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निजी संस्थानों में आरक्षण एक नई समस्या को जन्म

पूरे देश आज रोजगार में आरक्षण के वर्तमान सिद्धांतो के कारण कुछ अडचनें  महसूस हो रही हैं | ऐसे में हरियाणा सरकार के एक फैसले से हंगामा खड़ा हो गया है। फैसला है रोजगार में आरक्षण का। रोजगार भी सरकारी नहीं, प्राइवेट और आरक्षण भी किसी जाति, धर्म या आर्थिक आधार पर नहीं, बल्कि राज्य में रहने वालों को। राज्य सरकार ने यह फैसला अपने लोगों की भलाई या उन्हें खुश करने के लिए लिया है। लोग खुश हुए या नहीं, इसका पता तो चुनाव में लगेगा और उनकी कितनी भलाई हुई, इसका पता लगने में भी काफी वक्त लग सकता है, लेकिन फिलहाल इस फैसले से हंगामा खड़ा हो गया है। ऐसे ही फैसले कुछ और सरकारों ने भी लिए थे जिन्हें बाद में ठंडे बसते में डालना पडा

उहाहरण यहीं से लें,हरियाणा में जिन कंपनियों की फैक्टरियां या दफ्तर हैं, उनमें गंभीर चिंता फैल गई है। हरियाणा में प्राइवेट कारोबार में भी 50 हजार रुपये महीने से कम तनख्वाह वाली नौकरियों में 75 प्रतिशत पर सिर्फ हरियाणा के लोग रखे जा सकेंगे। विधानसभा में तो यह विधेयक पहले पारित हो चुका था, 28 फरवरी को राज्यपाल ने भी दस्तखत किए हैं। हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी ने घोषणापत्र में वादा किया था कि उनकी सरकार बनी, तो 75 फीसदी नौकरियां हरियाणा के लोगों के लिए आरक्षित करवाएगी। उद्योग और विकास के पैमाने पर हरियाणा देश के सबसे उन्नत राज्यों में रहा है, लेकिन इस वक्त बेरोजगारी बहुत बड़ी फिक्र है।
देश की बात करें तो सीएमआईई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, जहां पूरे देश में बेरोजगारी दर फरवरी महीने में 6.5 प्रतिशत थी, वहीं हरियाणा में 26.4 प्रतिशत पर थी। यानी देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा में है। जाहिर है, राज्य सरकार परेशान है। लेकिन आरक्षण की यह कोशिश नुकसान पहुंचा सकती है। देश के दोनों प्रमुख उद्योग संगठनों फिक्की और सीआईआई ने इस पर चिंता जताई है। सीआईआई ने आग्रह किया है कि पुनर्विचार किया जाए, जबकि फिक्की ने कहा है कि यह फैसला प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए तबाही जैसा है।

देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी और बीपीओ कंपनी जेनपैक्ट के अलावा सॉफ्टवेयर व टेक्नोलॉजी में देश-दुनिया की दिग्गज कंपनियों ने गुड़गांव में दफ्तर खोल रखे हैं। इनमें माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, टीसीएस और इन्फोसिस जैसे नाम शामिल हैं। यह नया कानून इन कंपनियों के लिए सबसे बड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है। बीपीओ या बीपीएम (बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट) कारोबार एक तरह से गुड़गांव की जान है। गुड़गांव को दुनिया की बीपीएम राजधानी भी कहा जाता है। दुनिया में इस काम में लगे लोगों का पांच प्रतिशत हिस्सा गुड़गांव में है। बीपीओ व आईटी कंपनियों के अलावा गुड़गांव और मानेसर के इलाके बडे़ औद्योगिक क्षेत्र हैं। देश की 50 प्रतिशत कारें, 60 प्रतिशत मोटरसाइकिलें और 11 प्रतिशत ट्रैक्टर यहीं पर बनते हैं। इन इलाकों में औद्योगिक विकास के साथ ही यूनियन और मैनेजमेंट के विवाद का भी लंबा इतिहास है। 2012 में मारुति के प्लांट में झगड़ा इतना विकराल हो गया था कि आंदोलनकारियों ने कंपनी के एक बड़े अफसर को जलाकर मार डाला था। उसके बाद से ही कंपनी ने अपने नए कारखाने दूसरी जगहों पर लगाने का काम तेज कर दिया। दूसरी कंपनियां भी इस क्षेत्र में निवेश करने से पहले काफी सोच-विचार करने लगी हैं। बेरोजगारी का आंकड़ा साफ दिखा रहा है कि हरियाणा में रोजगार की कितनी जरूरत है। सरकारी नौकरियां कम होती जा रही हैं। ऐसे में, चुनाव जीतने के लिए यह नारा बुरा नहीं है कि हम प्राइवेट नौकरियों में भी आरक्षण दिलवा देंगे और कंपनियों की तसल्ली के बारे में भी सोचा गया होगा। इसीलिए शर्त है कि महीने में 50 हजार रुपये से कम तनख्वाह वाली नौकरियों में ही आरक्षण देना होगा। एक छूट यह भी दी गई है कि योग्य उम्मीदवार न मिलें, तो बाहर के लोगों को रखा जा सकता है, लेकिन ऐसी हर नियुक्ति के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होगी। यानी काम में रोड़ा अटकाने का एक और इंतजाम। कारोबारी इसे इंस्पेक्टर राज की वापसी का सुबूत मान रहे हैं।
इस तरह तो देश के बीपीओ का तो करीब 80 प्रतिशत स्टाफ इस आरक्षण के दायरे में आ जाएगा। सॉफ्टवेयर कारोबार के जानकारों से बातचीत में पता चलता है कि ऐसी कंपनियों में 70 प्रतिशत से कुछ ही कम स्टाफ पांच साल से कम अनुभव वाला होता है और इनमें से करीब आधे 50 हजार रुपये से कम तनख्वाह पर काम करते हैं। राहत की बात यह है कि आरक्षण का नियम सिर्फ नई भर्ती के लिए है। कंपनी के मौजूदा स्टाफ पर इसका असर नहीं पड़ना है, लेकिन ये कंपनियां देश भर में साल में लाख-डेढ़ लाख नए लोगों को नौकरियां देती हैं। डर है, अब वे अपना कारोबार गुड़गांव या हरियाणा के बजाय देश के दूसरे हिस्सों में ले जाने की सोचने लगेंगी। कोरोना काल में जब पूरे-पूरे दफ्तर बंद करके वर्क फ्रॉम होम का अनुभव हो चुका है, तब कंपनियों में यह हौसला भी बढ़ चुका है कि वे आसानी से यहां से वहां जा सकती हैं।
लेकिन क्या यह समस्या का हल है? याद कीजिए, वर्ष 2019 में मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एलान किया था कि वह ऐसा कानून लाएंगे, जिससे निजी कंपनियों को 70 प्रतिशत नौकरियां राज्य के नौजवानों के लिए आरक्षित करनी होंगी। इसके साल भर बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एलान किया कि प्रदेश की सारी सरकारी नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए ही रखने, यानी 100 प्रतिशत आरक्षण का कानून बनाएंगे। इसी किस्म के एलान 1995 में गुजरात और 2016 में कर्नाटक की सरकारें कर चुकी हैं, लेकिन इनमें से कोई भी अमल में नहीं आ सका है। भारत का संविधान राज्य सरकारों को यह अधिकार नहीं देता कि वे इस तरह के आरक्षण लागू करें, जिससे बराबरी के अधिकार का उल्लंघन होता हो। सर्वोच्च न्यायालय भी कई मामलों में यह साफ कर चुका है कि राज्य सरकारें इस तरह भेदभाव करने वाले नियम-कायदे नहीं बना सकतीं। लेकिन कानूनी प्रावधानों में कुछ गुंजाइश भी है और संसद ने जब रोजगार में इस तरह के भेदभाव खत्म करने के लिए कानून पारित किया, तब कुछ राज्यों को रियायत भी दी गई। इसलिए यह आशंका बेबुनियाद नहीं कि दूसरी सरकारें भी ऐसे कानून बनाने की सोचेंगी। हालांकि, यह भी करीब-करीब तय है कि ऐसा कानून अदालत में टिक नहीं पाएगा। इससे बड़ी चिंता यह है कि देश में रोजगार का संकट कैसे खत्म किया जाए? जब तक उसका इलाज सामने नहीं आएगा, तब तक नीम हकीमों वाले ऐसे नुस्खों का सहारा राजनीतिक पार्टियां और सरकारें लेती रहेंगी।
०६   ०३ २०२१
यह दुष्काल का अंतिम पायदान हो सकता है, आप चाहें तो ….!
हम पूरे सालभर कोरोना दुष्काल से एक मुश्किल लड़ाई लड़ते रहे हैं, जंग अभी जारी है |   देश कोरोना दुष्काल पर जीत के बेहद करीब है| संक्रमण के सक्रिय मामले अब दो प्रतिशत से भी नीचे  आ गये हैं, जबकि संक्रमण मुक्त होने का आंकड़ा ९७  प्रतिशत से अधिक है|  कोरोना संक्रमित होने की कुल दर ५.११ प्रतिशत पर आ गयी है. इन तथ्यों से इंगित होता है कि कुछ ही समय में महामारी पर पूरी तरह नियंत्रण कर लिया जायेगा| आपने सावधानी बरती तो यह अनिवार्यता है | जो इस अनिवार्यता को नहीं समझे  उन राज्यों में संक्रमण की स्थिति चिंताजनक है|
विचार कीजिये, महाराष्ट्र और केरल में ही  क्यों देशभर के ७५  प्रतिशत सक्रिय मामले हैं. केंद्र सरकार की टीमें इन राज्यों के अलावा तमिलनाडु, पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा की स्थिति की निगरानी कर रही हैं| जानकारों की मानें, तो जल्दी ही इन राज्यों में भी संक्रमण की दर में कमी आने की उम्मीद है|
देश भर में चल रहा टीकाकरण अभियान के दूसरे चरण में बड़ी संख्या में हो रहा पंजीकरण उत्साहवर्द्धक है| सरकारी और निजी अस्पतालों के संयुक्त प्रयास से टीका लगाने की गति भी तेज हो रही है, लेकिन इसे बढ़ाने की दरकार है| कोरोना मामलों तथा संक्रमण से होनेवाली मौतों की संख्या में तेज गिरावट की वजह से देशभर, खासकर छोटे शहरों और कस्बों, में लोगों में सुरक्षा उपायों के प्रति लापरवाही बरतने की खबरें विचलित करनेवाली हैं|
यह प्रमाणित हो गया है कि आज जिन राज्यों में संक्रमण फिर से खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, उसका मुख्य कारण लापरवाही और बेवजह भीड़ करना ही है| टीकाकरण की प्रक्रिया पूरी होने में अभी समय लगेगा. ऐसे में मास्क लगाने, साफ-सफाई रखने तथा समुचित दूरी बरतने जैसे जरूरी उपायों पर अमल जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है| यह बात उन राज्यों को ख़ास तौर पर समझ लेना चाहिए, जहाँ चुनाव होने जा रहे हैं |
एक विशेष सर्वेक्षण के अनुसार, देश में संक्रमितों की कुल संख्या ३० करोड़ के आसपास हो सकती है,  क्योंकि बड़ी तादाद में संक्रमित युवाओं में कोई लक्षण नहीं दिखे थे. दर्ज मामलों की संख्या 1.1 करोड़ है. देश की बड़ी आबादी, स्वास्थ्य से जुड़े संसाधनों के अभाव और सुरक्षा उपायों को लेकर गंभीरता की कमी को देखते हुए महामारी से संबंधित दरें बहुत संतोषजनक हैं, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम निश्चिंत हो जायें|  हमें अपनी और अपने आसपास के हर व्यक्ति की सुरक्षा का ख्याल रखना होगा |
हमें विशेषज्ञों की इस राय को अनदेखा नहीं करना चाहिए कि अब भारत उस दौर में पहुंच रहा है, जहां स्थानीय स्तर पर संक्रमण फैल सकता है, हालांकि ऐसे मामलों को संभालना आसान होता है,| इसमें  आसानी तब  होगी जब हम सावधान रहेंगे, तो वायरस के प्रसार की गति बाधित हो सकती है| एक चिंता यह भी है कि वायरस के बदलते रूपों के असर के बारे में अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है|
आज हर जगह स्थानीय स्तर पर निगरानी की जरूरत है ताकि संक्रमण के कम खतरनाक लहरों की आवृत्ति को संभाला जा सके| टीका लेने के सरकार और विशेषज्ञों के अनुरोध के पालन पर जोर दिया जाना चाहिए ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ के मुहावरे को महामारी के इस दौर में भी याद  रखना जरूरी है |इससे ही  कोरोना  दुष्काल की बची-खुची चुनौती का भी हम आसानी से सामना कर सकेंगे|

– राकेश दुबे

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