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दो घटनाओं पर हमारा व्यवहार अलग-अलग


अवधेश कुमार
हमारे सामने देश के दो अलग-अलग क्षेत्रों में दो विद्यालय छात्रों की पिटाई का मामला सुर्खियों में है। दोनों में पुलिस कार्रवाई जारी है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में मंसूरपुर के नेहा पब्लिक स्कूल में 24 अगस्त की घटना पर पूरे देश में तूफान खड़ा हो गया। घटना केवल इतनी है कि शिक्षिका ने एक छात्र को गिनती नहीं सुनाने तथा होमवर्क नहीं करने पर दूसरे विद्यार्थियों से थप्पड़ लगवाए। इसे इस तरह बनाया गया मानो शिक्षिका ने जानबूझकर एक मुस्लिम बच्चों को हिंदू बच्चों से पिटवाया और इसके पीछे सांप्रदायिक भाव था। उस कक्षा में कुल 60 बच्चे हैं जिसमें 40 बच्चे मुस्लिम हैं। छात्र को थप्पड़ मारने वाले चार में से दो बच्चे एक छात्र और एक छात्रा मुस्लिम है। उस छात्र का चाचा वही था और उसने मोबाइल से वीडियो बना लिया । इसे यह कहते हुए प्रसारित किया गया कि हिंदू छात्रों से मुस्लिम छात्र को पिटवाया जा रहा है तथा शिक्षिका द्वारा मुस्लिम वर्ग के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी की जा रही है। दुख का विषय कि छात्र का परिवार और शिक्षिका के बीच लोगों ने समझौता करा दिया, छात्रों के बीच भी मेल मिलाप कराया लेकिन तूफान न रुका। संबंधित शिक्षिका विकलांग है और उसने कहा कि वह स्वयं पिटाई नहीं कर सकती थी। हालांकि उसने बाद में स्वीकार किया कि बच्चे की पिटाई करना गलत था।

