जैसा कि मैंने पूर्व में अनुमान व्यक्त किया था उसी अनुरूप अमेरिका में जो बाइडन द्वारा राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने के साथ ही अमेरिका की दक्षिण एशिया नीति में आए बदलावों व भारत की कूटनीतिक सक्रियता के कारण एक ओर जहाँ चीन और फिर पाकिस्तान ने भारत से संबंध सुधारने व सीमा पर तनाव कम करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी वहीं भारत में लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन व उसको मिल रहे खालिस्तानी समर्थक प्रवासी भारतीयों व कनाडा आदि की सरकारों के समर्थन में ख़ासी कमी आने लगी। यह ज़रूरी नहीं क़ि सब कुछ पूर्णत: शांत हो जाए व स्थितियाँ पहले जैसी हो जाए, मगर कुल मिलाकर नियंत्रण से नहीं निकलेंगी। सरकार व भाजपा के संकटमोचक भी पर्दे के पीछे सक्रिय हैं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गयी समिति भी पूर्णरूप से सक्रिय है जिस कारण फ़िलहाल तो आंदोलन की धार कुंद हो ही गयी। आंदोलन की समाप्ति हेतु सरकार समाधान की इच्छुक है व झुक भी रही है किंतु किसानो की आड़ में विपक्ष मात्र सरकार को परेशान करने में ज़्यादा उत्सुक लगता है, इस कारण बेवजह आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई अराजकता और लालक़िले पर चढ़ाई के ख़िलाफ़ भी जाँच एजेंसियों की सक्रियता व कड़ी कार्यवाही व 3 फ़रवरी को तथाकथित पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के ट्विटर अकाउंट से देश दुनिया में सोशल मीडिया के माध्यम से किसान आंदोलन को समर्थन की आड़ में सरकार के ख़िलाफ़ बड़ा अभियान चलाने संबंधी कार्यक्रम टूलकिट के माध्यम से उजागर होने देश के ख़िलाफ़ एक बड़ी साज़िश का खुलासा हो गया और देश एक बड़ी अस्थिरता के दौर से बच गया। सरकार व सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तुरंत जाँच कर इस साज़िश से जुड़े लोगों पर कार्यवाही शुरू कर दी गयी वहीं देश ने पहली बार गंभीरता से सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए सख़्त क़ानूनों की आवश्यकता को समझा। फ़रवरी के अंत तक ही सरकार ने इस संबंध में ज़रूरी दिशा निर्देश जारी कर दिए और पहली बार विदेशी सोशल मीडिया भारतीय क़ानूनों के दायरे में आया। सरकार के इस उपक्रम से जहाँ सोशल मीडिया पर फैली अराजकता , राष्ट्र्द्रोह, अश्लीलता, फ़र्ज़ी ख़बरों, झूठे आरोपों, गरजी अकाउंट व मनमानेपन पर लगाम लगेगी वहीं बीस लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष के टर्नओवर वाला यह व्यापार टैक्स के दायरे में आएगा। इससे म केवल सरकार की आमदनी बढ़ेगी वरन स्वदेशीकरण के कारण बड़ी संख्या में रोज़गार बढ़ेंगे। लेकिन ओटीटी प्लेटफ़ोर्म के बारे में सरकार के स्व नियंत्रण के निर्देश हास्यास्पद हैं और ऐसा लगता है कि सरकार इनमे फैली अश्लीलता, नग्नता, पोर्न कल्चर, घटियापन, गाली गलोच, देश व संस्कृति विरोधी अराजकता के प्रति समाज में फैले आक्रोश से आँखे मूँद रही है जिसका ख़ामियाज़ा उसको जल्द भुगतना पड़ सकता है।
