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चुनाव सुधारों पर मौलिक भारत के संसदीय समिति को दिए गए सुझावों पर विचार शुरू

 

आर टी आई कानून संशोधन बिल – 2013 जिसमें 6 राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था, का अन्य जागरूक संस्थाओं की तरह मौलिक भारत ने भी पुरजोर विरोध किया था। मौलिक भारत की ओर से नीरज सक्सेना, ओम् प्रकाश सक्सेना, संजीव गुप्ता और मैं यानि अनुज अग्रवाल ने इस विषय पर जनता का पक्ष जानने के लिए गठित संसदीय समिति जिसमें 30 से अधिक लोकसभा और राज्यसभा के मंत्री एवं सांसद सदस्य थे, के सामने 6 नवंबर 2013 को अपने तर्क रखे थे। हमारे प्रतिवेदन में निम्न तर्क प्रमुख थे –

1)            जब केंद्रीय सूचना आयोग सरकार और राजनीतिक दलों के विरुद्ध कोई निर्णय लेता ही नहीं है, ऐसे में राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में आने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बेहतर है कि पहले केंद्रीय सूचना आयोग की शक्तियां बढ़ायी जाएं, तब राजनीतिक दल आरटीआई के दायरे में आएं। वर्तमान में केंद्रीय सूचना आयोग का नाम बदल कर केंद्रीय भ्रम आयोग रख देना चाहिए।

2)            आप सभी सांसद जो अपने अपने राजनीतिक आकाओं के ईशारों पर हमारी मांगों का विरोध कर रहे हैं यह गलत है। कायदे से आप लोगों को यह चर्चा करनी चाहिए थी कि किस प्रकार सारे चुनाव सरकारी खर्च पर ही कराए जाएं। साथ ही कैसे यह व्यवस्था बने कि लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों/पंचायतों के सभी चुनाव एक साथ एक दिन कराए जा सकें। फिलहाल तो देश हमेशा चुनाव के मोड़ में रहता है। देश के किसी न किसी हिस्से में कोई न कोई चुनाव होता रहता है और विकास के काम रुक जाते हैं।

मुझे याद है कि वर्तमान वित्त राज्यमंत्री अर्जुन मेघेवाल ने मुझसे पूछा था कि अनुज जी आप हमें आरटीआई के दायरे में क्यों लाना चाहते हो? क्या आप हमारे जनता को पिलाने वाले चाय पानी का हिसाब मांगोगे। तब मेरा जवाब था, नहीं श्रीमान, हम चाय पानी का हिसाब नहीं मांगेंगे, मगर जो बड़ी बड़ी रैलियां, पार्टी, फंक्शन, जलसे आप लोग करते हो और इसमें सैंकड़ों करोड़ रूपये खर्च करते हो, यह पैसा कहां से लाते हो, यह पूछेंगे। हम जानना चाहेंगे कि क्यों सांसद अपने संसदीय क्षेत्र की सैंकड़ों शादियों में औसतन बीस हज़ार रुपये प्रति शादी खर्च करते हैं, आप लोग हेलीकॉप्टर और हवाई जहाजों में घूमते रहते हो, यह पैसा कहां से लाते हो? विज्ञापनों, प्रचार सामग्री, पेड न्यूज़, नकद बांटने और शराब पिलाने के लिए कहां से पैसा लाते हो आदि आदि। बेहतर होगा कि आप लोग चर्चा कर एक कार्ययोजना बनाएं और लोकतंत्र को सच्चे स्वरूप में लागू करें।

सुखद है कि विमुद्रीकरण के बाद के परिदृश्य में चुनाव सुधारों और राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता की मांग के बीच हमारी इन मांगों को समाहित करती संसदीय समिति की धूल फांकती रिपोर्ट पर पुन: विचार हेतु मोदी सरकार ने कार्य शुरू कर दिया है। देखते हैं किस सीमा तक ये सुझाव लागू हो पाते हैं और कब तक?

अनुज अग्रवाल

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