आप ये मानेंगे कि किसी भी इंसान की माली हालात चाहे कितनी ही खस्ता क्यों न हो पर उसके जीवन का एक बड़ा सपना होता है कि उसकी अपनी भी एक छत हो। उसका अपना एक अदद घर हो, जिसे वह अपना आशियाना कह सके। और, इस सपने को साकार करने की दिशा में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने 2017-18 के आम बजट में बहुत से अहम कदम उठाए हैं और यह आशा की किरण गरीबों और मेहनतकश भारतीयों के मन में जगा ही दी है कि जल्दी ही उनका सपना साकार हो जायेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो 2022 तक हरेक भारतीय को घर देने का वादा कर ही दिया हैं। उस वादे को पूरा करने की दिशा में अरुण जेटली ने इस बार की बजट में दो दूरदर्शी कदम उठाए हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में सस्ते घरों को“इंफ्रास्ट्रक्चर” का दर्जा दे दिया है। इससे गरीबों के लिए सस्ते घरों की आपूर्ति में तेजी से वृद्धि की संभावना तेजी से बढ़ेगी। सरकार की चाहत है कि साल 2022 तक गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले सभी लोगों को भी अपना आवास हो जाये। इस लक्ष्य को पाने में बजट का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा। एक बात और। पहले सस्ते घरों की श्रेणी में मात्र चार महानगरों में केवल 30 वर्ग मीटर तक के घर ही शामिल होते थे। इसके साथ-साथ, पूरे भारत के अन्य शहरों में यह एरिया 60 मीटर था, इसमें पहले पूरा बिल्ड अप एरिया गिना जाता था। बिल्ड अप एरिया का मतलब वह एरिया होता है, जिस पर पूरा मकान बना होता है तथा जिसमें नींव, दीवारें और सीढ़ियां आदि भी शामिल होती हैं। अब इसको कारपेट एरिया में बदल दिया गया है। कारपेट एरिया यानि चार दीवारों के बीच घिरा रहने वाला एरिया। इस दूसरे कदम के चलते लोगों को अब सस्ते दर पर ही पहले से बड़े मकान मिल पाने का रास्ता साफ हो गया है।
अब सुरक्षित ग्राहक
दरअसल मौजूदा एनडीए सरकार देश के हाऊसिंग सेक्टर में फैली अव्यवस्था और गड़बड़ियों को दूर करने के लिए निरंतर पहल कर रही है। ये पहले ही रियल एस्टेट बिल को मंजूरी दिलवा चुकी है। इसमें रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया है। अब बिल्डरों को अपनी परियोजनाएं समय पर पूरी करने के लिए एक अलग बैंक खाते में निर्धारित धनराशि जमा करनी होगी। कानून का उल्लंघन करने वाले बिल्डरों पर तगड़ा जुर्माना भी लगेगा। अब तो यह दिखने ही लगा है कि लगातार निरंकुश हो गए बिल्डरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी हो रही है। उनके भोले-भाले ग्राहकों को लूटने के दिन अब बीत गए हैं।
लीजिए हाऊसिंग लोन
यानी सरकार का रुख साफ भी है और दृढ़ भी है देश के हाऊसिंग सेक्टर में सुधार लाना और सस्ते घर उपलब्ध करवाना ही है हर कीमत पर। इसी क्रम में बजट में व्यक्तिगत हाउसिंग लोन को बढ़ावा देने के लिए नेशनल हाउसिंग बैंक के जरिए 20 हजार करोड़ रुपये की राशि गरीबों में बांटने का प्रावधान भी किया है। यह राशि बतौर होम लोन, अगले वित्त वर्ष के दौरान ही वितरित कर दी जाएगी। अब हिसाब लगाया जाये तो दस लाख के हिसाब से भी एक बेघर को लोन दिया जाये तो दो लाख गरीबों को लाभ तो हो ही जाएगा।
होगा मोटा निवेश
