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नई शिक्षा नीति-मातृभाषा में पढ़ोगे तो बनोगे गुरुदेव और राजेन्द्र प्रसाद

नई शिक्षा नीति-2020 की घोषणा हो गई है। इसके विभिन्न बिन्दुओं पर बहस तो  होगी ही । पर इसने एक बड़े और महत्वपूर्ण दिशा में कदम बढ़ाने का इरादा व्यक्त किया है। उदाहरण के रूप में नई शिक्षा नीति में पाँचवी क्लास तक मातृभाषास्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को ही पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे तक भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी स्तर  से होगी।  नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को विद्यार्थियों पर जबरदस्ती थोपा नहीं जाएगा।

यह बार-बार सिद्ध हो चुका है कि बच्चा सबसे आराम से सहज भाव से अपनी भाषा में पढाए जाने पर उसे तत्काल ग्रहण करता है । जैसे ही उसे मातृभाषा की जगह किसी अन्य भाषा में पढ़ाया जाने लगता है, तब ही गड़बड़ चालू हो जाती है। जो बच्चे अपनी मातृभाषा में शुरू से ही पढ़ना चालू करते हैं उनके लिए शिक्षा क्षेत्र में आगे बढ़ने की संभावनाएं अधिक प्रबल रहती हैं । यानि बच्चे जिस भाषा को घर में अपने अभिभावकों, भाई-बहनों, मित्रों के साथ बोलते हैं उसमें ही उन्हें पढ़ने  में उन्हें अधिक सुविधा रहती है । पर हमारे यहाँ तो कुछ दशकों से अंग्रेजी के माध्यम से स्कूली शिक्षा लेने-देने की महामारी ने अखिल भारतीय स्वरुप ले रखा था । क्या आप मानेंगे कि जम्मू-कश्मीर तथा नागालैंड ने अपने सभी स्कूलों में शिक्षा का एकमात्र माध्यम अंग्रेजी ही किया हुआ है? महाराष्ट्रदिल्लीतमिलनाडूबंगाल समेत कुछ  अन्य राज्यों में छात्रों को विकल्पदिए जाते रहे कि वे चाहे तो अपनी पढाई का माध्यम अंग्रेजी रख सकते हैं । यानि उन्हें अपनी मातृभाषा  से दूर करने के सरकारी स्तर पर ही प्रयास हुए लेकिन, यह स्थिति अब ख़त्म होगी । 

कोई भी देश तब ही तेजी से आगे बढ़ सकता हैजब उसके  नौनिहाल अपनी   जुबान में ही पढ़ाई शुरू करने का सौभाग्य पाते हैं। औरबच्चों को नर्सरी से पांचवी कक्षा तक की प्रारंभिक शिक्षा यदिउसी भाषा में दी जाय जो वह अपने घर में अपनी माँ और दादा-दादी से बोलना पसंद करता है तो इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता 

आपको जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए खास जगह बनाने वाली अनेक हस्तियां मिल जाएंगी जिन्होंने अपनी प्राइमरी शिक्षा अपनी मातृभाषा में ही ग्रहण की। इनमें गुरुदेव रविन्द्र नाथ टेगौर से लेकर प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और बाबा साहेब अंबेडकर शामिल हैं। गुरुदेव रविन्द्र नाथ टेगोर की शुरूआती का शिक्षा का श्रीगणेश अपने उत्तर कलकत्ता के घर में ही हुआ। उनके परिवार में बांग्ला भाषा ही बोली जाती थी। उन्होंने जिस स्कूल में दाखिला लियावहां पर भी पढ़ाई का माध्यम बांग्ला ही था। यानी बंगाल की धरती  की भाषा। देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद की आरंभिक शिक्षा बिहार के सीवान जिले के अपने गांव जीरादेई में ही हुई। उधर तब तक अंग्रेजी का नामोनिशान भी नहीं था। उन्होंने स्कूल में हिन्दीसंस्कृत और फारसी पढ़ी। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा कोलकात्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से ली। बाबा साहेब की प्राथमिक शिक्षा सतारामहाराष्ट्र के एक सामान्य स्कूल से हुई। उधर पढ़ाई का माध्यम मराठी था। भारत की चोटी की इंजीनियरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सक्रिय लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमेन रहे ए.वी.नाईक का संबंध दक्षिण गुजरात से है। उन्हें अपने इंदहल गांव के प्राइमरी स्कूली में दाखिला दिलवाया गया। वहां पर उन्होंने पांचवीं तक गुजरातीहिन्दीसामाजिक ज्ञान जैसे  विषय पढ़े। अंग्रेजी से उनका संबंध स्थापित हुआ आठवीं कक्षा में आने के बाद। टाटा समूह के नए चेयरमेन नटराजन चंद्रशेखरन के नाम की घोषणा हुई। तब कुछ समाचार पत्रों ने उनका जीवन परिचय देते हुए लिखा कि चंद्रशेखरन जी ने अपनी स्कूली शिक्षा अपनी मातृभाषा तमिल में ग्रहण की थी। उन्होंने स्कूल के बाद इंजीनियरिंग की डिग्री रीजनल इंजीनयरिंग कालेज (आरईसी)त्रिचि से हासिल की। यह जानकारी अपने आप में महत्वपूर्ण थी। खास इस दृष्टि से थी कि तमिल भाषा से स्कूली शिक्षा लेने वाले विद्यार्थी ने आगे चलकर अंग्रेजी में भी महारत हासिल किया और करियर के शिखर को छुआ।

बेशकएड गुरु और गीतकार प्रसून जोशी के पिता उत्तर प्रदेश में एक सरकारी स्कूल के अध्यापक थे। इसलिए उन्होंने  जगह-जगह तबादले होते रहते थे। इसके चलते प्रसून ने मेरठगोपेश्वरहापुड़ वगैरह के सरकारी स्कूलों में विशुद्ध हिन्दी माध्यम से अपनी स्कूली शिक्षा लेनी शुरू की थी। वे कहते है कि अगर उन्होंने स्कूली दिनों में हिन्दी का बढ़िया तरीके से अध्ययन न किया होता तो वे एड की दुनिया में अपने पैर नहीं जमा पाते।

भारत में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने की अंधी दौड़ के चलते अधिकतर बच्चे असली शिक्षा को पाने के आनंद से वंचित रह जाते हैं। दिक्कत ये है कि अधिकतर अंग्रेजी के मास्टरजी तो अंग्रेजी की व्याकरण से स्वयं ही वाकिफ नहीं होते। बहरहालआप असली शिक्षा का आनंद तो तब ही पा सकते हैं,जब आपने  कम से कम पांचवीं तक की शिक्षा अपनी मातृभाषा में हासिल की हो। ऐसे सौभाग्यशाली लोगों में मैं भी शामिल हूँ और मुझे इस बात पर गर्व है ।

स्पष्ट कर दूं कि अंग्रेजी का कोई विरोध नहीं है। अंग्रेजी शिक्षा या अध्ययन को लेकर कोई आपत्ति भी नहीं है। मसला यह है कि हम अपनी मातृभाषाचाहे हिन्दीतमिलबांग्ला असमिया, उड़िया, तेलगू, मलयालम, मराठी, गुजरती में प्राइमरी स्कूली शिक्षा देने के संबंध में कब गंभीर होंगेअब नई शिक्षा नीति के लागू होने से स्थिति बदलेगी।  अभी तक तो हम बच्चों को सही माने में शिक्षा तो नहीं दे रहे थे। हांशिक्षा के नाम पर प्रमाणपत्र जरूर दिलवा देते थे। शिक्षा का अर्थ है ज्ञान। बच्चे को ज्ञान कहां मिलाहम तो उन्हें  नौकरी पाने के लिए तैयार करते रहते हैं। हमारे य़हां पर दुर्भाग्यवश स्कूली या कॉलेज शिक्षा का अर्थ नौकरी पाने से अधिक कुछ नहीं रहा है। स्कूली शिक्षा में बच्चों को मातृभाषा से इतर किसी अन्य भाषा में पढ़ाना उनके साथ अन्याय करने से कम नहीं है। यह मानसिक प्रताड़ना के अतिरिक्त और क्या है 

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या होतैत्तिरीय उपनिषद तथा अन्य शास्त्रों में शिक्षा का प्रथम उद्देश्य शिशु को मानव बनाना हैदूसराउसे उत्तम नागरिक़ तथा तीसरापरिवार को पालन पोषण करने योग्य और अंतिम सुख की प्राप्ति कराना है। हमारी संस्कृति में तो जीवन के चार पुरुषार्थधर्मअर्थकाममोक्ष के आधार में यह उद्देश्य हैं। क्या जो शिक्षा हमारे देश के करोड़ों बच्चों को मिलती रही है उससे उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति हो  हुईनहीं।  इधर तो व्यवसाय या नौकरी ही शिक्षा का उद्देश्य रहा । जब इस तरह की सोच के साथ हम शिक्षा का प्रसार-प्रचार करेंगे तो मातृभाषा की अनदेखी स्वाभाविक ही है। बहरहालअब लगता है कि हालात बदलेंगे।

-आर.के. सिन्हा

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

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