जब भी कोई दंगा होता है,
मानवता कराहती है, समाज नंगा होता है।
लेकिन ये दंगा होता क्यों है?
क्योंकि दंगे के कारणों की हम कभी भी निष्पक्षता से समीक्षा नहीं करते। सबकी अपनी-अपनी राजनीति है और लोगों को इंसानी लाशों पर भी राजनीति की रोटियां सेंकने से गुरेज नहीं है।
दिल्ली का यह दंगा अवश्यम्भावी था- इस आशंका से मेरा मन लगातार कांप रहा था, लेकिन मुंह से यह अशुभ निकालने से बचता रहा। परंतु अन्य सभी तरीकों से लिखकर लोगों को आगाह करने की कोशिश की। कभी प्यार से समझाकर, कभी नाराज़गी प्रकट करके। लोगों ने नहीं समझा, तो तीखा भी बोलना पड़ा।
अब अंततः दंगा हो चुका है तो कुछ लोगों के कलेजे को ठंडक पड़ गई होगी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल, डी राजा, असदुद्दीन ओवैसी और देश भर में इनके तमाम सहयोगी दलों और उनके तमाम नेताओं को बधाई, क्योंकि इनके मकसद का पहला चरण पूरा हुआ। अब ये लोग अपने मकसद के अगले चरण पर काम करना शुरू कर देंगे और पहले से कर भी रहे हैं। इनका मकसद है देश के अनेक हिस्सों में दंगा कराना। ये देश के हर हिस्से में दंगे होते हुए देखना चाहते हैं। इसलिए दिल्ली दंगा अंतिम है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता।
CAA और NRC के विरोध के नाम पर पिछले तीन महीनों से इन लोगों ने मुसलमान भाइयों-बहनों को लगातार भड़काया। लगातार उनसे झूठ बोला कि तुम्हारी नागरिकता छीन ली जाएगी और तुम्हें डिटेंशन सेंटर में डाल दिया जाएगा। झूठे नैरेटिव गढ़ते हुए उन्हें लगातार डराया गया। विरोध के नाम पर जगह-जगह मुस्लिम भीड़ इकट्ठी की गई और सड़क जाम करवाया गया। और उन तमाम भीड़ों में क्या-क्या बकवास नहीं की गई? ऊपर से इन सारे बकवासों को हतोत्साहित करने के बजाय डिफेंड किया गया।
1. सबसे पहले दिल्ली के जामिया में हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी कराई गई। पुलिस ने हिंसा करने वालों पर लाठी चलाई, तो हिंसा करने वालों की निंदा करने की बजाय उल्टे पुलिस पर सवाल उठाए गए कि बिना इजाजत वह यूनिवर्सिटी में घुस कैसे गई? लाइब्रेरी में पढ़ रहे लड़कों पर उसने डंडे कैसे चला दिए? जबकि सच्चाई यह थी कि बाहर हिंसा कर रहे लोग ही लाइब्रेरी में घुसकर पढ़ने की नौटंकी करने लगे थे। हो सकता है कि उनमें कुछ निर्दोष भी होंगे, पर यह तो सबको सोचना चाहिए कि 10 अपराधियों के बीच में 2 निर्दोष फंस जाएंगे, तो लाठी तो उन्हें भी लगेगी। कौन नहीं जानता कि गेहूँ के साथ घुन भी पिसते हैं? अपराधियों से खुद को अलग करके तो देखो। उनका विरोध तो करो। उनको छिपने की जगह तो मत दो। उनका बचाव तो मत करो। फिर तुम्हें खरोंच भी आए तो बताना।
2. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बाद अचानक देश भर में अनेक जगहों पर धर्म का आवरण ओढ़कर उन्मादियों की भीड़ इकट्ठी हुई और आपत्तिजनक नारे सामने आने लगे। AMU में कहा गया- “हिंदुत्व की कब्र खुदेगी।” IIT कानपुर में कहा गया- “बस नाम रहेगा अल्लाह का।” लेकिन ऐसी चीजों को हतोत्साहित करने की बजाय इन्हें डिफेंड किया गया।
भारत अगर सेक्युलर देश है और हिन्दू यहाँ बहुसंख्यक हैं और हिंदुओं की वजह से ही यह देश सेक्युलर है, तो हिंदुत्व की कब्र कैसे खोद दोगे भाई? हिंदुत्व क्या केवल भाजपा-आरएसएस की चीज़ है? यूँ तो हिंदुत्व इस देश के 80% से अधिक लोगों की आत्मा है और इसी हिंदुत्व के कारण बाकी के 20% लोग भी सुरक्षित हैं, फिर भी यदि यह केवल भाजपा-आरएसएस की ही चीज़ हो, तो उसकी कब्र कैसे खोद दोगे? इस देश के लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर उसकी सरकार बनवाई है, उसकी कब्र कैसे खोद दोगे? फिर उसकी कब्र खोदने के नारे लगाने वालों का बचाव किया जाएगा और सोच लिया जाएगा कि लोगों को बुरा नहीं लगेगा? आप ज़्यादा होशियार हैं और तमाम पब्लिक बेवकूफ है क्या, जो आपके शातिराना मंसूबों को नहीं समझती?
