अगर टी एन शेषन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त न बनते तो देश में चुनावों के नाम पर धोखाघडी और धांधली का आलम जारी रहता। उन्होंने 90 के दशक में चुनाव आयोग के प्रमुख पद पर रहते हुए चुनाव सुधारों को सख्ती से लागु करने का एतिहासिक अभियान शुरु किया। वे अब जब दिवंगत हो चुके हैं तो देश को उनकेद्वारा किए महान कार्यों की जानकारी तो होनी ही चाहिए। शेषन ने उन गुंडा तत्वों पर ऐसी चाबुक चलाई जिसने धन और बल के सहारे सियासत करने वालों कोजमीन पर उतारकर पैदल कर दिया। शेषन ने अपने साथियों में यह विशवास जगाया कि उन्हें चुनाव की सारी प्रक्रिया को ईमानदारी से अंजाम देना चाहिए । उनसेपहले के चुनाव आयुक्तों पर आरोप लगते रहते थे कि वे पूरी तरह से सरकार के इशारों पर ही चुनाव करवाते हैं। वे कभी इस बात पर जोर भी नहीं देते थे कि चुनावतटस्थ तरीके से हो। वे सत्तासीन पार्टी के एजेंट बन कर रह जाते थे। वे कभी चुनाव सुधारों की ओर गंभीर तक नहीं रहे। एक तरह से कहें कि चुनाव आयुक्त का पदशासक वर्ग के चहेते रिटायर होने वाले किसी सचिव को तीन साल तक का पुनर्वास का कार्यक्रम बनकर रह गया था।
भारत में पहली बार चुनाव सुधार लागू करने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त शेषन ने एक नई परंपरा की शुरुवात की। उन्होनें साबित किया कि इस सड़े–गले सिस्टम मेंरहते हुए भी बहुत सारे सकारात्मक बदलाव लाये जा सकते हैं। वे अपने दफ़तर में बैठकर काम करने वाले अफ़सर नहीं थे। वे चाहते थे कि चुनाव सुधार करके भारत के लोकतंत्र को मजबूत किया जाए । अगर वे चाहते तो वे भी किसी बड़े नेता या किसी पार्टी का हित साध सकते थे और गवर्नर का पद अपने लिए सुरक्षितकरवा सकते थे। पर शेषन ने अपने लिए एक कठिन और कठोर राह को पकड़ा।
चुनाव सुधार का ऐतिहासिक कार्य करके उन्होंने विश्व भर में नाम तो कमाया पर जनता की अभूतपूर्व सेवा की । देश को जगाने के उद्देश्य से 1994 से 1996 के बीचउन्होनें चुनाव सुधारों पर देश भर में सैंकड़ों जन सभाओं को संबोधित किया । वे सुबह जल्दी के प्लेन से दिल्ली से निकलते तो कभी मुम्बई, हैदराबाद, भुवनेश्वर जैसेशहरों में एक एक दिन में कई सभाओं को सम्बोधित करते। वे विश्व विद्यालयों के छात्रों, चेम्बर ओफ़ कामर्स, बॉर काउन्सिल, प्रेस कॉन्फ़्रेन्स और शाम को एक विशालजन सभा को सम्बोधित करके रोज़ दिल्ली लौट आते थे।
मैं 1995 के विधान सभाओं और 1996 के लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का वरिष्ठ उपाध्यक्ष और चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष था। मुझे उनके कार्यों को करीब से देखने का मौका मिला । मैं कई बार उनसे मिला । मैंने उन्हें कर्तव्यपरायण और राष्ट्रनिष्ठ पदाधिकारी के रूप में ही पाया ।
