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चैक डैम के पानी ने बदली आदिवासी किसानों की जिंदगी

 

पानी व किसान का चोली और दामन का साथ है। पानी की महत्ता को अगर कोई अच्छे से जानता है तो वह है किसान। किसान को एक बार पीने का पानी नही मिले तो चल जाए लेकिन उसे उसकी फसल को सिंंंचने का पानी नही मिले तो वह बावरा हो जाता है।   फसल को हर हाल में पानी मिले इसके लिए कुछ भी कर सकता है। दुर्भाग्य तो ये है कि सरकारें किसानों को सहज रूप से व्यापक स्तर पर पानी उपलब्ध नही करा पाती है लेकिन उनके व्यक्तिगत प्रयासों से जो उत्पादन बढ़ता है उसका श्रेय लेने में कभी पीछे नही हटती है। हालाकि सरकारों की दोगली नीति से किसान को कोई फर्क नही पड़ता है। वह अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए व्यक्तिगत रूप से देश के हर इलाके में अपने-अपने स्तर पर नए-नए प्रयोग करते रहता है। किसानों का ऐसा ही एक नवाचार झाबुआ जिले की थांदला तहसील के गावों में देखने को मिला। गोपालपुरा, छोटी बिहार व भीमपुरा वह चंद गांव है जिनमें यहां के आदिवासी किसानों ने एक छोटा सा प्रयास कर न केवल बड़ा बदलाव किया बल्कि अपनी किस्मत को भी बदल दिया। किस्मत को बदलने वाला वह सराहनीय काम है छोटे-छोटे चैक डैम बनाने का। जब इलाके के आदिवासी किसानों को खेतों में बोई गई फसलों को पर्याप्त पानी मिलता तो वह हैरान-परेशान हो जाते थे। वे अपनी इस परेशानी के समाधान के लिए लम्बे समय तक शासन-प्रशासन के नुमांइदों की तरफ हसरत भरी निगाहों से तकते रहे लेकिन इन नुमांइदों ने नजरे इनायत नही की। अंत में उनको टाटा-बाय-बाय कर दिया, लेकिन हार नही मानी और अपने स्तर पर सामूहिक रूप से प्रयास करने लगे। इसकी परिणिति ये हुई कि सबने मिल कर  इलाके में छोटे-छोटे चैक डैम बना ड़ाले। चैक डैम बनने से इलाके के सौ बीघा जमीन में बेहतरीन तरीके खेती होने लगी। मतलब, चैक डैम बनने से न केवल इलाके की सूरत और सिरत बदली बल्कि गांव और किसानों में आर्थिक संपन्नता भी आई। किसानों की सामाजिक स्थिति में भी खासा बदलाव आया।

चैक डैम के चलते अब गांव में पानी ठहरने लगा है। यहां के वाशिंदे मंगलसिंह कहते हैं कि अब खेती में अच्छी कमाई होने लगी है। आर्थिक स्थिति में बदलाव के चलते ही मोटरसाइकिल भी खरीद ली है। अब पानी की तो भरपूर व्यवस्था हो गई है लेकिन बिजली की समस्या जस की तस बनी है। फिललहाल किराए पर इंजन लाकर डैम का पानी लेना का सदउपयोग कर रहे है।

काबिलेगौर हो कि चैक डैम बनने से पहले बारिश के बाद थांदला तहसील के इन गांवों में पानी की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं थी। ऐसा इसलिए था कि यहां न तो बारिश के पानी को इक_ा करने का कोई बंदोबस्त था और न ही किसी नदी का पानी इलाके के लोगों की प्यास बुझा पा रही थी।

सच तो ये है कि पानी की कमी के चलते यहां के किसान ठीक से फसल ही नही ले पाते थे। असल में जब से चैक डैम से पानी मिलने लगा तब से न केवल ठीक से फसलें मिलने लगी है बल्कि  सालभर में दो फसल लेने लगे है। आमदनी भी दोगुनी हो गई है।

पानी किसानों की जिंदगी में कितना एहमियत रखता है। फसलों को सिंचित करने के लिए किसान को पानी सहज रूप से मुहैया किया जाए तो उनकी जिंदगी में किस तरह बदलाव आने लगते हैं, यह समझने के लिए कहानी को उनकी ही जुबानी जाने। सबसे पहले पारसिंह के अनुभवों से रूबरू होते है। ये झाबुआ से सटे छोटी बिहार गांव के निवासी है। वे उम्र में करीब साहठ साल के है। इनकी माने तो एक छोटे से प्रयास ने पन्द्रह से अधिक किसानों के परिवार के जीवन में बड़ा बदलाव ला दिया है। इस गांव में पहले रबी के सीजन में केवल 10 फीसदी हिस्से में ही सिंचाई हो पाती थी लेकिन अब डैम से सभी खेतों तक पानी पहुंच रहा है। अभी आलम यह है कि 60 से 70 फीसदी खेतों तक पानी सहज रूप से पहुंच रहा है, बाकी के हिस्से में सिंचाई के लिए पाइप से पानी लिए जा रहा है। इस समय पूरी तहसील में बने डैमों से तकरीबन सौ से एक सौ पचास बीघे के बीच सिंचाई हो रही हैं। सुकेन नदी पर बना यह चैक डैम अब जलस्तर को बढ़ाने के साथ – साथ खेतों को हरा भरा और किसानों की जरूरतों को पूरा करने का काम कर रहा है। अब इन किसानों के साथ दूसरे सामाजिक संगठन भी जुड़ कर इनके काम में हाथ बटां रहे है। ये संगठन जल संरक्षण और इससे जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए जमीनी स्तर पर साथ मिलकर काम करते हैं और मार्गदर्शन देते है। इनके सहयोग से जरूरतमंद इलाकों को चिन्हित कर यहां पानी की स्थायी व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है। इस समय आस पास के इलाकों में करीब 29 चैकडैम बनाए जा चुके है। इनमें 23 नए हैं और छह पूराने है जिनका जिर्णोद्धार किया है। इससे इलाके में न केवल पानी की उपलब्धता बढ़ी है बल्कि भूजल स्तर में भी सुधार हुआ है। यहां का परिस्थितिकी तंत्र भी मजबूत हुआ है। अभी इस क्षेत्र में प्रमुख रूप से सोयाबीन, मूंगफली और मकई की खेती की जाती है। अपनी मेहनत से बनाए चैक डैम के साथ गांव वाले बेहद खुश है और इसके साथ इनकी अनेक यादें जुड़ी हैं।

संजय रोकड़े

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