“द किंग ऑफ ऑल द वर्ल्ड (एल रे दे तोदो एल मूंदो) वो फ़िल्म है जिससे 12 साल के अंतराल के बाद फिक्शन की दुनिया में फ़िल्मकार कार्लोस सौरा की वापसी हो रही है। इन 12 सालों में, सौरा म्यूज़िकल डॉक्यूमेंट्रीज़ बना रहे थे, वे संगीत की दुनिया में मगन थे जिससे उनको सबसे ज्यादा प्यार है।” ये बातें कहीं ‘द किंग ऑफ ऑल द वर्ल्ड’ के निर्माता यूसेबियो पाचा ने, जिनकी इस फ़िल्म ने 20-28 नवंबर, 2021 के दौरान गोवा में आयोजित भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के 52वें संस्करण की शुरुआत की है। यूसेबियो पाचा आईएफएफआई के आयोजन के दौरान आज 21 नवंबर 2021 को सहायक निर्माता मिर्ता रेनी के साथ गोवा में एक प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे।
ये फ़िल्म कार्लोस सौरा द्वारा लिखी और निर्देशित संगीतमय त्रित्व फ़िल्मों की कड़ी में आखिरी है। इस ट्रिलजी की पिछली दो फ़िल्में कारमेन (1983) और टैंगो (1998) हैं। यूसेबियो पाचा बताते हैं कि म्यूज़िकल डॉक्यूमेंट्रीज़ को लेकर उनका जबरदस्त रचनात्मक जुनून ही है जिसके कारण फिक्शन फ़िल्मों से उनका 12 साल लंबा अंतराल हो गया।
संगीत और नृत्य के लिए सौरा के इसी जुनून ने इस म्यूज़िकल फ़िल्म में भी एक प्रमुख भूमिका निभाई, इस पर विचार करते हुए यूसेबियो पाचा कहते हैं: “द किंग ऑफ ऑल द वर्ल्ड में सब प्रकार का संगीत एक साथ जोड़ा गया है, चाहे लोकगीत हो, पारंपरिक या आधुनिक संगीत हो – चाहे मेक्सिको से हो और लैटिन अमेरिका के अन्य हिस्सों से, ताकि इस फ़िल्म को एक मजबूत म्यूज़िकल संगम बनाया जा सके।”
ये फ़िल्म विश्व सिनेमा के वयोवृद्ध दिग्गजों, कार्लोस सौरा और ऑस्कर विजेता सिनेमैटोग्राफर विटोरियो स्टोरारो के बीच सातवां कोलेबोरेशन है जिन्हें आईएफएफआई-51 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यूसेबियो पाचा ने उन दोनों की साथ बिताई अविश्वसनीय यात्रा और शानदार दोस्ती के बारे में बात की। उन्होंने कहा, “वे एक दूसरे के पूरक हैं। उनका रिश्ता इतना मजबूत हैं कि वे बिना कहे समझ जाते हैं कि वह एक-दूसरे से क्या चाहते हैं।”
ये फिल्म जबरदस्त संगीत, बेजोड़ नृत्य रूपों और हैरान करने वाले दृश्यों का एक कोलाज है, जो सौरा की फ़िल्मों के तमाम तत्वों को प्रस्तुत करती है, जहां निर्देशक ने ‘थोड़ी’ सी हिंसा डालकर, हकीकत को कल्पना के साथ जोड़कर, अतीत को वर्तमान के साथ जोड़कर, समय की अभिव्यक्ति को दिखाने की कोशिश की है।
फ़िल्म में होने वाली घटनाओं के संदर्भ में जहां हिंसा एक सहायक भूमिका निभाती है, उस सिलसिले में सहायक निर्माता मिर्ता रेनी ने जोर देकर कहा कि ये फ़िल्म न तो राजनीतिक है और न ही रूपक है। उन्होंने कहा, “ये फ़िल्म केवल उस हिंसा के बारे में नहीं है जो मेक्सिको में होती है, बल्कि ये उस हिंसा के बारे में भी है जिसका सामना हर व्यक्ति कर सकता है। इसका किसी भी राजनीतिक विचार से कोई संबंध नहीं है। एक तरह से ये लैटिन अमेरिका और मैक्सिको के इतिहास की कहानी है।”
स्पेन और मेक्सिको के बीच सह-निर्माण के तौर पर ये फ़िल्म उन धागों को टटोलना चाहती है जो इन दोनों देशों को एक साथ जोड़ते हैं। इस फ़िल्म में दोनों देशों के अभिनेताओं और नृतकों की शानदार कास्ट नजर आती है। इसमें एना दे ला रेगेरा, मैनुअल गार्सिया रूल्फो, डेमियन अल्काज़ार, एनरीके आर्से, मेनोलो कार्दोना, इसाक हर्नांदेज़ और ग्रेटा एलिसोंदो जैसे कलाकारों ने काम किया है।
पहली बार भारत की यात्रा पर आई इस टीम ने उन्हें और उनकी फ़िल्म को इस फ़िल्म समारोह का हिस्सा बनाने के लिए आईएफएफआई का तहेदिल से शुक्रिया अदा किया। निर्माता पाचा ने कहा, “निर्देशक सौरा और मैं बहुत अच्छे दोस्त हैं और हमें लगता है कि मेक्सिको और भारत कई चीजों में समान हैं, चाहे वो रंग हों, संगीत या संस्कृति।”
इन संदर्भों में भारत के साथ और अधिक सहयोग करने की इच्छा व्यक्त करते हुए यूसेबियो पाचा ने कहा कि उन्हें लगता है भारतीय फ़िल्में बहुत ज्यादा भारत के भीतर ही रहती हैं और दुनिया को ये बताने की जरूरत है कि ये फ़िल्में कितनी जबरदस्त हैं। उन्होंने कहा, “फ़िल्मों के अंतर्राष्ट्रीय सह-निर्माण के लिए पहल करना अभी समय की आवश्यकता है। इस तरह से कलाकारों, सिनेमा और संस्कृति का आदान-प्रदान आसानी से किया जा सकता है।”
फ़िल्म की कहानी: मैनुअल अपना अगला शो तैयार कर रहा है, जो एक म्यूज़िकल शो बनाने के बारे में है। वो इसके निर्देशन के लिए अपनी पूर्व पत्नी और प्रसिद्ध कोरियोग्राफर सारा की मदद मांगता है। कास्टिंग में, युवा इनेस एक उभरती सितारा के रूप में नजर आती है, साथ ही वो अपने पिता का सामना भी कर रही है जो स्थानीय माफिया है। रिहर्सल के दौरान डांसर्स में जोश और तनाव बढ़ता है। बेहद ताकतवर मैक्सिकन संगीत इसका स्वर तय करता है और एक ऐसा प्ले सामने आता है जिसमें त्रासदी, कल्पना और हकीकत आपस में जुड़े होते हैं।