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नागरिक विमानन महानिदेशालय के दोहरे मापदंड

नागरिक विमानन महानिदेशालय के दोहरे मापदंड
*रजनीश कपूर
पिछले दिनों रांची के एयरपोर्ट पर जब एक दिव्यांग किशोर के साथ इंडिगो एयरलाइन द्वारा भेदभाव की खबर सामने आई तो मामले ने तूल पकड़ा। इसके बाद भारत के नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तुरंत जाँच के आदेश देते हुए कहा कि दोषियों बख्शा नहीं जाएगा। जाँच के बाद भारत सरकार के नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) एक आदेश के ज़रिए यह साफ़ कर दिया कि “इंडिगो के कर्मचारी यात्रियों के साथ सही तरीके से पेश नहीं आए और इस तरह उन्होंने लागू नियमों के अनुरूप काम नहीं किया।”
इसी के चलते एयरलाइन को ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया गया, जिसमें उसे बताना होगा कि नियमों के अनुरूप काम नहीं करने पर उसके खिलाफ उचित कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए। एयरलाइन द्वारा दिव्यांग के साथ ऐसा बरताव दुखद है। परंतु डीजीसीए द्वारा इस मामले में फुर्ती दिखाना केवल इसलिए हुआ क्योंकि यह मामला सुर्ख़ियों में था।
नागरिक उड्डयन क्षेत्र में आए दिन ऐसे मामले सामने आते हैं जहां बड़ी से बड़ी गलती करने वाले को डीजीसीए द्वारा केवल औपचारिकता करके कम सज़ा दी जाती है। फिर वो चाहे एक कोई नामी कमर्शियल एयरलाइन हो, किसी प्रदेश का नागरिक उड्डयन विभाग हो या कोई निजी चार्टर हवाई सेवा वाली कम्पनी। यदि डीजीसीए के अधिकारियों ने मन बना लिया है तो बड़ी से बड़ी गलती को भी नज़रंदाज़ कर दिया जाता है।
पिछले दिनों रायपुर में हुए हेलीकाप्टर हादसे में दो अनुभवी पाइलटों ने अपनी जान गवा दी। सूत्रों के अनुसार ऐसा पता चला है की दुर्घटना की जाँच होने से पहले ही भोपाल के डीजीसीए के क्षेत्रीय अधिकारियों ने इंजीनियरिंग विभाग की ग़लतियों की लीपापोती करनी शुरू कर दी। शायद डीजीसीए के क्षेत्रीय अधिकारियों ने ऐसा इसलिए किया कि उन्हें इस बात का डर था कि जाँच में उनकी लापरवाही पकड़ी जा सकती थी। सूत्रों के अनुसार ऐसा भी हो सकता है कि इस दुर्घटना की गलती दिवंगत पाइलटों के सिर मढ़ दी जाए।
मिसाल के तौर पर ताज़ा उदाहरण एक निजी चार्टर कम्पनी का है जिसके एक पाइलट ने सभी नियम और क़ानून की धज्जियाँ उड़ा कर अपने लिए कम से कम सज़ा तय करवाई और यह भी निश्चित कर लिया कि उसकी गंभीर गलती को नज़रंदाज़ कर दिया जाए। चूँकि यह निजी चार्टर सेवा देश के बड़े-बड़े नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों को अपनी सेवा प्रदान करती रहती है इसलिए वो अपने ख़िलाफ़ हर तरह की कार्यवाही को अपने ढंग से तोड़ मरोड़ कर खानापूर्ति करती रहती है।
इस निजी एयरलाइन के पाइलट कैप्टन एच एस विर्दी ने लगातार नियम और क़ानून तोड़ कर यह साबित कर दिया है कि वे चाहे कुछ भी करे उसे उसके पद से कोई नहीं हटा सकता। कैप्टन विर्दी के ख़िलाफ़ बी॰ए॰ टेस्ट (पाइलट के नशे में होने का टेस्ट) के उल्लंघन से लेकर तमाम संगीन लापरवाहियों की लिखित शिकायत मेरे द्वारा डीजीसीए को भेजने के बाद उसे व उसके लाइसेन्स को 17 फ़रवरी 2022 को केवल 3 महीने के लिए ही निलंबित किया गया। जबकि इससे कम संगीन ग़लतियों पर डीजीसीए के अधिकारी एयरलाइन के कर्मचारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दे देते हैं। ऐसे दोहरे मापदंड क्यों? कैप्टन विर्दी ने अपने रसूख़ के चलते निलंबन अवधि के दौरान ही 3 मार्च 2022 को अपना पीपीसी चेक भी करवा डाला, जो कि निलंबन अवधि में ग़ैर-क़ानूनी है। ऐसा नहीं है कि डीजीसीए के उच्च अधिकारियों को इस बात का पता नहीं। लेकिन रहस्यमयी कारणों से वे इस संगीन गलती को अनदेखा करने पर मजबूर थे।
नागर विमानन जानकारों के अनुसार जब से नागर विमानन महानिदेशालय मौजूदा महानिदेशक ने पदभार सँभाला है तब से डीजीसीए में भ्रष्टाचार को पहले के मुक़ाबले ज़्यादा बढ़ावा मिला है। मौजूदा महानिदेशक और उनके कुछ चुनिंदा अधिकारी डीजीसीए में बड़ी से बड़ी लापरवाही को मामूली सी गलती बता कर दोषियों को चेतावनी देकर छोड़ देते हैं। आँकड़ों की माने तो ऐसी लापरवाही के चलते हादसों में भी बढ़ोतरी हुई है। हादसे चाहे निजी एयरलाइन के कर्मचारियों द्वारा हो, निजी चार्टर कंपनी द्वारा हो, किसी ट्रेनिंग सेंटर में हो या फिर किसी राज्य सरकार के नागर विमानन विभाग द्वारा हो, यदि वो मामले तूल पकड़ते हैं तो ही सख़्त सज़ा मिलती है, वरना ऐसी घटनाओं को आमतौर पर छिपा दिया जाता
है।
वीवीआईपी व जनता की सुरक्षा की दृष्टि से समय की माँग है कि नागर विमानन मंत्रालय के सतर्कता विभाग को कमर कस लेनी चाहिए और डीजीसीए में लंबित पड़ी पुरानी शिकायतों की जाँच कर यह देखना चाहिए कि किस अधिकारी से क्या चूक हुई। ऐसे कारणों की जाँच भी होनी चाहिए कि तय नियमों के तहत डीजीसीए के अधिकारियों ने दोषियों को सही सज़ा क्यों नहीं दी और एक ही तरह की गलती के लिए दोहरे मापदंड क्यों अपनाए?
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्युरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।

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