- क्या भारत का विपक्ष बुढ्ढा हो चुका है?*
भारत देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ, जिसके अन्तर्गत कांग्रेस पार्टी के पंडित जवाहर लाल नेहरु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस पार्टी लगभग 50 वर्षो तक सत्ता में रही। कांग्रेस के स्थायित्व का प्रमुख कारण प्रारम्भ में विपक्ष का कमजोर होना था। कांग्रेस के सत्ताकाल में ही भारत दो टुकड़ों में विभाजित हुआ, जिसके अन्तर्गत पाकिस्तान का जन्म हुआ। उस समय विपक्ष मजबूत होता तो शायद पाकिस्तान नहीं बनता। विपक्ष को स्वयं को सशक्त करने में 50 वर्ष व्यतीत हुए। इस अवधि में विपक्षी दलों में अनेकों बार बिखराव भी हुआ परन्तु उसने पुनः स्वयं को एकजुट किया। अथक प्रयासों के पश्चात भाजपा एक सुदृण विपक्ष के रूप में उभरी। पूर्व में भाजपा ने अपना अस्तित्व स्थापित करने हेतु अन्य दलों का सहयोग लिया, परन्तु वर्तमान समय में भाजपा स्वयं के जनाधार से कई प्रदेशों तथा केन्द्र में सरकार बनाने में सफल हुई। जैसे-जैसे भाजपा की स्थिती सशक्त होती गई, वैसे-वैसे कांग्रेस पतन की ओर अग्रसर हो गई, उसमें निरन्तर बिखराव होता जा रहा है। इस बीच कांग्रेस से अलग होकर शरद पवार, ममता बैनर्जी तथा जगमोहन रेड्डी आदि ने अपनी अलग-अलग पार्टियाँ बना ली और ये सभी पार्टियाँ अपनी मूल पार्टी कांग्रेस की विरोधी पार्टी बन गई। उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी के विघटन से सपा पार्टी का निर्माण हुआ। तात्पर्य यह है कि जो पाटियाँ कभी सत्ता में थी वे विपक्ष में आ गई हैं तथा उनकी स्थिति निरन्तर निम्न होती जा रही है। इसी के परिणामस्वरूप आज हम देख रहें हैं कि भारत शनै-शनै सशक्त विपक्ष विहीन बनता जा रहा है जबकि लोकतांत्रिक देश में विपक्ष की भी एक अहम भूमिका होती है।
विपक्ष में बिखराव दो प्रमुख कारणों से होता है। पहला कारण उनमें सत्ता के प्रति अत्यधिक लालसा का उत्पन्न हो जाना होता है। जिसके प्रभाव में आकर वे उपयुक्त अवसर की तलाश में रहते हुए सत्तासीन दल की तरफ देखते हैं कि कब उन्हें उपयुक्त अवसर मिले और वे उसका लाभ उठा सकें। इस प्रकार टूटने के उनके द्वारा कई अनर्गल बहाने भी दिए जाते हैं, जिसका सभी को पूर्व संज्ञान होता। दूसरा प्रमुख कारण सत्तापक्ष कुछ विपक्षी नेताओं को उनकी व्यक्तिगत विवशता के कारण अपनी मूल पार्टी से अलग होने के लिए विवश करता है। इस कार्य की सफलता हेतु सत्तापक्ष विपक्षी नेताओं को पद एवं धन का प्रलोभन भी देता हैं, जिसके प्रभाव में आकर विपक्ष टूटता जाता है।
सत्तापक्ष अथवा विपक्ष में कोई भी राजनीतिक दल हो सकता है, परन्तु प्रलोभन से टूटना यह अच्छे लोकतंत्र की पहचान नहीं हैं। भारत एक धार्मिक व ईश्वरीय देश है, जहाँ इस प्रकार की मूल्य विहीन स्थिति अशोभनीय है। भारत की जनता अपने वचन पर अडिग रहने वाली एवं अपने देश के प्रति आस्थावान होती है। देशसेवा का कर्म विपक्षी दल में रहकर भी भली प्रकार से क्रियान्वित किया जा सकता है। लोकतंत्र का सबसे बड़ा सहारा विपक्ष ही होता है, वह सत्तापक्ष की त्रुटियों को इंगित कर उन्हें सही निर्णय हेतु प्रेरित कर सकता है। जबकि सत्तापक्ष के नेताओं के द्वारा अपनी पार्टी के नेतृत्व के विरुद्ध कुछ भी बोलना सम्भव नहीं होता, परन्तु विपक्ष उन्हें उनकी गलतियों का अहसास करा सकता है। यदि देश को सुरक्षित एवं समृद्धशाली बनाना है तो स्वस्थ एवं दागहीन विपक्ष का होना भी आवश्यक है जिसको लोकतंत्र में किसी के द्वारा भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता।*योगेश मोहन*