलौता राज्य है जहां से पाकिस्तान जाकर बसने वाले कभी भी यहां लौटकर वापस आ सकते थे।
अब मोदी सरकार ने एक नये कंस्टीट्यूशन (एप्लीकेशन टू जम्मू एंड कश्मीर) ऑर्डर 2019 के जरिये भारतीय संविधान को पूरी तरह से जम्मू और कश्मीर पर लागू कर दिया है। इसके बाद से जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा और इसके लोगों को मिले विशेष अधिकार खत्म हो गये हैं। इनमें अनुच्छेद 35 (ए) भी शामिल है। इस आदेश के बाद केंद्र जम्मू-कश्मीर की सीमाओं में भी बदलाव कर सकता है जोकि वह कर भी रहा है।
हालांकि इस बारे में स्थिति उतनी साफ नहीं है और ऐसा करना अब बिलकुल आसान नहीं होगा लेकिन राष्ट्रपति के एक नये आदेश के जरिये स्थिति को फिर से पलटा भी जा सकता है। ऐसा न हो इसके लिए धारा 370 को पूरी तरह से खत्म करना होगा लेकिन ऐसा हो पाना बेहद जटिल और मुश्किल है।
शरद सिंह
धारा 370 हटाने वाले इतिहास पुरुष
नरेंंद्र मोदी
राजनीति में आते ही इन्होंने कश्मीर को सही मायनों में भारत का एक अभिन्न अंग बनाने का सपना देखा था। यही वजह है कि उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ एकता यात्रा की और 1992 में लाल चौक पर झंडा फहराया। एनडीए के लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के बाद इन्होंने अमित शाह को गृहमंत्री बनाया और पूरी तरह से कश्मीर पर सक्रिय कर दिया। पुलवामा में हुए हमले के बाद उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि हमारे देश के वीर जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
अमित शाह
पहले दिन से ही अमित शाह कश्मीर मुद्दे को लेकर सक्रिय रहे हैं। पाकिस्तान के साथ हर तरह से सीमापार व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। एनजीओ बंद करवा कर विदेशी फंडिंग रोक दी। पहले जहां अलगाववादी, नेताओं के पहुंचने पर कश्मीर बंद करा देते थे, उसके विपरीत इस बार शाह के श्रीनगर पहुंचने पर कश्मीर तो क्या बाजार तक बंद नहीं हुए।
लेफ्टिनेंट जनरल के जे एस ढिल्लन
पाकिस्तानी बैट टीम व घुसपैठियों को मार गिराया। पाकिस्तान को पता तक नहीं चलने दिया कि भारत कर क्या रहा है। पाकिस्तानी वित्त मंत्री तो इसे अफगानिस्तान से शांति वार्ता से जोड़कर कर देखने लगे।
राजीव गाबा
यह भारत के केंद्रीय गृह सचिव हैं। रणनीतिकारों से समन्वय किया और कश्मीर में किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए रणनीति तैयार की। सभी राज्यों को अलर्ट किया और सैन्य बलों का प्रबंधन कैसे किया जाएगा इसकी तैयारी की।
अरविंद कुमार
यह इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख हैं, इन्हें कश्मीर के चप्पे-चप्पे की जानकारी है। इन्होंने यह गुप्त जानकारियां भारत सरकार के साथ सांझा की।
सामंत गोयल
रॉ प्रमुख सामंत गोयल इस अभियान की मुख्य कड़ी रहे हैं। सन 1990 में पंजाब में जब चरमपंथ चरम पर था तब उसे नियंत्रित करने में इनका बड़ा हाथ था। वह अनुभव यहां भी काम आया।
के विजय कुमार
सन 1998 से 2001 तक बीएसएफ में आईजी रहे हैं जब श्रीनगर में आतंकवाद चरम पर था। सन 2018 में इनको सलाहकार नियुक्त किया गया। इन्होंने कश्मीर की स्थिति को भली-भांति समझा, रणनीति बनाई और परिणाम आपके सामने हैं। इनके बारे में एक रोचक बात और है कि 2004 में चंदन तस्कर वीरप्पन को लंबी रणनीति बनाकर मार गिराने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। भारत में इनसे बड़ा रणनीतिकार और कोई नहीं है।
राज्यपाल सत्यपाल मलिक
इन्होंने राज्य की स्थिति पर पूरी नजर बनाए रखी और जनता का जनमानस भापकर केंद्र सरकार को अवगत कराते रहें। कश्मीरी नेताओं को राजनीतिक तौर पर उनकी भाषा में ही सीधा जवाब देते रहे।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह
लाइन ऑफ कंट्रोल पर पाकिस्तान की हर ईट का पत्थर से जवाब दिया। घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर भारी सेना तैनात की कई। अग्रिम चौकियों जैसे सियाचिन का दौरा कर जवानों को प्रोत्साहित किया और उनसे कहा कि अगर हमें कोई चुनौती दे तो उसका करारा जवाब दें। यह स्वतंत्रता अब तक किसी भी सरकार ने नहीं दी। अपनी सूझबूझ व कूटनीति से पाकिस्तान को उलझाए रखा।
भाजपा महासचिव राम माधव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक से जुड़े हुए थे। धारा 370 और 35 ए हटाने से कश्मीर राज्य को किस तरह फायदा होगा इसके लिए वे बार-बार कश्मीर का दौरा करते रहे।
बीवीआर सुब्रमण्यम
आतंकवाद की सफाई के लिए सुब्रमण्यम को कश्मीर में उतारा गया। इन्होंने कश्मीरी पुलिस, राष्ट्रीय राइफल्स व सतर्कता एजेंसियों व सीआरपीएफ के साथ मिलकर रणनीति तैयार कर आतंकवादियों का सफाया किया। अमरनाथ यात्रा इसी कारण सफल रही।
विदेश मंत्री एस जयशंकर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्था संबंधी बयान के बाद उन्होंने उन्हें ऐसा करारा जवाब दिया कि अमेरिका को राष्ट्रपति के इस बयान का खंडन करना पड़ा। हर मोर्चे पर पाकिस्तान को करारा जवाब दिया।
एन एस ए अजीत डोभाल
अफगानिस्तान, पाकिस्तान व अमेरिका पर नजर रखते हुए, करीबियों के माध्यम से कश्मीर की रिपोर्ट व कश्मीर पहुंचकर स्थिति का जायजा लेते रहे एवम रणनीति बनाकर तुरंत कार्रवाई की।
जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग
हमारे गृहमंत्री अमित शाह ने अपने मंत्रालय में ताबड़तोड़ बैठकें की और जम्मू कश्मीर में परिसीमन करने एवं परिसीमन आयोग बनाने की बात कही। परिसीमन का मतलब होता है कि आबादी के और क्षेत्रफल के हिसाब से किसी भी लोकसभा अथवा विधानसभा क्षेत्र का पुनर्गठन करना। अभी जम्मू कश्मीर के विधानसभा का परिसीमन किया जा रहा है।
असल में कश्मीर विधानसभा में कुल 111 सीटें हैं। लेकिन, इनमें से 24 सीटों को जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 के मुताबिक पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ा गया है। और बाकी बची 87 सीटों पर ही चुनाव होता है। राज्य में आखिरी परिसीमन 1995 में किया गया था और गवर्नर जगमोहन के आदेश पर जम्मू-कश्मीर में 87 सीटों का गठन किया गया था। अब चूंकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल सीटों की संख्या 87 है, सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 44 सीटों का बहुमत चाहिए।
हालांकि क्षेत्रफल की दृष्टि से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कश्मीर संभाग का क्षेत्रफल राज्य के क्षेत्रफल का मात्र 15.73 प्रतिशत है। लेकिन, यहां से कुल 46 विधायक चुने जाते हैं। जबकि राज्य का 25.93 फीसदी क्षेत्रफल जम्मू संभाग के अंतर्गत आता है। लेकिन विधानसभा की मात्र 37 सीटें ही यहां से चुनी जाती है। इसके अलावा राज्य के 58.33 प्रतिशत क्षेत्रफल वाले लद्दाख संभाग में 4 विधानसभा सीटें हैं।
इसी गिनती में बहुत बड़ा झोल है क्योंकि इसमें कश्मीर घाटी जो कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, में मात्र 25,000 लोगों पर ही एक विधानसभा क्षेत्र है। जबकि, जम्मू क्षेत्र जो कि हिन्दू बहुल क्षेत्र है, में लगभग 2,00,000 लोगों पर एक विधानसभा क्षेत्र है। इसीलिए जम्मू कश्मीर के चुनाव में हमेशा कश्मीर घाटी से ही ज्यादा सदस्य चुने जाते हैं जो कि ज्यादातर आतंकवाद समर्थक होते हैं। क्योंकि घाटी में अधिकतर आबादी ‘उन्हीं’ की है। इसीलिए जम्मू क्षेत्र से काफी लंबे समय से ये मांग उठती रही है कि जम्मू-कश्मीर का परिसीमन किया जाए । ताकि सभी को आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से बराबर का प्रतिनिधित्व मिले। नियम के अनुसार ये परिसीमन 1995 के दस साल बाद अर्थात 2005 में हो जाना चाहिए था । लेकिन साजिशन अब्दुल्ला सरकार ने 2002 में इसके परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दी। क्योंकि अगर परिसीमन हुआ तो जम्मू क्षेत्र को अधिक विधानसभा सीट मिल जाएगी और फिर कश्मीर में गैर मुस्लिम मुख्यमंत्री भी बन सकता है।
हालांकि जम्मू-कश्मीर के परिसीमन के लिए वहां की विधानसभा की अनुमति चाहिए लेकिन चूंकि अभी वहां विधानसभा निरस्त है और राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है इसीलिए अभी वहां परिसीमन के लिए राज्यपाल की अनुमति ही पर्याप्त है।
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जिहाद पर प्रहार
जम्मू एवं कश्मीर में प्रशासकीय बदलाव की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है, इसे पूर्ण विजय मानना एक भूल होगी। जम्मू एवं कश्मीर में एक पक्ष इस्लामवाद का भी तो है जिसकी जड़ें पाकिस्तान के वजूद से भी ज्यादा गहरी हो चुकी हैं।
जम्हूरियत और कश्मीरियत की दुहाई भी अभी सिफऱ् इसलिए है कि काश कोई चमत्कार हो जाये और पहले की ही तरह हिन्दू बहुल भारत का सत्ता तंत्र हमारे झांसे में आ जाये।
इस बार चूंकि यह होने की संभावना कम है (यद्यपि सुप्रीम कोर्ट और मीडियाई खलीफाओं से अब भी हल्की सी उम्मीद बची हुई होगी)।
उम्मीदें टूटते ही इस्लामवाद अपने खोल से बाहर आ जायेगा। अरबी भाषा का शब्द ‘जि़हाद’ फिर से बार बार दोहराया जायेगा।
इस आगामी जि़हाद को फ़ौजी बूटों तले रौंदने के लिए भारत की राजनैतिक सत्ता को अदम्य साहस दिखाना होगा, क्योंकि जि़हाद शासन-प्रशासन या कानून व्यवस्था मात्र का मसला भर नहीं है, यह सीधे – सीधे दूसरी सभ्यताओं को रौंदने और जीतने का आह्वान है। ध्यान रहे इस बार इसे पूरी दुनिया के हम-मजहबी धड़ों का समर्थन मिलेगा क्योंकि अब कश्मीर की स्थिति जेहादियों के लिए ठीक उस फिलिस्तीन जैसी है जिसपर इजराइल काबिज़ है।
यह स्थिति आने वाले समय में कश्मीर को रक्त स्नान करा सकती है पर जिहाद को कुचलने और हराने के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है।
हमारे वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व ने यह सिद्ध किया है कि यदि हमारे विश्वास की पूंजी उसके साथ बनी रही तो वह भारतवर्ष की सेवा में चमत्कारिक परिणाम दे सकता है।
हमारा कर्तव्य है कि इस पूंजी में हम निरन्तर अपना निवेश करते रहें। भारतवर्ष की भूमि पूरे विश्व में वैचारिक सह अस्तित्व की एकमात्र आशा है। हमें इस भावना को बनाये रखने हेतु स्वयं को सर्वोच्च बलिदान हेतु सदैव तत्पर रखना है।
वरूण जयसवाल
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एक चिंता
ऐतिहासिक निर्णय तो कर दिया इतिहास पुरुष ने लेकिन इसको इतनी जल्दीबाजी में क्यों करना पड़ा ये प्रश्न सभी के मन में है।
वैसे तो अनुच्छेद 370 को हटाने में 70 साल से अधिक का समय लग गया है और पूरा देश जश्न मना रहा है। पर जिस त्वरित गति से और जिन परिस्थितियों में अनुच्छेद 370 और उसमें संलग्न 35 ए को हटाया गया है वो अपने पीछे एक सवाल छोड़ जाता है।
अमरनाथ यात्रा जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा को क्यों रद्द करना पड़ा? 15 अगस्त तक भी तो रुक सकते थे जब तक श्रावण मास खत्म हो जाता। पर यह आनन फानन में क्यों करना पड़ा?
इस पर एक थ्योरी है जो आज विभिन्न सुरक्षा विशेषज्ञों और समाचार पत्रों में पढऩे के बाद आज काफ़ी साफ हो गया है। शायद आप भी सहमत हों इसपर।
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव 2020 में होने वाला है और मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने लोगों से यह वादा किया है कि अब वो अफगानिस्तान में तैनात लगभग 8500 सैनिकों को वापिस बुला लेंगे। अमेरिका अफगानिस्तान के युद्ध तो जीत नहीं पाया बल्कि यह उनके लिए कुछ हद तक वियतनाम बन कर रह गया है। इन 19 सालों में अमेरिका ने अपने 2500 से अधिक सैनिक खोए हैं जो उनके लिए बड़ी बात है।
अब अमेरिका तालिबान अलक़ायदा जैसे आतंकी संगठनों से बातचीत की मेज पर आ गया है। इसी मेज पर पाकिस्तान भी बैठा है क्योंकि तालिबान पाकिस्तान के अवैध संबंध दुनिया से छुपे नहीं हैं।
अमेरिका ने अपने विशेष प्रतिनिधि को अफगानिस्तान में बात करने के लिए भेजा था।
दोहा में अभी अमेरिका के प्रतिनिधियों और तालिबानी आतंकियों के बीच बैठक हो रही थी, तालिबान के प्रवक्ता सुहेल का कहना है कि वार्ता सफ़ल है। पर इसका एक बहुत दुखद पक्ष है कि अब तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लेगा।
पाकिस्तान अमेरिका से मलाई खाने की उम्मीद में तालिबान से एक डील कर कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को बढ़ावा देगा।
अमेरिका को फर्क नहीं पड़ता कि कश्मीर में क्या हो रहा है, अफगानिस्तान में क्या होगा या पाकिस्तान क्या करेगा? अमेरिका फस्र्ट की पॉलिसी को अपनाते हुए बस वो केवल अपने सैनिकों को बाहर निकालना चाहता है।
और ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। अमेरिका ने रवांडा में आंख मूंद कर एक नरसंहार होने दिया जिसे वो अपनी सेना भेज कर आराम से रोक सकता था। आठ लाख निर्दोष तुत्सी मारे गए पर अमेरिका के पेशानी पर बल ना पड़ा।
अब वार्ता लगभग खत्म हो गयी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने दो बार लगातार भारत मे कश्मीर की मध्यस्थता की पेशकश वाली बात कर दी है। इससे भारत सरकार को भी अमेरिका के इरादे का पता चल गया था। अमेरिकी ऐसी हरामखोरी में सदैव अग्रणी रहे हैं।
इसलिए अमरनाथ यात्रा को रद्द करते हुए ऐसा करना ज़रूरी था। अगर ऐसे नहीं करते तो 370 को पाकिस्तान अमेरिका की मदद से ज़बरदस्ती एक विकराल समस्या बना देता और फिर इसे हटाना मुश्किल होता।
कुछ घरेलू अनुकूल परिस्थितियां भी हैं। आज मोदी सरकार के पास राज्य सभा मे बहुमत जैसा था और ट्रिपल तलाक़ बिल के बाद से विपक्ष स्तब्ध और बिखरा पड़ा था। 370 जैसे मुद्दे पर आज कांग्रेस के खुद के नेता बंटे हुए हैं। कांग्रेस शायद इससे ज्यादा मज़बूर कभी ना हुई होगी। कल किसने देखा है ऐसा सोच सरकार ने गरम लोहे पर हथौड़ा मार दिया।
ऐसा लगता है यही सब कारण रहे जिनकी वजह से यह फैसला शीघ्रता में लेना पड़ा। लेकिन इतना समृद्ध निर्णय इतने कम समय में लेने की वेदना व विषयक शंका ने राष्ट्र ऋषि के चेहरे का भाव सहज न रहने दिया जो चिंता का विषय है। महादेव मोदी जी को अपनी शक्तियों से पोषित करें यही कामना करता हूं।
शरद सिंह