वित्त मंत्री जेटली ने भी यह उम्मीद जताई है कि इन फैसलों से हाउसिंग सेक्टर में अब जम कर देशी और विदेशी निवेश भी होगा। मुझे रियल एस्टेट सेक्टर के कई विशेषज्ञ बता रहे हैं कि आम बजट ने सबसे ज्यादा फोकस हाउसिंग सेक्टर पर ही रखा है। एक तरफ होम लोन सस्ता होगा और दूसरी तरफ प्रत्यक्ष कर में प्रोत्साहन मिलने से रियल एस्टेट कंपनियां ज्यादा मकान बनाने की परियोजनाओं की शुरुआत करेंगी। सरकार ने उन बिल्डरों का भी ख्याल रखा है जिनके पास तैयार मकानों का स्टॉक फिलहाल मौजूद है। मौजूदा नियम के मुताबिक तैयार होने के बाद भी अगर मकान नहीं बिकते हैं तब भी कंपनियों को एक तरह का टैक्स देना पड़ता है। अब इन्हें मकान तैयार होने के एक वर्ष बाद तक कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा।
यकीन मानिए कि बुनियादी उद्योग का दर्जा मिलने के बाद फंड के लिए तरसतीं और तरह-तरह के जुगाड़ और तिकड़मों से फंड जुटाती हाउसिंग सेक्टर कंपनियों को कई तरफ से फंड मिलने लगेगा। मसलन, अब यह कंपनियां पेंशन फंड व बीमा कंपनियों से भी कर्ज ले सकेंगी। मेरा राजधानी से सटे नोएड़ा में आवास है। यहां सैकड़ों बिल्डर ग्राहकों को लूट रहे थे, कई स्तरों पर। इस कारण से साफ-सुथरे तरीके से काम करने वाले बिल्डरों की भी छवि खराब हो रही थी। मेरे पास लगातार देशभर से बिल्डरों के ग्राहकों को परेशान करने को लेकर शिकायतें आती रही हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश से तो आती ही थीं। अब तो गुवाहाटी, त्रिपुरा, शिलौंग, कलकत्ता, रांची, भोपाल और मुंबई तक से परिचित या परिचितों के परिचित डेरा जमाकर बैठ जाते थे, मदद के लिए। क्योंकि; दिल्ली से निकट होने के कारण नोएडा में देशभर में रहने वाले लोगों ने अपने फ्लैट बुक करा रखे थे। पर मुझे लगता है कि अब सब कुछ ठीक होने का वक्त आ गया है।
बहरहाल, अब रियल एस्टेट क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ेगा जिससे सबके लिए आवास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा। अब तक रीयल एस्टेट सेक्टर लगभग अनियमित सा ही रहा हैं। इसमें बिल्डरों की कोई जवाबदेह नहीं रही है। हां, अब माना जा सकता है कि रियल एस्टेट सेक्टर में जवाबदेही आएगी और ग्राहकों के हितों को देखा जाएगा। दिल्ली से सटे एनसीआर में एक्टिव बिल्डरों ने तो अंधेर मचा कर रखा था। ये वादा करने के बाद भी अपने ग्राहकों को वक्त पर घर नहीं दे रहे थे। मैं यह तो नहीं कहता कि सारे खराब है। पर ज्यादातर का कामकाज पारदर्शी नहीं रहा। अभी एनसीआर में ज्यादातर प्रोजेक्ट की डिलवरी में 19 से 25 महीनों की देरी हो रही है। कुछ तो 5-7 वर्श पीछे चल रहे हैं। ग्राहकों को हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ रहा है और धरना-प्रदर्शन तक करना पड़ रहा है। यह सब किसी को अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे फंस जाने पर चक्कर से बाहर निकलने के लिए करना पड़े तो यह किसी भी सभ्य समाज का पारदर्शी व्यवहार या कारेाबार तो हरगिज नहीं कहा जा सकता। औसतन, फरीदाबाद में 25 महीने, गाजियाबाद में 19 महीनें, ग्रेटर नोएडा में 24 महीने और गुड़गांव में 22 महीने की देरी से काम हो रहा है। जाहिर है, यह सारी स्थिति उन तमाम लोगों के लिए बेहद कष्टदायी है, जो अपने पैसे फंसाकर अपने ही घर की डिलवरी का इंतजार कर रहे हैं।
अब वक्त आ गया है कि रीयल एस्टेट कंपनियों को ग्राहकों के पक्ष में खड़ा होना होगा। उन्हें पारदर्शी व्यवहार करना ही होगा। मुझे कुछ समय पहले एक प्रमुख रियल एस्टेट एडवाइजरी कंपनी के सीईओ बता रहा था कि रीयल एस्टेट कंपनियां 300 से 500 परसेंट के मर्जिन पर काम करती थीं। उसके उपर से विज्ञापनों का भारी भरकम खर्च अलग से। अब जरा देख लीजिए कि इन हालातों में बेचारा ग्राहक कहां जाएगा, अगर ये अपने घरों के दाम तर्कसंगत तरीके से तय करें तो घरों के दाम सीमाओं में ही रहगें और ज्यादा से ज्यादा मेहनतकश और नौकरीपेशा लोगों के अपना घर होने का सपना जल्द ही पूरा हो सकेगा।
धूर्त बिल्डर नहीं रहेंगे
नई परिस्थितियों में वे बिल्डर तो बाजार से गायब ही हो जाएंगे जिनका एकमात्र लक्ष्य लूट-खसोट करना रहता है। उनमें से अनेकों धूर्त नए कानून के मुताबिक जेल की हवा खायेंगें। ये विज्ञापनों पर बहुत मोटा खर्च करते हैं। अब तो इन्हें अपने प्रोजेक्ट वक्त पर पूरे करने ही होंगे। देरी के कारण अब तक इनकी मनमानी से करोड़ों लोगों को दिक्कत हुई है, अब उनके चेहरे पर मुस्कान आने का वक्त आ गया है।
अफसोस यह है कि देश के हाऊसिंग सेक्टर में अभी सस्ते घर बनाने की दिशा में अबतक ठोस पहल नहीं हो रही थी। हां,लम्बी-चौड़ी बातें जरूर हो रही हैं। आप खुद सोचिए कि क्या आज की स्थिति में ठीकठाक नौकरी पेशा करने वाले इंसान भी मेट्रो या दूसरे या तीसरी श्रेणी के शहर में भी घर बनाने की हालत में है, लगभग नहीं।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि “अफोर्डेबल हाउसिंग” शब्द सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है। पर सस्ते घर बनाने वाले बिल्डर हैं कहां, और, कहां हैं बैंक, इसका उत्तर अबतक तो नकारात्मक ही मिलता रहा है। पर अब सरकार अफोर्डेबल हाउसिंग को गति देने का मन बना चुकी है। उसका लक्ष्य सबको 2022 तक सबको घर दिलवाने का है।
अगर बात पिछले कुछ दशकों के दौर की हो तो हमारे देश में अर्फोडेबल हाऊसिंग को गति देने के लिए जितनी गम्भीरता दिखाई जानी चाहिए थी, उसका अभाव ही दिखा। हालांकि, अब पिछले दो-ढाई सालों में हालात सुधर रहे हैं। दुर्भाग्यवश उस इंसान के लिए तो स्पेस सिकुड़ता ही जा रहा था, जिसकी आर्थिक हालत पतली थी। रियल एस्टेट सेक्टर के सभी हितधारकों ( स्टेक होल्डर्स) को एक बीएचके के भी घर बनाने होंगे ताकि कम आय वालों का भी गुजारा हो सके। दिल्ली में एक दौर में दिल्ली विकास प्राधिकरण(डीडीए) एलआईजी फ्लैट खूब बनाती थी। लेकिन, पिछले कुछ दशकों में तो डीडीए भी एलआईजी घर बनाने को लेकर गंभीर नहीं थी। बिल्डर बिरादरी तो सिर्फ लक्जरी फ्लैट्स का ही निर्माण करना चाहते हैं। कारण यह है कि इसमें मुनाफा ज्यादा है। ऐसी हालात में गरीबों की कौन सुनेगा,
और हाऊसिंग सेक्टर की बात करते हुए इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की अनदेखी नहीं की जा सकती। जाहिर तौर पर हरेक घर लेने वाला वहां पर घर लेने को उत्सुक रहता है, जहां पर इन्फास्ट्रक्टर यानि कि बिजली, पानी, सड़क और यातायात आदि की मूलभूत सुविधायें बेहतर हों, जहां पर स्कूल, यातायात व्यवस्था कालेज, अस्पताल पहले से हैं। भारत में अफोर्डेबल और लक्जरी दोनों ही तरह के घरों के ग्राहक भारी तादाद में मौजूद हैं। अगर बिल्डर बिरादरी की नीयत साफ रहे तो उन्हें ग्राहकों का मिलना कभी भी कठिन नहीं होगा। पर आमतौर पर ग्राहकों के हक के लिए सोचने वाले कम ही मिलते हैं। रियल एस्टेट फर्म भी मुनाफे से हटकर कुछ नहीं सोचते। बातें भले ही लम्बी-चौड़ी क्यों न कर लें।
बहरहाल, मोदी सरकार अब रियल एस्टेट सेक्टर को गति देने पहल कर चुकी है। अब बजट में भी इस सेक्टर पर तगड़ा फोकस रखा गया है। अब उम्मीद की जा सकती है इस सेक्टर में स्थितियां तेजी से सुधरेंगी। ग्राहकों को उनका वाजिब हक मिलेगा और सबको अपना आशियाना मिल सकेगा।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)