1965 युद्ध में हम से चार गुणा छोटा मुल्क पाकिस्तान हमारी एयरफोर्स पर भारी पड़ गया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के पास अधिक गुणवत्ता वाले अमरीकी F86 Sabre और ब्रिटिश Starfighter विमान थे जबकि भारत के पास Gnats, Mysteres, रात को न उड़ पाने वाले हंटर और धीमी गति से उड़ने वाले वैम्पायर एयरक्राफ्ट थे। उन दिनों पाकिस्तान अमेरिकी खेमे में था और उसे उस वक्त अमेरिका से भरपूर मदद मिल रही थी। उन्हें अमेरिका ने लेटेस्ट रडार सिस्टम दिए थे जिससे भारतीय विमानों पर नजर रखना आसान था।
1965 के युद्ध में भारत ने अपनी थल सेना की मदद के लिए पाक सेना पर सबसे पहला हवाई हमला 1 सितंबर को शुरू किया जिसमें 12 वैम्पायर और 14 मिस्टेरे जहाज थे। पाकिस्तान ने जवाब में F-86 साबरे ने 4 वैम्पायर विमान मार गिराए। पहले ही हमले की नाकामयाबी के बाद भारत ने वैम्पायर विमान हटा लिए। बकौल एयर फोर्स मार्शल अर्जुन सिंह “भारत को स्तिथि संभालने में 3 दिन लग गए। उसके बाद भारतीय वायुसेना ने युद्ध को बखूबी लड़ा”। भारतीय वायुसेना के विमान जरूर पुराने थे मगर उनकी संख्या पाकिस्तानियों से कई कहीं ज्यादा थी।पाकिस्तान को शुरुआती हमलों में जीत मिली भी। 3 सितम्बर को भारत के ग्नाट विमानों ने दो अमरिकी F-86 साबरे विमान मार गिराए। 4 सितम्बर को एक पाकी
F-86 साबरे और दो भारतीय हंटर मार गिराए गए। 6 सितम्बर को भारत के पठानकोट एयरबेस में खड़े हुए 10 विमानों को एक ही दिन उड़ा दिया। मगर उसके बाद लड़ाई लगभग बराबर ही रही।भारतीय वायुसेना पाकिस्तान के लगभग हर शहर पर हमला करने लगी तो पाकिस्तान में अपने विमान अफगानिस्तान के एक शहर जाहेदान में छिपा दिए थे। करीब 21 दिन चले इस वायु युद्ध में पाकिस्तान के करीब 20 से 30 विमान क्षतिग्रस्त हुए थे जबकि भारत के करीब 60 से 80 विमान नष्ट हुए थे।
1965 की जंग से भारतीय वायु सेना ने जो सबक सीखे और जो आधुनिकीकरण हुआ उसके बाद सन 1971 के बंगलादेश की आजादी वाले युद्ध में भारतीय वायुसेना की निर्णायक भूमिका रही। 1991 में नरसिम्हा राव जी ने इजरायल से हमारा रिश्ता जोड़ा वो 2001 के कारगिल युद्ध मे इजरायल से मिले बनकर बम्ब व रडारों से वायुसेना ने फिर एक बार हम किरदार निभाया।
घरेलू फ्रंट में बर्मा में नगा विद्रोहियों के खिलाफ ग्राउंड अटैक को भारतीय सेना ने बख़ूबी अंजाम दिया पर पुलवामा हमले के बाद इस तरह का अंदर तक घुस कर सैनिक अभियान पाक की बैटल हार्डेण्ड सेना के हिफ्ज़ो अमन में बैठे इस्लामी दरिंदो के खिलाफ नही हो सकता था। ऐसे में वैकल्पिक रूप से केवल एयरफोर्स का रास्ता ही बचा था, एयरफोर्स का चुनाव किया गया बालाकोट के चयनित स्थान पर हवाई हमले हुए।