पिछले कुछ महीनो से देश के अनेक राज्यों में चल रहे पंचायत व निकाय चुनावों का क्रम अभी भी जारी है और इनके बीच पाँच राज्यों तमिलनाडु, केरल, पुदुच्चेरी, असाम व पश्चिमी बंगाल में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गयी है। पक्ष विपक्ष में काँटे की टक्कर है। चुनाव परिणाम ही आगे की देश की राजनीति की दिशा तय करेंगे। यधपि इस बीच पुन: देश अगले दो माह घटिया भाषा, भद्दे व झूठे आरोपों, हिंसा, सरकारी तंत्र के दुरुपयोग, धन बल व बाहुबल के साथ ही दिशाहीन व झूठे चुनावी वादों और घोषणापत्रों का गवाह बनेगा। इन सब पर रोक लगाने के लिए न तो सरकारें गंभीर है और न ही चुनाव आयोग व उच्चतम न्यायालय। जिस प्रकार पैसे व पद ले देकर सरकारें बनायी व बिगाड़ी जा रही है ऐसे में जनमत, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं व चुनावों का महत्व समाप्त होता जा रहा है। दिशाहीन, नीतिया विहीन, गुटबाज़ी व आपसी अहम का शिकार बने विपक्षी दल केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को तानाशाह व मनमानी करने के पर्याप्त अवसर दे रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए ग़लत है। देश कोरोना संकट चलते रहने के कारण भयावह आर्थिक संकटो से दो चार है। महंगाई, बेरोज़गारी व मंदी की मार से आमजन परेशान है। इनके बीच क़ेंद्र व भाजपा शासित राज्यों में जिस प्रकार यकायक भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है वह हैरान करने वाला है। कुछ ऐसा ही भ्रष्टाचार विपक्ष शासित राज्यों में अपनी सरकार बनाने की ज़िद के कारण किया जा रहा है। केंद्र और एनडीए शासित राज्य अपने निर्णयों से फैले जनअसंतोष को अनदेखा कर रहे हैं और नीतियो के आधार पर उसी प्रकार उनको न्यायोचित ठहरा रहे है जैसे यूपीए दो में तत्कालीन सरकार के नेता ठहराते थे , मगर वे बुरी तरह हारते गए। एनडीए,संघ व भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अपने घमंडी, भ्रष्ट व अराजक होते जा रहे नेताओ व कार्यकर्ताओं पर कड़ी लगाम लगाने की आवश्यकता है वरना बाज़ी हाथ से निकल जाएगी।
यह बात गौर करने वाली है क़ि ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति पद से हटने के साथ ही दुनिया में कोरोना का प्रकोप कम होता जा रहा है? रुस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मिलकर ट्रम्प ने दुनिया को महामारी, महाआपदा, आर्थिक बर्बादी, बेरोज़गारी, हथियारों की होड़, ग्लोबल वर्मिंग और विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया। ट्रम्प तो निबट गए, पुतिन के ख़िलाफ़ रुस में लगातार विरोध प्रदर्शन हो ही रहे हैं। अब शी जिनपिंग का इलाज होना भी बहुत आवश्यक है। ये तीनो एक ही थेली के चट्टे बट्टे थे और अनंत काल तक दुनिया के शासक बनने का सपना पाले हुए थे। मगर जो खेल प्रकृति खेल रही है व जो रूप दिखा रही है वह बहुत भयावह है। यह भी मानव निर्मित ही है। पूरी दुनिया बुरी तरह अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बर्फ़बारी, भूकंप, भूस्खलन, ग्लेशियर पिघलने व टूटने, जंगलो में आग लगने , टिडडी के आक्रमण, पशुओं, फसलों की बीमारियों आदि से घिरी हुई बड़े अनिष्ट के संकेत दे रही है। अतिशय दोहन व निर्माण कार्यों से नित नयी आपदा आ रही हैं। हाल ही में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में आयी जलप्रलय बड़ी बर्बादी लेकर आयी है और चेतावनी भी क़िहमें विकास की संतुलित नीतियो पर ज़ोर देना होगा । इसलिए किसी भी प्रकार के किंतु परंतु की कोई गुंजाइश नहीं।
अनुज अग्रवाल,संपादक