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पर्यावरण एवं विस्थापन राजनैतिक पार्टियों का मुद्दो से गायब है!

उत्तराखंड के लोग अपना पांचवा राज्य विधानसभा चुनने जा रहे है। हमने पाया कि बांध व अन्य बड़ी परियोजनायें, खदान, शराब, बेरोजगारी, पर्यटन, इत्यादि के कारण हो रहा विस्थापन का वास्तविक मुद्दे है। ये सब राजनैतिक पार्टियों के एजेंडा में शामिल नहीं है। जून 2013 की त्रासदी से प्रभावित लोग अभी भी ठीक तरीके से ना बसाये गये है ना ही सभी को क्षतिपूर्ति मिली है। इन सब  मुद्दों के अलावा, वे उन मुद्दों को उठा रहे है जो की अस्तित्व में ही नहीं है और न ही उत्तराखंड के लोगों एवं हरे-भरे वातावरण संबघी रोजाना की समस्याओं को हल कर सकेंगें।
उत्तराखंड एक हरा-भरा, नदियों खासतौर से राष्ट्रीय नदी गंगा और पांचधाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, और हेमकुंड साहिब) वाला हिमालयी राज्य है। कोई भी राजनैतिक पार्टी, यहाँ के स्रोतों से बड़े लोगों को छोड़कर, स्थानीय लोगो का भला करने वाले, विकास के रोडमैप के साथ नहीं उतरी है।
यह स्थान जहाँ से राष्ट्रीय नदी गंगा निकलती है, इस नष्ट एवं गायब हो रही गंगा के संरक्षण का कोई एजेंडा  उन राजनैतिक पार्टियों के पास भी नही है जो “नमामि गंगा” का राष्ट्रीय स्तर पर मंत्रोच्चारण करते रहते है।
हमारे पास जीवंत उदहारण है जहाँ समस्याएं बिना समाधान के जारी है। जैसे की टिहरी बाँध, जो इसके जलाशय के आसपास रहने वाले लोगों के लिए कभी न ख़त्म होने समस्या बन गया है। 40 से ज्यादा गंाव, घरों में दरार, भूमि धंसान, इत्यादि की समस्या का सामना कर रहे हैं। इन समस्याओं के कारण रोज के रोज एक नये गांव को पुनर्वास की जरुरत है। सभी पुल जो भागीरथी नदी के दोनों किनारों को जोड़ेंगे अभी तक पुरे नहीं हुए है। अभी तक सभी विस्थापितों को उनके पुनर्वास स्थल पर जमीन अधिकार एवं नागरिक सुविधाएँ नहीं मिली है। पिछले सभी चुनावों में ये मुद्दा स्थानीय स्तर पर उठाया जाता रहा है लेकिन चुनाव जीतने के बाद सरकारी योजनाओ में नही दिखाई देता है। यद्दपि बड़ी पार्टियाँ केंद्र एवं राज्य स्तर पर काबिज थी, किन्तु उन्होने नीति स्तर पर कुछ नहीं किया।
परियोजना दर परियोजना विस्थापन बढ़ रहा है और जमीन की उपलब्धता कम होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र, रुद्रपुर, देहरादून, हरिद्वार एवं हल्दानी में विकसित किये जा रहे है। लेकिन 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार देने की नीति अभी भी अमल में नहीं लायी गयी है। स्थानीय लोगों को दिए गए रोजगार का स्तर बहुत ही कम है। पुरे राज्य में लोग हमेशा, परियोजना वालों एवं अलग-अलग कंपनियों से रोजगार के लिए लड़ते है। जिनमे से बाँध के द्वारा प्रभावित हुए लोगों की हालत दयनीय है। अधिकतर घटनाओं में देखा गया है की लोग जब भी अपना हक पाने लिये आवाजें उठाते है तो उन्हें झूठे मुकदमो में फंसा दिया जाता है और कभी-कभी जेलों में डाल दिया जाता है।
पर्यावरण संरक्षण नियमों का पालन न होने के कारण, पर्यावरण को भी क्षति पहुँच रही है जैसे की औद्योगिक क्षेत्र अपने क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन कर रही है। बाँध कम्पनियाँ गन्दगी और मलबे को सीधे ही नदियों में डाल रही है। अवैध रेत खनन, नदी को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। चेक और बैलेंस की स्थिति बहुत ही बुरी है और जब भी जन संगठन इन मुद्दों को उठाते है तो सरकार की तरफ से शायद ही कोई ध्यान दिया जाता है। यह राज्य की विडम्बना ही है कि पर्यावरण मुकदमों में सरकार हमेशा परियोजना वालों और कंपनियों का ही पक्ष लेती है।
बड़ी राजनैतिक पार्टियाँ अपने नैतिक मूल्यों को खो चुकी है। राजनेता जो एक पार्टी को कई सालों से समर्थन देते आये है और दूसरी पार्टी का भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर आलोचना करते आये है, अचानक से उसी पार्टी में चले जाते है। वे अचानक से नैतिक एवं सही कैसे हो सकते है? यह स्पष्ट बताता है की सत्ता हासिल करना उनका मुख्य लक्ष्य है, बजाय उत्तराखंड के लोगों की सेवा करना।
इन स्थितियों में सही प्रत्याशी को वोट करने का चुनाव करना बहुत ही कठिन हो जाता है। हम उत्तराखंड के लोगो से यह निवेदन करते है की उन्हें निम्न आधारों पर प्रत्याशियों को वोट करना चाहिए…..
ऽ प्रत्याशी ईमानदार होना चाहिए और उस पर कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं होना चाहिए।
ऽ प्रत्याशी का ध्यान राज्य के विविध पेड़-पौधे, जंगल-जानवर, और नदी के संरक्षण तथा विस्थापन की समस्या एवं पूर्ण पुनर्वास पर भी होना चाहिए।
ऽ प्रत्याशी को यह समझ हो की राज्य की प्राकृतिक संसाधनों का लोगों की भलाई में उपयोग हो नाकि बड़ी कंपनियों का लाभ बढ़ाने में हो।
ऽ प्रत्याशी के पुराना इतिहास को भी नजरिये में रखना होगा।
विमल भाई       सुदर्शन साह

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