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तो क्या कश्मीर की तरह दिल्ली भी सेना के हवाले करनी पड़ेगी?

आप पार्षद हाजी ताहिर हसन जिनके घर से पत्थर और पेट्रोल बम की बरसात हुई है। पत्थर, तेज़ाब और पेट्रोल का जखीरा भी मिला है, आईबी कर्मचारी के परिवारीजन जिन पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगा रहे हैं। वह कह रहे हैं कि मुस्लिम आबादी छोड़कर वह हिंदू आबादी में रहने आए। यह ठीक वैसे ही है जैसे कुछ लोग कहते हैं कि हम बाई च्वायस हिंदुस्तान में रुके और पाकिस्तान नहीं गए। तो यह अहसान अपने ऊपर था कि हिंदुस्तान पर? हिंदुस्तान को अब सीरिया बनाने के लिए नहीं गए? जब देखो तब कहते फिरते हैं कि किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है और  हिंदुस्तान को जलाते फिरते रहते हैं। अपने बाप का हिंदुस्तान होता तो इस तरह नहीं जलाते आए दिन।
अम्बेडकर ने पाकिस्तान बनने पर खुशी जाहिर करते हुए लिखा है कि अच्छा हुआ इस्लाम नाम का अभिशाप हिंदुस्तान से पाकिस्तान गया। लेकिन आंबेडकर को नहीं मालूम था कि पाकिस्तान बनाने की लड़ाई लड़ने वाले उत्तरप्रदेश और बिहार के मुसलमान यहीं रह जाएंगे और देश को जहन्नुम बनाने के लिए भारत में रहने का अहसान शरारतन जताते रहेंगे। हुआ यह कि पाकिस्तान बनने के बाद मुस्लिम लीग के लोग कम्युनिस्ट पार्टियों में घुस गए। सेक्यूलर की चादर और बुरका पहनकर वही काम करते रहे। जो मुस्लिम लीग में करते थे। उन्हीं दिनों मुस्लिम लीग से नाराज मौलाना आज़ाद ने मुस्लिम लीग पर तंज करते हुए कहा था कि एक सैलाब आया था और वह पाकिस्तान चला गया। लेकिन उस सैलाब का कुछ पानी हिंदुस्तान के गड्ढों में रुक गया है और वह बहुत बदबू मार रहा है। मौलाना की इस बात से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लोग बहुत नाराज हो गए। गौरतलब है कि पाकिस्तान बनाने में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सबसे बड़ा केंद्र रहा था। बहरहाल, मौलाना आज़ाद उन्हीं दिनों ट्रेन से अलीगढ़ होते हुए जा रहे थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कम्यूनिस्ट चोले में लीगियों ने जब यह सूचना पाई तो वह अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पर आए। रेल पटरी पर बिखरे लैट्रीन बटोरे और जब ट्रेन रुकी तो मौलाना आज़ाद के डब्बे में घुसकर वह लैट्रीन मौलाना की दाढ़ी पर मल दी। मौलाना आज़ाद हतप्रभ देखते रह गए।
लेकिन अपनी संपत्तियों की लालच में पाकिस्तान नहीं गए लोग फिर एक पाकिस्तान बनाने की फिराक में पड़ गए। दिलचस्प यह कि पाकिस्तान गए बहुतेरे लोग अपनी संपत्ति की लालच में पाकिस्तान से लौट भी आए। और जब-तब जब-तब दंगे की आग में देश को झुलसाते यह लीगी लोग कम्युनिस्ट का चोला पहन आरएसएस, संघी के नैरेटिव की आड़ में लीगी सांप्रदायिकता की फसल दहकाते रहते हैं। और यह देखिए एक नारा निकला कि लड़के लिया था पाकिस्तान, हंसके लेंगे हिंदुस्तान। मुस्लिम वोटबैंक की आड़ में कांग्रेस