तो सामान्य घटना को तील का ताड़ बनाकर ऐसे पेश किया गया मानो प्रदेश की उत्तर प्रदेश की सरकार के कारण हो रहा है। इसके एक दिन बाद 25 अगस्त को जम्मू के कठुआ जिले के बानी क्षेत्र के एक स्कूल में एक हिंदू छात्र की मुस्लिम शिक्षक और प्रधानाध्यापक द्वारा जबरदस्त पिटाई की गई।। कक्षा 10 के उसे छात्र ने ब्लैक बोर्ड यानी श्याम पट्टिका पर जय श्रीराम लिख दिया था। प्राथमिक के अनुसार शिक्षक शाहरुख जैसे ही कक्षा में घुसा उसने ब्लैक बोर्ड पर जय श्री रम देखा और आग बबूला होते हुए संबंधित छात्र को बुरी तरह मारते हुए बाहर ले गया। बेरहमी से पिटाई करने के बाद उसे प्रिंसिपल के कक्ष में ले गया और दोनों ने बंद कर उसकी और पिटाई की। बच्चे की हालत खराब हो गई लेकिन उन्होंने धमकी दी कि अगर अगली बार तुमने ऐसा किया तो जान से मार देंगे। प्रिंसिपल और शिक्षक ने एक कर्मचारी को भेजकर बोर्ड को पानी से धुलवाया। छात्र की हालत खराब होने के बाद उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
इस घटना की सूचना मिलने के बाद स्वाभाविक ही लोगों में गुस्सा पैदा हुआ और वे सड़कों पर उतरकर विरोध करने लगे। दोनों पर प्राथमिकी दर्ज हो गई है। कठुआ के उपायुक्त ने तीन सदस्यीय जांच समिति नियुक्त की है। दोनों घटनाओं को देखिए और देश की प्रतिक्रियाओं पर नजर दौड़ाइए। मुजफ्फरनगर की घटना पर हाय-तौबा मचाने वाले समूह ने कठुआ की घटना को संज्ञान लेने लायक भी नहीं समझा। राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया में मुजफ्फरनगर पर तूफान उठाने वाले सामने नहीं है। यही दोहरा आचरण आम भारतीयों के अंदर गुस्सा पैदा करता है। कठुआ की घटना प्रमाणित है जबकि मुजफ्फरनगर घटना में शिक्षिका तृप्ति त्यागी के बारे में झूठ प्रचारित हुआ। वीडियो बनाने वाले लड़के के चाचा नदीम ने कहा है कि शिक्षिका ने मजहब विशेष के बारे में कुछ नहीं कहा बल्कि यह कहा कि मुस्लिम महिलाएं मायके चली जाती हैं, बच्चे की पढ़ाई पर ध्यान नहीं देतीं। वीडियो बनाने वाला कह रहा है कि गलत अर्थ निकालकर प्रसारित किया जा रहा है। आरोपित शिक्षिका भी कह रही है कि उसकी बात का गलत अर्थ निकाला गया है, उसने केवल पढ़ाई के लिए सख्ती की । लेकिन राहुल गांधी, प्रियंका बाड्रा , अखिलेश यादव, जयंत चौधरी, असदुद्दीन ओवैसी सहित अनेक नेता कूद पड़े हैं और एक शिक्षिका और छात्र का मामला मुस्लिम छात्र के विरुद्ध हिंदू शिक्षिका की सांप्रदायिक घृणा का मामला बना दिया गया। दूसरी ओर जो वाकई मजहबी घृणा का मामला है उसे पर इनमें किसी का बयान नहीं आया है।
प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करने को शिक्षक- शिक्षिकाएं डांटतै हैं, थोड़ी पिटाई भी करते हैं, कान पकड़ कर उठक – बैठक कराते हैं या कई बार उसके सहपाठियों से भी दंड दिलवाते हैं। कानूनी रूप से यह गलत हो, पर सामान्य व्यवहार है और बच्चों के हित में किया जाता है। इसके पीछे दुश्मनी या घृणा भाव सामान्यतः नहीं होता। कोई सिरफिरा या मानसिक रोगी हो तो अलग बात है। मुजफ्फरनगर की घटना को सामान्य माना जाना चाहिए था। किंतु भारत में एक ट्रेन सीट को लेकर हुई हिंसा मजहबी भीड़ की हिंसा बन जाती है। दूसरी और शुद्ध मजहबी नफरत की घटना के साथ सामान्य अपराध मानकर व्यवहार किया जाता है। मुजफ्फरनगर की घटना का सच स्थानीय लोगों को पता चला। इस कारण लोगों ने विरोध प्रदर्शन नहीं किया। बच्चे के अभिभावक और शिक्षिका के बीच बातचीत हुई। सबको सच्चाई समझ में आ गई। बावजूद कोई नेता, एक्टिविस्ट, बड़े पत्रकार अपनी गलती स्वीकारने को तैयार नहीं है। यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। देश के बड़े-बड़े नेता और नामचीन लोग ही बगैर सच्चाई का पता लगाए किसी एक पार्टी, संगठन परिवार या सरकार के विरुद्ध अपने गुस्से या घृणा के कारण तिल का ताड़ बना देंगे तो कभी भी देश में आग लग सकती है। जब तक सच सामने आएगा तब तक लोग अपना ही बहुत कुछ ध्वस्त कर चुके होंगे। यही लोग कठुआ पर न केवल चुप रहेंगे बल्कि पूछने पर कहेंगे कि पुलिस जांच कर रही है, उसे अपना काम करने देना चाहिए। इनसे पूछा जाना चाहिए कि यही बात मुजफ्फरनगर या ऐसी घटनाओं के संदर्भ में लागू क्यों नहीं होती?
जिन्हें अपने छात्र-छात्राओं के भविष्य या शिक्षा व्यवस्था की चिंता होगी उनकी प्रतिक्रिया ऐसी नहीं हो सकती। वे हर ऐसी घटना पर ठंढे मन से विचार कर प्रतिक्रिया देंगे ,कार्रवाई की मांग करेंगे तथा सुधार के लिए कोशिश भी करेंगे। कठुआ के लोग बानी में सड़कों पर उतरे और उन्होंने केवल इन दो शिक्षकों के विरुद्ध ही कार्रवाई की मांग की। किसी ने आम मुसलमान या विद्यालय में काम करने वाले दूसरे मुसलमान शिक्षकों के विरुद्ध मामला नहीं बनाया। इस तरह वरिष्ठ नेताओं से ज्यादा उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार तो आम लोगों का हुआ। इतने गुस्से के बावजूद किसी समुदाय के विरुद्ध कोई नारेबाजी नहीं, हिंसा नहीं। दूसरी ओर मुजफ्फरनगर की घटना को जैसा खतरनाक स्वरूप दिया गया कि उसमें यह आम लोगों की विवेकशीलता है कि हिंसा पर उतारू नहीं हुए अन्यथा उसका पूरा माहौल बनाने की कोशिश हो चुकी थी।
तो इन घटनाओं का निष्कर्ष क्या है? कठुआ की घटना सभी समुदाय के शिक्षकों के लिए सीख है कि वह जब विद्यालय में आएं तो उनके अंदर किसी मजहब को लेकर नफरत या गुस्सा नहीं होनी चाहिए। कोई व्यवस्था किसी के मन में झांक कर नहीं पहचान कर सकती कि उसके अंदर क्या चल रहा है। इसलिए यह सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था का विषय है। विद्यालय से समाज का जुड़ाव तथा प्रशासनिक स्तर पर ऐसा ढांचा हो कि इन दो शिक्षकों की तरह कोई ऐसा करने का दुस्साहस न करे। एक शिक्षक से अत्यधिक आत्मानुशासन, आत्मसंयम और संतुलन की अपेक्षा की जाती है। भारतीय सभ्यता में शिक्षक को श्रेष्ठतम स्थान इसीलिए दिया गया है क्योंकि वह अपनी जीवन शैली से छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है। यह बात आज के शिक्षकों के प्रशिक्षण के साथ-साथ समय-समय पर उनके अभ्यास वर्ग में बार-बार बताया जाना आवश्यक है। हमारे नेताओं, एक्टिविस्टों और मीडिया के भी लोगों को समझना चाहिए कि अपने राजनीतिक विचार के अनुसार इस तरह की घटनाओं पर प्रतिक्रिया बेकार हुए देश का अहित कर रहे हैं। उसका प्रभाव अच्छा नहीं होता। जरा सोचिए, मुजफ्फरनगर की तृप्ति त्यागी के बाद क्या कोई शिक्षक-शिक्षिका किसी विद्यार्थी द्वारा होमवर्क न करने या पाठ को याद न करने पर दंड देने या दिलवाने का साहस करेगा? तो फिर नुकसान किसका होगा?

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