Shadow

कोविड -19 काल: जाने अपने सभी कर्तव्यों को और करें उनका पालन

प्रत्येक अधिकार की प्राप्ति के लिए उससे सम्बंधित कर्त्तव्य का पालन करना अनिवार्य होता है ।

– गाँधीवादी सिद्धांत
कोरोना वायरस जनित बीमारी कोविड -19 का पहला मामला दिसंबर,2019 में वुहान, हुबेई, चीन में पाया गया था। यह वायरस, मानव-से-मानव संचरण की तीव्र क्षमता के कारण, दुनिया भर में तेजी से फैल गया। दिनांक 11.03.2020 को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया। इस लेख के लेखन के समय दुनिया भर में कोविड -19 के 20 लाख से अधिक पुष्टित मामले हैं और इसके कारण एक लाख आठ-हज़ार हज़ार से अधिक मौतें हुई हैं। इस समय भारत में कोविड -19 के 12 हजार से अधिक पुष्टित मामले हैं और इस महामारी के कारण 400 से अधिक मौतें हुई हैं । और यह संख्या हर दिन के साथ तेजी से बढ़ रही है ।

समय रहते केंद्र सरकार और उत्तराखंड राज्य दोनों ने महामारी का मुकाबला करने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों को लागू किया। दिनांक 22.03.2020 को ही उत्तराखंड राज्य सरकार ने इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए बहुत कड़े उपायों के साथ राज्य भर में शासनादेश संख्या 217 / UKMFWS / PS-MDNNM / 2019-20 जारी कर दिया था । इसके उपरांत, 24 मार्च को, देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने महामारी के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया और संपूर्ण भारत में 21 दिनों के लॉक-डाउन का आदेश दिया । 14 अप्रैल को, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लॉक-डाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया । परन्तु दैनिक मजदूर एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर लॉक-डाउन के दुष्प्रभाव को देखते हुए, ऐसे क्षेत्र, जहाँ कोविड-१९ का प्रसार नहीं है, के लिए 20 अप्रैल के बाद सशर्त छूट की व्यवस्था भी की है। इसके उपरांत, आदेश संख्या 40-3/2020-DM-I(A)के माध्यम से, गृह मंत्रालय ने लॉक-डाउन अवधि के दौरान मॉडस ऑपरेंडी का विस्तार करते हुए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए।

आपातकाल के समय में सामूहिक रणनीति और उनका निष्पादन देश के हर नागरिक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे समय में राष्ट्र के सामूहिक विवेक को ‘अधिकार केंद्रित दृष्टिकोण’ से ‘कर्तव्यों केंद्रित दृष्टिकोण’ में बदलने की भी अत्यंत आवश्यकता होती है। कोविड-19 के विरुद्ध सरकार द्वारा किये गए गए उपायों की प्रभावशीलता पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करेगी कि आप और हम अपने कर्तव्यों का पालन करने में कितने सक्षम सिद्ध होते हैं ।

कर्तव्यों के पालन की पहली और सबसे महत्वपूर्ण कड़ी कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से समझना होती है । इस लेख का उद्देश्य देश के नागरिकों को कोविड-19 से लड़ने के लिए उनके कानूनी दायित्वों से अवगत कराना है । इस आपदा काल में हर नागरिक के लिए निम्नलिखित कर्तव्यों का पालन करना आवश्यक है –

कोई भी व्यक्ति अपने निवास से बाहर कदम नहीं रख सकता है । भोजन और चिकित्सा सेवा लेने के लिए बाहर आना इसका अपवाद है । यदि कोई भी व्यक्ति घर से बाहर निकलता है तो पुलिस अधिकारी इसका कारण पूछ सकते हैं और यदि वह उचित कारण नहीं बता पाता तो ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाएगी ।
सभी दुकानें / वाणिज्यिक गतिविधियाँ / औद्योगिक गतिविधियाँ बंद रहेंगी। स्वास्थ्य सेवाओं, वित्तीय क्षेत्र (बैंकों आदि), सार्वजनिक उपयोगिताओं (एल.पी.जी., पेट्रोल, डीजल, मिट्टी के तेल, बिजली, डाक सेवाओं, दूरसंचार सेवाओं आदि) सहित आवश्यक सेवाएं कार्यात्मक रहेंगी। सरकार द्वारा 20.04.2020 से कुछ वाणिज्यिक और निजी प्रतिष्ठानों को खोलने की अनुमति दी जा सकती है और समय-समय पर इसका आकलन किया जाएगा।
सभी सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा कवर करना अनिवार्य कर दिया गया है । सार्वजनिक रूप से थूकना भी दंडनीय अपराध बना दिया गया है।
‘सोशल डिस्टेंसिंग नॉर्म्स’ का पालन करना । पांच या अधिक व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर एकत्रित नहीं हो सकते, भले ही वे भोजन या चिकित्सा सेवा के लिए घर से बाहर निकले हों। इसके अलावा, यह सार्वजनिक स्थान के प्रभारी व्यक्ति (किराना मालिक, मेडिकल हाल मालिक इत्यादि) की भी जिम्मेदारी होगी कि वह अपने परिसर में सामाजिक दूरियों के मानदंडों को सुनिश्चित करें । दुकान / संस्थान के मालिक के खिलाफ भी F.I.R. हो सकती है ।
स्थानीय प्रशासन द्वारा कुछ लोगों के सन्दर्भ में ‘क्वारंटाइन आदेश’ जारी किए जा रहे हैं ताकि संक्रमण पर रोक लग सके । जिन लोगों को घर पर रहने के लिए कहा गया है उन्हें सख्ती से आदेशों का पालन करना होगा ।

