कोरोना महामारी ने समूची जीवनशैली, सोच एवं परिवेश को बदल दिया है। इस बदलते परिवेश और बदलते मूल्यों ने समाज में एक नई आकांक्षा को जन्म दिया और वह आकांक्षा है नाउम्मीदी में से उम्मीद एवं निरोगी एवं स्वस्थ जीवन। इस आकांक्षा के लिए जरूरी है आप जीवन में शुक्रिया कहना, धन्यवाद देना और आभार जताना सीखिए। छोटे-छोटे धन्यवाद के शब्द बड़े-बड़े काम कर जाते हैं, जीवन के अंधेरों के बीच रोशनी की मीनारें बन जाते हैं।
प्रतिदिन कुछ नया तत्व, नई बात, नया अनुभव सीखने की एक तीव्र भावना अपने हृदय में रखें। इसके लिए आप धन्यवाद कहने की आदत को अपनी जीवनशैली बना लें, जो कृतज्ञता महसूस करते हैं, उनके संकट की धार कम हो जाती है, उनमें अपनेपन की संभावनाएं अधिक होती है। शुक्रिया या आभार एक ऐसी संवेदना है जो न केवल बेहतर जीवन के रास्ते खोलती है बल्कि हमें अपनी कमियों, संकटों एवं त्रुटियों में भी सुकून महसूस कराती है। अनेक तरह की शोध निष्कर्षों में पाया गया है कि जो लोग आभार व्यक्त करना जानते हैं उन्हें जिंदगी जीने की कला आती है। वे सिर्फ खुशियों में नहीं दुख में भी यकीन करते हैं। तकलीफों और परेशानियों को वे जीवन का हिस्सा मानते हैं लेकिन उन्हें भरोसा होता है कि वे अपनांे की बदौलत उस मुश्किल वक्त को भी पार कर लेंगे। रूमी कहते हैं, ‘अपने शब्दों को ऊंचा करें, आवाज को नहीं। फूल बारिश में खिलते हैं, तूफानों में नहीं।’ जीवन में दूसरों के प्रति कृतज्ञता के फूल खिलते रहने जरूरी है।
मनोविज्ञान के प्रोफेसर क्रिस पीटरसन के अनुसार, यदि आप कृतज्ञता का इस्तेमाल रोजना अपने जीवन में करें तो यह आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ ही आपकी खुशी को भी दोगुनी कर देगी। आप शारीरिक और मानसिक रूप से अपने अंदर बदलाव महसूस करेंगे। आपके भीतर शक्ति का संचार होगा, दृढ़ निश्चयी बनेंगे, जागरूकता बढ़ेगी, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बनेगी, रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और आशावाद का स्तर बढ़ जाएगा। एक अध्ययन के दौरान यह भी पाया गया कि ऐसे लोग जो अपने जीवनकाल में शुक्रिया शब्द का अधिक-से-अधिक इस्तेमाल करते हैं वे जीवन में आने वाली कठिनाइयों के साथ बेहतर ढंग से तालमेल बिठा लेते हैं और कम दबाव में होते हैं। दिल से कहा हुआ शुक्रिया बेहद काम का होता है। यदि आप किसी बुरे समय से गुजर रहे हैं तो शुक्रिया कहना आपके दिमाग को ऊर्जा देगा, सोचने की शक्ति को बढ़ाएगा और आपके लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता प्रदान करेगा। अगर आप हर दिन शुक्रिया के साथ शुरू करते हैं तो आपका सामाजिक दायरा बढ़ता है, समस्याओं से लड़ने की ताकत का विस्तार होगा।
धन्यवाद और कृतज्ञता का नजरिया हमारी सोच और हमारे जीवन को विस्तृत बनाता है। आप सौभाग्यशाली हैं कि यदि आपके पास परिवार, दोस्त, स्वास्थ्य, नौकरी, व्यापार और घर है। आपको इन सबके लिए आभारी होना चाहिए। आपको कृतज्ञ होना चाहिए कि आप धरती के सभी खूबसूरत नजारों का आनंद उठा सकते हैं, स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ ले सकते हैं, मधुर संगीत सुन सकते हैं, इतना ही नहीं संस्कृतियों को जी सकते हैं, रिश्तों के साथ जिंदगी बिता सकते हैं। दरअसल कृतज्ञ या आभारी होने की वजहें आसमान से पैदा नहीं होतीं बल्कि हमारे आसपास की रोजमर्रा की जिंदगी हर पल हमें कृतज्ञ होने का कारण देता है।
कृतज्ञता यानी संवेदनशीलता- इसका अर्थ दूसरों की भावनाओं को समझना और उनका सम्मान करना है। प्रत्येक व्यक्ति की एक अलग पहचान होती है, हमें इस वास्तविकता को झुठलाना नहीं चाहिए। जिस प्रकार हम चाहते हैं कि लोग हमें समझें, हमारे विचारों का सम्मान करें, उसी प्रकार और लोगों की भी ऐसी अपेक्षाएं होती हैं। अपने अधिकारों की रक्षा के साथ दूसरों के अधिकारों का भी हम सम्मान करें, उनके सुख-दुःख के प्रति, उनकी तकलीफों के प्रति संवेदनशील बनकर जागरूक रहें, तो इससे अपने प्रति सम्मान भी उनकी दृष्टि में हम बढ़ा सकेंगे। जीवन में कृतज्ञता एवं आभार का दृष्टिकोण रखना सीखना ही होता है। कृतज्ञता हमें हमारे डर, भय, निराशा और चिंताओं को दूर करने का हौसला देती है। कृतज्ञता है तो ही एक-दूसरे संग हंसने, बोलने और सहयोग करने का सिलसिला बना रहता है। पर इस कृतज्ञता रूपी भरोसे को जीवन में अवतरित करने में समय लगता है। मनोविज्ञानी स्टीवन स्टोस्नी कहते हैं, ‘धीरे-धीरे जमने वाले भरोसे ज्यादा स्थायी और लंबी यात्रा करते हैं।’
कोरोना प्रकोप के बीच लोगों की खुशहाली, संतुलन, तनावमुक्ति, स्वास्थ्य, विश्वशांति और भले के लिये, पूरे विश्व भर के लोगों के लिये एक पूर्णतावादी दृष्टिकोण उपलब्ध कराने हेतु कृतज्ञता एवं आभार की निरन्तरता बनी रहे, यह अपेक्षित है। यह जन-जन की जीवनशैली बने, इसी से लोगों को नयी सोच मिले, नया जीवन-दर्शन मिले। विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है- जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, उन्हें सकारात्मक एवं संवेदनशील होना होगा, उसे निषेधत्मक भावों से बचना चाहिए। बार-बार क्रोध करना, चिड़चिड़ापन आना, मूड का बिगड़ते रहना, ईष्र्या से भरे रहना- ये सारे भाव हमारी समस्याओं से लड़ने की शक्ति को प्रतिहत करते हैं। इनसे ग्रस्त व्यक्ति बहुत जल्दी बीमार पड़ जाता है। हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा। ऐसा तब होगा, जब हम अपनी कमजोरियों पर ही नहीं, बल्कि उनसे उबरने के रास्तों पर भी विचार करेंगे। तभी समस्यामुक्त जीवन का रास्ता खुलेगा।
हम जितना ध्यान रोगों को ठीक करने में देते हैं, उतना उनसे बचने में नहीं देते। दवा पर जितना भरोसा रखते हैं, उतना सोच को परिष्कृत रखने पर नहीं रखते। यही कारण है रोग पीछा नहीं छोड़ते। हमें यह पता होता है कि कार के लिए कौन सा ईंधन सही है, पर हम ये नहीं जानते कि शरीर को ठीक रखने के लिए कौन से ईंधन की जरूरत है? हमें कैसी सोच रखनी चाहिए? कैसी विचार चाहिए? कैसी जीवनशैली चाहिए? जीवन में दूसरों के प्रति कृतज्ञता का भाव एक महा-औषधि है।
कृतज्ञ लोग दुख और तकलीफों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। वे जानते हैं कि ये जीवन का जरूरी हिस्सा है, लेकिन उन्हें यह अहसास होता है कि मुसीबत के समय उनके पास मित्र, रिश्तेदार, परिवार और समुदाय के लोग हैं, जो जरूरत पड़ने पर उनकी आवश्यकताओं को समझेंगे। इसके अलावा ऐसे लोग दूसरों की जरूरतों को समझते हैं और समय पर उन्हें पूरी करने की कोशिश करते हैं। वह हमेशा इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि कैसे दूसरों की तकलीफों को कम किया जाए और संकट के समय दूसरों की मदद किस तरह की जाए। प्रेषकः
(ललित गर्ग)