कोरोना महामारी से व्याप्त संकट का अंत किसी भी रूप में होता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है। अभी तक कुछ अनसुलझे प्रश्न हैं, यथा – वैक्सीन कब तक आयेगी, उसके कोविड-19 महामारी पर क्या प्रभाव होंगे। ये बहुत बड़े यक्ष प्रश्न विश्व के समक्ष हैं। आज सभी के मन में यह भय व्याप्त है कि इस वैक्सीन के दूरगामी परिणाम मनुष्य जाति के लिए हानिकारक न हों, क्योंकि किसी भी वैक्सीन को साधारण जनता में प्रयोग करने से पूर्व 15-16 वर्ष अथवा उससे भी अधिक समय इसके परिणामों का निष्कर्ष निकालने में लग जाता है। कोरोना को समाप्त करने का दायित्व सरकार व वैक्सीन का ही नहीं अपितु जनता का भी बहुत अधिक है। आज सम्पूर्ण विश्व इससे त्रस्त है। इस महामारी का प्रकोप अब विश्व में पुनः बढ़ रहा है। विश्व के कई देशों में पुनः लाॅकडाउन की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। भारत में दिल्ली, मुम्बई जैसे शहर पुनः लाॅकडाउन की स्थिति में आ गए हैं। अब विचारणीय विषय यह है कि पुनः उसी परिस्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है?
सदियों से प्रतिवर्ष विभिन्न धार्मिक पर्व को मनाया जाता रहा है और भविष्य में भी मनाया जाता रहेगा, परन्तु किसी भी पर्व को मनाने के प्रति आस्था हृदय में होनी चाहिए, फिर पूजा मंदिर में करो अथवा घर में, एक समान है। यदि हृदय में श्रृद्धा का भाव है तो जंगल में भी ईश्वर के दर्शन हो जायेंगे। आज तक किसी भी योगी को भगवान ने मन्दिर में दर्शन नहीं दिये। किसी की भी साधना सफल हुई है तो जंगल में एकान्त में ही हुई है, क्योंकि कण-कण में ईश्वर विद्यमान हैं। हिन्दू संस्कृति में आस्था का भाव इतना गहन है कि मिट्ठी को भी गणेश जी, लड्डू गोपाल या शिवलिंग का आकार देकर, उसमें कलावा बांधकर भगवान के रूप में स्थापित कर देते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि ईश्वर व धार्मिक पर्वो के प्रति आस्था हृदय मे होने पर कहीं भी और कैसी भी परिस्थिति में व्यक्त की जा सकती है, परन्तु यह ईश्वर प्रदत्त मानव जीवन एक बार ह्रास होने पर पुनः प्राप्त होना असम्भव है। राजधानी दिल्ली में कोरोना संक्रमण पुनः तीव्र गति से हो रहा है और वहाँ 4-5 हजार व्यक्ति प्रतिदिन संक्रमित हो रहें हैं। अस्पतालों में पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण मरीजों का पर्याप्त इलाज नहीं हो पा रहा है। इसी कारण गंभीर मरीज इधर-उधर भटक रहें हैं। यही स्थिति यूरोप के कई देशों में भी है और वहाँ पुनः लाॅकडाउन की स्थिति पैदा हो चुकी है। दिल्ली में डाॅक्टरों की कमीं से सरकार भी असमंजस की स्थिति में हैं और उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, असम आदि राज्यों से डाक्टरों को दिल्ली लाया जा रहा है। विवाह समारोह में अतिथियों एवं परिवार के सदस्यों की संख्या 50 तक सीमित कर दी गई है और बाजारों को भी बंद करने के लिए विचार किया जा रहा है। सम्भवतया इस परिस्थिति के लिये आप और हम ही जिम्मेदार हैं। दिपावली के पर्व पर पटाखों का प्रयोग करने पर सरकार के द्वारा प्रतिबंध लगाया गया था, इसके विपरीत पटाखों की गूंज देर रात्री तक गूंजती रही। लोग समाजिक दूरी की अवहेलना करते हुये कंधे से कंधा लगाकर घूमते रहे, होटलों में मदिरा का सेवन करने हेतु दिन-रात पार्टियों का आयोजन होता रहा। इस तरह से सामाजिक दूरी और मास्क के उपयोग का उपहास किया जाता रहा है। यद्यपि इस तथ्य से भी जनता भली भांति परिचित है कि भारत में अब तक एक लाख तीस हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। भारत जैसे सभ्य व सुसंस्कृत देश में इतनी बड़ी अज्ञानता का किया जाना कदापि ठीक नहीं। परन्तु समाज में कुछ ऐसे लोग हैं, जो अपना कर्तव्य केवल मात्र अपने परिवार तक ही सीमित रखते हैं। उनके ही प्रति अपने दायित्वों को वहन करना पर्याप्त मानते हैं। उनको ये बोध ही नहीं है कि स्कूल, काॅलिज एक लंबे समय से बंद है, शिक्षा की हानि होने से बच्चों का भविष्य अंधकार में डूब रहा है। बच्चे देश का भविष्य हैं, यदि देश के युवा का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा तो देश स्वतः अंधकारमय हो जायेगा। इस वास्तविकता का अहसास देश के प्रत्येक नागरिक को होना चाहिये। -योगेश मोहनजी गुप्ता* |