लेखक:- इं. आलोक शर्मा
(लेखक साफ्टवेयर इंजीनियर तथा ज्योतिष अलंकार हैं)
आज कल पंचांग का प्रचलन बहुत ही कम है। जीवन की सभी घटनाओं का ब्यौरा हमारे पास सिर्फ ईसवी कैलेंडर के अनुसार ही है, कारण बहुत साफ़ है, घर में घडी भी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार है, हाथ घडी भी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार है यहाँ तक कि मोबाइल का प्रयोग समय देखने के लिए होने लगा है वह भी ग्रेगोरियन कैलेंडर अनुसार ही है। पंचांग के अनुसार किसी भी गणना का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं। ऑफिस, व्यापार सभी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार ही चल रहे हैं तो फिर पंचांग के अनुसार समय का या किसी पर्व अथवा त्यौहार को मनाने का औचित्य क्या है? पंचांग अर्थात् पांच अंग – तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण। पुराण, उपनिषद् एवं अन्य ग्रंथों में घटनाओं का विवरण पंचांग के सन्दर्भ में ही दिया जाता है जिनमें से कई की पुरातनता 5000 वर्ष से भी अधिक है अर्थात् कह सकते है कि हजारों वर्षों से हम पंचांग का ही अनुसरण करते रहे हैं। अंग्रेजों के शासन के उपरांत से लेकर आज तक सरकार द्वारा ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रचलन बढ़ाए जाने के बाद भी देश के ग्रामीण इलाकों में और शहरों में भी आधुनिक शिक्षा से मुक्त लोग भारतीय पंचांग से ही कैलेंडर को समझ पाते हैं। वे लोग तो आज भी जबानी बता देते है कि आज कौन सी तिथि है और कौन सा महीना है। तो कह सकते है कि पंचांग के प्रयोग में कमी पिछले 100-200 साल में अधिक आयी है।
प्रश्न उठता है कि आखिर हम प्रयोग करने में सरल और आसान ग्रेगोरियन कैलेंडर को ही क्यों न मानें, क्यों इतने क्लिष्ट, कठिन और दुविधाओं से भरे पंचांगों का प्रयोग करें? इसका पहला कारण तो यह है कि आज विज्ञान का युग है और यदि पंचांग को सामान्य व्यवहार में यदि लाया जाए तो हम वास्तव में एक वैज्ञानिक कालगणना को अपना रहे होंगे। इसको व्यवहार में लाने पर भारतीय ज्योतिष की वैज्ञानिकता से पूरा देश परिचित हो सकेगा, जिसे आज के अंग्रेजी कैलेंडर के अंधविश्वासी लोग अंधविश्वास कह देते हैं। इसका सांस्कृतिक पक्ष तो यह है कि हमारे सभी व्रत-पर्व एवं त्योहारों को मनाने में कोई संशय नहीं रहेगा और न ही इस प्रकार का कोई भ्रम कि कोई त्यौहार किसी और कैलेंडर के सापेक्ष बदलती हुए क्यों लगती है। जैसे चीनी नववर्ष स्पष्टतया दूसरे कैलेंडरों के सापेक्ष बदलता हुआ ही लगेगा और इसमें कोई असामान्य बात नहीं है।
भारतीय पंचांग और ऋतुएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। उदाहरण के लिए जेठ की गरमी, सावन की वर्षा और पूष की सर्दी की कहावतें पंचांग और ऋतुओं के संबंध को ही बताती हैं। यदि हम इससे भी अधिक सूक्ष्मता में जाएं तो हमारे यहाँ नक्षत्रों से भी मौसम का अनुमान लगाया जाता है। उदाहरण के लिए हथिया नक्षत्र आते ही गाँव के लोग जान जाते थे कि इसमें बारिश होगी ही। ऐसे ही अन्यान्य मासों में नक्षत्रों के अनुसार मौसम का सटीक अनुमान लगा लिया जाता था जोकि सामान्यत: सही ही होता था। इसमें कभी-कभी ही त्रुटि होती थी। देखा जाए तो मौसम का इतना सटीक अनुमान आज मौसम विभाग भी नहीं लगा पाता है।
मौसम के अनुमान से हमारे जीवन की दो और बातें जुड़ी हुई हैं – खेती और स्वास्थ्य। पहली बात खेती की है। भारत में खेती हमेशा से मौसम पर आधारित रही है। परंतु इसके बाद भी वह कभी भी नुकसानदेह नहीं होती थी तो इसका कारण भारतीय पंचांग ही था। पंचांग को जानने के कारण भारतीय किसानों को न केवल मौसम की सटीक जानकारी हुआ करती थी, बल्कि वे यह भी जानते थे कि किस मास और नक्षत्र में जुताई, बुआई, सिंचाई आदि खेती की प्रक्रियाएं की जाएं, तो अच्छी और पर्याप्त फसल होगी। ऐसा होता भी था। इस पर घाघ के कृषि दोहे पूरे उत्तर भारत में प्रचलित रहे हैं। इस प्रकार के दोहे, कविताएं आदि अन्यान्य स्थानों पर भी प्रचलित रहे हैं। आज इसी प्राचीन विधा को नक्षत्रीय खेती यानी बॉयोडायनेमिक खेती के नाम से दुनिया अपनाने लगी है। बायोडायनामिक कृषि में ये माना जाता है कि चन्द्रमा की गति के आधार पर कृषि का एक कैलेंडर बनाया जाना चाहिए और कृषि की सभी गतिविधियाँ उसके अनुसार चन्द्रमा की गति और स्थिति से प्रभावित होती हैं। यही नहीं अन्य आकाशीय घटनाओं का भी फसलों के विकास पर प्रभाव पड़ता है। विशेषकर नक्षत्रों और राशियों की गति का प्रभाव फसल के प्रकार जैसे फसल मुख्यतया फल है, पत्ते हैं या जड़ है उसके अनुसार उनके विकास पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार वैज्ञानिक भी अब फसलों पर अनुकूल प्रभाव के लिए आकाशीय घटनाओं को मानने लगे हैं जो वास्तव में भारतीय पारंपरिक कृषि की ही विशेषता है।
पंचांगों से जुड़ी दूसरी बात है हमारा स्वास्थ्य। पंचांग चूँकि मौसम तथा ऋतुओं के बारे बताते हैं और आयुर्वेद हमें ऋतुचर्या की जानकारी देता है। इस प्रकार पंचांग के प्रयोग से हमें यह पता चल सकेगा कि किस मौसम में हमें कैसे आहार-विहार का पालन करना है। उपयुक्त आहार-विहार के पालन से हम अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रख सकते हैं। भारतीय मासों तथा आयुर्वेद के मेल से अनेक कहावतें भी बनी हैं, जिनके पालन से हम स्वस्थ रहा करते थे। आज भी आधुनिक शिक्षा से मुक्त लोग उनक विधि-निषेधों का पालन करते हैं और स्वस्थ रहते हैं।
स्त्रियों की स्वास्थ्य-समस्याएं भी पंचांग से समझी जा सकती हैं। दैनिक जीवन में देखें तो हम पायेंगे कि स्त्रियों का मासिक धर्म चान्द्र मास का ही अनुकरण करता है और सामान्यतया 27-28 दिनों का ही होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर को प्रयोग करने से इसकी सामान्य गणना भी जटिल प्रतीत होने लगती है। स्त्रियों के लिए दिन गिनना और मासिक धर्म की आवृत्ति, बच्चों के जन्म का अंदाजा भारतीय पंचांग से सरलता से हो सकता है। इसीलिए इसे ऋतु-चक्र भी कहते हैं, क्योंकि भारतीय पंचांग ऋतुओं की आवृत्ति को सरलता से दिखा देता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि भारतीय पंचांग का प्रयोग करने आम लोगों के लिए न केवल सुविधाजनक है, बल्कि यह अधिक वैज्ञानिक और उपयोगी भी है। कैलेंडर या पंचांग के विज्ञान से अनभिज्ञ लोग ही इस पर प्रश्न उठाते हैं। ऐसे कुछेक प्रश्नों पर यहाँ विचार करते हैं।
कई बार नवयुवकों से या बच्चों से बात करते में बड़ा ही असाधारण और मूलभूत प्रश्न सुनने को मिलता है ‘हिन्दू नववर्ष पिछली बार तो 18-मार्च को आया था इस बार 6-अप्रैल को आ रहा है ये क्या गड़बड़ है? अपने त्यौहारों के तारीख बदलते रहते हैं?’ यह प्रश्न वास्तव में केवल इस बात का है कि हम किस कैलेंडर के आधार पर अपनी गणना करते हैं। आज से 200-250 वर्ष पीछे जाते हैं जब भारत में अंग्रेजों ने क्रिसमस मनाना प्रारम्भ किया होगा, तब क्या हम भारतीय जो कि उस समय तक भारतीय पंचांग का ही प्रयोग करते रहे होंगे, नहीं पूछते होंगे कि भाई, ये तुम्हारे क्रिसमस का क्या चक्कर है, कभी पौष कृष्ण तृतीया को आता है, कभी माघ कृष्ण त्रयोदशी को? तो यह प्रश्न ठीक वैसा ही है, जैसा आज के युवा पूछते हैं। आप किसको अपना सन्दर्भ मानते हैं और किससे दूसरे की गणना करते हैं, यह उस पर आश्रित है। बदल सब रहे हैं बस आपको यह देखना है कि आप किस रेलगाड़ी में बैठे हैं। भारत का व्यापारिक व्यवहार शताब्दियों से बाहर के लोगों से रहा है और वे लेन-देन का व्यवहार, उधार, ब्याज का व्यवहार, माल आने-जाने का व्यवहार सब भारतीय पंचांगों के सन्दर्भ में ही करते रहे होंगे इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। मतलब यह कि ग्रेगोरियन कैलेंडर न होने पर भी जन्मदिन मनाये जाते थे, तिथियों का हिसाब रखा जाता था, त्यौहार मजे से मनाये जाते थे, किसी तारीख की आवश्यकता नहीं थी और आज भी यदि प्रयोग में न लाया जाए तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा।
किसी भी धार्मिक त्यौहार-पर्व को मनाने के लिए दो चीजें देखनी होती हैं। पहला है समय का मान, जो कि ज्योतिष की गणना से होता है। यहाँ नक्षत्र, तिथि, वार, दैनिक योग, करण या इनमें से एकाधिक का संयोग देखा जाता है, यह शुद्ध गणित है और इनमें दो राय होने की अक्सर कोई संभावना नहीं होती। दूसरी चीज जो देखी जाती है वह है धार्मिक और शास्त्रीय परम्परा, इसे धर्मशास्त्र बताते हैं कि यदि ऐसा है तो कब वह व्रत-पर्व-त्यौहार मनाना चाहिए। क्योंकि इसमें परम्परा शामिल है अत: यह अलग-अलग हो सकती है और कई अन्य कारकों पर आश्रित है। जैसे व्रत-पर्व-त्यौहार मनाने वाले का स्थान, कुल, सम्प्रदाय इत्यादि। एकादशी तिथि एक ही समय प्रारम्भ और अन्त होगी, फिर भी वैष्णव सम्प्रदाय में एकादशी व्रत का दिन और शेष सम्प्रदायों में व्रत का दिन अलग-अलग हो सकता है। ऐसा नहीं है कि यह परम्परा जैसी बात मात्र हिन्दुओं में ही है, यह दुनिया के सभी सम्प्रदायों में है। जैसे कोई ईसाई सम्प्रदाय क्रिसमस 7 जनवरी को मनाता है तो कोई 19 जनवरी को और ऐसा मात्र क्रिसमस के साथ ही नहीं है, अन्य त्योहारों के साथ भी है क्योंकि अधिकतर साम्प्रदायिक मसले पारम्परिक ही हैं।
किसी पर्व अथवा त्यौहार के विषय में यह जानना आवश्यक है कि वह घटना कब तथा किस समय हुई थी, जब हमारे लगभग सारे पर्व, व्रत एवं धार्मिक कार्यों का निर्णय ऋषियों ने आज से 2000 से भी कई वर्ष पूर्व कर दिया था एवं कई मनीषियों ने आवश्यकतानुसार कई फेर बदल बाद में भी किये। अब जबकि व्रत 2000 वर्ष से भी पूर्व निर्धारित हो गए थे तो इनके अनुसरण का नियम भी पंचांग गणित के अनुसार ही शास्त्रों में दिया है।