हवा से जमीन तक मार के फिट फ्रांसीसी मिराज 2000 विमान पाक सीमा के करीब 90 किमी तक अंदर घुस गए, उनकी सुरक्षा के लिए कॉम्बेट फाइटर Su30MKI भारतीय सीमा पर रुके रहे। मिराज ने फर्स्ट मूवर एडवांटेज लिया जब तक पाकिस्तानी कॉम्बेट के लिए आते वो मिशन पूरा कर अपनी सीमा में लौट आये Su30MKI को किसी से द्वंद करने का मौका ही नही मिला। जवाबी हमला हुआ, पाकिस्तान ने भारत की तरह ही अमरीकी F-16 से हमला किया और नवनिर्मित चीनी J-17 सीमा पर कॉम्बेट के लिए तैयार रखे। एक F-16 को उलझाने गए अभिनन्दन के विमान पर मिसाइल लग गयी।अभिनन्दन का विमान मिग 21 बाइसन 1975 में ही अन्य देशों द्वारा रिटायर कर दिया गया था इस पुराने जहाज ने कद्दावर F16 विमानों को डागफाइट में उलझाया यह बड़ी बात थी। उसी वक्त भारतीय वायुसेना के एक हेलिकॉप्टर मिग 17 को गलती से अपनी ही मिसाइल से मार गिराया गया जिसमे 6 ऐयरफ़ोर्सकर्मी वीरगति को प्राप्त हए। इस झड़प में भारत ने दावा किया कि उसने पायलट अभिनन्दन ने पाकिस्तान के F-16 विमान मार गिराया है जबकि पाकिस्तान ने दावा किया की उसके चीन में बने नए जगज J-17 ने हिंदुस्तान के ज्यादा ताकतवर Su30mki को मार गिराया है।आज भारत की मीडिया जो गलवान घाटी की छोटी सी छोटी तस्वीर भी निकाल लेती है वह F-16 विमान का मलबा ढूंढने में नाकाम रही इसलिए ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता की इस झड़प में हमने पाकिस्तान का कितना नुकसान किया पर यह तो तय है कि हमने दो एयरक्राफ्ट मिग 21 बायसन विमान और दूसरा मिग 17 हेलीकॉप्टर जरूर खो दिया। बालाकोट हमले के बाद भारतीय वायुसेना अलर्ट थी फिर भी पाकिस्तान ने दो विमान नष्ट कर दिए इस लिहाज से पाकिस्तान विजयी रहा।
2020 के चीनी अतिक्रमण के बाद भारत के रणनीतिकारों द्वारा सुझाये गए टू फ्रंट वॉर यानी चीन पाकिस्ता के दो मोर्चों पर युद्ध की संभावना हैं।पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण जहाज F-16 और अब वह सारे पुराने जहाजों की जगह रूस के त्यागे हुए प्रोटोटाइप पर चीनी द्वारा डिजाइन किया और रूसी इंजन वाले J-17 के करीब 100 विमान हैं यह दोनों ही विमान चौथे जनरेशन के हैं। भारत के पास उनकी टक्कर के लिए मिराज 2000 और SU30MKI विमान हैं। इसके इतर चीन ज्यादा ताकतवर हैं। चीन की PLAAF (प्लाफ़) के पास रूसी SU-27, SU-30MKK और SU-35S, के साथ साथ अपने बनाये चौथी जनरेशन के J 10 और पांचवी जनरेशन का स्टेल्थ विमान J-20 हैं।
पांचवी जनरेशन के फाइटर एयरक्राफ्ट बनाने की कुव्वत मात्र 3 देशों में है सबसे पहले अमरीका ने F 22 फिर F-35 बनाकर उन्हें आपरेशन में भी ले रखा हैं जबकि रूस ने SU और चीन ने J-20 विमान बना तो लिए है पर ऑपरेशनल नही किये हैं। भारत की चिंता यही चीनी J-20 स्टेल्थ विमान हैं। हालांकि चीन इसका भी इंजन नही बना पाया है उसे इस विमान के लिए फिर से रूसी इंजन लगाना पड़ा है जिसका थ्रस्ट-टू-वेट अनुपात अनुकूल नहीं है। हमलोग भी भी कावेरी प्रोजेक्ट के फेल होने के बाद अमरीकी जनरल इलेक्ट्रिक के इंजन का इस्तेमाल तेजस में करते है। इसका मतलब चीन ने सिर्फ स्टेल्थ ढांचा बनाया हैं जिसे भारत भी देर सबेर बना ही लेगा। इंजिन रूस से ले सकते हैं, यह प्रॉजेक्ट जिसका नाम आम है वो चल रहा हैं। 80 के दशक में हमने ‘फ्लाइंग कफ़न’ के नाम से मशहूर हो चुके रूसी मिग विमानों को बदलने के लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट शुरू किया हमने 2002 में उसे तेजस का नाम दिया पर आज 40 साल भी वायुसेना ने बमुश्किल 10 तेजस विमान लिए हैं वही 1995 में पाक ने चीन के साथ J 17 का काम शुरू किया और वो 2017 में उसे एक्पोर्ट भी करने लगा। पाकिस्तान ने पिछले साल घोषणा की थी कि अब वो हर पन्द्रह दिन में एक J 17 बनाएगा। उस लिहाज से हम तेजस में थोड़ा पीछे है, फिर तेजस J17 से कमतर भी हैं। तेजस के लिए बनाये जा रहे कावेरी इंजन को हम 2018 में ही बंद कर चुके है, इसी साल हमने रूस के साथ मिलकर नए फाइटर प्लेन SU-35 पर भी काम करने से मना कर दिया। अब हम खुद से ही चौथी जनरेशन का और पांचवी जनरेशन का विमान बना रहै हैं।
भारतीय वायुसेना ने उत्तरी हिस्से में चीन के J-20s की तैनाती का मुकाबला करने के लिए अपने Su-30MKI को तैनात कर रखा है। Su-30MKI एक उन्नत श्रेणी का विमान है जिसका राडार भी बेहद उन्नत हैं, फिर अमेरिका के F-22 और F-35 स्टील्थ जेट्स के विपरीत, J-20 में हर प्रकार से स्टील्थ विमान नहीं है। 2018 में भारत के SU30MKI विमान के रडार ने इसका पता लगा लिया था। सुरक्षा और प्रशिक्षण के उद्देश्यों के लिए, स्टील्थ विमान अक्सर मार्करों के साथ उड़ान भरते हैं जो कि पीकटाइम युद्धाभ्यास के दौरान उनके स्टील्थ को नष्ट कर देते हैं।इसके अलावा, यह संभव है कि चीनी J-20 को रडार परावर्तकों के साथ उड़ान भर रहे हैं और अपने वास्तविक रडार क्रॉस सेक्शन को पीकटाइम ऑपरेशन के दौरान छिपा रहे हैं – जैसे कि USAF नियमित रूप से F-22 और F-35 के साथ करता है। J-20 की यही फनकारी हमारी प्रमुख चिंता हैं।
दूसरी तरफ चीन की मुश्किल यह है कि उसके भारत के नजदीक एयर बेस हिमालय पर करीब 4000 मीटर या उससे अधिक की ऊंचाई पर स्थित हैं। चूंकि इस ऊंचाई पर हवा कम घनी होती है, तो चीनी विमान न ज्यादा हथियार ना ज्यादा ईंधन ले जा सकते जबकि भारत के हवाई अड्डे कम ऊंचाई पर स्थित हैं। इसका हल उसने पाकिस्तान के कब्जाए गिलगित बाल्टिस्तान में मौजूद स्कार्दू बेस में दसरी हवाई पट्टी बनाकर निकलने की कोशिश की हैं। स्कार्दू से श्रीनगर व लेह चन्द मिनिट दूर है, यह भारतीय वायुसेना की दूसरी चिंता हैं।
चीन के पास 30 से 40 जे-20 हैं तो भारत ने भी चाइना सेंट्रिक नीति बनाते हुए 39 राफेल खरिदे है जो हिमाचल के जस्ट नीचे अम्बाला और भूटान अरुणाचल के साथ लगे हाशिमरा एयरबेस पर तैनात होंगे। अम्बाला से ल्हासा 1380 किमी और अलीपुरद्वार जिले में स्तिथ हाशिमरा एयरफ़ोर्स बेस से चीन के सिचुआन प्रान्त की राजधानी चेंगदू 1600 किमी दूर है। पाकिस्तान को एक्सपोर्ट करे गए J-17 और स्टेल्थ विमान J 20 इसी चेंगदू शहर के कारखाने में बनते है। राफेल करीब 3200 किमी तक कि रेंज में उड़ सकता है सो चीन के पश्चिम भाग के प्रमुख शहर इसकी जद में आ जाते हैं। राफेल विमान कोई साधारण विमान नही क्योंकि इसकी कीमत का बहुत बड़ा हिस्सा करीब 30% उसके राडार और स्पेक्ट्रा प्रणाली पर खर्च हुआ है स्पैक्ट्रा एक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट है जो खतरों का बेहतर विश्लेषण करने में सक्षम है, जिससे राफेल का पता लगाना और हमला करना बेहद मुश्किल है। रॉफेल से आशा हैं कि वह J-20 की एयर सुपिरियोरिटी या दबंगई को खत्म करेगा।
-परवीन शुक्ला