फरवरी 28, 2001, दिल्ली की सर्द शाम थी। दिन भर एनडीए सरकार के बजट की सियासी गर्मी और गहमा गहमी रही थी। शाम होते होते मौसम का मिज़ाज सर्द हो गया। नयी दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के बड़े लॉन में सजे पंडाल में केंद्रीय मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, राज्यपालों, सांसदों, विधायकों, सभी दलों के दिग्गज नेताओं, पत्रकारों और देश की जानी मानी हस्तियों का जमावड़ा लगने लगा। दिन में संसद में बजट पर हुई तीखी बहस को भुला कर राजनेता एक दूसरे के गले मिल रहे थे, बतिया रहे थे। मौका था वरिष्ठ पत्रकार, पांचजन्य, नवभारत टाईम्स के पूर्व संपादक और भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राज्यसभा सांसद स्वर्गीय दीना नाथ मिश्र के पुत्र विकास मिश्र की रिसेप्शन का। अनोखा दृश्य था। दीना नाथ मिश्र जी के राजनीतिक, सामाजिक और पत्रकारीय रसूख ने विपरीत विचारधाराओं के नेताओं को भी एक साथ ला खड़ा कर दिया था। सभी केंद्रीय मंत्री, उप प्रधानमंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी दीना नाथ जी के नवविवाहित पुत्र और पुत्रवधु को आशीर्वाद देने पहुंच चुके थे। श्री मिश्र स्वयंसेवक, प्रचारक, पत्रकार और सासंद रहे, उनके साथ आडवाणी जी का जितना घनिष्ठ संबंध था उतना ही अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ था। अचानक हलचल मची अटल जी आ गए, अटल जी आ गए। एसपीजी और सुरक्षा एजेंसियों के नियमों के अनुसार तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के बैठने के लिए एक अलग स्थान निर्धारित था। एक छोटे से मंच पर उनके लिए विशेष सोफा रखा गया था। एसपीजी के सुरक्षा घेरे में अटल जी को मेजबान मिश्र जी ने सोफे पर सम्मान पूर्वक बिठाया। मैं अपनी छोटी बहन सुनीता शर्मा और उनके सात वर्षीय और पांच वर्षीय पुत्र कार्तिकेय और विनायक के साथ रिसेप्शन में मौजूद थी। दीना नाथ मिश्र जी के साथ मेरा पारिवारिक और आत्मीय संबंध था। वो ऐसे शख्स थे जिन्होंने मुझे दिल्ली में प्रिंट जर्नलिज्म में पहली नौकरी दिलवायी थी। इस समारोह में मेरी अभिन्न मित्र सीमा सुबन्ना और उनकी बेटी अपूर्वा भी थे। जैसा कि सभी अभिभावकों के साथ होता है समारोह, मेले ठेले, उत्सवों में वो जहां भी रहे अपने बच्चों पर नजऱ रखते हैं। अचानक हमने देखा कि अपूर्वा, कार्तिकेय और विनायक तेज़ी से उधर भागे जहां अटल जी बैठे थे। अटल जी के चारों तरफ एसपीजी कमांडों हाथों की चेन बना कर खड़े थे। जब तक हम वहां तक पहुंचते तब तक तीनों बच्चे फुर्ती के साथ एसपीजी कमांडों के हाथों के नीचे से निकल कर अटल जी के पास पहुंच गए। तब तक हम तीनों भी मंच के पास तक पहुंच चुके थे। हमारी सांस अटक गयी कि अब इनको बहुत डांट पड़ेगी। हम लाचार से खड़े थे लेकिन ये क्या अटल जी के चेहरे पर वैसी ही मुस्कान आयी जो किसी भी दादा और नाना के चेहरे पर अपने पोते-पोतियों और नाती-नातिन की शरारतें देख कर आती है। उन्होंने आंखों और हाथ से एसपीजी को ईशारा कर दिया। बेचारे कमांडों तनाव मुक्त हुए और उनके चेहरों पर भी मुस्कान आ गयी। तब तक अटल जी ने बच्चों से बातचीत शुरू कर दी थी। अपूर्वा ने बहुत जोर से और उत्साह से भरकर अटल जी से पूछा- ”आप निहारिका के नाना जी हो ना?’’ अटल जी के चेहरे पर फिर एक दुलार भरी मुस्कान आयी, उन्होंने भी बहुत गर्व के साथ कहा ”हां हां मैं निहारिका का नाना हूं।’’ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री को इस भरी सभा में एकमात्र अपूर्वा ही थी जो उन्हें निहारिका के नाना जी कह कर बुला सकती थी क्योंकि वो राजनीति और सत्ता के मायने नहीं समझती थी, उसके लिए अटल जी उसकी क्लासमेट निहारिका के नाना जी ही थे बस। अटल जी भी मानों कुछ पल के लिए बच्चों के साथ बच्चे हो गए। मेरे भांजे विनायक से उन्होंने एक कविता भी सुनी। मैं, मेरी बहन सुनीता और मेरी सहेली सीमा यकीन ही नहीं कर पा रहे थे कि देश का प्रधानमंत्री सार्वजनिक समारोह में भी अपनी नातिन के दोस्तों के साथ नाना की भूमिका में आ सकता है। इतने सरल इतने सहज थे अटल जी। ये घटना मैं आज भी जब कभी याद करती हूं तो हंसी आ जाती है और साथ ही उनके प्रति बहुत सम्मान भी मन में आता है। कोई और प्रधानमंत्री होता तो शायद तीनों बच्चों को डांट भी पड़ सकती थी, एसपीजी हाथ पकड़ कर वहां से हटा सकती थी।
अटल जी की दरियादिली, प्रेमपूर्ण स्वभाव से मैं वाकिफ नहीं थी ऐसा भी नहीं था। वर्तमान संसदीय कार्य राज्य मंत्री श्री विजय गोयल के साथ अटल जी के निवास पर यदा कदा जाना हुआ। अटल जी हमसे बहुत प्यार व बहुत स्नेह से मिलते। उनके चेहरे पर थिरकती गर्मजोशी भरी मुस्कान आश्वस्त करती थी। लगता नहीं था कि हम एक प्रधानमंत्री के साथ हैं। विजय गोयल जी के साथ निजी पारिवारिक संबंध होने के कारण उनके चुनावों में हम सक्रिय रहते थे। विजय गोयल जी के साथ अटल जी का अद्भुत संबंध था। और उनसे भी ज्यादा गुन्नु दीदी (नमिता भट्टाचार्य अटल जी की दत्तक पुत्री) के साथ विजय गोयल जी के मधुर संबंध हैं। यहां तक कि जब कईं बार अटल जी किसी बात पर अड़ जाते तो नमिता की सिफारिश लगवायी जाती जिसे टालना अटल जी के लिए नामुमकिन था। अटल जी के हर जन्मदिन पर विजय गोयल उस समय भी तरह तरह की बाल प्रतियोगिताएं आयोजित करवाते थे। बाद में जब अटल जी बीमार पड़ गए तो भजन संध्या करवाया करते थे। अटल जी के देहावसान के बाद विजय गोयल ने एक पुत्र के समान भूमिका निभायी। परिवार के साथ हर पल हर दम खड़े रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी जी से मेरे दिल्ली निवासी ताऊ स्वर्गीय धन प्रकाश शर्मा और मेरे तयेरे भाइयों राष्ट्र प्रकाश और धर्मवीर शर्मा की भी नज़दीकी थी। मेरे ताऊ जी संघ के स्वयं सेवक थे उनके पुत्र भी उनकी राह पर चले। राष्ट्र प्रकाश नौ साल प्रचारक रहे और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री भी रहे। धर्मवीर शर्मा भी संघ के स्वयं सेवक थे बाद में बीजेपी में गए और विधानसभा का चुनाव भी लड़ा। उनके पास तो यादों का अनमोल खजाना है। वो बताते हैं कि जब पांचजन्य पुरानी दिल्ली के नया बाज़ार स्थित तेज प्रैस से छपता था तो अटल जी नया बाज़ार में ही रहा करते थे। नया बाजार में ही उन दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दिल्ली मुख्यालय हुआ करता था। अटल जी वहीं रहा करते थे। खाने पीने के बहुत शौकीन थे, जैसे ही फुर्सत मिलती पुरानी दिल्ली की गलियों में खाने पीने पहुंच जाते। हर दुकानदार का नाम उन्हें याद रहता यहां तक कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वो ना तो पुरानी दिल्ली का स्वाद भूले और ना ही दुकानदारों के नाम। धर्मवीर शर्मा बताते हैं कि एक बार ईद के मौके पर पुरानी दिल्ली के एक मुस्लिम प्रतिनिधि मंडल को लेकर वो सात रेसकोर्स गए। वो बहुत सकुचाए हुए थे कि अब प्रधाननमंत्री बन गए हैं पता नहीं अच्छे से बात करेंगे या नहीं। लेकिन उनकी आशंका निराधार साबित हुई। अटल जी ने पुरानी दिल्ली के खाने पीने की बात शुरू कर दी और उन्हें हैरानी तो तब हुई जब अटल जी ने उनसे पूछा ”क्यों भाई धर्मवीर वो लाला पकौड़ीमल में अब भी उतनी ही अकड़ है जितनी तब हुआ करती थी?’’ अब मेरे कजिऩ का रहा सहा संकोच भी दूर हो गया। उन्होंने अटल जी को बताया कि लाला पकौड़ीमल जब तक जि़ंदा रहा उतनी ही अकड़ के साथ रहा। दरअसल लाला पकौड़ीमल की नया बांस खारी बावली में दूध, दही और लस्सी की दुकान थी। वो चार भाई थे। लस्सी बहुत अच्छी बनाते थे। बीस बीस ग्राहक अपनी बारी की इंतज़ार में खड़े रहते। लेकिन यदि किसी ग्राहक ने कोई सवाल कर दिया या कह दिया कितनी देर है तो वो ग्राहक की पिटायी कर दिया करते थे। पुरानी दिल्ली के लोग यहां तक कि अटल जी ने भी कभी लाला पकौड़ीमल से पंगा नहीं लिया लेकिन कोई नया ग्राहक यदि हिमाकत कर बैठता तो बेचारा पिट जाता।
जून 1985 में दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी थी। उन्हीं दिनों मेरे ताऊ जी की बेटी (धर्मवीर की बहन) की शादी थी। लेकिन अटल जी आडवाणी जी समेत सभी बीजेपी नेता स्वदेश को आशीर्वाद देने पहुंचे। अपने किसी भी पुराने परिचित के सुख दुख में खड़े रहना अटल जी के स्वभाव में था।
एक और रोचक किस्सा मेरे कजिऩ ने सुनाया। वर्ष 1998 में दिल्ली में विधान सभा चुनाव हो रहे थे। अटल जी प्रधानमंत्री थे और श्री विजय गोयल चांदनी चौक से सांसद थे। अटल जी को चुनावी सभा को संबोधित करना था। विजय गोयल जी ने एसपीजी को चांदनी चौक लोकसभा सीट के चारों उम्मीदवारों और अपना नाम दे दिया। मंच पर अटल जी के साथ कितने लोग बैठेंगे ये एसपीजी को पहले बताना पड़ता है। सूची में जिनका नाम नहीं होता उन्हें मंच पर आने की कतई इजाजत नहीं दी जाती। चुनावी गहमागहमी के बीच मंच संचालक का नाम देना ही भूल गए। मंच संचालन मेरे कजिऩ धर्मवीर शर्मा को ही करना था। अब क्या किया जाए। अटल जी के सामने एसपीजी के साथ जद्दोजहद चल रही थी। अब अटल जी ठहरे अटल जी। उन्होंने सुन लिया। उन्होंने कहा ”धर्मवीर यहां आओ।’’ और साथ ही एसपीजी को भी बुला कर कहा ”मैं इस लड़के को जानता हूं आने दो मंच पर।’’ और फिर चुनावी सभा का मंच संचालन मेरे कजिऩ ने ही किया। उनके बड़प्पन, उनकी सरलता, सहजता और प्रेम के ना जाने कितने किस्से भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के पास होंगे। अटल जी कार्यकर्ताओं के दिल में बसा करते थे और सदा बसे रहेंगे।
