कोरोना संकट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चक्रव्यूह में फंसा दिया है। वे आज के अभिमन्यु बनते जा रहे हैं। यह भी सत्य है कि वे विपरीत परिस्थितियों में भी बड़े साहस से डटे हुए हैं और लगभग चक्रवर्ती सम्राट की तरह ही भारत की सत्ता का संचालन कर रहे हैं और वैश्विक स्तर पर भी प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। मगर परिस्थिति दिन व दिन जटिल होती जा रही हैं। हर बदलते दिन के साथ उन पर आरोप लगते जा रहे हैं व उनके कई निर्णयों के उल्टा असर पड़ने से देश की जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है। एनडीए सरकार के सन 2019 में वापसी के बाद कश्मीर, अयोधया व तीन तलाक आदि के मुद्दों पर जीत के साथ वे लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए थे और इसीलिए कोरोना संकट के समय उनके सम्पूर्ण लॉक डॉउन के निर्णय का पूरे देश ने एक स्वर में साथ दिया बिना किसी चर्चा व गहराई में गए बिना। मगर लॉक डॉउन के चौथे चरण तक आते आते चीजें बिखरने लगी। लोगों की जान बचाने के लिए अर्थव्यवस्था का गला घोंटने व सब कुछ यथास्थिति रोक देने से देश मे भयंकर अव्यवस्था, असंतोष व अशांति का माहौल बन गया है। लोग सीएए व शाहीन बाग के कारण उपजी अराजकता से उभरे भी नहीं थे कि संक्रामक बीमारी के भय व गंभीर आर्थिक संकट से घिर गए। इसी के साथ सब कुछ बंद कर देने से आर्थिक के साथ ही भावनात्मक, मानसिक व स्वास्थ्य संबंधी सैकड़ो समस्याओं से घिरते गए और उससे भी बड़ी समस्या बेरोजगारी, भूख , गरीबी व प्रवास की। इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में घबराहट, भगदड़ के बीच प्रवासी मजदूरों के संकट का लिजलिजा समाधान मोदी की छवि को गहरी चोट दे गया। अब मध्यम वर्ग भी नोकरी व व्यापार चले जाने के कारण सरकार व मोदी से नाराज होता जा रहा है। संघ परिवार में भी मोदी से नाराजगी बढ़ती जा रही है।
सरकार की आमदनी बहुत कम हो जाने से जरूरी खर्चो तक के लिए धन की कमी ने बड़े संकट पैदा कर दिए हैं। इन सबके बीच पाकिस्तान द्वारा सैकड़ो बार सीमा पर गोलीबारी, चीन के साथ लद्दाख में झड़प, नेपाल का आंखे दिखाना, हिंद महासागर में चीन की बढ़ती दखल, अमेरिका चीन में बढ़ते तकरार के बीच भारत को उलझने की कोशिश तो चीन व अमेरिका द्वारा भारत पर बढ़ता कूटनीतिक दबाब कुछ अलग ही चिंताएं बढ़ा रहा है। कश्मीर में बढ़ती आतंकी वारदाते, तो देश के अनेक भागों में बढ़ता टिड्डी दल का आक्रमण, इम्फान तूफान से उत्तर पूर्व, बंगाल व उड़ीसा में भीषण तबाही और कोरोना मरीजों का नित बढ़ता ग्राफ विकट चुनोती लिए खड़ा हो गया है। देश की अर्थव्यवस्था को खोलने की कोशिशों के बीच 70% औधोगिक क्षेत्र केंटोनमेंट जोन में होने के कारण सील होने से दिक्कत काम होने की जगह और बढ़ गयी हैं। इसी बीच विपक्षी दल विशेषकर कांग्रेस पार्टी लगातार सरकार को घेर रही है व हर निर्णय की आलोचना कर नकारात्मक माहौल बना रही है व देश मे आर्थिक आपातकाल लगाने की स्थिति आ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो यह बहुत बुरा होगा।
इन सब दुश्चिंताओं के बीच आने वाले अगले दो तीन महीने माहौल और बिगड़ने व खराब होने के संकेत दे रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं व उनकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे आना निश्चित है। ऐसे में संभव है कि विपक्ष मध्यावधि चुनावों की मांग कर सकता है किंतु कमजोर विपक्ष की शायद ही सुनी जाए। हाँ संघ या पार्टी में मोदी को हटाकर किसी ओर को कमान देने की सुगबुगाहट अभी से शुरू हो चुकी है। ऐसे में आने वाले समय मे राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अमित शाह व योगी आदित्यनाथ मोदी के विकल्प के रूप में देखे जाने लगेंगे। मोदी ऐसा कभी भी नहीं चाहेंगे। वे मंझे हुए खिलाड़ी हैं और अपने ट्रंप के पत्ते का इस्तेमाल कर सकते हैं यानि आपातकाल की घोषणा या फिर पाकिस्तान से युद्ध। मगर दोनों ही बहुत खतरनाक कदम साबित हो सकते है। एक तरफ कुआं तो दूसरी ओर खाई। महामारी व आर्थिक विपत्तियों से घिरे देश के लिए ऐसे कदम आत्मघाती भी हो सकते हैं।
उनके अगर अपनी सत्ता व देश दोनों बचाने हैं तो अपनी शैली में व्यापक बदलाब करने होंगे। निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक लोकतांत्रिक, पक्ष विपक्ष सभी से समन्वय और अमेरिका व चरण दोनों से सामान दूरी। इसके साथ ही चाहे संक्रमण की समस्या कितनी भी विकट हो जाए सम्पूर्ण लॉकडॉउन से परहेज और दीर्घकालिक व प्रभावी रणनीति बनाकर मजदूरों, किसानों व मध्यम वर्ग की समस्या का समाधान। इसके साथ ही आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना में विदेश निवेश के लालच को डिलीट करने की इच्छा शक्ति। अन्यथा मोदी और देश दोनों का भगवान ही मालिक।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलाग इंडिया
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