किसी भी व्यक्ति द्वारा उपर्युक्त प्रावधानों का उल्लंघन करने की स्थिति में उसके विरुद्ध ‘लोक सेवक द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा’ के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 188 के अंतर्गत, ‘संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलाना’ के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 269 और 270 के अंतर्गत और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 के अंतर्गत F.I.R. एवं क़ानूनी कार्यवाही होगी।

नागरिकों को डॉक्टरों / चिकित्सा कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना है । कोई व्यक्ति लोक सेवकों और अधिकारियों को उनके सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वाह में बाधा नहीं डाल सकता । ऐसा करने की स्थिति में उपर्लिखित प्रावधानों के साथ ही साथ, ‘लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वाह में बाधा डालना’ के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 186 के तहत भी अतिरिक्त कार्यवाही होगी ।

किसी भी व्यक्ति को कोविड -19 से संबंधित अफवाहें या फर्जी खबरें फैलाने में संलग्न नहीं होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ऐसी गतिविधियों में लिप्त होता है तो उस पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 504 और 505 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66-ए के तहत भी कार्यवाही होगी।

उपर्युक्त प्रावधानों के गंभीर उल्लंघन के मामले में सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, १९८० (रा. सु. का.) के कड़े प्रावधानों को भी लागू कर सकती है और आरोपियों को हाथोंहाथ १२ माह के लिए हिरासत में ले सकती है। ऐसी स्थिति मैं सरकार ‘हत्या के प्रयास’, ‘हत्या’ आदि के आरोप भी लगाने पर विचार कर रही है जिसमें ‘मृत्युदंड’ और ‘आजीवन कारावास’ तक की सजा का प्रावधान है।

उपर्युक्त प्रत्येक नागरिक द्वारा पालन किए जाने वाले सामान्य कर्तव्यों के अतिरिक्त, सरकार ने कई विशिष्ट दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं जिनमें ’रेड ज़ोन’, ‘हॉट स्पॉट्स’ आदि के रूप में चिह्नित क्षेत्रों के लिए अतिरिक्त प्रतिबंध शामिल हैं।

कानूनी कर्तव्यों के पालन के साथ ही साथ, प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक को निम्नलिखित नैतिक कर्तव्यों का निर्वाह भी स्वेच्छा से करना चाहिए:

भोजन, कपड़े, दवाओं और अन्य आवश्यक वस्तुओं को देकर गरीबों की मदद करना;
इस कठिन समय में अपने कर्मचारियों को निरंतर वेतन देते रहना;
भोजन, दवाओं और अन्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी न करना;
डॉक्टरों, पुलिस अधिकारियों, सरकारी अधिकारियों, सफाई कर्मचारियों को उचित सम्मान देना । यह लोग हमें बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं और सही मायनों में ‘कोरोना वारियर्स’ हैं;
अन्य नागरिकों में भी जागरूकता और संवेदनशीलता का प्रसार करना एवं जिम्मेदारी का एहसास करना;

जहाँ एक तरफ कोरोना वारियर्स अपने प्राणों की चिंता किये बिना समाज की सेवा करने में लगे हैं । वहीँ दूसरी तरफ लोगों को कोरोना वारियर्स के साथ दुर्व्यवहार करने, सार्वजनिक स्थानों पर थूकने, सामाजिक दूरियों के मानदंडों का पालन न करने और सार्वजनिक अधिकारियों के साथ सहयोग न करने के दृश्य भी सामने आ रहे हैं जो बहुत दुखदायी है ।

कानून का मूल दर्शन अधिकारों और कर्तव्यों का सह-अस्तित्व होता है । प्रख्यात न्यायविद सालमंड ने कहा है कि ‘किसी भी अधिकार का सम्बंधित कर्त्तव्य के बिना कोई औचित्य नहीं होता’ । इसलिए इस परीक्षा की घडी में प्रत्येक नागरिक द्वारा अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करते हुए सरकार को सशक्त बनाना होगा । अगर प्रत्येक नागरिक सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करेगा तो स्वतः ही राष्ट्र को इस भयावह आपदा से बहार निकालने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा ।

विभोर अग्रवाल
(अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया
Email: ALChambers.Delhi@gmail.com)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *