मित्रों, एक बहुत पुरानी कहावत है: नीम हकीम खतरे जान ।
आधी अधूरी जानकारी अत्यंत खतरनाक होती है ।।हमारे बहुत से देश भक्त लोग ऐसी आधी अधूरी जानकारी से देश को डरा रहे हैं ,यह बहुत चिंता की बात है ।
या तो आप किसी विषय को ठीक से जाने या उसकी चर्चा ही बंद कर दें।
परंतु कोई एक बात लेकर ,”काता और ले भागे “की तरह उसकी मूर्खता पूर्ण व्याख्या करते फिरना बहुत हानि कर है।।
उदाहरण के लिए ,,
अंग्रेजों ने” ट्रांसफर आफ पावर किया” यह सत्य है ।
ट्रांसफर आफ पावर अपने चाटुकार और अपने भरोसेमंद लोगों को किया,, यह भी सत्य है।।
परंतु इस तथ्य को इस तरह पेश करना मानो कि अंग्रेज हमारे मालिक हैं और वे जब चाहे ,तब सत्ता वापस ले सकते हैं,, यह तो भयंकर मूर्खता और भयंकर देशद्रोह है ।।
आप यह अपराध कैसे कर सकते हैं देश के विषय में?
यह सोचना कि वे मालिक हो गए?
आप को संसार का कुछ भी अता पता नहीं है आश्चर्य है।
अंग्रेजों का भारत में किसी भी प्रकार से यहाँ का एक टुकड़ा भी हथियाना अंतरराष्ट्रीय नियमों के अंतर्गत गंभीर अपराध था और दंडनीय अपराध था।
अंग्रेजों ने जो किया उससे भारतवर्ष को यह पूरा अधिकार बनता है कि वह कभी भी इंग्लैंड पर आक्रमण करके उसको अपने नियंत्रण में ले ले ।।
इसकी कोई काट अंग्रेजों के पास तब तक नहीं है जब तक वे सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगें।
यह हुई सैद्धांतिक बात।
लेकिन यह भी स्वयं में एक भयंकर मूर्खतापूर्ण कथन हो जाएगा अगर इसे सैद्धांतिक न समझ कर कोई वास्तविक व्यावहारिक बात मान लिया जाए ।।
वास्तविक बात यह है कि यह जो विश्व व्यवस्था है इसको मुख्यतः इंग्लैंड फ्रांस और अमेरिका ने बड़ी सीमा तक रचा है और प्रभावित कर रखा है।
अतः आप इसमें अनेक अंतरराष्ट्रीय कानूनों से बंधे हैं। आप उन कानूनों को न मानने के लिए स्वतंत्र हैं ,,अगर आप बहुत शक्तिशाली हो जाए ।।
उसके लिए आवश्यक है कि भारत निरंतर शक्ति की साधना करें ।।
परंतु शक्ति की साधना न कर पाए इसके लिए भी अंतरराष्ट्रीय शक्तियां पूरी तरह सजग हैं।।
उसके विस्तार में हम अभी नहीं जाते।।
मुख्य बात यह है कि भारत का एक भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जो इन अंतरराष्ट्रीय दबावों को जानता नहीं हो और इनसे तालमेल बिठाकर काम नहीं करता हो।।
यह स्वाभाविक भी है।
उस पर विस्तार से क्रमशः बाद में कभी लिखेंगे ।
पूरी बात लिखना तो असंभव है क्योंकि उससे केवल खतरा है ।
परंतु ट्रांसफर आफ पावर में क्या शर्ते थी, इससे यह समझना कि इंग्लैंड को भारत पर अधिकार प्राप्त है,यह आश्चर्यजनक मूढ़ता है।
कृपा कर ऐसे किसी भ्रम में न रहें ।
इंग्लैंड की या किसी भी देश की ऐसी कोई हैसियत नहीं है कि वह भारत पर किसी भी प्रकार का दावा कर सकें।
इसका तो उसे उल्टा परिणाम भोगना होगा।
क्योंकि भारत इस हैसियत में है कि समस्त चीन पर और स्वयं समस्त इंग्लैंड पर कभी भी दावा कर सकता है ।।
पर फिर ध्यान रहे यह सब हास्यास्पद कल्पनाएं मात्र हैं जब तक आपके पास शक्ति नहीं हो और इतनी शक्ति होने की दूर-दूर तक अभी कोई संभावना नहीं है कम से कम 50 वर्षों तक ।।
इसलिए कल्पना में मत रहिए।
न तो भारत-इंग्लैंड पर कब्जा करने वाला है और ना ही भारत पर इंग्लैंड की दावेदारी की कोई हैसियत है।।
इंग्लैंड के पास ऐसा कुछ नहीं है कि वह कह सके कि आप हमारे ट्रांसफर आफ पावर की शर्त मानो।।
उसके पास यह ताकत 1947 में भी नहीं थी।।
1947 में तो उसे दुम दबाकर भागने की स्थिति थी।
चर्चिल ने युद्धके समय ही कह दिया था जो युद्ध कालीन गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित हो गए हैं कृपा कर उन्हें पढ़िए ।।
चर्चिल लगातार घबरा रहा था कि भारतीय सेना जितने मोर्चों पर एक साथ सफल हो रही है, युद्ध के बाद हमारे चूतड़ पर लात मारकर हमें भगा दिया जाएगा।।
भारत के सैनिकों की यह ताकत थी।इसीलिए वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस को शत्रु नम्बर एक मान रहे थे और देख रहे थे ।