अटल जी का व्यक्तित्व नवरस से भरपूर था। वो जितने मस्त मौला थे उतना ही जीवन से प्रेम करते थे। सुदर्शन व्यक्तित्व, सुंदर दिल, जीवन को जी भर जीने की अदम्य इच्छा। खाना पीना, पहनना। होली का हुड़दंग करते, कविता रचते कविता पाठ करते। यदि कोई उनकी कैमरा फुटेज निकाल कर देखेगा तो पायेगा कि वो नवरसों को भी कैसे जीते थे अपने जीवन में। जिसका दिल शीशे जैसा होगा उसी के चेहरे पर हर भाव साफ देखा जा सकता है। मैं ज़ी न्यूज़ में थी तो एक कार्यक्रम बनाया करती थी न्यूज़ी कांऊट डाऊन। इस कार्यक्रम में राजनैतिक घटनाओं पर फिल्मी गाने फिट किए जाते थे। अटल जी पर हर गाना फिट बैठता था क्योंकि जो भाव हमें चाहिए होता था सिचुएशन के अनुसार उनका हर भाव फुटेज में मिल जाता था। मुझे अब तक याद है हमने श्रीमति सोनिया गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जी पर एक गाना फिल्माया ( घटना याद नहीं आ रही ) ‘इक चतुर नार करके श्रृंगार घुसी जात मेरे मन के द्वार।’ जब हम वीटी एडिटर के साथ एडिट करने बैठे तो लगा इस गाने में इतने भाव हैं मुश्किल होगा एडिट करना। लेकिन ये सबसे बेहतरीन गाना एडिट हुआ।
अटल जी संसद में बेहतरीन सांसद बेहतरीन वक्ता थे, अपनी वाकपटुता से सबको चित्त कर देते थे। चुनावी सभा हो पार्टी का अधिवेशन हो वो हमेशा मंत्रमुगध करते। भाषण शैली में उनका कोई सानी नहीं। अपनी ओजस्वी वाणी को बोलते बोलते विराम दे देते। अचानक पूरे जोश के साथ फिर से शुरू कर देते। संयुक्त राष्ट्र संघ में जाकर हिंदी में भाषण देने का साहस उनके अलावा और कौन जुटा सकता था।
उदारमना विशाल ह्रदय विराट व्यक्तित्व। वो साधारण राजनेता नहीं स्टेट्समैन थे। लेकिन कुछ बड़े पत्रकारों का ये भी मानना था कि इस उदार चेहरे के पीछे एक ऐसा चेहरा भी है जो अपने विरोधियों को जब चित्त करता है तो फिर ऐसा चारों खाने चित्त करता है कि वो इस लायक नहीं रहता कि फिर दोबारा राजनीति में आ जाए। जाने माने लेखक, चिंतक, कांग्रेसी राजनेता व इस्लामिक स्कॉलर स्वर्गीय रफीक जकारिया ने एक बार उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने लिखा था कि अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में क्यों अटल हैं। वो कितनी खूबसूरती से अपने राजनीतिक विरोधियों को कैसे हमेशा के लिए शांत करने की क्षमता रखते हैं। और ऐसे कई उदाहरण भी हैं लेकिन अब उनका यहां जिक्र करना उचित नहीं है।
यदि मैं अपने शब्दों में कहूं तो मुझे श्री लाल कृष्ण आडवाणी भगवान राम और अटल बिहारी वाजपेयी भगवान कृष्ण लगते हैं। भगवान राम मर्यादा पुरूषोत्तम हमेशा पूजनीय वंदनीय उनके साथ भगवान के अतिरिक्त कोई और संबंध भारतीय जनमानस नहीं बना पाता। लेकिन कृष्ण तो गुरू, योगी, सखा सब कुछ हैं। एकमात्र ऐसे भगवान जिनके साथ भक्तों का इतना अपनेपन का नाता है कि उन्हें चित्तचोर, माखनचोर, नटवर नागर, छलिया, रसिया ना जाने क्या क्या बुलाते हैं उनके भक्त। राम बारह कला संपूर्ण थे तो कृष्ण 16 कला संपूर्ण। अटल जी की सोलह कलाओं ने उन्हें संपूर्ण बनाया। कितने लोगों की ये तमन्ना पूरी होती है कि ‘मैं जी भर जीऊं, मैं मन कर मरूं।’ जब तक जीए जी भर कर जीये। उन्होंने कहा था मैं लौट कर आऊंगा। काश ये भी सच हो और अटल जी एक बार लौटकर आएं। धन्य हैं वो पीढिय़ां जिन्होंने उन्हें देखा। अटल जी को शत शत नमन।
सर्जना शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार, मीडिया सलाहकार एवं ब्लॉगर