इसी तरह भारत के एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान में सभी धर्मों के लोगों के बीच इस्लामिक गेट अप में ताली बजा बजा कर “बस नाम रहेगा अल्लाह का” गाने को कैसे जस्टिफाई कर सकते हैं आप? एक इस्लामिक देश के इस्लामिक कवि ने इस्लामिक प्रतीकों का सहारा लेकर इस्लामिक ऑडिएंस के लिए जो लिखा, उसे भारत जैसे सेक्युलर देश में सेक्युलर ऑडिएंस के बीच आप कैसे गा सकते हैं? पाकिस्तान के संदर्भ में हो सकता है कि वह क्रान्तिगीत होगा, लेकिन भारत के संदर्भ में वह विशुद्ध रूप से एक साम्प्रदायिक गीत था, लेकिन आपने उसे भी डिफेंड करने की कोशिशें की, जो कि सरासर शरारतपूर्ण था। भारत अगर सेक्युलर देश है और बहुसंख्यक होने के नाते इसे सेक्युलर बनाए रखने का ठेका हिन्दू अगर अकेले अपने माथे पर उठा भी लें, तो कम से कम अन्य लोगों को उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने से तो बचना होगा? कि इतना भी नहीं करोगे?
3. इसके बाद, शाहीन बाग में मुस्लिम बहनों को दूध पीते बच्चों के साथ आगे किया गया, और संविधान और तिरंगे की आड़ ली गई, लेकिन वहाँ संबोधित करने वाले लोगों में शरजील इमाम जैसे रेडिकल इस्लामिक टेररिस्ट भी शामिल थे, जिसने असम को देश से काटने का प्लान सामने रखा और जगह जगह रोड ब्लॉक करने का मॉडल पेश किया गया। बार-बार इस आंदोलन का रेडिकल चेहरा सामने आया, पीएफआई जैसे आतंकी संगठनों के साथ इसके लिंक भी सामने आए, फिर भी इसे बड़ी ही बेशर्मी से डिफेंड किया गया।
4. इसके बाद, मुंबई में “फ्री कश्मीर” का बैनर लहराया गया और कानून से बचने के लिए कह दिया गया कि हम तो इंटरनेट बैन का विरोध कर रहे थे। क्या सचमुच आप इतने मासूम हैं और बाकी देश के लोग इतने बेवकूफ हैं?
5. फिर, हैदराबाद में ओवैसी के मंच से “पाकिस्तान जिंदाबाद” का नारा लगाया गया, लेकिन लड़की के कथित पुराने पोस्ट दिखाकर उसका भी बचाव किया गया कि वह लड़की तो सभी देशों का ज़िंदाबाद बोलती है।
6. ओवैसी के ही आदमी ने 15 करोड़ मुसलमानों के 100 करोड़ हिंदुओं पर भारी पड़ने की बात कही। क्या आप इस देश में हिंदुओं के खिलाफ जंग का एलान करना चाहते हैं?
7. इसके बाद, रेडिकल इस्लामिक टेररिस्ट शरजील इमाम के फार्मूले का अनुसरण करते हुए दिल्ली के जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के बाहर भी रास्ता रोक दिया गया।
इन सारी घटनाओं, विपक्षी पार्टियों के शातिराना रवैये और मेनस्ट्रीम मीडिया के एक बड़े हिस्से की एकपक्षीय रिपोर्टिंग की एक लंबी श्रृंखला के बाद बयान आता है बीजेपी नेता कपिल मिश्रा का, जिसमें पुलिस से कहा गया कि “ट्रंप दौरे तक हम चुप हैं, तब तक आप सड़क खाली करवा लीजिए, वरना आपका काम हमें करना पड़ेगा।”
फिर क्या था? अब तक इतनी सारी चीज़ें भड़काऊ नहीं मानी गईं, लेकिन कपिल मिश्रा के इस अल्टीमेटम को भड़काऊ करार दे दिया गया। एक तरफ पूरे देश को ठप्प कर देने की साज़िशें रची जाएं और दूसरी तरफ लोगों को नाराज़गी प्रकट करने तक का अधिकार नहीं? यह कैसा न्याय है और यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है?