इसके लिए उन्होंने यह चाकचौबंद व्यवस्था रखी और ट्रांसफर ऑफ पॉवर का आयोजन किया।
गांधी और नेहरू ने सत्ता के लोभ में वह स्वीकार किया। इसी के लिए उन्होंने भारत के राजाओं के विरुद्ध भी कई षड्यंत्र किए और सभी कांग्रेसविरोधियों के विरुद्ध लगातार षडयंत्र किए।
परंतु दुर्भाग्य यह है कि संपूर्ण भारतीय राजनीति अपने विरोधी के प्रति षड्यंत्र में रहती हैं और भारतीय समाज की प्रतिनिधि संस्था भारत के राज्य को स्वस्थ सुदृढ बनाया जाए,, इसके लिए भारतीय राज्यशास्त्र की परंपरा का ही आश्रय लेना होगा। जिसके लिए अभी का कोई भी राजनीतिक दल कभी तैयार नहीं होगा।
यह मत समझिए कि इसमें कोई भी अनजान है ।।
सभी प्रमुख राजनीतिक दल जानते हैं कि वह ऐसा करने में पूर्ण समर्थ हैं परंतु इसके लिए जितने आत्म बल,, बुद्धि बल और कष्ट सहन तथा वीरता की साधना चाहिए, उसकी कामना तक करने वाला एक भी राजनीतिक दल भारत में अभी विद्यमान नहीं है ।।
राजनीति में शून्यता नहीं रहती इसलिए अपने समय के दलों की निंदा करते बैठना निरर्थक है ।अपने समय के दलों के गुण और दोष तोलकर हमें निर्णय लेना होगा और जितनी मुझे जानकारी है जो कि बहुत अधिक जानकारी है ,उसके आधार पर इस बात पर एक पल को भी कोई संशय नहीं होना चाहिए कि जब तक क्रमशः तपस्या के द्वारा 25 – 50 वर्षों में कोई सचमुच का सनातन धर्म के प्रति निष्ठावान समूह या संगठन या समुदाय नहीं खड़ा होता,, तब तक हमें प्राप्त विकल्पों में से ही किसी को चुनना होगा और अभी का जो विकल्प है उसमें भारतीय जनता पार्टी और श्री नरेंद्र मोदी तथा श्री अमित शाह आदि के नेतृत्व वाले दल को ही चुनना देश के हित में हैं ,सनातन धर्म के हित में है ,भारत के भविष्य के हित में है।।
परन्तु कृपा कर यह मूर्खतापूर्ण बातें फैलाना बंद कर दीजिए कि ट्रांसफर आफ पावर नामक कागज के टुकड़े की स्वयं में कोई ऐसी कीमत है कि उससे हमारी स्वाधीनता बाधित है।
किसी कागज के टुकड़े में कोई भी शक्ति नहीं होती। transfer of power का दस्तावेज भी ऐसी कोई शक्ति नहीं रखता।
वह दस्तावेज तो अंग्रेजों ने अपनी रक्षा के लिए रचा था और इसीलिए भारत के तत्कालीन विधि सम्मत प्रतिनिधियों से उसमें दस्तखत करवाए थे ।।
उस दस्तावेज का कुल महत्व यही है कि उससे जिन लोगों को सत्ता का ट्रांसफर हुआ उनका सत्ता लोभ और उनकी झुक सकने की सामर्थ्य और उनकी देश के प्रति दृष्टि विशेष जिसमें वास्तविक देश भक्ति बहुत थोड़ी है और सत्ता की लिप्सा बहुत अधिक है ,,उसका प्रमाण उस दस्तावेज से मिलता है ।
इसके अतिरिक्त दस्तावेज का कोई भी महत्व नहीं है।
अगर आप उस दस्तावेज का कोई ऐसा महत्व मानते हैं कि उस के बल पर अंग्रेज भारत पर कोई दावा कर सकते हैं तो कृपा कर राजनीति पर चर्चा बंद करके अपने घर में बैठकर भजन पूजन कीजिए, रामचरितमानस और भगवदगीता का पाठ कीजिए ,भागवत सुनिए ।
देश के विषय में इतनी गंदी बातें सोचने का पाप मत कीजिए।
कृपया यह पाप बंद कर दीजिए ।।
किन्हीं अवैध और आपराधिक किस्म के लोगों के द्वारा भारत पर किए गए अवैध कब्जे को बाद में कोई प्रतिशोध न ले ,,इस भावना से तैयार कराए गए कागज के टुकड़ों का ऐसा कोई महत्व नहीं है कि वह इस विराट राष्ट्र पर कागज के बल पर कोई दवा कर सकें।।
वैसे भी दुनिया में सारे ही दावे शक्ति के बल पर होते हैं।।
कागज के टुकड़े तो लिखे और टुकड़े टुकड़े करके फेंके जाते रहते हैं ।।
फिर वह कागज तो अंग्रेजों ने अपनी रक्षा में बनवाया है।। उससे भारत को कोई खतरा नहीं है ।।
उससे केवल अंग्रेजों की रक्षा है कि आप ही सत्ता के हमारे ढाँचे की निरंतरता के लिए मान गए थे भाई ,,हमारा क्या दोष!
अगर हम उनकी नहीं मानते तो भी उन्हें भारत से जाना पड़ता । हम न मानते तो वे सब छोड़कर बोरिया बिस्तर समेट कर भागते ।।
उसके स्थान पर इन लोगों ने उन्हें पालकी पर बिठाकर उनकी पालकी स्वयं ढोकर उन्हें लंदन पहुंचाया।।
बस इतना ही सत्य जानने योग्य है और महत्वपूर्ण है।
प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज