दाभोलकर और गौरी लंकेश की हत्या के प्रकरण में अब जांच संस्थाएं अनेक कथानक सामने रख रही हैं । गौरी लंकेश हत्या प्रकरण में विविध हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के 18 कार्यकर्ताओं के विरोध में पूरक आरोपपत्र प्रविष्ट करने के विषय में अत्यंत हास्यास्पद प्रसिद्धिपत्रक कर्नाटक के ‘विशेष जांच दल’ ने (एसआइटी ने) प्रसिद्ध किया । जबकि ‘सीबीआइ’ ने हिन्दू जनजागृति समिति और सनातन संस्था पर आरोपपत्र दाखिल करने के पूर्व ही आरोप लगाने आरंभ कर दिए हैं । अर्थात कर्नाटक में क्या हो रहा है, इस विषय में हम कर्नाटक में जाकर बात करेंगे ही; परंतु पिछले दस वर्षों का ब्योरा लें, तो कांग्रेस और सेक्यूलरवादियों का ‘मालेगाव – भाग 1’ विफल हो गया, तो अब ‘मालेगाव – भाग 2’ आरंभ करने का षड्यंत्र है । इसमें गिरफ्तार हुए कार्यकर्ता विविध संगठनों के हैं, तब भी निरंतर मीडिया के सामने नाम केवल सनातन संस्था का लेकर सनातन संस्था को लक्ष्य करने का प्रयत्न स्पष्ट दिखाई दे रहा है, ऐसी दृढ भूमिका सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने रखी । मुंबई मराठी पत्रकार संघ मेें आज हुई पत्रकार परिषद में वे बोल रहे थे । इस समय हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे और हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर भी उपस्थित थे ।
‘सीबीआई’ ने आरोपियों की कोठडी बढाने हेतु दिए आवेदन में सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति इन संस्थाओं का हाथ होने का दावा किया है । अध्ययन किए बिना किया आवेदन कैसा होता है, इसका यह एक उदाहरण है । कलबुर्गी की हत्या अगस्त 2015 में हुई परंतु इस आवेदन में वह 2016 में हुई, ऐसा कहा गया है । चिकित्सा ब्योरे (मेडिकल रिपोर्ट) में दिया है कि डॉ. दाभोलकर की छाती और सिर में गोली लगी; परंतु आवेदन में सचिन अंदुरे ने पेट में गोली मारी, ऐसा लिखा है । इस आवेदन के आधार पर समाज अभी से हमें आरोपी न मानने लगे । सीबीआइ के नंदकुमार नायर के काले कारनामे हमने इससे पहले सामने लाए थे, इसलिए प्रतिशोध की भावना से उन्होंने ये किया है, ऐसा भी इस समय अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने स्पष्ट किया ।
इस समय हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने कहा कि गौरी लंकेश प्रकरण में मुख्य आरोपी के रूप में जिस अमोल काळे का नाम लिया जा रहा है, वह पिछले 10 वर्ष से समिति के किसी भी प्रकार के संपर्क में नहीं था । 10 वर्ष पूर्व भी वह समिति का कोई पदाधिकारी नहीं था । डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे भी समिति के किसी भी कार्य में सहभागी नहीं थे, तब भी उन्हें ‘सीबीआइ’ ने आरोपपत्र में उपाध्यक्ष कहा है । जो पद समिति के कार्य में ही नहीं है, वे निर्माण किए जा रहे हैं और सभी को समिति का ही कार्यकर्ता दर्शाकर भ्रम फैलाया जा रहा है । ये सब और कुछ नहीं पुराने षड्यंत्र विफल होने पर किया जानेवाला अगले स्तर का प्रयास है । इससे पहले भी सनातन ने अंनिस के ‘अर्बन नक्सलवाद’ और आर्थिक घोटाले उजागर किए हैं, उस समय भी यह झूठा प्रचार किया गया कि अंनिस कानून का विरोध करने हेतु यह बदनामी करने का झूठा अभियान है ।
सनातन संस्था लोगों को सम्मोहित कर लुभाती है, ऐसा अत्यधिक प्रचार किया गया; परंतु सम्मोहन विशेषज्ञों ने जब सच्चाई सार्वजनिक मंच पर रखी, तब यह अभियान ठंडा पड गया । मडगाव ब्लास्ट में सनातन का हाथ था, ऐसा कहनेवाले ये कभी नहीं बताते कि उस प्रकरण में आश्रम पर छापा मारा गया । संस्था के ट्रकभर आर्थिक कागदपत्र जांचे गए और इतना सब होने पर भी न्यायालय ने यह कहते हुए कि सनातन को फंसाने के लिए पुलिस ने ये झूठ रचा है, सबको निर्दोष छोड दिया । आज इस विषय में कोई बात नहीं करता ।
जांच संस्थाओं के दबाव में ही 2015 में समीर गायकवाड ने पानसरे पर गोली चलाई, ऐसा कहकर उसे गिरफ्तार किया गया । उस समय भी हमने आपके सामने आकर कहा कि वह हमारा साधक है और निर्दोष है । आज समीर गायकवाड को न्यायालय ने जमानत दे दी है । उच्च न्यायालय ने इसेे निरस्त नहीं किया और पुलिस उसके विरोध में अभियोग नहीं चला रही । सीबीआइ ने पहले कहा, ‘सारंग अकोलकर और विनय पवार ने गोलियां चलाईं । अब कह रही है सचिन अंधुरे और शरद कळस्कर ने गोलियां चलाईं ।’ अब हत्यारे बदल रहे हैं, गोलियों का स्थान बदल रहा है, हत्या की कालावधि बदल रही है । वर्ष 2015 में हमने सीबीआइ के अधिकारी कैसे झूठे षड्यंत्र रच रहे हैं, इसके सबूत सामने रखे थे । आज भी वही ‘गतांक से आगे’ जारी है । इसलिए आज हम पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, उनमें से कितने सच्चे और कितने झूठे हैं, यह काल ही निर्धारित करेगा, ऐसा प्रतिपादन सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने किया ।