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नक्सल समस्या- हल कहाँ है?

सम्पूर्ण विश्व में इस्लाम धर्म आतंकवाद के नाम से प्रचलित है और उसको सर्वाधिक, क्रूर, हिंसक व अमानवीय माना जाता है, परन्तु आंकड़ों के अनुसार, नक्सल अथवा माओवादी, कम्युनिस्ट विधारधारा सर्वाधिक हिंसक और क्रूर है। सम्पूर्ण विश्व में जितनी भी निर्मम हत्याए इन लोगों के द्वारा की गई हैं, उतनी हत्याएं किसी भी आतंकवादी संगठन के द्वारा कभी भी नहीं हुई हैं। जोसेफ स्टालिन और माओ त्से तुंग नक्सल नेता, इन हत्याओं के सिरमोर रहें हैं और उन्होंने अपने जीवनकाल में एक साथ 10 करोड़ लोगो की हत्या कर विश्व रिकार्ड बनाया था। कम्बोडिया के कम्यूनिस्ट शासक पोल पोट ने अपने देश की 1/4 जनसंख्या को हिंसक और निर्ममता के साथ मारने का ऐसा नृशंस कांड किया, जिसकी क्षमा किसी भी स्तर पर सम्भव नहीं है।
भारत में कम्यूनिस्टों ने साधारण जनता को भ्रमित करके ऐसा मायाजाल उत्पन्न किया था कि कुछ समय के लिए ये लोग भारत के शीर्ष सांसद बनने के स्वप्न देखने लगे थे, उस समय में पंजाब से लेकर बंगाल, त्रिपुरा से केरल तक उन्होने नरसंहार का वीभत्स जाल फैलाया परन्तु भारत की समझदार जनता ने उनके नापाक इरादों को समझकर उनका समूल नष्ट करने की ठान ली। वर्तमान स्थिति यह है कि अब उनका अस्तित्व केरल तथा बंगाल के कुछ हिस्सो तक सीमित होकर रह गया है। इनकी विचारधारा से सहमत नक्सली संगठनो के कुछ लोग मीडिया में तथा कुछ छात्रसंघ के सदस्यों के रूप में पाए जाते हैं तथा समय-समय पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। दिनांक 3 अप्रैल 2021 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में इन नक्सली कम्युनिस्टो ने सुरक्षाबलों के 22 जवानों की नृशंस हत्या कर देश को झकझोर दिया। इन नक्सली कम्युनिस्टो की कार्यशैली ऐसी है कि ये क्रूर हत्या करने के पश्चात भी स्थानीय जनता की सहानुभूति प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। ये नक्सली लोग अक्सर इसी प्रकार की घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं और भारत के लिए विकट समस्या बने हुए हैं। लगभग वर्ष 1960 में ये नक्सलवाद बंगाल के नक्सलबाढ़ी क्षेत्र से प्रारम्भ हुआ। तत्पश्चात चीन से प्रभावित होकर इस संगठन में 26 से अधिक छोटे-मोटे अन्य संगठन भी सम्मिलित हो गए। तब से लेकर आज तक ये नापाक संगठन भारत के 12 हजार से अधिक लोगो की हत्या कर चुका है, इसमें जवानों की संख्या ही 2700 है। ये नक्सली संगठन 12-13 वर्ष के बच्चों को अनाधिकृत रूप से  अपहरण कर उन्हें अपने संगठन में सम्मिलित कर लेते हैं और इन निरीह बच्चों के माता-पिता  के द्वारा विरोध किए जाने पर उनकी भी नृशंस हत्या कर देते हैं। इतना ही नहीं, ये छोटी-छोटी अबोध कन्याओं का अपहरण कर उनका दैहिक शोषण करते हैं। हमारे भारत देश में ही अरून्धती जैसे सिरफिरे लेखक इनको बंदूकधारी गाँधीवादी की संज्ञा देकर अपनी अज्ञानता को प्रदर्शित करते हैं। भारत देश इस आंतकवाद को समूल नष्ट करने हेतु लगभग 3 हजार करोड़ की धनराशि प्रतिवर्ष व्यय कर रहा है। अब समय आ गया है जब केन्द्र और राज्य सरकारे सम्मिलित रूप से इस विषय की गम्भीरता को समझकर  इनको समूल नष्ट करने हेतु कोई ठोस नीति अपनाकर साधारण जनता को इनसे मुक्ति प्रदान करें।

योगेश मोहनजी गुप्ता

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