भारतीय शोधकर्ताओं ने नेत्र कैंसर से ग्रस्त कोशिकाओं के प्रसार के लिए जिम्मेदार कारकों का पता लगाया है, जिससे रोगग्रस्त कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से कैंसर के उपचार के लिए दुष्प्रभाव रहित दवाएं विकसित करने और निदान के सुरक्षित तरीकों के विकास में मदद मिल सकती है।
कैंसर कोशिकाओं को लंबी श्रृंखला वाले फैटी एसिड का उत्पादन करते भी देखा गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये कोशिकाएं कैंसर के विभिन्न रूपों का पता लगाने के लिए आदर्श जैव संकेतक (बायोमार्कर) हो सकती हैं। एक अन्य उपयोगी तथ्य यह भी उभरकर आया है कि कैंसर कोशिकाओं में कोलेस्ट्रॉल को कम-संश्लेषित किया जाता है।
इस अध्ययन में पाया गया है कि सामान्य कोशिकाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट और फैटी एसिड के बजाय कैंसर कोशिकाएं ऊर्जा के लिए अमीनो अम्ल का उपयोग करती हैं। इसी तरह, रेटिनोब्लास्टोमा कोशिकाएं सिग्नलिंग और झिल्ली गठन के लिए फैटी एसिड को विशेष रूप से संश्लेषित करती हैं।
कैंसरग्रस्त कोशिकाओं की कार्यप्रणाली का अध्ययन करने के लिए कांस्ट्रेन्ड-बेस्ड मॉडलिंग (सीबीएम) नामक कंप्यूटर तकनीक का उपयोग किया गया है। शोधकर्ताओं ने रेटिनोब्लास्टोमा कोशिकाओं का अध्ययन इसी तकनीक की मदद से किया है।
अध्ययन में स्वस्थ एवं रेटिनोब्लास्टोमा कोशिकाओं और कैंसर के प्रकारों के बीच अंतर की पहचान की गई है। सीबीएम तकनीक की मदद से जैविक प्रणाली के भौतिक-रासायनिक, पर्यावरणीय और टोपोलॉजी अवरोधों का कंप्यूटर आधारित गणितीय विश्लेषण किया जाता है और अनुवांशिक एवं जैव-रसायनिक गुणों का पता लगाया जाता है।
शोधकर्ताओं ने तुलनात्मक अध्ययन के लिए सामान्य रेटिना और रेटिनोब्लास्टोमा के नमूनों का उपयोग किया है। कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन के बाद सामान्य रेटिना के नमूने स्वस्थ कैडेवरिक आंखों से एकत्र किए गए हैं। जबकि, रेटिनोब्लास्टोमा ट्यूमर के नमूने रोगग्रस्त बच्चों के माता-पिता की सहमति से प्राप्त किए गए हैं।
बचपन में होने वाले नेत्र कैंसर, जिसे रेटिनोब्लास्टोमा कहते हैं, को केंद्र मे रखकर यह अध्ययन किया गया है। रेटिनोब्लास्टोमा एक या फिर दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है। भारत में बच्चों के रेटिनोबलास्टोमा के करीब 1,500 नए मामले हर रोज सामने आते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास, चेन्नई के शंकर नेत्रालय और अमेरिका के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल कैंसर सेंटर ऐंड हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन संयुक्त रूप से किया गया है। अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका एफईबीएस लेटर्स में प्रकाशित किए गए हैं।
इस अध्ययन से जुड़ीं आईआईटी-मद्रास की शोधकर्ता डॉ स्वागतिका साहू ने बताया कि “कैंसर उपचार के अक्सर गहरे दुष्प्रभाव होते हैं। कैंसर-रोधी दवा स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना रोगग्रस्त कोशिकाओं तक पहुंचनी चाहिए, जिससे गंभीर दुष्प्रभावों से बचा जा सके। कैंसर उपचार के लिए सुरक्षित दवाओं की खोज कोशिकाओं की कार्यप्रणाली के बारे में हमारे ज्ञान पर निर्भर करती है, जिससे रोगग्रस्त कोशिकाएं बढ़ती रहती हैं।”
इस अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता डॉ कार्तिक रमन ने बताया कि “कम्प्यूटर आधारित मॉडलिंग कोशिकाओं की कार्यप्रणाली के बारे में हमारी समझ को बढ़ा सकती है। जैविक प्रणालियों के आंकड़ों के साथ कंप्यूटर मॉडलिंग की मदद से कोशकीय कार्यप्रणाली का सटीक रूप से अनुकरण कर सकते हैं। इस तरह कोशिकाओं की अवांछित कार्यप्रणालियों को बाधित करने के तरीकों की पहचान करने में मदद मिल सकती है।”
अध्ययनकर्ताओं की टीम में आईआईटी-मद्रास के डॉ कार्तिक रमन, डॉ स्वागतिका साहू और ओंकार मोहिते के साथ शंकर नेत्रालय की डॉ शैलजा वी. एल्चुरी, रंजीत कुमार, रवि कुमार, विकास खेतान, पुखराज ऋषि, शुग्नेश्वरी गणेशन, कृष्ण कुमार सुब्रमण्यम, मेडाजिनोम लैब्स, बंगलूरू के कार्तिकेयन शिवरामन और अमेरिका के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल कैंसर सेंटर ऐंड हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के वेन माइल्स एवं ब्रेंडन निकोले शामिल थे।
यह अध्ययन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग तथा विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड के अनुदान पर आधारित है। (इंडिया साइंस वायर)
उमाशंकर मिश्र