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जीवन व्यस्त हो, अस्तव्यस्त नहीं

असन्तुलन एवं अस्तव्यस्तता ने जीवन को जटिल बना दिया है। बढ़ती प्रतियोगिता, आगे बढ़ने की होड़ और अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा ने इंसान के जीवन से सुख, चैन व शांति को दूर कर दिया है। सब कुछ पा लेने की इस दौड़ में इंसान सबसे ज्यादा अनदेखा खुद को कर रहा है। बेहतर कल के सपनों को पूरा करने के चक्कर में अपने आज को नजरअंदाज कर रहा है। वह भूल रहा है कि बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता, इसलिए कुछ समय अपने लिए, अपने शरीर, अपने शौकों और उन कामों के लिए, जो आपको खुशियां देते हैं, रखना भी बहुत जरूरी है।
समय ही नहीं मिलता! कितनी ही बार ये शब्द आप दूसरों को बोलते हैं तो कितनी ही बार दूसरे आपको। क्या वाकई समय नहीं मिलता? सच ये भी तो है कि जिनसे हम बात करना या मिलना चाहते हैं, उनके लिए समय निकाल ही लेते हैं। यही समय प्रबन्धन है, इसके लिये लेखिका पैट होलिंगर पिकेट कहती हैं, ‘ये आपको तय करना है कि अपना समय कैसे बिताएंगे। वरना हम यूं ही व्यस्त बने रहते हैं और जीवन कहीं और घटता रह जाता है। भगवान महावीर ने ‘काले कालं समायरे’ जैसे समय-प्रबन्धन के अनेक सूत्र दिये हैं। जो व्यक्ति समय को पहचानता है, हर कार्य समय पर ही करता है, वह जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ता है, क्योंकि कल आता  नहीं है अतः आज का ही प्रयोग करना चाहिए। लेकिन जिस तेजी से समय बदल रहा है, हमारी अव्यवस्थित होती जीवनशैली और आदतों में बदलाव आ रहा है। यह हमारी सेहत के लिए ही नहीं बल्कि हमारे विकास के लिये भी बहुत अवरोधक है और कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का कारण भी हंै।
अगर आप अपने माता-पिता, दादा-दादी व नाना-नानी की दिनचर्या देखें तो पायेंगे कि उनकी दिनचर्या आपसे कई मायनों में भिन्न है। उनका जीवन और दिनचर्या उनके बनाए नियमों के मुताबिक है। अधिकांश बुजुर्गों का अपनी दिनचर्या पर नियंत्रण है। ‘समयं गोयम! मा पमायए’ महावीर के इस अनमोल वचन को इन लोगों ने न केवल अपने जीवन में उतारा बल्कि अपने परिपाश्र्व को भी इसका प्रतिबोध दिया। इसी जीवन-सूत्र को जीवन में अंगीकार करने के कारण वे सुबह जल्दी उठते हैं और समय पर सोते हैं। खाने में भी उनके कई तरह के परहेज हैं। प्रायः बुजुर्ग बाहर का खाना या फास्टफूड पसंद नहीं करते। यदि आप सुबह-सुबह पार्कों में देखें तो बुजुर्गों की संख्या आपको ज्यादा मिलेगी। ऐसी बात भी नहीं है कि सभी बुजुर्ग अपनी सेहत के प्रति सचेत हों, लेकिन अधिकांश बुजुर्गों की जीवनशैली ऐसी है, जो उनके शरीर के लिए फायदेमंद है।
समस्या युवाओं और कामकाजी लोगों के साथ ज्यादा है। कारण भी स्पष्ट है- समय की कमी या फिर यूं कहें कि समय को ठीक से मैनेज न कर पाना, जीवन को अव्यवस्थित कर रहा है। जीवन व्यस्त होना अच्छी बात है, लेकिन अस्तव्यस्त होने से  उसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ रहा है। ‘क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः’ कालिदास की यह उक्ति आधुनिक जीवनशैली का आदर्श बने, तभी जीवन में हम मनोहारी एवं रमणीय बने रह सकते हैं।
एक सुंदर और अच्छे जीवन के लिए जरूरी है- अच्छी सेहत। और अच्छी सेहत के लिए जरूरी है- समय पर सोना और सुबह जल्दी जागना, लेकिन आज के समय में अधिकांश युवाओं के सोने और जागने का समय निश्चित ही नहीं है। रात को देर तक काम करने की वजह से सुबह देर तक सोना आज आम बात हो गई है। आठ घंटे की नींद भी कम ही लोगों को नसीब हो रही है। पूरी नींद न लेना कई बीमारियों की वजह बन जाती है। आज लगभग आॅफिसों में कम्प्यूटर पर ही सब काम होता है, इसलिए आंखों में दर्द, जलन, सिरदर्द व माइग्रेन की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं।
आज जिस तरह युवाओं और विशेषतः महिलाओं में एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ मची है और अधिकांश युवाओं एवं कामकाजी महिलाओं का मुख्य मकसद अधिक-से-अधिक धन कमाना हो गया है। इसलिए वे ‘आराम हराम है’ के फाॅर्मूले को अपने जीवन में अपना रहे हैं। कई ऐसे लोग जिनका यह मानना है कि यही तो वक्त है पैसा कमाने का, अभी कमा लिया तो कमा लिया, फिर जिंदगीभर आराम ही आराम है। इस सोच के चलते वे इस बात को भूल जाते हैं कि अच्छा काम तभी संभव है, जब सेहत अच्छी होगी। एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। अत्यधिक काम के चलते युवाओं में बी.पी., तनाव व डिप्रेशन बढ़ता जा रहा है। धैर्य की कमी हो रही है। आज का युवा हार को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहा, हार का मूल्यांकन करने के बजाय वह अवसाद एवं कुण्ठाग्रस्त हो रहा है।
हमारी बदलती जीवनशैली के चलते जहां सोने व सुबह उठने का समय बदला है, वहीं हमारी खान-पान की आदतों में भी तेजी से बदलाव आया है। जहां पहले घर में बने खाने को लोग ज्यादा महत्व दिया करते थे, आज बाहर खाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। चार मेहमान घर पर आए नहीं कि खाने का आॅर्डर बाहर दे दिया जाता है। बच्चों में भी घर में बने खाने की अपेक्षा फाॅस्ट फूड के प्रति ज्यादा उत्सुकता रहती है। खान-पान की बदलती आदतें और दिनचर्या धीरे-धीरे हमारे शरीर को हानि पहुंचा रही है और हमें कई तरह के रोगों की गिरफ्त में लाती जा रही है। चाहे वह मोटापे की समस्या हो या फिर बालों का झड़ना व असमय सफेद होना।
उन्नत एवं संतुलित जीवनशैली के लिये आचार्य तुलसी की यह अभिव्यक्ति जीवन का आदर्श बन सकती है-आत्मा सुख-दुःख का कत्र्ता है, स्वयं वही उपभोक्ता।
अपना शुभ अपने द्वारा, जीवन के बनो प्रयोक्ता।।
शांत और स्थिर दिमाग बेहतर काम करता है। हर समय की बेचैनी किसी काम नहीं आती। ना हम वो कर पाते हैं, जो करना चाहते हैं और ना ही वो, जो दूसरे अपेक्षा कर रहे होते हैं। समस्याएं कैसी भी हों, हमारा व्यवस्थित ना होना समस्याओं को बढ़ा देता है। लेखक एकहार्ट टोल कहते हैं, ‘हमारी भीतरी दुनिया जितनी सुलझी हुई होती है, बाहरी दुनिया उतनी व्यवस्थित होती चली जाती है।’
-ललित गर्ग

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