हो सकता है कि आप मुझसे सहमत नहीं होंगे, लेकिन किसी भी दंगे में सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार वह होता है, जो पहला पत्थर चलाता है, पहले पहल आगजनी करता है, पहली गोली चलाता है, पहली लाठी, पहला चाकू चलाता है। पता कीजिए कि दिल्ली दंगे में हिंसा की शुरुआत किसने की? अगर कपिल मिश्रा के लोगों ने CAA के समर्थन में रैली निकाली, तो केवल इससे या उसके एक नाराज़गी भरे अल्टीमेटम से विरोधियों को हिंसा, आगजनी और पथराव करने का लाइसेंस कैसे मिल जाता है? तीन महीने से CAA का विरोध करने वालों पर तो किसी ने हिंसा नहीं की? दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दो अलग-अलग दिन हवाई फायरिंग की जो घटनाएं हुईं, खुद वे भी शाहीन बाग के मास्टरमाइंडों द्वारा ही प्रायोजित थीं। इतना ही नहीं, खुद CAA-विरोधियों ने ही झारखंड के लोहरदगा में भी CAA-समर्थक एक दलित को मार डाला था।
हां, अगर कपिल मिश्रा के लोगों ने ही हिंसा की शुरुआत की, तो पुलिस सबूतों के साथ सामने आए। फिर, इस देश में शायद ही कोई ऐसा आदमी होगा, जो उसका बचाव करेगा, इसके बावजूद कि ऊपर हमने पूरी श्रृंखला बयान की है कि किन लोगों ने और किस तरह से लगातार साज़िशें रचते हुए इस दंगे की बुनियाद रखी।
मुझे पता है कि आप बीच में अनुराग ठाकुर के लगाए नारे- “देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को” की भी चर्चा करना चाहते हैं, तो हिन्दू समाज के अधिकांश लोगों ने उसे खारिज कर दिया, इसके बावजूद कि उस नारे में मुसलमानों को नहीं, “देश के गद्दारों” को गोली मारने की बात थी और यह नारा ऊपर चिह्नित की गई अनेक घटनाओं के घट जाने के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप दिया गया था।
याद रखिए, आप किसी भी समाज में दंगे तब तक नहीं रोक सकते, जब तक आप रेडिकल एलिमेंट्स यानी कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा देते रहें और उदारवादियों से संयम बरतने की उम्मीद करते रहें। …और घटनाओं की एकपक्षीय व्याख्या करके तो आप बिलकुल भी दंगे नहीं रोक सकते। और इसलिए दिल्ली में जो दंगा हुआ है, वह अवश्यम्भावी था और इसकी पूरी जिम्मेदारी उन लोगों की है, जिन्होंने पिछले तीन महीने से लगातार मुसलमान भाइयों-बहनों को भड़काने की कोशिश की, उनके बीच के रेडिकल एलिमेंट्स को संरक्षण दिया, उन्हें बढ़ावा दिया, उनके गलत की पर्देदारी की और अतार्किक रूप से उनका बचाव किया।
हमने पहले भी कहा था कि नाथूराम गोडसे के पैदा होने से कोई भी समाज कलंकित ही महसूस करता है, लेकिन वह केवल महात्मा गांधी पैदा करने की गारंटी भी नहीं दे सकता। 10 लाख लोगों की लाशों पर इस्लाम के नाम पर हुआ देश-विभाजन हिंदुओं के चेतन-अवचेतन में ज़रूर रहता है और हमेशा रहना चाहिए। पूरी दुनिया में हिंदुओं के लिए एकमात्र देश भारत है। अनंत काल तक एकतरफा धर्मनिरपेक्षता का प्रदर्शन करते हुए न तो वे किसी भी कीमत पर भारत के दूसरे विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार होने दे सकते हैं, न ही धीरे-धीरे इसे भी एक इस्लामिक देश में कन्वर्ट होने दे सकते हैं। इसलिए हिंदुओं की इस चिंता की अनदेखी करना पूरी तरह गैरवाजिब और अस्वीकार्य है।
ये कुछ बातें भी स्पष्ट रहनी चाहिए-
1. CAA से किसी भारतीय मुसलमान की नागरिकता नहीं जा रही, इसलिए इसका विरोध निरर्थक है।
2. पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को भारत नागरिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि इन इस्लामिक देशों में इनके साथ अलग धार्मिक आस्था के कारण ज़्यादतियां हुई हैं और वहां इनके लिए सम्मान-स्वाभिमान-बराबरी के साथ अपनी आस्था, अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपने विचारों पर चलने की परिस्थितियां नहीं हैं। वहाँ इनकी मास किलिंग की गई है, इनका मास रेप हुआ है, इनका मास कन्वर्जन हुआ है। बड़े पैमाने पर इनके पूजा-स्थल तोड़े गये हैं। समूची दुनिया में भारत के सिवा इनका कोई सहारा नहीं। इसलिए इन्हें भारत की नागरिकता देने का विरोध करना अल्पसंख्यक और मानवता विरोधी होने के साथ-साथ स्पष्ट रूप से हिन्दू-सिख-ईसाई-बौद्ध-जैन-पा रसी विरोधी होना भी है।
3. CAA के तहत तीनों मुस्लिम देशों से अवैध रूप से घुसपैठ करके आए मुसलमानों को नागरिकता नहीं दी जाएगी, क्योंकि वे मुस्लिम देशों से ही आए हैं, देश-विभाजन के समय इस्लाम के नाम पर वे हमसे अलग हिस्सा ले चुके हैं। वे भारत-विरोधी ताकतों द्वारा भी भेजे गए हो सकते हैं और उनसे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचने की आशंका है। उनके यहाँ आने से भारत की डेमोग्राफी पर भी बुरा असर पड़ेगा। भारत ने धर्मनिरपेक्षता कबूल की, इसका मतलब यह नहीं कि कुछ लोगों को पूरे भारत में हिंदुत्व की कब्र खोदने के लिए खुला छोड़ दिया जाए। इसलिए तीनों मुस्लिम देशों से अवैध रूप से आए मुसलमानों को थोक में नागरिकता देने का समर्थन करना इस देश और यहां के बहुसंख्यकों और अन्य तमाम गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करना है।
हाँ, इन देशों से आए मुसलमान भी अगर व्यक्तिगत परिस्थितियों और मानवता के आधार पर भारत की नागरिकता चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए औपचारिक रूप से आवेदन करना चाहिए। सरकार कह चुकी है कि इस प्रक्रिया से पहले भी इन देशों से आए मुसलमानों को भी नागरिकता दी जाती रही है और आगे भी दी जाती रहेगी। इसलिए यह नहीं हो सकता कि बिना नागरिकता के लिए आवेदन किये बिना वीजा लिए आप चोरी छिपे यहाँ आकर रहें, देश के संसाधनों पर दबाव और सुरक्षा पर खतरा पैदा करें और कुछ साल बाद बिना किसी दस्तावेज के दावा ठोक दें कि हम भी यहीं के नागरिक हैं, इसलिए हम भी सरकार बनाएंगे-गिराएंगे, जनसंख्या बढ़ाएंगे, यहां के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की ऐसी-तैसी करेंगे, दंगे-फसाद भी करेंगे, पर आप हमें छू नहीं सकते।
4. NPR राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर है। यह हर देश में होता है और होना चाहिए। इसका विरोध करना पूरी तरह अतार्किक है। जो इसमें दर्ज नहीं होंगे, भारत की सरकार को पूरा हक होगा कि वह उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ देना बंद कर दे और एक नागरिक के विशेष अधिकारों से भी वंचित कर दे।
5. NRC अभी आया नहीं है, इसलिए इसको लेकर अफवाहें फैलाना देश-विरोधी कृत्य है। अगर भविष्य में यह कभी आएगा भी, तो भारतीय मुसलमानों की नागरिकता नहीं जाएगी, यह तय है। केवल बाहर से आए घुसपैठिए ही इसके तहत निकाले जाएंगे। उनमें भी वे लोग नहीं निकाले जाएंगे, जो वैध आधारों पर नागरिकता पाने के लिए विधिवत आवेदन देंगे और जिनके आवेदन स्वीकार कर लिये जाएंगे।
इसलिए CAA, NRC और NPR पर सभी लोग सहयोग करें, दंगा न करें। 1947 से 2020 तक भारत काफी बदल चुका है और काफी जागरूक भी हुआ है। इसलिए दंगा करके अब इस देश को कोई भी व्यक्ति या समूह ब्लैकमेल नहीं कर सकता। ऐसा करने से उल्टे उनकी स्थिति कमज़ोर ही होगी। इसलिए सभी लोग शांति बनाए रखें। जय हिंद।
-अभिरंजन कुमार-