डॉ. वेदप्रताप वैदिक
ऐसा लगता है कि उत्तराखंड की सरकार को मूर्खता का दौरा पड़ गया है। जो मूर्खता वह करने जा रही है, वह भारत में आज तक किसी भी सरकार ने नहीं की है। मज़े की बात है कि उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है। अब उत्तराखंड के 18000 सरकारी स्कूलों में सारे विषयों की पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और भाजपा के नेता कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे, क्योंकि उनके सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को सबसे ज्यादा पलीता उत्तराखंड की सरकार ही लगाएगी। वह अगले साल से पहली कक्षा से ही बच्चों की सारी पढ़ाई अंग्रेजी में करवाएगी। वह हिरण पर घास लादेगी। सारी दुनिया के शिक्षाशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि बच्चों पर विदेशी भाषा का माध्यम थोप देने से उनका बौद्धिक विकास रुक जाता है। उनकी जो शक्ति किसी विषय को समझने में लगनी चाहिए, वह अंग्रेजी से कुश्ती लड़ने में बर्बाद हो जाएगी। वे रटटू तोते बन जाएंगे। उनकी मौलिकता नष्ट हो जाएगी। वे दिमागी तौर पर बीमार हो जाएंगे। जर्मनी में यह मूर्खतापूर्ण प्रयोग किया जा चुका है। जो बच्चे मातृभाषा और राष्ट्रभाषा से स्कूलों में वंचित रहते हैं, वे अपने ही घर में बेगाने हो जाते हैं। वे अपनी परंपराओं, अपनी विचार-पद्धति और अपनी संस्कृति से कट जाते हैं। भाषाभ्रष्ट को संस्कारभ्रष्ट होते देर नहीं लगती। अकबर इलाहाबादी ने क्या खूब लिखा है—
हम उन कुल किताबों को काबिले-जब्ती समझते हैं।
जिन्हें पढ़कर बेटे बाप को खब्ती समझते हैं ।।
उत्तराखंड की सरकार ने इतना मूर्खतापूर्ण और दुस्साहसिक निर्णय क्यों किया ? शायद यह सोचकर कि बच्चे अच्छी अंग्रेजी जानेंगे तो बड़ी नौकरियां हथिया लेंगे। नौकरियां हथियाने के लिए आप अपने बच्चों को अंग्रेजी की चक्की में क्यों पिसवा रहे हैं ? यदि आप में दम है, पौरुष है तो इस चक्की को ही तोड़ डालिए। सरकारी नौकरियों से अंग्रेजी हटाओ का नारा लगाइए। भारत जैसे भाषायी गुलाम राष्ट्रों की बात जाने दीजिए, दुनिया के किसी भी स्वाभिमानी और महाशक्ति राष्ट्र में लोग अपने बच्चों को विदेशी भाषा की चक्की में पिसने नहीं देते। हमारे ज्यादातर शीर्ष नेता अबौद्धिक और अनपढ़ हैं। वे हीनता ग्रंथि के शिकार है। उन्हें यह पता हीं नहीं कि विदेशी भाषाएं कब और क्यों पढ़ाई जानी चाहिए। इसीलिए इतने मूर्खतापूर्ण निर्णय ले लिए जाते हैं।