Shadow

ट्रम्प की फिसलपट्‌टी पर जरा संभलकर चलें

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका जाने के पहले अंदेशा यह था कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प उनसे पता नहीं कैसा व्यवहार करेंगे। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मोदी की जुगलबंदी ख्यात थी और ट्रम्प इस बात के लिए विख्यात हो गए हैं कि वे ओबामावाद को शीर्षासन कराने पर तुले हुए हैं। ऐसे में हम यह मानकर चल रहे थे कि मोदी की इस अमेरिका-यात्रा के दौरान यदि कोई गड़बड़ न हो तो यही बड़ी उपलब्धि होगी। अमेरिका के साथ सामरिक गठबंधन वाले देशों जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं को ट्रम्प ने जिस तरह आड़े हाथों लिया है, उसे देखते हुए यह उम्मीद नहीं थी कि वे मोदी को गले लगाएंगे। एच1बी वीज़ा और पेरिस जलवायु समझौते को लेकर ट्रम्प ने भारत पर जो तेज़ाब उड़ेला था, उसके संदर्भ में लगा था कि व्हाइट हाउस में कहीं मोदी और ट्रम्प के बीच कोई मुठभेड़ न हो जाए।
लेकिन मुठभेड़ की बजाय दोनों नेताओं में गल-मिलव्वल इतनी तगड़ी हुई कि शायद पहले किन्हीं दो नेताओं के बीच नहीं हुई। यह मूलतः इस्लामी रिवाज है लेकिन, इस मामले में मोदी ने अरबों को भी मात दे दी। दोनों नेता एक-दूसरे से इतने खुश दिखाई दिए कि दोनों ने एक-दूसरे को ‘महान’ कह डाला। ट्रम्प ने भारत को अमेरिका का ‘सच्चा मित्र’ घोषित किया। मोदी को प्रभावित करने में ट्रम्प ने कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी पत्नी मेलानिया और बेटी इवांका से भी मोदी का स्वागत करवा दिया। ट्रम्प इससे भी आगे निकल गए। मोदी के वाशिंगटन पहुंचने के कुछ घंटों पहले ही हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरगना सलाहुद्‌दीन को उन्होंने विश्व-आतंकी घोषित करवा दिया। पाकिस्तान झुंझला उठा। भारतीयों को संदेश मिला कि उनके रिसते घावों पर मरहम लगाने वाला कोई नेता है तो वह ट्रम्प ही हैं।
इतना ही नहीं, संयुक्त वक्तव्य में अमेरिका ने पाकिस्तान से मांग की कि वह मुंबई और पठानकोट के हमलावरों को शीघ्र दंडित करे। उसने भारत के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाने की भी घोषणा की। भारत को खुश करने के लिए चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ योजना पर कहा कि वह संबंधित राष्ट्रों की संप्रभुता और सीमाओं का उल्लंघन न करे। उसका इशारा पाकिस्तानी कब्जे के कश्मीर-गिलगित में से चीनी सड़क बनाने की तरफ था। इस समय भारत की दो ही दुखती रगें हैं। चीन और पाकिस्तान! ट्रम्प ने दोनों पर मरहम लगा दिया।
इसी प्रकार ट्रम्प ने मोदी को यह विश्वास भी दिलाया कि भारत के आर्थिक विकास में अमेरिका की गहरी रुचि है। वह भारत को गैस सप्लाई करना चाहता है, खेती की नई-नई तकनीक देना चाहता है और ऐसे आर्थिक उपक्रम शुरू करना चाहता है, जिनसे दोनों देशों में लाखों रोजगार पैदा हों। ट्रम्प का असली रूप इन्हीं बयानों में प्रकट होता हैं। वे मूलतः व्यापारी हैं। व्यापारी के लिए ग्राहक भगवान होता है। वह उसे पटाने के लिए सब्ज-बागों का अंबार लगा देता है। ट्रम्प ने भी लगाए। उन्होंने मोदी से कहा कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हथियार अमेरिका में बनते हैं। वह उन्हें भारत को सहर्ष देने के लिए तैयार है। ट्रम्प ने इस तथ्य की भी भरपूर तारीफ की कि भारत ने अमेरिका से एक साथ 100 नए हवाई जहाज खरीदे हैं। इतना बड़ा ऑर्डर अमेरिका को आज तक किसी भी देश से नहीं मिला है। अमेरिका भारत को ‘सी गार्डियन ड्रोन’ भी बेचना चाहता है, जिनकी कीमत दो अरब डाॅलर है। ट्रम्प ने मोदी के दिमाग में यह बात बिठा दी है कि आप अमेरिकी माल के लिए भारत के दरवाजे खोल दीजिए। ट्रम्प को फिक्र यह है कि भारत-अमेरिकी व्यापार में जो 30 अरब डाॅलर का असंतुलन आ गया है, वह कैसे दूर हो।
मोदी ने भी ट्रम्प को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अमेरिका में कार्यरत भारतीयों के एच1बी वीज़ा की बात छेड़ी ही नहीं। पांच लाख प्रवासी भारतीय जिस बात से प्रभावित होंगे, उसका जिक्र तक न हो, क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है? शायद मोदी ने यह सोचा कि पहले ट्रम्प के साथ व्यक्तिगत समीकरण बन जाए, उसके बाद इस मुद्‌दे को छेड़ना ठीक रहेगा। इसी तरह जलवायु समझौते को रद्‌द करते हुए ट्रम्प ने भारत पर अरबों-खरबों डाॅलर झाड़ने का जो फूहड़ आरोप लगाया था, उस पर मोदी ने चुप्पी साध ली। इसी तरह भारत-अमेरिकी परमाणु-समझौते के जिस मुद्‌दे पर मनमोहन-सरकार गिरते-गिरते बची, वह आज भी अधर में क्यों लटका हुआ है? यह सवाल भी रह गया।
जहां तक पाकिस्तान का प्रश्न है, उस पर अमेरिका जबर्दस्त जबानी जमा-खर्च करता रहा है। पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र बनाने की सारी जिम्मेदारी अमेरिका और सऊदी अरब की है। पहले मुजाहिदीन और तालिबान का समर्थन क्या अमेरिका, सऊदी अरब और पाकिस्तान नहीं करते रहे हैं? सीरिया और इराक में ‘दाएश’ के आतंकियों की पीठ सबसे पहले किसने ठोंकी थी? अब जब अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात कहता है तो वह सिर्फ उस आतंकवाद के खिलाफ है, जो गोरे राष्ट्रों में खून बहाता है। उसने अफगानिस्तान में भारत की भूमिका की तारीफ भी इसीलिए की है कि अफगान-आतंक के तार यूरोप और अमेरिका तक फैले हुए हैं। अमेरिका को भारत-विरोधी आतंक की कोई चिंता नहीं है। उसने सलाहुद्‌दीन को विश्व-आतंकी घोषित करके कौन-सा तीर मार दिया है। हाफिज सईद के सिर पर तो करोड़ों डाॅलर का इनाम है लेकिन, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर पाया।
कश्मीर के सवाल पर भी अमेरिका दुविधा में है। सलाहुद्‌दीन वाले बयान में उसने ‘जम्मू-कश्मीर’ को ‘भारत द्वारा प्रशासित क्षेत्र’ बताया है। भारत सरकार को इस बयान का विरोध करना चाहिए। ट्रम्प और मोदी ने जो-जो घोषणाएं इस मुलाकात के दौरान की हैं, अगर उन्हें ऊपरी तौर पर देखा जाए तो ऐसा लगेगा कि अमेरिका के मित्र के रूप में पाकिस्तान की जगह अब भारत ले रहा है। अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए भारत अब दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और आग्नेय एशिया में अग्रिम दस्ते की तरह काम करेगा जबकि चीन और पाकिस्तान की भारत-विरोधी मिलीभगत को काटने के लिए अमेरिका पूरी ताकत लगा देगा। ट्रम्प के दौरान भारत-अमेरिकी संबंध बुश और ओबामा के दौर से भी बेहतर होंगे। यह सतही सोच है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में जो गहरे उतरे हुए हैं, वे इस फिसलपट्‌टी पर फूंक-फूंककर कदम रखने की ही सलाह देंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
वेदप्रताप वैदिक
भारतीय विदेश नीति
परिषद के अध्यक्ष

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *