डॉ. वेदप्रताप वैदिक
फ्रांस में इमेन्युअल मेक्रों का राष्ट्रपति बनना कई दृष्टियों से असाधारण घटना है। पहली बात तो यह कि वे पिछले 200 साल में फ्रांस के ऐसे पहले नेता हैं, जो सिर्फ 39 साल के हैं। नेपोलियन 40 का था। दूसरी बात, फ्रांसीसी राजनीति के वे नए सूर्य हैं। वे लगभग दो साल तक पिछली ओलांद सरकार में अर्थमंत्री रहे थे। तीसरी बात, न तो वे वामपंथी हैं न दक्षिणपंथी! फ्रांस की अतिवादी राजनीति में वे एकदम नए मध्यममार्गी हैं। चौथी बात, ओलांद के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने ‘आगे बढ़ो’ (आ मार्शे) आंदोलन चलाया और बिना किसी राजनीतिक दल के ही वे अपने दम पर राष्ट्रपति चुने गए। पांचवीं बात, मेक्रों ने 66 प्रतिशत वोट लेकर ल पेन नामक दक्षिणपंथी महिला को हराया। उनकी इस जीत का सारे विश्व में स्वागत हुआ। अपनी प्रतिद्वंदी और पुरानी विख्यात महिला नेता से दुगुने वोट से जीतना यह बताता है कि फ्रांस मध्यम मार्ग पर चलना चाहता है, जो कि यूरोपीय देशों के अलावा भारत, चीन, रुस और अमेरिका को भी पसंद है। छठी बात, मेक्रों फ्रांस के शायद ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं, जिनकी संसद में उनका एक भी सांसद नहीं है। यदि अगले माह जून में होनेवाले संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी बहुमत ले पाई तो वे राष्ट्रपति के तौर पर अपना काम आसानी से कर सकेंगे। यों भी फ्रांस के 25 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं, आर्थिक स्थिति असंतोषजनक है, आतंक का खतरा बना हुआ है और जातीय तनाव भी कायम है। यूरोपीय आर्थिक समुदाय भी आजकल संकटग्रस्त है। अमेरिका के ट्रंप और रुस के पुतिन इस परिस्थिति का फायदा उठाना चाहते हैं। इसके अलावा ल पेन को चाहे 34 प्रतिशत वोट मिले हों लेकिन वे सबसे बड़ी विरोधी नेता हैं और वे अब अपने साथ अन्य पार्टियों को भी लेनेवाली हैं। 2002 में उनके पिता को मिले वोटों के मुकाबले उन्हें दुगुने वोट मिले हैं। मेक्रों अभी नौसिखिए हैं, अनुभवहीन हैं। डर यही है कि वे चुनाव में जितने सफल हुए, उतने सफल वे शासन में होंगे या नहीं? मंहगे सूट पहनने का उन्हें बहुत शौक है, हमारे नरेंद्र मोदी की तरह ! कहीं वे भी बंडियां बदल-बदलकर बंडल मारते न रह जाएं ! यदि मेक्रों सफल होंगे तो यूरोपीय संघ मजबूत होगा और भारत-जैसे देशों के साथ फ्रांस की संबंध घनिष्ट होंगे।