अब समझते हैं कि पञ्चांग और ग्रेगोरियन कैलेंडर में अंतर क्या है? ग्रेगोरियन कैलेंडर सही है या हमारा पञ्चांग ज्यादा सही है, दोनों एक ही बात हैं या हमारा हिन्दू पञ्चांग निरी मूर्खता ही है? मान लीजिये कोई घटना 12 फरवरी 2014, सायं 6:30 बजे हुई, जो कि ईसवी सन के प्रारूप में ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हमें विदित है, तो क्या यह गणना सही है? क्या पूरे विश्व में यही निरपेक्ष समय था? मान लीजिए यह घटना भारत में, उत्तर प्रदेश के हाथरस शहर में हुई, तो क्या उस समय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में भी समय यही था (12 फरवरी 2014, सायं 6:30 बजे)? या फिर कोलकाता शहर में भी क्या यही समय था? उत्तर है नहीं, आज के विज्ञान ने देशांतर के अनुसार समय का विभाजन किया है जैसे कि भारत में चलने वाला समय भारतीय मानक समय तथा अमेरिका में सेंट्रल, पेसिफिक, इस्टर्न स्टेंडर्ड टाइम।
अत: 12 फरवरी 2014, सायं 6:30 बजे (भारतीय मानक समय) के अनुसार न्यूयॉर्क में 12 फरवरी 2014, प्रात: 8:00 बजे (इस्टर्न स्टेंडर्ड टाइम) थे। ठीक है, परन्तु यह भी सही नहीं है – क्यूंकि यह समय तो स्टेंडर्ड समय के अनुसार है जबकि स्टैण्डर्ड समय उस शहर के समय से भिन्न है, शहर का समय स्थानिक समय है अब यह देखना होगा कि (12 फरवरी 2014, सायं 6:30 बजे) यह समय हाथरस का स्थानिक समय था या भारतीय मानक समय था। अब यदि स्थानिक समय था तो भारतीय मानक समय से इसका अंतर जोडऩा या घटना पड़ेगा। मान लिया कि हमने समय घर में घड़ी में देखा था, जो भारतीय मानक समय बताती है तो इस से हाथरस शहर के स्थानिक समय का अंतर 17 मिनट 20 सेकंड है। अत: जब 12 फरवरी 2014, सायं 6:30 बजे भारतीय मानक समय के अनुसार हुआ था तब हाथरस का स्थानिक समय 12 फरवरी 2014, सायं 6:12:40 था एवं न्यूयॉर्क में इसी प्रकार बिलकुल ही भिन्न था।
अत: यदि यह घटना आज से मात्र 100 साल बाद भी सही सही मनाई जाये तो क्या यह सही मनाई जा सकेगी? नहीं, सवाल रहेगा कि किस समय मंडल यानी टाइम जोन की बात है? किस स्थान की बात है? इसके अतिरिक्त कई जगह पर युद्ध की स्थिति में समय में कुछ जोड़ा या घटाया गया था, तो उसको भी अकृत करना होगा।
दूसरा सवाल, जो आकाशीय घटना ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार आज हुई है क्या वह निश्चित अंतराल के बाद उसी समय पर पुन: आवृत्ति करेगी? यदि सूर्य आज हमारे स्थान पर 14 जनवरी 2014 दोपहर 1:01:00 बजे मकर राशि में प्रवेश कर रहा है तो तो क्या एक सौर वर्ष (सूर्य का पृथ्वी के चारों और का एक चक्कर) बाद सूर्य उसी स्थान पर होगा? या ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 14 जनवरी 2014 दोपहर 1:01:00 को भी उसी स्थान पर होगा? उत्तर है कि नहीं।
सूर्य का निश्चित समय पर उस स्थान पर ना आने का कारण है कि सूर्य का ग्रेगोरियन कैलेंडर से कोई अनुबंध तो नहीं है कि उसके अनुसार ही चले। परन्तु हमारे ऋषियों ने सूर्य और चन्द्रमा से अनुबंध कर लिया था क्योंकि ये सत हैं। उन्होंने माना कि हमारे जीवन में होने वाले लगभग सभी घटनाक्रम का इनमें से कोई न कोई तो साक्षी है। उन्होंने जाना कि सूर्य और चन्द्रमा की गति क्या है, विभिन्न यंत्रों तथा योग से उन्होंने घटनाओं की पुनरावृत्ति सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार देखी और उसी के अनुसार पंचांग बनाए। अन्य आकाशीय पिंडों की गणना इस समय के अनुसार ही हुई और उनके भगणों की पुनरावृत्ति एवं उनके आधार पर पंचांग बनाए।