शेषन जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। हवाई अड्डे से जब उनकी कारों का लंबा क़ाफ़िला बाहर निकलता तो हज़ारों लोग सड़क किनारे खड़े होकर उनकी एकझलक पाने को बेताब रहते। उनकी बढ़ती लोकप्रियता और दृढ स्वभाव को देखकर प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने कांग्रेसी लॉबी के दबाव में अचानक एक सदस्यी चुनावआयोग में दो सदस्य और जोड़ दिए। तब शेषन युगल छुट्टी पर अमरीका में थे। उन्हें बहुत झटका लगा। इसके बावजूद शेषन का जलवा कायम रहा। बाकी दोनोंआयुक्त उनसे असहमति व्यक्त करते तो किस बात पर ? वे कुछ भी गलत तो कर नहीं रहे थे । जो नियम है उसी को सख्ती से पालन कर रहे थे । वे देश में चुनावसुधार के काम को आगे बढ़ाते रहे। अब देश को यह सवाल पूछने का अधिकार है की राव ने शेषन के पर कतरने की कोशिश क्यूँ की। क्या उन्हें इसलिए दण्ड दियागया क्योंकि वे एक बेहतर कार्य कर रहे थे? आजकल ई.वी.एम मशीनों की मीनमेक निकालने वाली कांग्रेस को याद रखना होगा की उसने देश में चुनाव सुधारों केरास्ते में घड़ी–घडी कितने अवरोध पैदा किए।
शेषन ने 1990 के दशक में देश में चुनाव सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बड़ी ही कठोरता से आदर्श आचार संहिता का पालन कराया था। शेषन बहुतअच्छे कर्मठ और ईमानदार नौकरशाह थे जिन्होंने परिश्रम और निष्ठा के साथ देश की सेवा की।
चुनावी सुधार की दिशा में उनके प्रयासों ने हमारे लोकतंत्र को और मजबूत तथा भागीदारीपूर्ण बनाया। शेषन 12 दिसंबर, 1990 से लेकर 11 दिसंबर, 1996 तक देशके मुख्य चुनाव आयुक्त रहे और इस दौरान उन्होंने चुनाव सुधार की दिशा में काफी सुधारात्मक काम किये । उनका जन्म केरल के पलक्कड़ जिले के तिरुनेल्लाईमें हुआ था। लोकतंत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा । शेषन ने भारत के चुनावी संस्थान को मजबूत बनाने में एक महा सुधारक कीभूमिका निभायी है। देश उन्हें हमेशा लोकतंत्र के पथप्रदर्शक के रूप में याद रखेगा।
देश को शेषन जैसे सरकारी अफसरों की ज़रूरत है, जो अन्य अफसरों के लिए प्रेरणा बनते हैं। शेषन ने कभी निजी लाभ के लिए काम नहीं किया। सरकारीसेवा से मुक्त होने के बाद उन्होने दिल्ली को छोड़ दिया और चेन्नई में रहने लगे । उसका मुख्य वजह यही था कि वे अपने पेंशन से दिल्ली में अपना निर्वाहकरने में वे असमर्थ थे। वे एक संत किस्म के इन्सान थे। वे मनीषी थे। जब शेषन की बात होती है तब दिल्ली मैट्रो रेल के फाऊंडर ई श्रीधरन का भी जिक्रकरने का मन करता है। उन्होंने देश में मैट्रो रेल की नीव रखी । संयोग से ये दोनो ही अफ़सर मूल रूप से केरल से थे। देश को इसी तरह के अफसरोंकी ज़रूरत है। जबतक देश को शेषन और श्रीधरण जैसे ईमानदार और मेहनती अफ़सर नहीं मिलेंगे तबतक सरकारों की विकास और जन्म कल्याणकारी योजनाएंसही से लागू नहीं हो पाएंगी। भारत जैसे लोकतान्त्रिक देशों में सरकारी अफसरों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है । शेषन जैसे अफसर ने साबित करकेदिखाया है कि अगर आपमें इच्छा–शक्ति है तो बहुत कुछ किया जा सकता है। हालाँकि यह दुखद है कि हमारे यहाँ अब भी शेषन सरीखे बहुत से सरकारी अफ़सरसामने नहीं आते। अधिकतर तो सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक की नौकरी करके घर चले जाते हैं। उनमें देश या समाज के प्रति कोई ज़िम्मेदारी का भावनहीं होता।
आर. के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सांसद हैं)