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दुष्काल : अच्छी बुरी खबरें और टीके की बातें

कोरोना को लेकर दो महत्वपूर्ण खबरें है इनमें एक चौंकाने वाली है  और दूसरी राहत देनेवाली है | चौंकाने वाली खबर है, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स ने एक स्टडी के आधार पर बताया कि कोरोना से ठीक होने वाले हर ५  में से १  मरीज को ९० दिनों के अंदर मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे लोगों को दिमाग से जुड़ी अलग-अलग तरह की बीमारी हो रही है।राहत देने वाली खबर में एक बड़ी औषधि निर्माता कंपनी ने कहा है कि उसने कोविड-१९  महामारी का टीका बना लिया है जो ९० प्रतिशत तक प्रभावी है
कोरोना से ठीक होने वाले कई लोगों पर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा शोध किया गया। इसमें पाया गया कि२० प्रतिशत लोगों में ठीक होने के बाद दिमाग से जुड़ी समस्याएं उभरने लगी हैं। ज्यादातर लोगों को एन्जायटी, डिप्रेशन और इनसोम्निया की प्रॉब्लम है।
एक बड़ी औषधि निर्माता कंपनी फाइजर ने कहा है कि उसने कोविड-19 महामारी का टीका बना लिया है जो ९०  प्रतिशत तक प्रभावी है।कंपनी ने यह भी कहा कि उसके संभावित टीके ने तीसरे चरण के परीक्षण में कोई बड़ा दुष्प्रभाव नहीं दिखाया। बीएनटी१६२बी २ नामक यह टीका फाइजर कंपनी का है, जिसे जर्मनी की एक छोटी कंपनी बायोनटेक ने विकसित किया है। इस टीके के बारे में अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि विस्तृत चिकित्सकीय आंकड़े सामने आने के पहले इस बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं। इस बारे में अंतिम निर्णय नियामकों को लेना है। यह निर्णय भी पहले यूरोप, उसके बाद अमेरिका में लिया जाएगा। शेष विश्व को तब तक प्रतीक्षा करनी होगी। यह बहुत अहम अवसर है। विश्व अर्थव्यवस्था को तबाह कर देने वाली और लाखों लोगों की जान लेने वाली इस महामारी के टीके को लेकर पहले बार कोई विश्वसनीय खबर सामने आई है जहां तीसरे चरण के परीक्षण सफल रहे हैं। यह निजी क्षेत्र की कई औषधि कंपनियों की ही बदौलत है कि इतने सारे टीकों पर परीक्षण चल रहा है और इतने सीमित समय में इतनी बड़ी सफलता हाथ लगी है।
बहरहाल, भारत को इस टीके को लेकर इतना उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। बीएनटी१६२ बी २  टीका नई मेसेंजर आरएनए (एमआरएनए) तकनीक पर आधारित है। इसका अर्थ यह हुआ कि इसे तेजी से विकसित किया जा सकता है लेकिन इसकी क्षमता भी अपेक्षाकृत सीमित होगी। टीका बनाने वालों की ओर से पहले जारी किए गए वक्तव्यों में कहा गया था कि इसे शून्य से ७०  डिग्री सेल्सियस तक या उससे भी कम तापमान पर रखना होगा। इस तापमान पर ढुलाई के बाद इसे ज्यादा से ज्यादा २४  घंटे तक ही शून्य के आसपास तापमान पर फ्रिज में रखा जा सकता है। उसके पश्चात इसका असर कम हो जाता है। भारत जैसे देश में इसके वितरण को लेकर स्वाभाविक चुनौतियां हैं। टीके की नियमित आपूर्ति वैसे भी मुश्किल है और इस टीके को तो अत्यंत कम तापमान पर लाना होगा। यह आसान नहीं है क्योंकि इसे बमुश्किल२४ घंटे ही शून्य तापमान पर रखा जा सकता है। इतना ही नहीं तीन सप्ताह में इसकी दूसरी खुराक भी लेनी होगी। कुल मिलाकर भारतीय वितरण तंत्र के लिए यह असंभव सा काम है।
विकसित देश जरूर ऐसा कर सकते हैं। यूरोप ने पहले ही इस टीके की ३०  करोड़ खुराक का सौदा कर लिया है।
टीके के मामले में भारत के लिए हालात नाटकीय रूप से बदल गए हैं। देश के कुछ राजों में जारी कोरोना के कहर के बीच इसके वैक्सीन  को लेकर एक अच्छी खबर सामने आई है| भारत में ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनिका की वैक्सीन का ट्रायल कर रही सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया  ने कोविड-१९  वैक्सीन के तीसरे फेज के क्लिनिकल ट्रायल की बड़ी चुनौती को पार कर लिया है |सरकार को जल्दी यह तय करना होगा कि क्या फाइजर कंपनी के टीके जैसे एमआरएनए या मॉडर्ना कंपनी के जैसे टीके जो थोड़े महंगे हैं, लेकिन जिनका परिवहन आसान है, भारत के लिए अनुपयुक्त हैं या फिर क्या हम छह महीने में इनके लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार कर सकते हैं? यह निर्णय अगले कुछ महीनों में हो जाना चाहिए। यदि यह संभव नहीं तो सरकार को अधिक उपयुक्त टीकों को समर्थन दोगुना कर देना चाहिए।

-राकेश दुबे

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