येस बैंक के शुरू हुए अभी 16-17 साल ही हुए है।
राणा कपूर और अशोक कपूर दोनों ने मिलकर 2003 में येस बैंक शुरू किया था. और देखते-देखते भारत का चौथा सबसे बड़ा निजी बैंक बन गया। UPI लेन-देन में येस बैंक की सबसे अधिक हिस्सेदारी रही है…करीब चालीस प्रतिशत।
बैंक 2003 में शुरू हुआ और सही तरीकों से आगे बढ़ने लगा। 2008 का मुंबई आतंकी हमला इस बैंक के लिये भी झटका साबित हुआ। उस हमले में अशोक कपूर भी मारे गये और यहीं से गोरखधंधे की शुरुआत हो गयी।
अशोक कपूर के मरने के बाद बैंक पर नियंत्रण को लेकर उनकी पत्नी और भाई राणा कपूर में खींचतान शुरू हुई। उच्चतम न्यायालय के फैसले से राणा कपूर को बैंक पर नियंत्रण मिल गया। राणा कपूर के नेतृत्व में येस बैंक ने हर उस उद्यमी और कंपनी को कर्ज देना शुरू कर दिया, जिन्हें अन्य बैंक खराब क्रेडिट के कारण मना कर चुके थे। राणा कपूर इस तरह के कर्जों को बैलेंस शीट से छुपाते रहे और कुछ अज्ञात पुरवर्ती सरकार के खास मंत्रियों के कारणों से यह गोरखधंधा RBI को भी नहीं दिखा!
रिज़र्व बैंक की नींद खुली सितंबर 2018 में। दस साल की लंबी नींद के बाद। RBI ने राणा कपूर को बैंक का प्रबंधन छोड़ने को कहा और हिस्सेदारी भी बेचने को कहा। यहाँ से प्रत्यक्ष बुरे अध्याय की शुरुआत हुई। RBI के कड़े रवैये के कारण राणा कपूर को हटना पड़ा। एक अन्य मामले को लेकर RBI ने येस बैंक पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगा दिया।
RBI ने येस बैंक की तमाम गड़बड़ियों और इनमें शीर्ष प्रबंधन की भूमिका को देखते हुए बोर्ड में नया प्रबंधन बनाया गया। नये प्रबंधन को एक समयसीमा के दायरे में नये निवेशक खोजने या अन्य साधनों से पूँजी जुटाने का काम दिया गया। हालाँकि ऐसा कुछ भी नहीं हो पाने और समय सीमा बीत जाने के बाद RBI और केंद्र सरकार ने बैंक को अपने हाथों में ले लिया। इसके बाद ही बैंक के खाते से निकासी की अधिकतम सीमा तय की गयी। आज ही RBI गवर्नर ने कहा भी है कि अधिकतम 30 दिन में स्थायी समाधान निकाल लिया जायेगा।
इतनी पूरी कहानी पढ़कर आप भी सोचेंगे कि आगे क्या होगा, यह इसीलिए बता रहा हूँ. फेसबुक और व्हाट्सएप्प से पीएचडी के युग में स्वाभाविक है कि हर विषयों के विशेषज्ञ कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं। विशेषज्ञ क्रोनोलॉजी समझा रहे हैं, कि नोटबंदी करके जनता का पैसा बैंकों में जमा कर लिया, फिर उद्योगपति मित्रों को वह पैसा बाँट दिया, और अब बैंक कंगाल हो गया है, अब सबका पैसा डूब जाएगा
नोटबंदी हुई नवंबर 2016 में।
येस बैंक में गोरखधंधा शुरू हुआ 2008 में। अब यह पहली कक्षा के बालकों के लायक सवाल है कि पहले 2016 आया कि 2008?
यदि आपको इसका जवाब पता है तो आपको बधाई, क्योंकि आप फेसबुक और व्हाट्सएप्प से पीएचडी हुए तमाम विशेषज्ञों से अधिक समझदार… अधिक पढ़े-लिखे हैं.
अब इस कहानी में एक और कहानी बता देता हूँ. एक बैंक हुआ करता था, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक। तो ग्लोबल ट्रस्ट बैंक भी अपने समय का येस बैंक था। दक्षिण भारत में तो यह SBI पर भी भारी था। केतन पारेख से शेयर घोटाले में संलिप्त होने के कारण इसके बुरे दिन शुरू हुए थे। जैसे अभी RBI ने येस बैंक को अपने हाथों में लिया है, इसी तरह ग्लोबल ट्रस्ट बैंक को भी लिया गया था। ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का बाद में ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स में विलय हो गया। ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के खाताधारक अभी भी हैं। उनके पैसे भी हैं। बस अब वे ओरिएण्टल बैंक के खाताधारक हैं।
येस बैंक के खाताधारकों को परेशानियाँ हो रही हैं। जानकारियां जुटाई तो मालूम हुआ कि यह आज भर की दिक्कत है। कल से चीजें सामान्य होने लगेंगी। हाँ, सब सामान्य बना रह सकता था यदि RBI अभी भी 2008 से लेकर 2018 वाली नींद में रहता, यदि अभी भी रायसीना हिल्स के निर्देश पर RBI सब देखकर आँखें मूंदे रहता।
पिछली सरकार के पाप धोने में वर्तमान सरकार लगी है। सरकार को चाहिए कि वे इनका भंडाफोड़ करके जनता को साथ साथ ये पूरी बात भी बताती चले ….