समेत कुछ क्षेत्रीय दल मुस्लिम तुष्टीकरण का बाग़ लगा बैठे। कश्मीर इसी मुस्लिम तुष्टीकरण की प्रयोगशाला बना। और एक समय ऐसा आ गया कि कश्मीरी पंडितों को चुन-चुनकर कश्मीर से भगा दिया गया। मंदिर तोड़कर नदियों में बहा दिए। पंडितों की स्त्रियों, बेटियों, बहनों के साथ आए दिन सामूहिक बलात्कार जैसे बच्चों का खेल हो गया। पंडितों की अनमोल संपत्ति, घर, दुकान सब हड़प लिए। भाजपा समेत सभी राजनीतिक पार्टियां हाथ बांधे चुप रहीं। देश में राजनीतिक कोढ़ी बनकर उपस्थित विश्वनाथ प्रताप सिंह तब देश के प्रधानमंत्री थे, भाजपा के समर्थन से। विश्वनाथ प्रताप सिंह सेक्यूलर फ़ोर्स के सबसे बड़े कैंसर थे। कश्मीर इनके ही राज में रातोरात कश्मीरी पंडितों से खाली हो गया। इनका एक गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद इतना बड़ा कमीना था कि गृहमंत्री बनने के पांच दिन बाद ही आतंकियों को छोड़ने के लिए अपनी ही बेटी रुबिया सईद का अपहरण करवा दिया।
फिर तो देश में सेक्यूलरिज्म और आतंकवाद की ऐसी फसल लहलहाई कि पूछिए मत। हर शहर विस्फोट में दहलने लगा। संसद, लाल किला कुछ भी शेष नहीं रहा इस इस्लामिक आतंकवाद के विस्फोट के शिकंजे से। मुंबई पहले भी दाऊद इब्राहिम दहला गया था। अब हाफिज सईद की बारी थी। दहली मुंबई। और कांग्रेस ने इसमें हिंदू आतंकवाद की खेती खोज ली। हर घर से अफजल निकलेगा के नारे गूंजने लगे। याकूब मेनन के लिए लोग जान देने लगे। यह वही समय था जब दुनिया इस्लामिक आतंकवाद से दहली हुई थी। देश भी इस मुस्लिम तुष्टिकरण और इस्लामिक आतंकवाद से इतना आजिज आ गया कि 2014 में देश ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुन लिया। यह सोचकर कि इस्लामिक आतंक और मुस्लिम तुष्टिकरण से निजात मिलेगी। मिली भी।  लेकिन तभी जेएनयू से भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्ला, इंशाअल्ला होने लगा। हर घर से अफजल निकलने का नारा और तेज़ हो गया। यह मुस्लिम लीगियों का कम्यूनिस्ट चोला बनकर बोल रहा था। एक चुनी हुई सरकार के प्रति नफरत की नागफनी इतनी बो दी गई कि यह लोग मोदी विरोध में बोलते-बोलते देश के विरोध में बोलने लगे। बर्बाद कांग्रेस ने इन्हें अपना राजनीतिक कवच कुण्डल भी सौंप दिया। लेकिन देश नहीं जला। सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा, एयर स्ट्राइक, अभिनंदन वापसी, नोटबंदी, जीएसटी आदि-इत्यादि में भी तमाम कोशिशों के बावजूद देश नहीं जला।
2019 में देश ने फिर से नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत से प्रधानमंत्री चुन लिया। अब ताबड़तोड़ तीन तलाक, अनुच्छेद-370, राममंदिर के बाद नागरिकता संशोधन बिल आ गया। जनसंख्या नियंत्रण बिल, कॉमन सिविल कोड और पीओके के वापसी के सपने देखती सरकार के आगे आया शाहीनबाग़। दिल्ली चुनाव के मद्देनज़र शाहीनबाग से सरकार डर गई। अब तक डरी हुई है। अगर शाहीनबाग़ के तंबू समय रहते सरकार ने उखाड़ दिया होता, जामिया मिलिया के दंगाइयों को कसके रगड़ दिया होता केंद्र सरकार ने तो आज दिल्ली इस कदर जलती हुई नहीं दिखती। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त बस यात्रा के केजरीवाल के झुनझुने के आगे वैसे भी भाजपा को हर हाल चुनाव हारना था, हारी भी। पर केंद्र सरकार के इस ढीले और नपुंसक रुख ने पाकिस्तान की आईएसआई और चीन को अंडरस्टीमेट कर लिया। नतीजा सामने है।
साढ़े पांच साल की सारी कमाई, अनुच्छेद-370 जैसा कड़ा फैसला सब कुछ नरेंद्र मोदी ने तीन दिन में यमुना में बहा दिया। ट्रंप की यह यात्रा मोदी सरकार की उपलब्धि नहीं, कोढ़ में खाज बनकर उपस्थित है। अमित शाह होंगे जोड़-तोड़ के शहंशाह। पर अमित शाह से बड़ा असफल गृहमंत्री कोई दूसरा नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी सरकार पर अब एक भारी बोझ हैं अमित शाह। इससे बेहतर तो वह कड़ी निंदा वाले राजनाथ सिंह ही थे। अमित शाह ने तो अभी तक कड़ी निंदा भी नहीं की। जो गृहमंत्री तीन महीने से जलती एक छोटी सी दिल्ली की आग नहीं बुझा सकता, वह देश की आग भला कैसे बुझा सकता है भला। मोदी को जैसे भी हो अमित शाह नाम का बोझ सरकार से फ़ौरन उतार देना चाहिए। सोचिए कि पिस्तौल लहराने वाला शाहरुख और हाजी ताहिर हुसैन तक को गिरफ्तार करने तक में यह सरकार डरी हुई है। शाहीनबाग़ जस का तस है। दिल्ली में 30 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। आईपीएस अफसरों पर तेज़ाब फेंके गए हैं। करोड़ो, अरबों की संपत्ति स्वाहा हो चुकी है। आपसी विश्वास जयहिंद है। गंगाजमुनी तहजीब और भाईचारा जैसे निरर्थक शब्द अब मजाक के सबब हो चुके हैं। सेक्यूलरिज्म की ऐसी-तैसी हो चुकी है।
तो क्या कश्मीर की तरह दिल्ली भी सेना के हवाले करनी पड़ेगी? तब दिल्ली और दिल्ली में सक्रिय दंगाई काबू में आएंगे। बीएसएफ तो आ ही चुकी है। अमित शाह कब जाएंगे? देश को इसकी प्रतीक्षा है। देश को जोड़-तोड़ वाले संगठन के आचार्य की नहीं, एक सबल और कठोर गृहमंत्री की ज़रूरत है। सरदारा पटेल की तरह किसी कड़क गृहमंत्री की ज़रूरत है। जो बड़े-बड़े हैदराबादियों की तबीयत हरी कर देने की क्षमता रखते थे। फ़ौज उतार देते थे। यहां तो कोई कह जाता है कि 15 करोड़ 100 करोड़ पर भारी पड़ेंगे और हमारा गृहमंत्री असहाय सुनता मिलता है। गोया कुछ हुआ ही नहीं। एक कौड़ी का शरजील देश को बंधक बनाने की चुनौती देकर घूमता फिरता है। बड़ी हायतौबा के बाद धरा जाता है। बीच दिल्ली एक सड़क मुट्ठी भर अराजक लोग अपहरित कर लेते हैं। और हमारा गृहमंत्री किसी बिल्ली की तरह दुबककर जाने किस अवसर की तलाश करता मिलता है। तिल भर की समस्या को ताड़ में तब्दील करने वाला गृहमंत्री देश को स्वीकार नहीं है। कड़े और फौरी फैसले लेने वाले गृहमंत्री की दरकार है देश को। इसलिए भी कि देश को अभी कई सारी बीमारियों से मुक्ति की तलब है। वैसे भी दुष्यंत कुमार लिख ही गए हैं :
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही।
 Dayanand Pandey

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