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काश! पंच महाभूत भी होते वोटर

पंजाब, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर – पांच राज्य, एक से सात चरणों में चुनाव। 04 फरवरी से 08 मार्च के बीच मतदान; 11 मार्च को वोटों की गिनती और 15 मार्च तक चुनाव प्रक्रिया संपन्न। मीडिया कह रहा है – बिगुल बज चुका है। दल से लेकर उम्मीदवार तक वार पर वार कर रहे हैं। रिश्ते, नाते, नैतिकता, आदर्श.. सब ताक पर हैं। कहीं चोर-चैर मौसरे भाई हो गये हैं, तो कोई दुश्मन का दुश्मन का दोस्त वाली कहावत चरितार्थ करने में लगे हैं। कौन जीतेगा ? कौन हारेगा ? रार-तकरार इस पर भी कम नहीं। गोया जनप्रतिनिधियों का चुनाव न होकर युद्ध हो। सारी लड़ाई, सारे वार-तकरार.. षडयंत्र, वोट के लिए है। किंतु वोटर के लिए यह युद्ध नहीं, शादी है।
तरह-तरह के वोटर है। जातियां भी वोटर हैं, उपजातियां भी। संप्रदाय, इलाका, गरीबी, अमीरी, जवानी, बुढ़ापा, भ्रष्टाचार.. सभी वोटर की लिस्ट मंे है। पांच साल बाद वोटर का एक बार फिर नंबर आया है दूल्हा बनने का। सभी उसी को पूछ रहे हैं। पांच साल तक जिसका मुंह देखना पसंद नहीं करते; उसके साथ गलबंहियां कर रहे हैं; उसी की चरण वंदना कर रहे हैं। कोई वोटर का पेट टटोल रहा है, तो कोई स्वयं को उसका सबसे करीबी बताने के लिए कान में मुंह सटाकर गुफ्तगू कर रहा है। सबके सब वादे कर रहे हैं – ’’ शादी मेल है या बेमेल, बस इस शादी को निबट जाने दो; जो कहोगे, सो मिल जायेगा। जो कहोगे, हम वही करेंगे।’’ कोई दूल्हे के साथ सिर्फ सेल्फी लेकर ही काम चला रहा है, तो कोई दूल्हे राजा के साथ छत्र बनकर ऐसे डटा है, मानो उससे बड़ा रक्षक कोई और नहीं।
कुछ तो शर्म आती
इस चित्र को सामने देख सोचता हूं कि काश! हमारे पंच महाभूत भी होते वोटर। पांच साल मंे एक महीने के लिए ही सही, उम्मीदवार पंच महाभूतों के पास भी जाते; उन्हे दुलारते। पंच महाभूतों को लेकर कुछ वादे करते। कुछ उनके साथ सेल्फी खिंचवाते, कुछ गलबंहियां करते। कोई बीमार नदी को उठाकर इलाज के लिए ले जाता। कोई हवा के पास आने से पहले अपनी अशुद्धि दूर छोड़कर आता। कोई माटी को जूते तले रौंदने की बजाय, उसे उठाकर अपने माथे पर लगाता। विधान बनाने का जिम्मा हासिल करने जा रहे उम्मीदवारों के शरीर में कुछ तो मिट्टी-पानी लगती। कुछ न होता, तो उम्मीदवार पंच महाभूतों की दशा-दुर्दशा से कुछ तो दो-चार होते। थोड़ी तो शर्म आती। एक माह के लिए तो पंच महाभूतों का ख्याल रखते; किंतु यह नहीं हुआ।
प्रत्यक्ष भगवान की अवहेलना तो न होती
यह पंच महाभूतों के वोटर लिस्ट में नाम न होने का ही परिणाम है कि जो उम्मीदवार, चुनाव प्रचार पर निकलने से पहले अपने-अपने भगवान के सामने मत्था नवा रहे हैं, वे अपने वादे-इरादे में प्रत्यक्ष मौजूद भगवान का नाम तक लेना मुनासिब नहीं समझ रहे। भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि और न से नीर – भगवान यानी हमारे पंच महाभूत।
पंजाब
 
’’जिस दिन सौंह चुक्की, इक्क घर नूं नौकरी पक्की’’ – पंजाब ने कांग्रेस ने रोज़गार का वादा किया है। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में नशे को मुद्दा बनाया है। लेकिन पंजाब को लगातार बीमार सेहत की ओर खींचता प्रदूषित पानी किसी के लिए मुद्दा नहीं है। कैंसर ज़ोन के नाम से बदनाम हो चुकी मालवा पट्टी में 69 विधानसभा सीटें हैं। लेकिन किसी दल ने मालवा पट्टी को कैंसर से उबारने का वादा नहीं किया। पंजाब किसानों पर इस वक्त भी 69 हजार करोड़ का कर्ज है। 2014 में 449 और 2016 में 77 किसानों द्वारा आत्महत्या का आंकड़ा है। लेकिन डार्क ज़ोन में तब्दील होते ब्लाॅक, माटी की उर्वरा शक्ति में लगातार गिरावट और कर्ज से किसान को उबारने का वादा लेकर कोई वोटर के पास नहीं गया। इनेलो नेता अभय चैटाला ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला हरियाणा के पक्ष मंे आने के बावजदू भाजपा -कांग्रेस एक षडयंत्र के तहत् हरियाणा को एसवाईएल के पानी से वंचित रखना चाहते हैं; बावजूद इसके, पंजाब में सतलुज-यमुना नहर लिंक के नाम के वोट की मांग नहीं पैदा हुई। प्रधानमंत्री मोदी पंजाब जाकर सिंधु नदी में भारत के हिस्से का पानी दिलाने की बात अवश्य कह आये।
उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड मंे विकास के नाम पर भागीरथी की ज़मीन के उपयोग का रास्ता खोलने का वादा है, लेकिन गंगा की गुणवत्ता, सूखते झरने, उजड़ती खेती, उजड़ते जंगल, पेयजल का बढ़ता संकट, बढ़ता पलायन, दरकती ज़मीन और भूंकप के बढ़ते खतरे कोई चुनावी मुद्दा नहीं है।
उत्तर-प्रदेश
उत्तर-प्रदेश में शिक्षा, रोज़गार, लैपटाॅप, कुकर, स्मार्ट फोन, मकान, बिजली, सीवेज पाइपलाइन… सभी के नाम के वोट हैं, लेकिन नदी, तालाब, हवा के नाम पर कोई वोट नहीं है। कोई नहीं कह रहा कि हम ऐसा कुछ प्राकृतिक करेंगे कि गगन से आग नहीं, जरूरत का पानी बरसेगा; मिट्टी से बीमारी नहीं, अच्छी सेहत के सत् बाहर आयेगा।
मथुरा,, गोर्वधन, बलदेव विधानसभा क्षेत्र के विधायकों ने पिछले चुनाव में पानी के नाम पर वोट मांगे थे। मथुरा से कांग्रेस के विधायक प्रदीप माथुर ने यमुना क प्रदूषण मुक्ति का वादा किया था। गोवर्धन के बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजकुमार रावत ने पानी का टंकी बनाने का वादा किया था। बलदेव विधानसभा से राष्ट्रीय लोकदल के पूरनप्रकाश खारे पानी के निजात दिलाने का वादा करके चुनाव जीते थे। तीनो ही अपने वादे पर खरे नहीं उतरे; लिहाजा, उन्होने इस बार यमुना और खारे पानी का नाम ही वोटर लिस्ट से काट दिया।
सुश्री उमा भारती जी ने पिछले लोकसभा चुनाव में गंगाजी के नाम पर एक नहीं कई वोटर बनवाये थे। स्वयं प्रधानमंत्री ने बनारस में गंगाजी वोटर द्वारा खुद को बुलाने की बात कही थी। याद कीजिए – ’’मैं आया नहीं हूं मुझे गंगा मां ने बुलाया है।’’ किंतु गंगा निर्मलता के मोर्चे पर कोई कारगर उपलब्धि दर्ज न करा पाने की स्थिति में उमाजी ही नहीं, पूरी भाजपा ने ही गंगाजी का नाम अपनी वोटर लिस्ट से काट दिया है। उमा जी अब कह रही हैं – ’’हमारे प्रधानमंत्री जी गंगा के नाम पर राजनीति नहीं करना चाहते; लिहाजा, गंगा हमारे लिए चुनावी मुद्दा नहीं है।’’
गंगा, यमुना और बुंदेलखण्ड पानी संकट की आवाज़ उठाते रहे पानी कार्यकर्ताओं ने घोषणापत्र बनाकर एक-आध आवाज़ लगाई भी, तो बेमन से। केन-बेतवा नदी जोड़ के नफे-नुकसान को लेकर लगातार झूठ बोल रही उमा भारती जी के सच को सामने लाने की कोई ठोस कोशिश न जनता कर रही है और न जनप्रतिनिधि के रूप में चुनने को बेताब अन्य दलों उम्मीदवार। सो, मुद्दा बदलने का काम वे भी नहीं कर सके। बुंदेलखण्ड में इस वक्त भी काम की तलाश में बाहर की आवाजाही अभी भी जारी है। ताज्जुब तो यह है कि बंुदेली आबादी के बीच भी वोट तय करने का काम पानी-परिवेश की बजाय, जाति, धर्म और दबंगई ही कर रहे हैं।
गोवा-मणिपुर
गोवा में तालाबों के अस्तित्व पर लगातार संकट बढ़ रहा है। समंदर लगातार चेतावनी दे रहा है। मणिपुर में पुरानी झीलों, तालाबों के साथ-साथ जैव विविधता पर बढ़ते खतरे की खबरें है। जिरिबम तुपल रेलवे लाइन के निर्माण ने पश्चिमी वन क्षेत्र की स्थानीय पारिस्थितिकी को खतरे मंे ला दिया है। लोकटक झील क्षेत्र का ’डांसिंग डियर’ अपनी सुरक्षा को लेकर गुहार लगा रहा है। लेकिन उसकी चिंता की बात कोई नहीं कर रहा। क्यों ? क्योंकि ’डांसिंग डियर’ मणिपुर का वोटर नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण कि उम्मीदवार ही नहीं, स्वयं जनता भी पंचमहाभूतों को मुद्दा बनाती नहीं दिख रही। कब होगा यह ?
अरुण तिवारी

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