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गंगा शहीदों की मांगों पर संकल्प कब ?

भारत भी मां है और गंगा भी। भारत माता की जय का उद्घोष हमें जोश से भर देता है; हमारी बाजुओं की मछलियां फड़कने लगती हैं। यह हमारी राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है। यह जयघोष, देश के दुश्मनों को ललकार का भी प्रदर्शन है। पुलवामा के नापाक आतंकी हमले में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के 40 जवानो की शहादत के पश्चात् पूरे भारत ने इस जयघोष के साथ दुश्मन को ललकार का प्रदर्शन किया; बदला-बदले की आवाज़ें बुलन्द की। ‘ऑपरेशन बालाकोट’ को अंजाम देकर भारतीय वायुसेना ने इस मांग की पूर्ति भी कर दी। माननीय प्रधानमंत्री ने रातजगा कर राष्ट्र को यह संदेश भी दे दिया कि वह मां के सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वालों को क्षमा करने के पक्ष मे कतई नहीं हैं। प्रधानमंत्री जी का यह रुख सराहनीय है। किंतु क्या मां गंगा के साथ भी हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और हम भारतीयों की संवेदना और संकल्प का स्तर सराहनीय है ?
 
गंगा मैया की जयकारा तो हम न मालूम कितनी बार लगाते हैं। सच है कि गंगा मैया की जय, गंगा नामक एक नदी द्वारा हम पर किए उपकार के प्रति कृतज्ञता बोध का प्रतीक है। यह जयघोष, एक नदी को जीवित देह का दर्जा देता है। यह जयघोष, हमारे और गंगा नदी के बीच मां और संतान के रिश्ते पर हमारी मुहर लगाता है। वर्ष 2014 में बनारस के उम्मीदवार के तौर पर स्वयं को गंगा मां द्वारा बुलाया बताकर वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस रिश्ते पर अपनी मुहर लगाई थी। किंतु क्या प्रधानमंत्री और हमने इस रिश्ते को निभाने में ईमानदारी दिखाई ? 
 
ये भी शहीद, वे भी शहीद
 
पुलवामा के अमर हुए 40 जवान भी शहीद हैं और खनन से सुरक्षा और गंगा की अविरलता आदि सुनिश्चित करने की मांग को लेकर बलिदान हुई संतानें भी। पुलवामा के शहीद, भारत मां पर कुर्बान हुए। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद और युवा सन्यासी निगमानंद व नागनाथ, मां गंगा पर बलिदान हुए। क्या गंगा के लिए स्वयं को बलिदान को लेकर भी गंगा को मां कहने वालों की बाजुएं फड़की ? क्या किसी ने कहा कि मां गंगा के गंगत्व से खिलवाड़ करने वालों का दण्डित किया जाए; उनसे मां गंगा के बलिदानियों का बदला लिया जाए ? 111 दिन के उपवास के बाद 11 अक्तूबर, 2018 को स्वामी सानंद की मौत हुई। स्वामी सानंद की मौत के संबंध में एम्स (ऋषिकेश), स्थानीय प्रशासन और केन्द्रीय गंगा मंत्री श्री गडकरी को लेकर मातृ सदन के स्वामी श्री शिवानंद ने सवाल उठाए। जवाब मांगने के लिए कितने भारतवासी आगे आए ? हरियाणा के युवा संत गोपालदास की ख्याति गाय और गोचर भूमि की रक्षा हेतु संघर्ष की रही है। स्वामी सानंद के बलिदान के बाद उनकी मांगों की बाबत् अनशन को जारी रखने वाले गोपालदास को एम्स, दिल्ली से लापता करार दिया गया। 04 दिसम्बर से आज तक उनका कोई अता-पता नहीं है। उनका अपहरण कर लिया गया अथवा दफ़न कर दिया गया ? क्या किसी दल, नेता अथवा धर्मध्वजधारी ने सीबीआई जांच की मांग की ? क्या किसी गो-गंगा प्रेमी समुदाय अथवा किसी मानवतावादी संगठन का दायित्वबोध जागा कि वह एम्स प्रशासन व सरकार को सच्चाई सामने लाने के लिए विवश करे ?
 
आत्माबोधानन्द मृत्यु के करीब
 
गोपालदास जी के बाद केरलवासी आत्मबोधानन्द, इस बोध के साथ अनशन पर बैठे कि गंगा सिर्फ उत्तर की नहीं, दक्षिण भारत की भी है। गंगा, समूचे भारत की पहचान है। अतः वह अनशन पर बैठेंगे। आत्मबोधानन्द, मात्र 22 वर्ष की उम्र के नवयुवक हैं। कम्पयुटर की पढ़ाई करने के बाद अब गंगा की लड़ाई लड़ रहे हैं। आत्मबोधानन्द 28 अक्तूबर, 2019 से लगातार उपवास पर है। उनके कठिन उपवास की अवधि चार महीने से अधिक दिन खिंच चुकी। उनकी सेहत पर खतरा लगातार गहरा रहा है। वह किसी भी क्षण पूरे हो सकते हैं। संत आत्मबोधानन्द को भले ही मलाल न हो कि वह ईश्वर के करीब जा रहे हंै, किंतु क्या खुद को गंगा का पुत्र कहने वाले प्रधानमंत्री श्री मोदी और हम संतानों को इस बात का थोड़ा भी मलाल है कि गंगा की खातिर एक और संत को हम खोने के कगार पर है ? दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई नहीं बोल रहा। शासन, प्रशासन, संत और समाज… सभी ने चुप्पी साध रखी है। मानो तय कर लिया हो कि गंगा के नाम पर कोई मरे या जीये, क्या फर्क पड़ता है ? 
 
दोमुंहा चरित्र
 
अर्धकुम्भ-2019 में करोड़ों ने डुबकी लगाई। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने नाविकों को गंगा का पुत्र कहा और स्वयं को उनका प्रधान सेवक। किंतु क्या गंगा पर बलि गए सच्चे पुत्रों की मांगों की पूर्ति करने कर मां गंगा की सेवा का दायित्व निभाया ? प्रधानमंत्री जी ने कुम्भ में सफाई करने वालों के पैर धोए। किंतु गंगा की निर्मलता के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी अविरलता की मांग को लेकर अनशनरत् संत से बात तक करना भी ज़रूरी नहीं समझा। स्वामी सानंद के जीते उनके छह में से एक पत्र का उत्तर नहीं दिया। मरने पर ट्विट कर पर्यावरण और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान में कसीदा गढ़ा। प्रधानमंत्री जी ने उपहारों की नीलामी और सियोल शांति पुरस्कार मे प्राप्त धनराशि को ‘नमामि गंगे’ में दान करने की घोषणा की। किंतु ‘नमामि गंगे’ के तहत् मां गंगा के विपरीत हो रहे कार्यों को रोकने की घोषणा कभी नहीं की। क्या यह दोमुंहा चरित्र नहीं है ? 
 
दिखावट और असलियत
 
दिखावट की बात यह है कि प्रधानमंत्री जी ने जल संसाधन मंत्रालय के नाम में गंगा पुनर्जीवन को सजाया। गंगा पुनर्जीवन के शासकीय कार्यक्रम को ’नमामि गंगे’ का नाम देकर गंगा के प्रति श्रृद्धा भाव का प्रदर्शन किया। 20 हज़ार करोड़ रुपए के बडे़ बजट की घोषणा की। असलियत यह है कि बीते पौने पांच साल में गंगा निर्मलता के नाम पर जितने काम और घोषणायें हुईं, उनमें से ज्यादातर का लक्ष्य लोगों को भरमाना, बहलाना ही रहा। गंगा ग्राम, गंगा प्रहरी, गंगा निगरानी, गंगा पुलिस बल, शौचालय निर्माण, सीवरेज नेटवर्क, मल-अवजल शोधन संयंत्र, मशीन चलाकर नदी की ऊपरी सतह से कागज़-पाॅली कचरा हटाना, सौन्दर्यीकरण के नाम पर घाटों को कंपनियों को सौंपना, वृक्षारोपण, गाद निकासी, गंगा जलमार्ग, गंगा क़ानून प्रारूप आदि आदि। कोई बताये कि क्या ये करने से गंगा निर्मल हो जाएगी ? 
 
सभी जानते हैं कि बिना अविरलता, निर्मलता कभी संभव नहीं है ? सभी जानते हैं कि गाद निकासी, गंगा जलमार्ग और रिवर फ्रंट डेवल्पमेंट जैसे कार्यों से गंगा को नफा की बजाय नुक़सान ही होगा। सभी जानते हैं कि गोमुख से निकली एक भी बूंद प्रयागराज नहीं पहुंचती। सभी को मालूम है कि यह गंगा का गंगत्व ही है, जो गंगा को अनन्य बनाता है। यह जानने के बावजू़द प्रधानमंत्री श्री मोदी और उनके सिपहसलार पिछले पौने पांच साल से गंगा के गंगत्व के साथ खिलवाड़ को गति देने में लगे हैं। कानपुर और प्रयागराज को लेकर झूठ कहा जाता रहा। सच यह है कि अर्धकुम्भ 2019 के दौरान भी कानपुर और प्रयागराज के नालों का कचरा बिना शोधन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से गंगा में जाना जारी रहा। इस सच को प्रमाणित करने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर आज भी मौजू़द हैं। गंगा के मौजूदा जल की गुणवत्ता संबंधी शासकीय दावे की पहल, स्वयं केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जैविक गुणवत्ता रिपोर्ट ने खोल दी है। सरकार के मंत्री गंगा स्वच्छता लक्ष्य प्राप्ति की नित् नई तारीखें पेश करते रहे। अब अपने नकरापन को लेकर ‘नमामि गंगे’ के प्रवक्ताओं ने नया रवैया पेश किया है। अब वे कहने लगे हैं कि गंगा स्वच्छता तो अनवरत् कार्यक्रम है। इसके लक्ष्य प्राप्ति की कोई एक तारीख कैसे हो सकती है! 
 
आइये, चुप्पी तोड़ें 
 
सरकार का यह रवैया दुःखद है। क्या गंगा और गंगा बलिदानियों को लेकर प्रधानमंत्री जी के रवैये को हम जायज़ कह सकते हैं ? मां गंगा और भारत माता को लेकर हुई शहादत-शहादत में फर्क करने के हमारा रवैया कितना जायज़ है ? मांग है कि हम चुप्पी तोडे़ं। हम समझें कि गंगा की अविरलता की मांग, गंगा की सुरक्षा से ज्यादा हमारी सेहत, रोज़ी-रोटी, भूगोल, आर्थिकी, आस्था और भारतीय अस्मिता की सुरक्षा से जुड़ी मांग है। इसीलिए मांग है कि हम मुखर हों और शासन-प्रशासन को गंगा तथा गंगा की सुरक्षा के प्रति अनशतरत् संतानों के प्रति संवेदनशील और ईमानदार होने को विवश करें।
अरुण तिवारी

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