आजकल की टीवी डिबेट में कोई किसी को कुछ भी कह सकता है। चीखना-चिल्लाना और आरोप-प्रत्यारोप सामान्य बात है, अक्सर अलग-अलग स्तर की गाली-गलौज भी देखी-सुनी जा सकती है। यदा-कदा थपड़ियाव और मारपिटाई भी देखने को मिलती है। बहुत कुछ फ्री-स्टाइल फाइट की तरह! और यह हाल केवल टीवी-डिबेट में ही नहीं है, पूरे राजनैतिक परिदृश्य का यही हाल है। फर्क बस इतना है कि टीवी डिबेट में प्रतिद्वंदी आमने-सामने होते हैं, नुक्ता-दर-नुक्ता एक-दूसरे की बखिया उधेड़ने को और ताबड़तोड़ हमला करने को बेकरार!
कल से कुछ बहुत मासूम लगने वाले लोग आजतक के कार्यक्रम दंगल के एंकर रोहित सरदाना और भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा को कॉंग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी का हत्यारा बता रहे हैं, जिनकी कल आकस्मिक हृदयाघात से मृत्यु हो गई थी। ट्विटर पे हैशटैग #Arrest_Sambit_Patra भी चलाया कुछ महान आत्माओं ने। मजे की बात ये रही कि इन महान आत्माओं में से तमाम बंगलूरू में मंदिर बचाने की खबर की मार्केटिंग करते पाए गए थे।
अब यह निरी मूर्खता है या राजनैतिक रोटियाँ सेंकना या फिर जानबूझकर जहर फैलाना? राजीव त्यागी न पहली बार ऐसी टीबी डिबेट में आये थे और न इसमें बनने वाले माहौल और गरमागरमी से अंजान थे, बल्कि न्यूज़18 के एंकर अमिश देवगन को लाइव कार्यक्रम में पूरी दबंगई से भंडवा बताने वाले राजीव त्यागी स्वयं इस खेल के सिद्धहस्त खिलाड़ी थे। अब कभी चित, तो कभी पट, यह तो हर खेल में होता ही है।
शिकायत अगर किसी से होनी चाहिए तो मौजूद समय में चरम पर चल रही किसी भी तरह की अनर्गल बयानबाजी और निराधार आरोप-प्रत्यारोप की प्रवृत्ति से, जो टीवी-डिबेट्स में तो रोजाना और साफ तौर पे नुमायाँ होती है। जरूरत है एक प्रभावी मेकेनिज़्म की जो न सिर्फ इस प्रवृत्ति पर जवाबदेही तय करे, बल्कि बेलगाम लोगों पर नकेल कसे और सजा तक सुनाए। अपनी सहूलियत और एजेंडे के मुताबिक फौरी तौर पर महज़ एक बलि का बकरा ढूंढना या फिर सामने वाले का कोई मोहरा शहीद करना कोई उपाय नहीं, बल्कि इसी खेल का हिस्सा है, भले ही इसे कितनी ही सफाई से, कोई भी मुलम्मा चढ़ाकर आजमाया जाए।
अफसोस, इस मामले में ऐसा कुछ सकारात्मके फिलहाल होता नहीं दिखता, जिससे हालात सुधरने की उम्मीद जगे। हर न्यूज चैनल की अपनी-अपनी रिंग है, हर जगह नफे-नुकसान की गणित है, चीख-पुकार है, एक-दूसरे की ऐसी-की-तैसी करने पर आमादा झुण्ड है, अपने-अपने लड़ाके को चियर-अप करते दीवानों का पागलपन है, सोशल मीडिया पर इसकी रनिंग कमेंट्री से लेकर स्क्रीनशॉट, क्लिप और डायलॉग्स की भरमार है। या तो इसके मज़े लीजिये या फिर इसको सिरे से नकार दीजिये। अपना मोहरा गिरने पर शिकायत करना असल में भोलापन या शातिराना नहीं, महज बेवकूफाना लगता है। अभी यही मोहरा सामनेवाले का गिरा होता तो ये इमोशनल आउटबर्स्ट कहीं न दिखता। सबसे खतरनाक बात तो यह हो गई है कि अब केवल दल, नेता, प्रवक्ता या कार्यकर्ता ही नहीं, राजनैतिक दलों के समर्थक तक किसी की लाश पे भी अपने पाले की रोटी सेंकने से परहेज नहीं करते।
ईश्वर जाने वाले को सद्गति दे और हम सब बचे हुओं को सद्बुद्धि!