नई दिल्ली, 4 अगस्त (इंडिया साइंस वायर): भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे और कनाडा के
एग्रीकल्चर ऐंड एग्री-फूड विभाग के शोधकर्ताओं ने फसलों की वृद्धि की निगरानी के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग
किया है। इस संयुक्त अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उपग्रह से प्राप्त राडार डेटा का उपयोग उन मापदंडों का अनुमान
लगाने के लिए किया है, जो सोया और गेहूं के विकास को निर्धारित करते हैं।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, फसलों की निगरानी खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि,
कृषि के तहत लगभग 60% क्षेत्र में, प्रत्यक्ष रूप से निगरानी काफी जटिल है। ऐसे में, उपग्रह हमारी मदद कर
सकते हैं। रिमोट सेंसिंग उपग्रहों के डेटा में पृथ्वी की सतह के राडार स्कैन शामिल हैं, जिनका व्यापक उपयोग वन
मानचित्रण और निगरानी के लिए किया जा सकता है। इसकी मदद से विभिन्न जैव-भौतिकीय मापदंडों का उपयोग
करते हुए किसी दिए गए क्षेत्र में बायोमास का अनुमान लगा सकते हैं।
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने तीन जैव-भौतिकीय मापदंडों का आकलन किया है, जो उपग्रह डेटा का उपयोग
करते हुए गेहूं और सोयाबीन की फसल वृद्धि का निर्धारण करते हैं। इनमें लीफ एरिया इंडेक्स, बायोमास और प्लांट
की ऊंचाई शामिल है। लीफ एरिया इंडेक्स, जैसा कि नाम से पता चलता है, प्रति इकाई जमीन की सतह पर
आकाश के संपर्क में पत्तियों के क्षेत्रफल से है, जिससे पत्तियों के समूह और पत्तियों की कैनोपी (छतरी) की संरचना
का पता चलता है। इसी तरह, बायोमास से फसलों में पानी की मात्रा और संचित कार्बन का आकलन किया जा
सकता है।
शोधकर्ता उपग्रह डेटा एवं निगरानी के आधार पर वनस्पति संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिए एक गणितीय
मॉडल विकसित कर रहे हैं। उन्होंने ‘वाटर क्लाउड’ नामक एक मॉडल का उपयोग किया है, जो यह मानता है कि
फसल की कैनोपी में पानी की मात्रा बिखरी हुई है। यह धारणा उपग्रह डेटा से प्राप्त राडार संकेतों का विश्लेषण
करने के लिए एक सटीक मॉडल प्रदान करती है। मॉडल और गणितीय संबंधों का निर्माण ‘मॉडल इन्वर्सन’ नामक
प्रक्रिया का उपयोग करके किया जाता है, जो राडार डेटा को इनपुट के रूप में उपयोग करके विभिन्न पौधों के
विकास के विवरण जैसे – फसल की ऊंचाई निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है। ‘मॉडल इन्वर्सन’ प्रक्रिया
को अंजाम देने के लिए शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग का उपयोग किया है।
मशीन लर्निंग में सांख्यिकीय मॉडल और एल्गोरिदम का एक सेट होता है, जो कंप्यूटर सिस्टम को स्पष्ट निर्देशों के
बिना डेटा के आधार पर कार्य करने में सक्षम बनाता है। मशीन लर्निंग का एक उदाहरण शॉपिंग वेबसाइट पर देख
सकते हैं, जहाँ आपकी सर्च एवं खरीदारी की हिस्ट्री के आधार पर उत्पादों के सुझाव दिए जाते हैं। मशीन लर्निंग
में आमतौर पर एक आउटपुट को निर्धारित करने के लिए कई इनपुट मापदंडों को मैप किया जाता है। यदि कई
आउटपुट की आवश्यकता होती है, तो इन एल्गोरिदम को विशेष रूप से प्रत्येक आउटपुट के लिए चलाया जाता है।
जब आउटपुट गैर-रैखिक रूप से संबंधित होते हैं, तो परिणाम त्रुटिपूर्ण होने की आशंका बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें ऐसे एल्गोरिद्म की आवश्यकता है, जो आउटपुट के संबंधों को नजरअंदाज नहीं
करता। इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ता दीपांकर मंडल ने बताया, "हमने यह पहचान की है कि लीफ एरिया
इंडेक्स और पौधों के बायोमास बीच के संबंध को ‘मॉडल इन्वर्सन’ के लिए संरक्षित करने की जरूरत है, क्योंकि वे
सीधे फसल की पैदावार से संबंधित हैं।"
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस मॉडल का उपयोग कनाडा में फसल मापदंडों के आकलन के लिए किया गया है।
पर, कुछ बदलावों के साथ इसका उपयोग भारत में भी किया जा सकता है। आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ता डॉ
अविक भट्टाचार्य ने बताया कि “कनाडा के विपरीत भारत में खेतों का आकार काफी छोटा है और फसलों का पैटर्न
भी अलग है। इसलिए, हमें यहाँ पर हाई रिजोल्यूशन और समय-आधारित डेटा की आवश्यकता होगी।”
इस शोध में अगले कदम के रूप में, शोधकर्ताओं ने फसल उत्पादन में जोखिम का आकलन करने के लिए अपने
निष्कर्षों का उपयोग करने की योजना बनायी है। वे अपने एल्गोरिद्म को अनुकूलित करने के तरीके भी ढूंढ रहे हैं
ताकि वे बड़े पैमाने पर डेटा का उपयोग कर सकें। यह अध्ययन शोध पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एप्लाइड अर्थ
ऑब्जर्वेशन ऐंड जिओइन्फॉर्मेशन में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ दीपांकर मंडल और दीपांकर
भट्टाचार्य के अलावा आईआईटी बॉम्बे के वाई.एस. राव, विनीत कुमार और एग्रीकल्चर ऐंड एग्री फूड विभाग, कनाडा
के शोधकर्ता एच. मैक नैर्न शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)