पाकिस्तान को भी पता है सीधी लड़ाई वो हमसे लड़ नहीं सकता। यूएन में जाने से कुछ होगा नहीं। और बाकी तमाम बड़े देशों के भारत के साथ व्यापारिक हित इतने बड़े हैं कि कोई कश्मीर के फटे में अपनी टांग नहीं अड़ाता है। चीन से लेकर मलेशिया तक, सऊदी अरब से लेकर तुर्की तक हर किसी के भारत के साथ ऐसे व्यापारिक रिशते जुड़े हैं कि कोई भी कश्मीर के फटे में टांग अड़ाकर भारत को नाराज़ नहीं करना चाहता। पाकिस्तान के मुकाबले भारत से होने वाले उनके सालाना कारोबार का फर्क इतना ज़्यादा है कि मुसलिम ब्रदरहुड जैसी कोई भावनात्मक दलील भी काम नहीं कर रही। क्योंकि शाहरुख की तरह उन सबकी अमी जां ने भी उन्हें बचपन में बता दिया था कि धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।
और यही पाकिस्तान की असली तड़प है। उसकी तिलमिलाहट है। आज से पहले तो वो अपने यहां के जिहादी संगठनों के रास्ते कश्मीर में हिंसा भड़काकर माहौल गर्माया रखता था। लेकिन जब से FATF की ग्रे लिस्ट में आने के बाद पाकिस्तान को मजबूरन इन तंजीमों पर कार्रवाई करनी पड़ी। उसे डर है कि उसने इन संगठनों को फिर से सक्रिय किया तो उसे ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाएगा। जिसके बाद उसे आईएमएफ से कोई कर्ज़ नहीं मिलेगा। और इससे पहले कि वो तालीबान और अमेरिका की बातचीत के एवज में Blackmailing की सोचता खुद तालिबान ने उसे चेता दिया है कि वो कश्मीर के मसले को इस बातचीत से न जोड़े। जिसके बाद ये विकल्प भी उसके हाथ से निकल गया।
इस सबके बाद पाकिस्तान के पास कोई विकल्प नहीं बचता। वो सिर्फ ये आस लगाए बैठा है कि पूरी तरह से कर्फ्यू हटने के बाद हज़ारों कश्मीरी सड़कों पर आएं। उन्हें काबू करने की कोशिश में कुछ सौ लोग मारे जाएँ। जिसके बाद दुनियाभर में इसकी चर्चा हो और विश्व बिरादरी को मजबूरन भारत पर दबाव बनाना पड़े। मतलब कश्मीर पर अपना कुंठा का उसे आखिरी हल ये दिखता है कि कश्मीर में कुछ सौ लोग मारे जाएं। जिस कश्मीर को वो अपनी शाह रग बताता है वो उन्हीं कश्मीरियों के जनाजे उठने की आस लगाए बैठा है।
तभी आप देखिए पाकिस्तान से लेकर हिंदुस्तान में ये लोग तड़प रहे हैं कि कश्मीर में अभी तक मौतें क्यों नहीं हुई। और अब बात इस तरफ के लोगों की। आपको याद है अभिनन्द के पाकिस्तान के कब्ज़े में जाने के फौरन बाद अरविंद केजरीवाल ने बयान दिया था कि मोदी जी 300 सीटें लानें के लिए और कितने लोगों को मरवाओगे। ऐसा नहीं था कि केजरीवाल को वहां फंसे अभिनन्दन की कोई बड़ी फिक्र हो रही थी। दरअसल बालाकोट की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मोदी सरकार के पक्ष में हवा बन गई थी जैसी अभी बनी हुई है। और सारा विपक्ष इस एक ताक में बैठा था कि अभी कुछ उल्टा-सीधा हो और उसे लेकर सरकार क घेरा जाए।
यही लोग अब नोटबंदी के बाद कुछ उल्टा-सीधा होने का इंतज़ार कर रहे थे। हैजे से हुई मौत को भी नोटबंदी की वजह से हुई मौत बताया जा रहा था। पीलिया से हुई मौत को भी जीएसटी के दुष्प्रभाव से जोड़ा जा रहा था। और जनता के यही हमदर्द, सत्ता के लालची गिद्ध 370 हटने के बाद आज फिर से लोगों की मौत का इंतज़ार कर रहे है।
और कश्मीर से ऐसी ख़बर न आने पर इनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है। बिना मामले की संवेदनशनीलता को समझे ये लोग तुरंत प्रभाव से कर्फ्यू हटाने की बात कर रहे हैं। इनका दर्द कर्फ्यू के चलते लोगों को हो रही दिक्कत नहीं बल्कि उसके चलते वहां बनी हुई शांति है। इन्हें लाशें देखने की जल्दी। ताकि उन लाशों को दिखाकर सरकार को शर्मिंदा किया जा सके। इन्हें खुद देखना है ताकि उस खून से अपने सत्ता की प्यास बुझा सकें। ये मौत देखना चाहते हैं ताकि जैसे-तैसे अपनी राजनीति और नफरत को ज़िंदा रख सकें।