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पर्रिकर का विकल्प न ढूंढ पाना भारी पड़ रहा भाजपा को

कभी कभी कोई व्यक्ति इतना बड़ा बन जाता है कि उसका विकल्प न ढूंढ पाना भी सत्ता वापसी में रोड़े लगा देता है। ऐसा ही कुछ है रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के साथ। वह गोवा छोड़कर केंद्र की राजनीति में क्या गये, गोवा की भाजपा अनाथ हो गयी। एक अच्छी ख़ासी चल रही सरकार, जो सत्ता में पुनर्वापसी कर सकती थी। आज ऐसी स्थिति में है जहां उसकी दोबारा वापसी तो दूर सबसे बड़ी पार्टी बनने के भी लाले पड़े हुये हैं। गोवा की राजनीति पर विशेष संवाददाता अमित त्यागी का एक आलेख

गोवा एक कम क्षेत्रफल वाला राज्य है। कई सालों से यहां कांग्रेस बनाम भाजपा की ज़ंग रही है। इन दोनों दलों के बीच ही सत्ता का हस्तांतरण होता रहा है। इस समय वहां भाजपा की सरकार है। गोवा में कांग्रेस कमजोर है इसलिए आम आदमी पार्टी वहां एक विकल्प के तौर पर उभर चुकी है। जबसे मनोहर पर्रिकर केंद्र में रक्षामंत्री बने हैं तबसे गोवा में किसी बड़े चेहरे के लिए भाजपा तरस रही है। पर्रिकर के बाद मुख्यमंत्री बने लक्ष्मीकान्त पार्सेकर न ही गोवा भाजपा को एक जुट रख पाये और न ही मनोहर पर्रिकर की तरह भाजपा का सर्वमान्य चेहरा बन पाये। इनके नाम पर भाजपा कार्यकर्ता भी एक जुट नहीं हो पाता है। भाजपा के लिए परेशानी सिर्फ इतनी नहीं है। उसकी सहयोगी शिवसेना उससे नाराज़ है और अलग चुनाव लड़ रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहे सुभाष वेलिंगकर ने संघ से विद्रोह करके एक नयी पार्टी का गठन कर लिया है। अब वह सभी सीटों पर चुनाव लड़कर भाजपा को कमजोर करने में लगे हैं। इसके साथ ही दूसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस में भी आंतरिक कलह कम नहीं है। इन सबके बीच आम आदमी पार्टी का उदय गोवा के लिए नयी शुरुआत का आधार बन सकता है।

गोवा में उभरती आम आदमी पार्टी

गोवा में आप का उभरना अचानक नहीं है। एक सोची समझी रणनीति के अनुसार आप ने गोवा में अपने कदम बढ़ाए हैं। गोवा की आबादी में काफी लोग विदेश में निवास करते हैं। वह जब दूर से गोवा को देखते हैं तब उन्हें गोवा के अंदर बदलाव अपेक्षित दिखाई देता है। यदि एक पैटर्न पर गौर करें तो जिस प्रदेश में अप्रवासी लोगों की तादाद ज़्यादा है वहां वहां आप की दखलंदाज़ी दिखाई देती है। विदेशों में बैठे ये भारतीय आप को जम कर चंदा देते हैं ताकि अपने देश में बदलाव कर सकें। पंजाब और गोवा दो ऐसे राज्य हैं जहां अप्रवासी के द्वारा आप ने अपने पैर जमाये हैं। गोवा में एक और खासियत है कि यहां का चुनाव ज़्यादा जाति और धर्म आधारित नहीं है। यहां मुद्दे हावी रहते आये हैं। वर्तमान में नशे का बढ़ता कारोबार एक बड़ा मुद्दा है। वर्तमान राज्य सरकार इसे संभालने में विफल रही। कई आंतरिक मोर्चों पर पार्टी की विफलता का असर भी सरकार के कामकाज पर पड़ा है। मनोहर पर्रिकर का केंद्र में जाना भी गोवा को कमजोर करके गया है।

आप के गोवा समीकरण

आम आदमी पार्टी का गोवा का चुनावी समीकरण भी कुछ इसी तरह का है। राज्य का क्षेत्रफल कम होने से कम समय में ज्यादा पहुंच संभव है। चूंकि गोवा में जाति-धर्म की लड़ाई चुनावों को प्रभावित नहीं करती है और गोवा राज्य का विकास अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुआ है इसलिए यहां बेरोजगारी, नशा बड़ी समस्या है। शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। इन मुद्दों को लेकर ‘आप’ यहां चुनाव में उतरी है।  ‘आप’ का ध्यान पूरी तरह सरकार की विफलताओं को उजागर करके लोगों के सामने लाना है। आम लोगों से जुड़े यह मुद्दे उसे चुनाव में फायदा पहुंचा भी सकते हैं।

दुविधा में भारतीय जनता पार्टी

गोवा में भाजपा की एक बड़ी दुविधा यह है कि वह मुख्यमंत्री के लिए पर्रिकर का नाम घोषित करे या वर्तमान मुख्यमंत्री पार्सेकर का। भाजपा नहीं चाहती है कि पर्रिकर केंद्र की राजनीति छोड़कर वापस गोवा में आये। वह मोदी के करीबी हैं और वहां अच्छा काम कर रहे हैं। जहां तक वर्तमान मुख्यमंत्री पार्सेकर की बात है तो वह पार्टी में गुटबाजी के शिकार हैं। उनके नाम पर पार्टी में एकजुटता नहीं होती है। अब यदि पार्टी पार्सेकर का नाम आगे करती है तो पर्रिकर की लोकप्रियता का फायदा नहीं मिल पायेगा। और यदि पर्रिकर का नाम आगे करती है तो यह वर्तमान मुख्यमंत्री के कार्यकाल पर एक प्रश्नचिन्ह होगा। भाजपा की इन मुश्किलों को सुभाष वेलिंगकर ने और भी ज़्यादा बढ़ा दिया है। इस कशमकश में उलझी भाजपा अब यह निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है कि वह इधर कुआं उधर खाई वाली स्थिति में किसे चुने?

यदि ओपीनियन पोल को आधार माना जाये तो पिछले एक साल में आप का ग्राफ गिरा है और भाजपा मजबूत हुयी है। गोवा में भाजपा के पक्ष में माहौल दिखा भी है लेकिन इसके बावजूद सत्तारूढ़ भाजपा कोई खतरा नहीं ले रही है। राज्य में आम आदमी पार्टी के उभार से वो सतर्क है। 40 सीटों वाली विधानसभा में 2-3 सीटों का अंतर भी सरकार बनाने और बिगाडऩे के लिए काफी अहम हो जाता है। अब ऐसे में भाजपा  समझ रही है कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के लोकप्रिय चेहरे को चुनाव में अधिक से अधिक भुनाना ही फायदे का सौदा है। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) ने गोवा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से अपना गठबंधन तोड़ ही दिया है। वह अब 40 विधानसभा सीटों में से 22 पर चुनाव लड़ रही है। एमजीपी ने बागी नेता सुभाष वेलिंगकर के दल गोवा सुरक्षा मंच और शिवसेना से गठबंधन करके एक नया मोर्चा तैयार किया है जो भाजपा के लिए किसी सरदर्द से कम नहीं है। इस गठबंधन ने धवलीकर को अपना मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी घोषित कर दिया है।

2007 में कांग्रेस, 2012 में बीजेपी

2012 के विधानसभा चुनावों में गोवा में बीजेपी को 21 सीटें मिली थीं और 40 सीटों वाली विधानसभा में वह अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही। इस दौरान कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा। महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी को तीन तो अन्य को 7 सीटें मिलीं थीं। इससे पहले 2007 के चुनावों में कांग्रेस 16 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और सरकार बनाने में सफल रही थी। भाजपा को उस समय 14 सीटों से संतोष करना पड़ा था। एमजीपी को दो, एनसीपी को तीन तो अन्य को पांच सीटें मिलीं थी। खैर अब यह सब तो इतिहास बन गया है। अब बात 2017 की है। यहां 2017 में अल्पमत की सरकार आ सकती है। आम आदमी पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में या दूसरे नंबर के दल के रूप में उभरती दिख रही है। भाजपा के बागी लोगों का संगठन भी निर्णायक सीट लाता दिखने लगा है। पर चुनाव के बाद सीट कम होने पर विचारधारा के हिसाब से वह भाजपा के साथ जाकर सरकार बनाएगा न कि आप या कांग्रेस के साथ। हर प्रदेश की तरह कांग्रेस और आप एक साथ आ सकती हैं किन्तु ऐसा तभी संभव है जब ये दोनों मिलकर सरकार बनाने के लिए आवश्यक गणित ला पाये।

अब जिस तरह के समीकरण गोवा में दिखाई दे रहे हैं उसके अनुसार वहां निर्दलियों की भूमिका भी बेहद अहम होने जा रही है। गोवा में भाजपा समर्थित सरकार भी बन सकती है और कांग्रेस समर्थित सरकार भी, पर एक बात तो तय है कि गोवा में पहली बार दस्तक देने जा रही आम आदमी पार्टी इस बार गोवा में अपनी छाप तो छोड़ ही देगी।

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