तत्वत: ग्रेगोरियन कैलेंडर के न होते हुए भी भारतीय पंचांग अपने आप में सम्पूर्ण और प्रामाणिक है पारंपरिक व्यापारिक लेन-देन और ब्याज की गणना, मौसमों की गणना आज भी भारतीय पंचांग से होती है और सुचारू रूप से चलती भी है।
✍🏻इं. आलोक शर्मा
(लेखक साफ्टवेयर इंजीनियर तथा ज्योतिष अलंकार हैं, भारतीय धरोहर में प्रकाशित लेख)
पांच अंगों का संयोग : पंचांग
पंचांग शब्द दो शब्दों की संधि से बना है- पंच तथा अंग जिसका शाब्दिक अर्थ होता है पांच अंगों वाला। ये पांच अंग हैं तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण। हर भारतीय पंचाग में इन पांचों अंगों का समावेश होता है। भारतीय पंचांग की गणना अत्यंत सूक्ष्म होती है। भारतीय गणित के अनुसार पंचांग की गणना के मुखय पांच भाग हैं – सौर, चांद्र, सायन, नाक्षत्र तथा बार्हस्पत्य। सौर : सौर की गणना निम्नानुसार तीन भागों में की जाती है। जिस कालावधि में सूर्य मेष से मीन राशियों तक का सफर करता है, उसे सौर वर्ष कहते हैं।
जितने दिनों तक सूर्य एक राशि में भ्रमण करता है, उसे सौर मास कहते हैं। जिस काल खंड में प्रत्येक अंश का भोग सूर्य करता है, उसे सौर दिन कहते हैं। चांद्र : एक पूर्णिमा से अगली पूर्णिमा की अवधि को चांद्र मास कहते हैं। नर्मदा नदी के दक्षिण तट के हिस्से में मास की अमावस्या से अगली अमावस्या तक गणना की जाती है। एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय की अवधि को सायन दिन कहा जाता है। नाक्षत्र : नाक्षत्र का मान 60 घड़ी के तुल्य होता है। बार्हस्पस्त्य : एक वर्ष की अवधि जिसमें 365 दिन, 15 घड़ी, 30 पल तथा 22.5 विपल होते हैं। बार्हस्पत्य को पुनः पांच भागों में बांटा गया है – तिथि, नक्षत्र, वार, योग तथा करण। यही पंचांग के मूल अंग हैं।
पंचांग को तिथि पत्रक, जंत्री, मितिपटल आदि भी कहा जाता है। तिथि : तिथि की गणना का आकलन चंद्र की गति से किया जाता है। चंद्र का एक कला या लगभग 120 के औसतन गति से सूर्य से आगे निकल जाना ही तिथि कहलाती है। नक्षत्र : राशिचक्र को, जिसे क्रांतिवृत्त भी कहा जाता है, 27 भागों में बांटा गया है, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। सवा दो नक्षत्र की एक राशि होती है। इस प्रकार 27 नक्षत्रों की 12 राशियां होती हैं।
वार : वार सात होते हैं – रवि, सोम, मंगल, बुध गुरु शुक्र तथा शनि। भारतीय पंचांगों में प्राचीन काल की अवधारणानुसार वार सूर्योदय से आरंभ होता है और अगले सूर्योदय तक रहता है। योग : योग का अर्थ है दो या दो से अधिक संखयाओं का जोड़। योग की कुल संखया 27 है जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कुछ योग श्रेष्ठ होते हैं, तो कुछ शुभ, कुछ सामान्य, तो कुछ अतिनेष्ट। करण : करण को पंचांग का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है।
करणों की संखया ग्यारह होती है। बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज तथा विष्टि चर और शकुनि, चतुष्पद, नाग तथा किस्तुघ्न स्थिर करण होते हैं। विष्टि करण को भद्रा कहा जाता है जिसमें अच्छे से अच्छा मुहूर्त भी दुष्प्रभावी हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार भद्रा में शुभ कार्य वर्जित है किंतु इसका उपयोग तंत्र के षटकर्मों में और विशेष परिस्थितियों में न्यायालय संबंधी तथा चुनाव कार्यों में विशेष रूप से किया जाता है।
-डॉ. अशोक शर्मा