भारतीय भू-वैज्ञानिकों ने एक ताजा अध्ययन में देश के पश्चिमी घाट में लंबे समय से हो रही कम तीव्रता की भूकंप की घटनाओं के कारणों का पता लगाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि देश के पश्चिमी तट पर आज भी कम तीव्रता के भूकंप आते रहते हैं, जो मानसून के कारण उत्पन्न होने वाली एक स्थानीय भूगर्भीय घटना है।
पश्चित घाट पर स्थित महाराष्ट्र के पालघर जिले के धूंधलवाड़ी गाँव के आसपास वर्ष 2018 के नवंबर महीने में भूकंपों यह श्रृंखला गड़गड़ाहट की आवाज के साथ शुरू हुई थी, जो अब तक रुकने का नाम नहीं ले रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले करीब 17 महीनों से अब तक इस इलाके में 0.5 से 3.8 तीव्रता के 16 हजार से अधिक भूकंप आ चुके हैं, जिससे स्थानीय लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है।
इस अध्ययन से जुड़े हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ता डॉ विनीत गहलौत ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इन भूकंपों के अध्ययन से पता चला है कि ये गैर-विवर्तनिक और गैर-ज्वालामुखीय प्रकृति के भूकंप हैं और इनके कारण इस क्षेत्र में बड़े भूकंप आने का खतरा नहीं है।” वैज्ञानिकों का कहना है कि ये कम तीव्रता के भूकंप हैं। इसलिए इन भूकंपों से घबराने की जरूरत नहीं है।
कभी-कभी, भूकंपों का एक स्पष्ट मुख्य झटका नहीं होता है और वे स्थान और समय में समूहबद्ध होते हैं। धीमे कंपन से लेकर मुख्य आघात और फिर उसके बाद लगने वाले झटकों की श्रृंखला के रूप में भूकंप विकसित होता है। कई बार भूकंपों की श्रृंखला में कोई स्पष्ट मुख्य आघात नहीं होता, पर वे एक खास समय पर किसी स्थान विशेष में बने रह सकते हैं। भूकंपों का यह सिलसिला कुछ घंटों से लेकर कई महीनों तक बना रह सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि पालघर के भूकंपों की इस श्रृंखला की शुरुआत वर्ष 2018 में मानसून के दौरान हुई थी। एक छोटी गिरावट के बाद, जून 2019 से शुरू होने वाली मानसून की बारिश के दौरान भूकंप की आवृत्ति फिर से बढ़ गई, जिससे पता चलता है कि भूकंप की इस श्रृंखला की वजह मानसून हो सकता है।
भूकंपों की यह श्रृंखला 30 किलोमीटर के एक सीमित दायरे में फैली हुई थी, जिसका केंद्र छह किलोमीटर की गहराई तक दर्ज किया गया है। भूकंपों की इस श्रृंखला के अध्ययन के लिए भूकंप-सूचक यंत्रों और उपग्रह चित्रों का उपयोग किया गया है, जिससे नवंबर 2018 से मई 2019 के दौरान करीब 3 सेंटीमीटर सतह के धंसने का पता चला है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप की यह श्रृंखला भारत के पश्चिमी तट के बहुत करीब दर्ज की गई है। ऐसे में, ज्वारीय तरंगों के कारण तटीय क्षेत्र में पानी के प्रवेश करने से स्थानीय जलीय व्यस्था में परिवर्तन हो सकता है। इसीलिए, सतह की नीचे की भू-संरचना और जलीय व्यवस्था के बारे में जानकारी होना बहुत महत्वपूर्ण है। जल स्तर में बदलाव और पानी के कुओं में तापमान में बदलाव की निगरानी भी आवश्यक है।
डॉ गहलौत ने बताया कि की “इन भूकंपों की विशेषताओं में इनका सीमित स्थान पर केंद्रित होना, उथला केंद्र और सतह के धंसने से पता चलता है कि इनके लिए विवर्तनिक कारण जिम्मेदार नहीं है। यह वास्तव में पानी के रिसाव से उपजी एक स्थानीय गैर-विवर्तनिक गतिविधि हो सकती है। इसीलिए, इन भूगर्भीय झटकों से किसी बड़े भूकंप के आने की आशंका व्यक्त नहीं की जा रही है। हालाँकि, लोगों को सुरक्षा के लिहाज से सावधानी बरतने की जरूरत है।”
यह अध्ययन शोध पत्रिका टेक्टोनोफिजिक्स में प्रकाशित किया गया है। डॉ गहलौत के अलावा शोधकर्ताओं की टीम में राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र, नई दिल्ली के वरुण शर्मा, मोनिका वधावन, जी. सुरेश व नरेश राणा, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)-स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, अहमदाबाद के के.एम. श्रीजीत तथा रितेश अग्रवाल, भूकंपीय अनुसंधान संस्थान, अहमदाबाद की चारू कामरा और भारत मौसम विज्ञान विभाग, मुंबई के के.एस. होसालिकर व किरण वी. नरखेड़े शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)
उमाशंकर मिश्र